विचार / लेख

बच्चों की नाराजगी की दहशत में माँ-बाप
21-Aug-2025 12:55 PM
बच्चों की नाराजगी की दहशत में माँ-बाप

-संजीव शुक्ला, आईपीएस

विगत दिनों एक मित्र का फोन आया। वे एक अर्धशासकीय प्रतिष्ठान में वरिष्ठ अधिकारी हैं। उन्होंने कहा- यार मेरा बेटा 17 साल का है, वो अपनी होंडा बाइक को मॉडिफाई करवाकर डबल साइलेंसर लगवा लिया है और शहर में हवाई जहाज़ की तरह बाइक उड़ाता है। ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी को कहकर गाड़ी जब्त करवा दे और उसे थोड़ा डाँट दिलवा दें ताकि वो ठीक से बाइक चलाए । मैंने उनसे कहा कि एक तो उसके लाइसेंस बनाने की अभी उम्र नहीं हुई है तो उसे बाइक क्यों दी और दूसरी बात कि तुम क्यों नहीं डाँटते? उसने कहा यार उसके बहुत से दोस्तों के पास बाइक है इसलिए दिलवा दी और इकलौता बेटा है। हमारी सुनता नहीं, डाँट से नाराज होकर कहीं चला ना जाए। इस डर से मैं कुछ नहीं बोल रहा हूँ। तुम पुलिस वाले से ही मना करवा दो।

मैं सोच रहा हूँ कि समाज और परिवार की व्यवस्था एक ही पीढ़ी में कितनी बदल गई। माता-पिता अपने ही बच्चे को सही-ग़लत का भेद नहीं समझा पा रहे हैं, उनकी गलतियों पर उन्हें रोक-टोक नहीं पा रहे हैं। आज नाबालिग बच्चों के द्वारा किए जाने वाले अपराध अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहे हैं। इस सबके लिए कौन जिम्मेदार है? मुझे लगता है कि इन सभी परिस्थितियों के लिए सिर्फ और सिर्फ हम ही जिम्मेदार हैं। मुझे इसके कई कारण लगते हैं।

पहला कि बच्चे हमें देखकर ही सीखते हैं। हमारे संस्कार ही वो अपनाते हैं। हम सभी व्यक्तिगत जीवन में सफलता के लिए अपनाये जाने वाले रास्ते एवं साधन सही है या गलत इस पर ध्यान नहीं देते। अनेक अवसर पर हम वो कार्य करते हैं जो समाज में वर्जित हैं। बच्चे सब देखते हैं, ऑब्जर्व करते हैं, और फिर वे भी जीवन जीने का सरल और शॉर्टकट रास्ता अपनाते हैं और तब हम इन सबके लिए बच्चों को जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि वास्तव में जिम्मेदार हम खुद होते हैं।

दूसरा मुझे लगता है हम अपने बच्चों को उतना समय और अटेन्शन नहीं देते जितना हमें हमारे माता-पिता ने दिया और समय नहीं देने के अपने गिल्ट को दूर करने के लिए उसे उम्र से पहले मोबाइल, आई पैड, बाइक इत्यादि वो सब कुछ दे देते हैं जिसके लिए वो इस समय तैयार नहीं होता। बच्चों को समय नहीं देने का एक बड़ा नुकसान यह भी होता है कि उसके बाल मन में जो जिज्ञासा होती है वे उसे भी हमसे साझा नहीं कर पाते और फिर उन सभी प्रश्नों के जवाब वे गूगल, यूट्यूब और सोशल मीडिया पर ढूँढते हैं। सोशल मीडिया और सर्च इंजन से मिले जवाब को ही सही मानकर उनका अनुशरण करते हैं। हम जब बच्चों को समय देते हंै, उनकी जिज्ञासाओं का जवाब देते हैं तो हम उनमें संस्कार का निर्माण करते हैं जिसका विकल्प गूगल कभी नहीं हो सकता ।

तीसरा हमने ऐसी जीवन शैली अपना ली है जो हमें परिवार, रिश्तेदार, समाज से दूर कर देती है। सही अर्थों में हम सामाजिक नहीं रह जाते और इस जीवन शैली में पलने वाले हमारे बच्चों में भी एडजस्ट करने का गुण ही विकसित नहीं हो पाता है। याद करिए अपना बचपन, जब गर्मियों की छुट्टियों में मौसी, मामा, चाचा, बुआ आदि परिवार के साथ घर आते और हम सब एक कमरे में ही बिस्तर लगाकर साथ रह लेते थे। आज बच्चे को रूम शेयर करने को कहिए उसे दिक्कत होगी। सच तो यह है कि उस जीवन शैली में बिना किसी प्रयास के हम एडजस्ट करना अपने आप सीख जाते थे। हमने बच्चों को उससे दूर कर दिया। उनमें दूसरों के साथ एडजस्ट करने का गुण विकसित ही नहीं होने दिया और दोष बच्चे को देते है कि उन्हें एडजस्ट करना नहीं आता।

चौथा पिछली पीढ़ी में बच्चों को अनुशासित करने का दायित्व और अधिकार माता-पिता, शिक्षक, अड़ोस-पड़ोस के वरिष्ठ लोगों आदि सभी के पास होता था। बच्चों की गलतियों पर सभी को रोकने-टोकने और छोटा-मोटा दंड देने का अधिकार होता था और सभी मिलकर उसे अनुशासन सिखाते थे किंतु अब हमने अन्यों के साथ-साथ स्वयं से भी वो अधिकार ले लिया। यही कारण है कि अपने बच्चे को भी अनुशासित करने के लिए हम तथाकथित पढ़े-लिखों को अब पुलिस की जरूरत पड़ रही है।

पांचवा आज दुनिया तेजी से बदल रही है। पहले जो परिवर्तन 20 वर्ष में होता था वह अब 5 वर्ष में हो रहा है। हर 8-10 वर्ष में जनरेशन चेंज हो जाती है। ऐसे में दो पीढिय़ों में सोच का अंतर बढ़ गया है। हमें यह समझना होगा और उसी के अनुरूप अपने बच्चों को समझना होगा। यहाँ हम चूक रहे हैं। हम बच्चों को अपने तरीके से पालना चाहते हैं जबकि जरूरत है कि हम संस्कार तो अपने दें किंतु तरीका वो रखें जो आज बच्चों को समझता है। मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगता है कि पिछली पीढिय़ों में हमारे बुजुर्गों ने परिवार नामक संस्था को मजबूत बनाए रखा किंतु हमारी पीढ़ी भौतिकता और सफलता की अंधी दौड़ में ऐसा करने से चूक रही है। ये शाश्वत सत्य है कि परिवार से समाज और समाज से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। अत: इस ओर हमें स्वयं एवं अपने उन बच्चों को जो भावी अभिभावक बनने जा रहे हैं सचेत किए जाने की जरूरत है।


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