विचार / लेख
- पंकज झा
देश भर में कहीं भी महिला या आदिवासी उत्पीड़न का विषय हो, तो समाज से यह अपेक्षा होती है कि वह पीड़ित के पक्ष में खड़ा दिखे न कि आरोपियों की तीमारदारी में लग जाय। न्याय का अपना तकाजा है। नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत तो यह कहता है कि सौ दोषी भले छूट जाय लेकिन किसी एक निर्दोष को दंड नहीं मिलना चाहिए। तो अदालत भले न्याय को अपनी छलनी में छानें किंतु समाज और संगठनों से आशा यही होती है कि वह पीड़ितों का पक्ष ले, तस्करी या दुष्कर्म आदि जैसे विषयों पर आरोपियों का मनोबल नहीं बढ़ाये। दुखद यह है कि अक्सर ऐसे विषयों पर भी कांग्रेस सस्ती और हल्की राजनीति से बाज नहीं आती।
पिछले दिनों दुर्ग में दो संदिग्ध महिला को गिरफ्तार किया गया, जिस पर आरोप था कि वह प्रदेश की आदिवासी बेटियों की तस्करी में संलिप्त है। क्योंकि वे महिलायें ईसाई मिशनरी से संबंधित थी, तो आश्चर्यजनक ढंग से देश भर में कांग्रेस, दुनिया भर में दुष्प्रचार करने जुट गयी। आसमान सर पर उठा लिया उसने। संसद तक में प्रदर्शन करने पहुंच गए कांग्रेस के लोग।
सोचिए जरा। प्रदेश के अंतिम छोर के एक धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र से संबंधित अपराध में हुई गिरफ़्तारी पर देश भर में हंगामा मचा देना, यह कौन सी नीति है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देश भर में रोज तकरीबन 18 हजार मुकदमें दर्ज किए जाते हैं। इन मुकदमों में जघन्य अपराधों से लेकर सामान्य अपराधों के विषय भी शामिल होते हैं। जमानतीय से लेकर गैर जमानतीय तक। हत्या से लेकर बलात्कार और धर्मांतरण तक के। चोरी और डकैती, तस्करी आदि से संबंधित भी।
आप कल्पना कीजिए, अगर ऐसे हर अपराध दर्ज होने के बाद मुख्य विपक्षी कांग्रेस संसद तक को घेरने लगे, उसके तमाम बड़े कहे जाने वाले नेतागण ट्वीट/पोस्ट आदि करने लगे, तो कैसा होगा! कानून-व्यवस्था तक की स्थिति उसके बाद क्या होगी?
छत्तीसगढ़ में दो नन की गिरफ्तारी का विषय ऐसा ही है। इस प्रकरण में भी बिना तथ्य जाने कूद कर नतीजे पर पहुंच कर, आदिवासी बेटियों के पक्ष में एक शब्द नहीं बोल पाने वाले कांग्रेस के लोगों को सोचना चाहिए कि क्या हर मामले में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर ही अब कोई प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है? या कुछ विशेष संप्रदायों के मामले में यह तय किया जाएगा कि इन संप्रदायों से जुड़े विषयों पर राहुलजी की राय पहले ली जाय? क्या ऐसी कोई व्यवस्था संविधान में है?
तथ्य तो यह है कि हर आरोपी को अंततः विहित व्यवस्था के तहत न्यायिक प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता ही है। अगर आपको किसी आरोप में निरुद्ध किया गया है, तो न्यायिक व्यवस्था के तहत आपको अपना पक्ष कोर्ट में रखना ही होगा, अगर आप निर्दोष भी हैं तो दोषमुक्ति होने का और कोई उपाय नहीं है। आदिवासी लड़कियों की तस्करी जैसे घृणित आरोप में गिरफ्तार अपराधियों के पक्ष में ही खड़े हो कर आप स्वयं को और अधिक अलोकप्रिय ही बनायेंगे।
महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में राजनीतिक लाभ-हानि का विचार कर आरोपियों के पक्ष में ही कांग्रेस के खड़े हो जाने का जाने का यह पहला मामला भी नहीं है। कुछ वर्ष पहले ही जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, तब पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन नवा रायपुर में हुआ था, वहां कांग्रेस की ही डेलीगेट एक चर्चित दलित नेत्री, जो कांग्रेस प्रत्याशी भी रह चुकी है, ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस नेत्री प्रियंका वाड्रा के निजी सचिव ने न केवल दलित नेत्री का उत्पीड़न किया बल्कि उसने जातिगत गाली-गलौज आदि भी की थी। इस आशय का दलित नेत्री ने बाकायदा मुकदमा भी दर्ज कराया था। उस समय भी मामले को दबा दिया गया था और पीड़ित दलित महिला का ही उत्पीड़न होता रहा, वह दर-दर की ठोकर खाती रही लेकिन प्रियंका गांधी के लिए कई किलोमीटर लंबी गुलाबों की पंखुड़ियां बिछाई जाती रही थी। और उन्हीं मोटी पंखुड़ियों के बीच बीच रायपुर में हुए एक अन्य दुष्कर्म (जैसा कि कांग्रेस की एक पूर्व नेत्री ने आरोप लगाया है) की खबरें भी दबा दी गई थी ताकि अधिवेशन खराब न हो। लड़की हूँ लड़ सकती हूँ के नारे के पीछे किस तरह आदिवासी, दलित, महिलाओं की आवाज दबा दी जाती है और आरोपियों/अपराधियों के पक्ष में कांग्रेस खड़ी हो जाती है, उसके उपरोक्त जैसे सैकड़ों उदाहरण आपको मिल जायेंगे।
