विचार / लेख

हमारे शहर हो रहे हैं पानी-पानी
01-Aug-2025 9:22 PM
हमारे शहर हो रहे हैं पानी-पानी

-डॉ. संजय शुक्ला

हिंदी में एक प्रचलित मुहावरा है ‘पानी-पानी होना’यानि शर्मसार या लज्जित होना यह मुहावरा भारतीय शहरों पर सटीक बैठती है। देश में मानसून ने रफ्तार पकड़ ली है और इसी बीच महानगरों से लेकर बड़े शहरों और कस्बों में जलभराव की खबरें लगातार आ रही है। बीते दिनों हुई लगातार बारिश के चलते छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, न्यायधानी बिलासपुर सहित अमूमन सभी शहरों और कस्बों में जलभराव की खबरें एक बार फिर से सामने आई है। भारी बारिश के बीच जल निकासी की माकूल व्यवस्था नहीं होने के कारण बिलासपुर में एक रिटायर्ड प्रोफेसर की मौत फर्श पर पानी भरने से दीवार में फैले करंट से हो गई। रायपुर सहित तमाम शहरों की सडक़ें, गलियां और फ्लाईओवर तथा अंडरब्रिज में भारी जलभराव के चलते जहां यातायात व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुआ वहीं निचली बस्तियों के घरों में बारिश का पानी घुटनों तक भर गया फलस्वरूप वाशिंदों को जहां रतजगा करना पड़ा वहीं बुजुर्गों और बच्चों को भोजन के लिए दो- चार होना पड़ा है। इस बीच नगरीय प्रशासन के तमाम दावों के बीच प्रशासनिक अमला असहाय नजर आया तथा नागरिकों में अव्यवस्था के प्रति नाराजगी भी देखी गई। गौरतलब है कि किसी भी देश के मजबूत अर्थव्यवस्था का प्रतिबिंब उसका चमचमाता शहर ही होता है, शहर जहां तरक्की, रचनात्मकता और नवीनता का केंद्र होता है वहीं यह अर्थव्यवस्था में प्रगति और रोजगार का जनक भी होता है।? भारत के कुल जीडीपी में शहरों का योगदान वर्तमान में 63 फीसदी है जिसके 2050 तक 75 फीसदी पहुंचने की संभावना है। मानव सभ्यता के विकास के साथ ही लोगों के लिए शहर हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है लेकिन अब हमारे शहर तमाम विसंगतियों से जूझ रहे हैं। हालिया इस बारिश ने एक बार फिर से भारतीय शहरों के सीवरेज व्यवस्था और आपदा प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी है। एक शोध के मुताबिक हर बारिश में देश के 66 फीसदी शहरों में व्यापक जलभराव होता है फलस्वरूप हजारों करोड़ रुपए का नुकसान होता है।

बहरहाल यह तस्वीर उस देश की है जहां 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का ढिंढोरा पीटा गया था। शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए सरकार के मंत्रियों, नगरीय निकायों और नौकरशाहों के अब तक दर्जनों विदेशों और महानगरों के अध्ययन दौरे हो चुके हैं लेकिन शहरों के हालात दिनों-दिन बदतर होते जा रहे हैं। शहरों की हालात को देखते हुए कथित अध्ययन दौरे आम जनता के टैक्स के पैसे से नेताओं और अफसरों के महज सैर-सपाटे ही साबित हो रहे हैं क्योंकि इन यात्राओं का कोई परिणाम धरातल पर दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। हर मानसून में महज कुछ घंटों की बारिश में हमारे शहरों में ट्रैफिक जाम,जलभराव, जमीन धसकने और बिजली करंट फैलने जैसी घटनाएं अब आम हो चुकी है। बड़े से लेकर छोटे शहरों में बारिश के दौरान बदहाल व्यवस्था का खामियाजा आम नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है। साल 2017 में मुंबई में भारी बारिश के दौरान खुले मेन होल में गिरने और डूबने से सुप्रसिद्ध गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. दीपक अमरापुरकर की मौत हो गई थी। बीते साल 2024 में दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने की वजह से दो छात्राओं सहित तीन छात्रों की मौत की घटना ने ने देश को झकझोर कर रख दिया था। अलबत्ता यह सिलसिला अभी भी नहीं थमा है और देश के अनेक हिस्सों से शहरों में जलभराव और बिजली करंट के चलते मौत होने की खबरें लगातार आ रही है।

 बहरहाल बारिश के दौरान बरसाती पानी के पुख्ता निकासी व्यवस्था नहीं होने की वजह से जहां जान- माल का नुकसान हो रहा है वहीं इसका दुष्प्रभाव जनस्वास्थ्य, कृषि और आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ रहा है। बरसाती पानी के जमाव की वजह से जहां मच्छर जनित रोग जैसे मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोग होते हैं वहीं दूषित पानी पेयजल आपूर्ति व्यवस्था को भी प्रभावित करती है फलस्वरूप आंत्रशोथ(उल्टी- दस्त), पीलिया, टायफाइड बुखार, पेचिश, जिआर्डियोसिस, पोलियो सहित आंख और त्वचा की बीमारी होती है। जलभराव की वजह से घरों में सांप और जहरीले कीड़े - मकोड़ों के प्रविष्ट होने और उनके दंश से मौत की संभावना भी होती है।बिलाशक बीमारी और मौत का सीधा दबाव स्वास्थ्य सेवाओं और परिवार के आय पर पड़ता है जिससे गरीबी बढ़ती है। दूसरी ओर भारतीय शहरों में जलभराव के चलते होने वाले नुकसान, यातायात बाधा, विद्युत आपूर्ति में व्यवधान, औद्योगिक उत्पादन में कमी, फसल और सब्जियों की बर्बादी, पर्यटन उद्योग से जुड़े काम- धंधों में नुकसान और रोजगार गंवाने से देश को भारी आर्थिक क्षति पहुंचती है। जलभराव का सबसे बुरा असर बस और रेल परिवहन के साथ ही हवाई सेवाओं पर भी पड़ता है जिसके चलते यात्रियों और माल परिवहन को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जलभराव की वजह से सडक़ और पुल - पुलिया क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिसके रिपेयरिंग के लिए सरकार को हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं जो राजकोषीय भार को बढ़ाते हैं। विश्व बैंक के एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में शहरी बाढ़ के चलते हर साल देश को 4 अरब डॉलर का नुकसान होता है।

