विचार / लेख

एक रिश्ता अनमोल
05-Aug-2025 10:40 PM
एक रिश्ता अनमोल

-ध्रुव गुप्त
यह सर्वमान्य तथ्य है कि किसी व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, स्थिरता और संतुलन बनाए रखने में उसके सहज और खुले हुए दोस्तों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। माता-पिता के आगे हम बचपन में अपने भीतर के  बच्चे को और जवानी में दायित्व बोध को ही अभिव्यक्ति देते हैं। भाई-बहनों के साथ हमारा स्नेह और फि़क्र का एकहरा रिश्ता होता है। एक दूसरे के आंतरिक या भावनात्मक मसलों से यहां कोई सरोकार नहीं होता। बच्चों के साथ हमारा संबंध वात्सल्य और जि़म्मेदारी का होता है।

प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते को आमतौर पर सबसे असहज रिश्ता कहा जाता है जहां दोनों पर एक दूसरे के आगे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करने का दबाव होता है। इस नाटक में दोनों एक दूसरे को पूरी तरह  से जान ही नहीं पाते। प्रेम विवाहों के ज्यादातर असफल होने की यह बड़ी वजह है। पति और पत्नी के रिश्ते में व्यावहारिकता, जि़म्मेदारी और समझौते ज्यादा, खुलापन बहुत कम होता है। दांपत्य के ऐसे मामले दुर्लभ ही हैं जहां पति और पत्नी एक दूसरे को स्पेस देने को तैयार हों। इसी वजह से इस रिश्ते में वक़्त के साथ एकरसता आ जाती है जिसका अंत दुनियादार लोगों के लिए बोझिल समझौतो में और भावुक लोगों के लिए विवाहेतर संबंधों में होता है।

एक दोस्ती का रिश्ता ही ऐसा है जिसमें दो लोगों के भीतर और बाहर, दुख और सुख, अच्छा और बुरा सब एक दूसरे के आगे पूरी तरह खुले होते हैं। कोई बनावट नहीं। कोई दुराव नहीं। औपचारिकता नही। प्यार करने का मन किया तो प्यार कर लिया। लडऩे का मन किया तो लड़ लिया। एक दूसरे का संपूर्ण स्वीकार। ऐसे दोस्त मुश्किल से मिलते हैं लेकिन यदि मिल गए तो जीवन में मानसिक अशांति और तनाव की कोई जगह  भी नहीं। दोस्ती के रिश्ते को ऐसे ही संपूर्ण रिश्ता नहीं कहा जाता है। आप सबको मित्रता दिवस की शुभकामनाएं !


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