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हिरोशिमा और नागासाकी की भयावह सच्चाई बता रहे ‘हिबाकुशा’
07-Aug-2025 9:58 PM
हिरोशिमा और नागासाकी की भयावह सच्चाई बता रहे ‘हिबाकुशा’

80 साल पहले जापान पर हुए परमाणु बम हमले से जिंदा बचे लोग यानी ‘हिबाकुशा’ अब कम ही बचे हैं। इसलिए कहानीकारों की एक नई पीढ़ी उनकी जगह ले रही है जो दुनिया को उन हमलों का दर्द कभी भूलने नहीं देना चाहती।

 डॉयचे वैले पर जूलियान रायल का लिखा-

जापान के हिरोशिमा में 6 अगस्त को और नागासाकी में 9 अगस्त को परमाणु बम हमलों की बरसी पर श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। इन समारोहों में पूरी दुनिया से हजारों लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। हालांकि, एक दुखद सच यह भी है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार ‘हिबाकुशा’ यानी हमलों में बचे हुए लोगों की संख्या कम होगी।

मार्च में जारी एक सरकारी रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि अब सिर्फ 99,130 हिबाकुशा जीवित हैं, जो पिछले साल की तुलना में 7,695 कम हैं। इसकी वजह यह है कि बढ़ती उम्र अब उनकी संख्या को कम करती जा रही है। फिलहाल, जीवित बचे लोगों की औसत आयु 86।13 वर्ष है।

दुनिया में अब तक सिर्फ एक बार युद्ध में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ है। समय के साथ यह चिंता बढ़ रही है कि इन हमलों की भयावहता और असर, उन्हें अपनी आंखों से देखने वाले लोगों की कहानियों के साथ कहीं गुम न हो जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए, कई संग्रहालय, अलग-अलग संगठन और लोग इन कहानियों को हमेशा के लिए जिंदा रखने के लिए आगे आ रहे हैं। वे चाहते हैं कि आने वाली पीढिय़ां भी इन दर्दनाक घटनाओं के बारे में जाने और परमाणु हथियारों के खतरों को समझ सकें।

शुन सासाकी को लगा कि वह अपने गृहनगर पर हुए परमाणु हमले और उसके बाद की भयावहता को दुनिया तक पहुंचाने में मदद कर सकते हैं। हैरानी की बात है कि उन्होंने अगस्त 2021 से ही हिरोशिमा मेमोरियल पीस पार्क के मुख्य स्थलों के बारे में विदेशी पर्यटकों को बताना शुरू कर दिया था। उस समय उनकी उम्र महज आठ साल थी। आज भी, 12 साल की उम्र में वह यही काम कर रहे हैं।

शुन सासाकी अपने गृहनगर पर हुए परमाणु हमले और उसके बाद की भयावहता को दुनिया तक पहुंचाने में मदद कर रहे हैंशुन सासाकी अपने गृहनगर पर हुए परमाणु हमले और उसके बाद की भयावहता को दुनिया तक पहुंचाने में मदद कर रहे हैं।

सासाकी ने डॉयचे वेले से फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते हुए कहा, ‘जब मैं स्कूल में पहली कक्षा में था, तो मैंने परमाणु बम डोम को देखा। वह बहुत बुरी हालत में था, तो मैंने सोचा कि इसे क्यों नहीं हटाया गया? फिर मैंने इंटरनेट पर खोज की और पीस मेमोरियल म्यूजियम जाकर उस बम के बारे में जाना, जो यहां गिराया गया था।’

गृहनगर की त्रासदी ने झकझोर दिया

अपने गृहनगर के दुखद इतिहास को लेकर सासाकी की रुचि तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि उनकी परदादी 6 अगस्त, 1945 के हमले में बच गई थीं, लेकिन बाद में कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने कहा, ‘जब बम गिराया गया था, तब वह 12 साल की थीं। अपने घर के अंदर थीं, जो हाइपोसेंटर से लगभग 1।5 किलोमीटर दूर था। वह जली नहीं थीं, लेकिन रेडिएशन के संपर्क में आ गई थीं। जब उन्हें बाहर निकाला जा रहा था, तब वह ‘काली बारिश' की चपेट में आ गई थीं।