दरअसल शहरों में बारिश के दौरान जलभराव समस्या के लिए सरकार, स्थानीय नगरीय प्रशासन और नागरिक ही जिम्मेदार हैं। बेतरतीब शहरीकरण, शहरों के वाटर बॉडी यानि तालाबों और झीलों के खत्म होने, बढ़ते कांक्रीटीकरण, अतिक्रमण, पेड़ों की कटाई और सीवेज लाइनों में तकनीकी खामियों के चलते अधिकांश शहर बरसात में बाढ़ की समस्या से जूझ रहे हैं। शहरों में तालाब और झील या तो अतिक्रमण की भेंट चढ़ रहे हैं अथवा इनका क्षेत्रफल कम हो रहा है जबकि एक दौर में पूरे शहर का बरसाती पानी इन्हीं तालाबों और झीलों में जाता था। सडक़ों, फूटपाथ और शहरी विस्तार के कारण अब शहर कांक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुके हैं जिसके चलते जमीन के बरसाती पानी सोखने की नैसर्गिक क्षमता खत्म हो रही है। दूसरी ओर शहरों में जलभराव के लिए आम नागरिक भी काफी हद तक जवाबदेह हैं जो नालियों के उपर अवैध निर्माण अथवा अतिक्रमण कर इसके साफ-सफाई में रूकावट पैदा करते हैं। इसके अलावा लोगों द्वारा नालियों में पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक सामाग्री और कचरे डाले जाते हैं फलस्वरूप नालियां जाम हो जाती है। लिहाजा नागरिकों की भी जवाबदेही के वे अपने कर्तव्य के प्रति अनुशासित हों ताकि शहर स्वच्छ और सेहतमंद बन सकें।

विचारणीय है कि शहर शिक्षा, चिकित्सा व्यवसाय और रोजगार के बड़े केंद्र होते हैं जिस वजह से कस्बों और गांवों की बड़ी आबादी शहरों का रूख कर रहा है जिसके चलते शहरों में जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ रहा है। अनियोजित विकास और बढ़ती आबादी के चलते हमारे शहर अब हांफने लगे हैं। साल 2015 में केंद्र सरकार ने देश के 100 शहरों को विश्वस्तरीय स्वरूप देने का लक्ष्य रखकर ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ का आगाज किया था। योजना के तहत शहरों के बुनियादी ढांचे में सुधार के साथ इन शहरों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा गया था। इस प्रोजेक्ट के तहत शहरी जनजीवन के गुणवत्ता में सुधार, सुरक्षा और संचार प्रौद्योगिकी का विकास, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य और पेयजल व्यवस्था की सुनिश्चितता और जनभागीदारी से सरकारी कामकाज में सुधार जैसे उद्देश्य भी निर्धारित किए गए थे। योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, नवा रायपुर और न्यायधानी बिलासपुर को चुना गया था विडंबना है कि इस योजना के बावजूद इन शहरों के शक्ल-सूरत और सीरत में कोई सुधार परिलक्षित नहीं हुआ बल्कि अब केंद्र सरकार ने इस मिशन को ही बंद कर दिया। बहरहाल देश के सरकारों को अब शहरों की आबादी और भौगोलिक स्थिति के दृष्टिगत आगामी 100 वर्षों के मुताबिक टाउनशिप प्लानिंग कर ड्रेनेज सिस्टम बनाना होगा। देश में जिस तरह सडक़ दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ‘रोड सेफ्टी ऑडिट’ का प्रावधान है उसी तरह शहरी जलभराव को रोकने के लिए बारिश से पहले ड्रेनेज ऑडिट सिस्टम लागू किया जाए और इसके फेल्योर पर जवाबदेही भी तय हो। आज सबसे बड़ी जरूरत शहरी विकास योजनाओं में जारी भ्रष्टाचार और गुणवत्ताहीन निर्माण कार्यों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की है जिसके दिशा में सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आ रही है। बहरहाल भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दौड़ है लिहाजा हमारे शहरों में विश्वस्तरीय बनाने की जरूरत है। अनेक विकसित देशों के शहरों में बारिश के दौरान जलभराव को रोकने के लिए फ्लड टनल्स, टैंक के साथ ही छोटे - छोटे तालाब बनाए गए हैं। चीन में जलभराव रोकने और ग्राउंड वाटर रिचार्ज के लिए 30 से ज्यादा स्पंज शहरों का विकास किया गया है। इन शहरों में ऐसे अधोभूत संरचनाओं का निर्माण किया गया है जो छिद्रयुक्त यानि पोरस होते हैं जो अतिरिक्त पानी को सोख लेते हैं। बिलाशक भारत में सरकारों के पास अधोसंरचना विकास के लिए धन और तकनीकी विशेषज्ञों की कोई कमी नहीं है लेकिन जरूरत दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित करने की है। सरकार को अब शहरों के विकास के लिए जवाबदेही पूर्ण, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त नीति बनाने की जरूरत है ताकि देश ‘विकसित भारत-2047’ के लक्ष्य को हासिल कर सकें।


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