लड़कियों को नौकरी का झांसा देकर तस्करी किए जाने अर्थात् ह्यूमन ट्रैफिकिंग विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों में एक संगठित अपराध की तरह है। इस पर लगातार सरकारें लगातार कार्रवाई करती ही हैं। आदिवासी जन-जीवन और अस्मिता से जुड़े ऐसी किसी भी लड़ाई को कमजोर नहीं होने देना चाहिए। पुलिस को अपना काम करने देना चाहिए। पर मामले में ईसाई एंगल आते ही इस तरह कांग्रेस का टूट पड़ना निंदनीय है।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि सन 2022 में (जब प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार थी) छत्तीसगढ़ में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के तहत दर्ज मामलों की संख्या लगभग 100 थी। ये मामले मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित थे, जिनमें देह व्यापार, जबरन मजदूरी, और घरेलू काम शामिल हैं। हाल के दिनों में केवल जनवरी-जुलाई 2024 तक, छत्तीसगढ़ पुलिस ने 50 से अधिक तस्करी पीड़ितों को बचाया, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। पिछले वर्ष के एक मामले में तो छत्तीसगढ़ पुलिस ने रायपुर में एक अंतरराज्यीय तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ किया, जिसमें 15 नाबालिग लड़कियों को दिल्ली भेजा जा रहा था। तब भी 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। जुलाई 2024 में रायपुर में तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ कर 8 नाबालिग लड़कियों को बचाया गया। मई 2024 में बस्तर से एक 12 बच्चों को तस्करी से बचाया, जो ईंट भट्टों में काम करने के लिए ले जाए जा रहे थे। इससे पहले सुरजपुर में पुलिस ने सामाजिक संगठनों की सहायता से 10 बच्चों को बचाया, फिर आदिवासी समुदायों से युवतियों को नौकरी का झांसा देकर तस्करी करने के कई मामले दर्ज किए गए। पुलिस ने बाकायदा अभियान चला कर दर्जनों ऐसे संगठित अपराधों का खुलासा किया और पीड़ितों का रेस्क्यू किया।
ऐसे अन्य तमाम विषयों की तरह ही इसे भी देखा जाना चाहिए था। लेकिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, उनकी बहन प्रियंका वाड्रा समेत दर्जनों कांग्रेस नेताओं ने आरोपियों के पक्ष में सोश्यल मीडिया पर बयानों की बाढ़ ला दिया। एक बड़े कांग्रेस नेता ने तो बकायदा आरोपियों की सिफारिश करते हुए पत्र तक लिख दिया। संसद में कांग्रेस ने प्रदर्शन तक किया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक स्थगन प्रस्ताव भी लाने की तैयारी से संबंधित खबर आ रही है।
कांग्रेस को यह ध्यान रखना होगा कि मानव तस्करी का यह कृत्य न केवल बच्चियों को देह व्यापार में धकेलने संगठित रूप से यह किया जा रहा है, बल्कि अंग तस्करी आदि के लिए भी ऐसे घृणित अपराध होने की सूचना है। ऐसे मामलों पर कांग्रेस की बासी कढ़ी में इतना उबाल नहीं आना चाहिए। अन्य विषयों से इसमें विशेषता केवल यह थी कि दोनों आरोपी महिला ईसाई समुदाय से जुड़ी थी और ‘नन’ थी। तो क्या छत्तीसगढ़ में पुलिस को अब कोई कार्रवाई करने से पहले यह देखना पड़ेगा कि आरोपी कोई ईसाई या मुस्लिम न हो? अगर ऐसे किसी के खिलाफ मुकदमें आदि दर्ज किए गए, तो कांग्रेस इस तरह अपनी समूची ताकत बस्तर की बेटियों का सौदा करने वालों के पक्ष में झोंक देगी? जिस संविधान की बड़ी-बड़ी बात राहुल गांधी करते हैं, क्या वह संविधान ऐसे किसी कृत्य की इजाजत देता है? क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार प्रदेश की सरकार को आखिरकार क्यों केंद्रीय कांग्रेस से कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र चाहिए भला?