दरअसल, ‘काली बारिश’ धूल, बम से लगी आग की कालिख और रेडियोएक्टिव कणों का खतरनाक मिश्रण थी। बम फटने के बाद कई घंटों तक यह शहर पर बारिश के रूप में गिरी थी। सासाकी की परदादी, युरिको, 38 साल की उम्र में स्तन कैंसर और 60 साल की उम्र में कोलन कैंसर से पीडि़त हो गई थीं। 69 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

शुन सासाकी को उनके पहले जन्मदिन के मौके पर अंग्रेजी सीखने के खिलौने दिए गए थे। वे चार साल की उम्र तक आते-आते अंग्रेजी में बात करना सीख गए थे। आज वे कहते हैं कि उन्हें जापानी के बजाय अंग्रेजी बोलना ज्यादा पसंद है। इससे उन्हें उन विदेशी लोगों से बात करने का भी मौका मिलता है, जो हिरोशिमा आते समय 1945 की घटना को लेकर पहले से ही कुछ धारणाएं बनाए होते हैं।

सासाकी उन्हें बताते हैं कि कैसे ‘लिटिल बॉय' नामक यूरेनियम बम, परमाणु बम डोम के करीब ठीक ऊपर फटा था। उस बम से लगभग 15 किलो टन टीएनटी के बराबर ऊर्जा निकली थी। विस्फोट के बाद 1।3 किलोमीटर के दायरे में आने वाली लगभग हर इमारत नष्ट हो गई थी और हर व्यक्ति मारा गया था। अनुमान है कि शुरुआती विस्फोट में या उसके बाद के महीनों में गंभीर रूप से जलने या रेडिएशन के संपर्क में आने से लगभग 1,40,000 लोग मारे गए।

सासाकी ने बताया, ‘बहुत से लोग मुझे बताते हैं कि वे हिरोशिमा यह सोचकर आए थे कि उन्हें पूरी कहानी पता है और सिर्फ शहर को बुरी तरह नुकसान पहुंचा था। लेकिन फिर वे कहते हैं कि उन्हें नहीं पता था कि असल में क्या हुआ था।’

आंसू और सच्चाई

उन्होंने कहा, ‘सच्चाई जानने के बाद उनमें से कुछ लोग रोने लगते हैं। ज्यादातर लोग काफी हैरान हो जाते हैं। वे सब मुझसे कहते हैं कि ऐसा कभी दोबारा नहीं होना चाहिए। मुझे लगता है कि युद्ध इसलिए होते हैं क्योंकि लोग वास्तव में नहीं जानते कि युद्ध का कितना गहरा असर होता है।’

सासाकी ने आगे कहा, ‘मैं एक अमेरिकी व्यक्ति को गाइड कर रहा था। उन्होंने कहा कि अब उनका मानना है कि हमें सभी परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इससे मुझे खुशी हुई, क्योंकि जब वे वापस जाकर किसी को हिरोशिमा की सच्चाई बताएंगे और फिर वे किसी और को बताते हैं, तो शांति का संदेश फैलेगा। यहां जो हुआ हम उसे नहीं बदल सकते, लेकिन हम बम के असर की सच्चाई बताकर भविष्य को जरूर बदल सकते हैं।’

नागासाकी में भी हिबाकुशा (परमाणु हमले के बाद जीवित बचे लोग) के अनुभवों को आगे बढ़ाने के लिए इसी तरह के प्रयास हो रहे हैं। यह शहर 9 अगस्त 1945 को ‘फैट मैन’ प्लूटोनियम बम का निशाना बना था। इससे विस्फोट और उसके बाद ल्यूकेमिया और रेडिएशन से जुड़ी अन्य बीमारियों के कारण करीब 80,000 लोगों की मौत हुई थी।

नागासाकी परमाणु बम संग्रहालय के निदेशक ताकुजी इनौए ने कहा, ‘हम एक ऐसे युग की ओर बढ़ रहे हैं जब हिबाकुशा हमारे बीच नहीं रहेंगे। हालांकि, परमाणु बम से प्रभावित शहर होने के नाते, हम परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के बढ़ते खतरे को लेकर काफी चिंतित हैं। यह खतरा यूक्रेन और मध्य पूर्व में जारी युद्धों और अन्य चिंताजनक घटनाओं से उपजे अस्थिर माहौल के कारण और भी बढ़ गया है।’ (dw.comhi)


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