विचार / लेख

खोए हुए 13 महीनों की भरपाई कौन करेगा?
14-Aug-2025 7:57 PM
 खोए हुए 13 महीनों की भरपाई कौन करेगा?

-अपूर्व झा

एक तंग कमरे में राजेश विश्वकर्मा चुपचाप बैठे हैं। तेरह महीने तक वह जेल में रहे। वह जेल में इसलिए नहीं रहे कि उन्होंने कोई अपराध किया था, बल्कि इसलिए कि उन्होंने किसी की मदद करने की कोशिश की थी। वह एक दिहाड़ी मजदूर हैं। उनके पास न जमीन है, न माता-पिता और न ही कोई कानूनी जागरूकता। वह व्यवस्था का शिकार बन गए।

एनडीटीवी के रिपोर्ट के अनुसार, 16 जून 2024 को राजेश अपने पड़ोस की एक बीमार महिला को डीआईजी बंगले के पास एक अस्पताल ले गए। वह दर्द से कराह रही थी। राजेश ने वही किया जो कोई भी सभ्य इंसान करता। उसे अस्पताल में भर्ती कराया और काम पर निकल गए। शाम तक महिला की मौत हो चुकी थी। अगली सुबह राजेश को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

राजेश ने बताया कि वह उस महिला को इसलिए अस्पताल ले गए क्योंकि उसने उनसे कहा था। शाम को पुलिस उसे उठा ले गई, पूछताछ की और अगले दिन गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने पुलिस को बताया कि वह उसे इलाज के लिए ले गए थे। पुलिस ने उन्हें परिवार से भी बात नहीं करने दी। उन्हें नौ दिनों तक थाने में रखा, फिर सीधे जेल भेज दिया गया। उनके पास वकील करने के पैसे नहीं थे।

राजेश ने कहा, ''पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के उनके किराए के कमरे पर ताला लगा दिया। अब मुझे 13 महीने का किराया देना है। कोई मुझे काम नहीं दे रहा है। सब कहते हैं कि मैं जेल से आया हूं। मैं निर्दोष था, फिर भी सलाखों के पीछे रहा। मेरे पास न जमीन है, न माता-पिता, कुछ भी नहीं। मुझे बदनाम भी किया गया है।" एक साल से ज्यादा समय तक राजेश बिना किसी सुनवाई के जेल में सड़ता रहा। उसे न तो कोई वकील मिला और न ही परिवार।

उसकी बहन कमलेश को उसकी गिरफ्तारी के नौ दिन बाद इसकी सूचना दी गई। राजेश की बहन ने बताया, "उन्होंने मुझे शाम 4 बजे फोन किया और कोर्ट आने को कहा। मैं अकेली थी इसलिए नहीं जा सकी। एक हफ्ते बाद जब मैं उनसे मिली तो उन्होंने मुझे सब कुछ बताया। जब मैं उनका आधार कार्ड और फोन लेने थाने गई तो उन्होंने मुझे इधर-उधर दौड़ाया और 500 रुपए वापस मांगे। अगर पुलिस ने ठीक से जांच की होती तो ऐसा कभी नहीं होता। हमारे परिवार में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है। जब भी मौका मिलता, मैं उनसे मिलने जाती थी।"

कोर्ट द्वारा नियुक्त कानूनी सहायक वकील रीना वर्मा ने राजेश की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया। कोर्ट ने आखिरकार राजेश को निर्दोष करार दिया। रीना वर्मा ने बताया कि उसके पास वकील रखने के लिए पैसे नहीं थे। कोर्ट ने मुझे नियुक्त किया। हम न्याय सुनिश्चित करने के लिए पूरी ईमानदारी से काम करते हैं। यह पूरी तरह से मुफ्त सुविधा है।

 

वर्मा ने आगे कहा कि ऐसे दस्तावेज मौजूद थे जिनसे पता चलता था कि महिला की मौत बीमारी के कारण हुई थी। लेकिन, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गला घोंटकर हत्या बताई गई। पुलिस ने अस्पताल से सीसीटीवी फुटेज नहीं ली। मेडिकल रिपोर्ट में मृतक के कपड़ों में विसंगतियां दिखाई गईं। यह भी स्पष्ट नहीं था कि महिला कौन थी। उसे छोड़ने वाले व्यक्ति पर हत्या का आरोप किस आधार पर लगाया गया? कोई सबूत नहीं था। जांच लापरवाह और कमजोर थी।

न्याय की यह विफलता कोई अकेला मामला नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022 और इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारतीय जेलों में बंद 75.8 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं। ये कैदी बिना दोषी ठहराए बस कोर्ट में अपनी सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं।

राजेश का जीवन अब अधर में है। वह कहते हैं, "मेरे खोए हुए 13 महीनों की भरपाई कौन करेगा?" वह बिना किसी जवाब की उम्मीद के पूछते हैं कि जिस थाने से उसकी यह यातना शुरू हुई थी, उससे पूछताछ नहीं हुई है। जिन अधिकारियों ने उनकी जिंदगी बर्बाद की, वे अभी भी अपने पदों पर बने हुए हैं। हालांकि अब कोर्ट ने उसे निर्दोष करार दे दिया है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या उन्हें कभी अपना समय, सम्मान और पहचान वापस मिलेगी?


अन्य पोस्ट