विचार / लेख

जब हत्या भी ‘कंटेंट’ बन जाए...
16-Aug-2025 10:41 PM
जब हत्या भी ‘कंटेंट’ बन जाए...

- समरेन्द्र शर्मा

हेडिंग अजीब लग सकती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के धमतरी में हुई घटना ने इसे भयावह सच बना दिया है। तीन युवाओं की बेरहमी से हत्या, मोबाइल कैमरे में कैद चीखें, सडक़ों पर बिखरा खून और वार करते हाथ। यह सब न सिर्फ देखा गया, बल्कि जानबूझकर रिकॉर्ड किया गया। यह अब महज अपराध नहीं रहा, बल्कि हमारे समय का सबसे डरावना आईना बन गया है। यह वह दौर है जब अपराधी हिंसा को छुपाते नहीं, बल्कि गर्व से ‘प्रदर्शन’ में बदल देते हैं। मानो यह भी एक वीडियो कंटेंट हो, जिसे सोशल मीडिया पर ‘पसंद’ और ‘शेयर’ के लिए बेचा जा सके।

अपराधियों का यह दुस्साहस रातोंरात पैदा नहीं होता। यह तभी संभव है जब कानून का भय मिट जाए, नैतिकता की जड़ें सड़ जाएं और समाज की सामूहिक जिम्मेदारी खोखली हो जाए।

आज का एक बड़ा युवा वर्ग आभासी दुनिया में इतना डूब चुका है कि असली और नकली के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। सोशल मीडिया, रील्स, हिंसक वेब सीरीज और वीडियो गेम मनोरंजन के नाम पर हिंसा को सामान्य, यहां तक कि ‘शौर्य’ के प्रतीक के रूप में पेश कर रहे हैं। मीडिया अध्ययन की ‘कल्टीवेशन थ्योरी’ बताती है कि हिंसा के दृश्य बार-बार देखने से इंसान उसे जीवन का स्वाभाविक हिस्सा मानने लगता है। यह बदलाव अब हमारी नई पीढ़ी की सोच में गहराई तक पैठ चुका है।

इस मानसिक जहर में नशाखोरी घातक तडक़ा लगा रही है। शराब, ड्रग्स और अन्य मादक पदार्थ अब आसानी से मिलते हैं। नशे की गिरफ्त में विवेक और आत्म-नियंत्रण खो चुके युवक कब खतरनाक अपराध कर बैठें, कहना मुश्किल है। इसके ऊपर ऑनलाइन चाकू, तलवार और हथियार की आसान उपलब्धता हिंसा को और आसान बना देती है। लेकिन खतरा केवल नशा या हथियार नहीं, बल्कि पुलिस व्यवस्था का बेबस होना भी है। अपराधियों के मन से भय खत्म हो गया है। किसी भी राज्य का आधार है कानून द्वारा नियंत्रित ‘विधिसम्मत हिंसा का एकाधिकार’। जब यह कमजोर पड़ता है, तो अराजकता का फैलना तय है।

इस स्थिति का हल निकालने कई मोर्चों पर एक साथ काम करना होगा। परिवारों को बच्चों में नैतिक मूल्यों, सहिष्णुता और अनुशासन की नींव मजबूत करनी होगी।

स्कूल-कॉलेज में नशा-निरोध, मानसिक स्वास्थ्य और साइबर साक्षरता को पढ़ाई का हिस्सा बनाना होगा। युवाओं को खेल, कला, साहित्य और उद्यमिता के मंच देने होंगे, ताकि उनकी ऊर्जा रचनात्मक दिशा में बहे।

कानून को सख्त और आधुनिक बनाना होगा। ऑनलाइन हथियार बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध, नशे के कारोबार पर कठोर कार्रवाई और हिंसक अपराधों में त्वरित व निश्चित सजा के उदाहरण पेश करने होंगे। पुलिस को केवल घटना के बाद नहीं, बल्कि पहले से रोकथाम की दिशा में सक्रिय और भरोसेमंद बनाना होगा।

धमतरी की यह घटना एक चेतावनी है। अगर हमने अब भी आंखें मूँदी रखीं, तो कल और खतरनाक होगा। वह भी कैमरे में कैद होकर ‘कंटेंट’ बन जाएगा। अपराध की जड़ केवल अपराधी में नहीं होती, वह उस माहौल में पनपती है जिसे हम सब मिलकर बनाते हैं।

अगर हम हिंसा, नशाखोरी और अनुशासनहीनता को सामान्य मानते रहेंगे, तो अगली खबर किसी और धमतरी की होगी। अब समय आ गया है कि अपराधियों को तेज, निश्चित और कठोर सजा देकर कानून का भय फिर से जगाना होगा।

धमतरी की घटना हमारी सामूहिक चेतना के लिए खतरे की घंटी है। अगर हमने अभी भी चेहरा फेर लिया, तो वह दिन दूर नहीं जब हिंसा हमारे रोजमर्रा की आदत बन जाएगी और तब हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा।


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