कांग्रेस और चर्च के ऐसे गठजोड़ के मामले लगातार आते रहना चिंता की बात है। यह देश के पंथ निरपेक्ष ढांचे पर प्रहार जैसा है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रहते अनेक ऐसी ही घटनायें हुई जिसमें तब की कांग्रेस सरकार आदिवासियों के उत्पीड़न से संबंधित घटनाओं पर न केवल हाथ पर हाथ धरे बैठे रही थी बल्कि प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन भी मिशनरियों का किया जाता रहा। बस्तर में कमिश्नर और एसपी ने अलग-अलग पत्र लिख कर तब की भूपेश बघेल सरकार को ईसाई मिशनरियों में कारण पैदा होने वाले रहे संकट से सावधान किया था। लेकिन कोई सार्थक कदम उठाने के बजाय तब के मुख्यमंत्री पादरियों से दिल्ली में मुलाकात कर आए और बकायदा ट्वीट कर इसकी जानकारी भी साझा की थी। फिर कांग्रेस के ही विधायक ने तब मिशनरियों की सभा लेकर आदिवासियों के खिलाफ उनकी लड़ाई में साथ देने का वादा किया था। उस समय मिशनरियों के मंसूबे इतने बुलंद थे कि राजधानी रायपुर में एक पादरी ने तो संविधान जलाने की धमकी तक दी थी, फिर भी तब की कांग्रेस सरकार न केवल उन तमाम हरकतों के विरुद्ध तटस्थ रही थी, बल्कि प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से उसे हवा भी देती रही थी। सांप्रदायिक तुष्टीकरण के अलावा कोई भी दूसरा तर्क नहीं हो सकता जब ऐसी हरकतों को उचित ठहराया जा सके।
दो संदिग्ध ननों की गिरफ्तारी पर केरल से लेकर दस जनपथ तक का हिल उठना उन्हीं संदेहों को बल देता है, जिसके खिलाफ राष्ट्रवादी संगठन लगातार आवाज उठाते रहते हैं। इससे पहले, भ्रष्टाचार के आरोप में पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे की गिरफ्तारी के विरोध में कांग्रेस द्वारा अराजकता फैलाने की कोशिश हुई थी, लेकिन तब भी कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व इतना अधिक नहीं उबला था जितना इस मामले में परेशान दिख रहा है। सवाल यह उठता है कि गिरफ्तार हुई उन ईसाइयों के पास क्या कुछ ऐसे राज हैं, जिसका खुलासा हो जाने पर कांग्रेस आलाकमान आतंकित है? क्या यह गठजोड़ माओवादी आतंक से भी संबंधित होगा? ऐसा संदेह इसलिए भी उत्पन्न होता है क्योंकि बेरहमी से आदिवासियों और गरीबों का कत्ल करने वाले नक्सली कभी भी आदिवासी संस्कृति को समाप्त करने पर आमादा इन मिशनरियों के विरुद्ध कोई भी कदम नहीं उठता। निर्बाध ये धुर माओवाद प्रभावित इलाकों में भी मतांतरण आदि करते रहते हैं।
बहरहाल। बात चाहे भ्रष्टाचार की हो या तस्करी की, कानून-व्यवस्था का विषय हो या साम्प्रदायिक मतांतरण आदि का। कांग्रेस को असुविधा पैदा करने वाले मुद्दों पर इस तरह न्याय प्रणाली के विरुद्ध वितण्डा खड़ा कर देना, किसी अज्ञात दबाव में समूचे सिस्टम को बंधक बनाने की ऐसी कोशिश नहीं होनी चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून की दृष्टि में सभी एक हैं। सबको न्यायिक उपचार लेने का अधिकार है। लेकिन इस प्रणाली पर दबाव बनाना, किसी भी अज्ञात आरोपी के पक्ष में स्वयं ही कूद कर नतीजे पर पहुंच जाना। स्वयं ही वकील, अपील और दलील बन जाना अनुचित है। दुनिया में सबसे अधिक साख वाली भारतीय उदार लोकतांत्रिक प्रणाली पर भरोसा नहीं कर देश भर में गलत तरीके से माहौल बना कर कानून या संविधान को बंधक बनाने की साजिश सफल नहीं होने दी जायेगी। ऐसी गलत परिपाटी से किसी भी राजनीतिक समूह को बचना चाहिए। देश-प्रदेश की जनता ऐसे विषयों को बेहतर जानती है। सूचना विस्फोट के इस जमाने में हंगामा खड़ा कर अब किसी समूह का मकसद नहीं होना चाहिए। आप कुछ समय के लिए सभी को या हमेशा के लिए कुछ समूह को बेवकूफ बना सकते हैं लेकिन हमेशा के लिए समूची जनता को बरगला देना अब संभव नहीं है। कांग्रेस को यह समझना होगा।
(लेखक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार हैं।)