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एक किलो चावल उगाने में इतना पानी होता है खर्च
23-Jul-2025 10:26 PM
एक किलो चावल उगाने में  इतना पानी होता है खर्च

- फूड चेन शो

दुनिया की आधी आबादी के लिए यह न सिफऱ् रोज़ाना के भोजन का हिस्सा है, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आर्थिक जीवन का भी प्रतीक है।

फिलीपींस की राजधानी मनीला से बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की एक श्रोता एड्रिएन बियांका विलानुएवा कहती हैं, चावल हमारे यहाँ के व्यंजनों की धडक़न है। इसकी अहमियत मुख्य भोजन से कहीं ज़्यादा है। यह हमारी संस्कृति की बुनियाद है।

वे बताती हैं, फिलीपींस के अधिकतर लोग दिन में तीन बार चावल खाते हैं-नाश्ते, दोपहर के खाने और रात के खाने में। यहां तक कि मिठाई यानी डेज़र्ट में भी चावल शामिल होता है। मुझे स्टिकी राइस पसंद है, क्योंकि ये हमारी हर पारंपरिक मिठाई में यह होता है। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ रहा है। और इसके साथ यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या हमें चावल का खाना कम कर देना चाहिए?

संयुक्त राष्ट्र फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन के अनुसार, खाने योग्य वनस्पतियों की संख्या 50,000 से अधिक है, हालांकि दुनिया की भोजन की 90 प्रतिशत जरूरतें महज 15 फसलों से ही पूरी हो जाती हैं। चावल, गेहूं और मक्का इनमें सबसे प्रमुख फसलें हैं।

अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के महानिदेशक डॉ। इवान पिंटो का कहना है, दुनिया की कुल आबादी में 50 से 56 प्रतिशत हिस्सा, मुख्य भोजन के लिए चावल पर निर्भर है।

इसका मतलब है कि लगभग चार अरब लोग अपने मुख्य भोजन के रूप में रोज़ाना चावल खाते हैं।

दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े पैमाने पर चावल उगाया जाता है।

जबकि अफ्रीका में भी इसकी मांग बढ़ रही है और इसकी कुछ किस्में तो यूरोप और दक्षिण अमेरिका में भी उगाई जाती हैं। लेकिन वैश्विक खुराक में चावल की अधिकता की एक कीमत भी है।

अधिक पानी की ज़रूरत

स्पेन की बहुराष्ट्रीय कंपनी एब्रो फूड्स के स्वामित्व वाली ब्रिटेन स्थित चावल कंपनी टिल्डा के प्रबंध निदेशक जीन-फिलिप लाबोर्दे बताते हैं, ‘धान के पौधे को बहुत अधिक पानी की ज़रूरत होती है।’

वे कहते हैं, एक किलो चावल उगाने में लगभग 3,000 से 5,000 लीटर पानी लगता है। ये बहुत ज़्यादा है।

अधिकतर धान की फसल बाढग़्रस्त इलाकों में होती है, खासकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में। यह तरीका धान की खेती के लिए अनुकूल माना जाता है, लेकिन इससे कम ऑक्सीजन वाला वातावरण बनता है, जिसे एनारोबिक कंडीशन कहा जाता है।

डॉ. इवान पिंटो के अनुसार, जब खेतों में पानी भर जाता है, तो वहां मौजूद सूक्ष्म जीवाणु बड़ी मात्रा में मीथेन गैस पैदा करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो कुल वैश्विक तापमान वृद्धि में लगभग 30 प्रतिशत के लिए जि़म्मेदार है।

आईआरआरआई (इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट) का अनुमान है कि वैश्विक कृषि क्षेत्र से होने वाले कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में चावल उत्पादन का हिस्सा लगभग 10 प्रतिशत है।

स्वच्छ तरीक़ा

टिल्डा कम पानी में धान उगाने की एक नई तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रही है, जिसे 'अल्टरनेट वेटिंग एंड ड्राइंग' (एडब्ल्यूडी) कहा जाता है।

इस तकनीक में खेत की सतह से 15 सेंटीमीटर नीचे एक पाइप लगाई जाती है। पूरे खेत में लगातार पानी भरने के बजाय किसान तब सिंचाई करते हैं जब पाइप के अंदर का पानी पूरी तरह सूख जाता है। टिल्डा के प्रबंध निदेशक जीन-फिलिप लाबोर्दे बताते हैं, आमतौर पर एक फसल चक्र के दौरान 25 बार पानी देना होता है, लेकिन एडब्ल्यूडी तकनीक से इसे घटाकर 20 बार किया जा सकता है। पांच बार की सिंचाई बचाकर न सिर्फ पानी की बचत होती है, बल्कि मीथेन उत्सर्जन में भी कमी आती है।

साल 2024 में टिल्डा ने इस तकनीक का प्रयोग 50 से बढ़ाकर 1,268 किसानों के साथ किया। नतीजे काफी उत्साहजनक रहे।

लाबोर्दे कहते हैं, हमने 27त्न पानी, 28त्न बिजली और 25त्न उर्वरक की खपत घटाई। इसके बावजूद फसल उत्पादन में 7त्न की बढ़त दर्ज की गई।

वे यह भी जोड़ते हैं, यह सिर्फ ज़्यादा निवेश से ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं है, बल्कि कम लागत में ज़्यादा कमाई का तरीका है।

लाबोर्दे के अनुसार, मीथेन उत्सर्जन में भी 45त्न की कमी देखी गई है। उनका मानना है कि यदि सिंचाई की ज़रूरत को और कम किया जा सके, तो मीथेन उत्सर्जन में 70त्न तक कटौती संभव है।

जलवायु दबाव

हालांकि चावल ने अरबों लोगों को भोजन उपलब्ध कराने में बड़ी भूमिका निभाई है, ख़ासतौर पर हरित क्रांति के दौर में विकसित की गई आईआर-8 जैसी अधिक उपजाऊ किस्मों के ज़रिए। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन इसके उत्पादन के लिए बड़ा ख़तरा बनता जा रहा है।

इसकी मुख्य वजह यह है कि जिन इलाकों में ये किस्में उगाई जाती हैं, वहां गर्मी, सूखा, भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।

भारत में 2024 के धान सीजऩ के दौरान तापमान 53 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जबकि बांग्लादेश में बार-बार और बड़े पैमाने पर आने वाली बाढ़ फसलों को गंभीर नुकसान पहुंचा रही हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए आईआरआरआई (इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट) अपने जीन बैंक में संरक्षित 1,32,000 धान किस्मों का विश्लेषण कर रहा है, ताकि समाधान तलाशा जा सके।

एक महत्वपूर्ण उपलब्धि में वैज्ञानिकों को एक ऐसा जीन मिला है जो पौधे को पानी के भीतर 21 दिन तक जीवित रख सकता है।

डॉ, पिंटो बताते हैं, ये किस्में बाढ़ की स्थिति में पौधों को लंबे समय तक बचाए रख सकती हैं और उपज पर भी असर नहीं पड़ता।

उनका कहना है कि बांग्लादेश के बाढ़-प्रभावित इलाकों में ऐसी किस्में लोकप्रिय होती जा रही हैं। (bbc.com/hindi)


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