विचार / लेख

-मनीष सिंह
विलियम बोइंग का सपना था-शानदार इंजीनियरिंग कम्पनी बनाना। जो एविएशन के मायने बदल दे।
1916 में उन्होंने जो कम्पनी बनाई, उसने सचमुच एविएशन को बदल दिया।
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सुंदर, किफायती, सुरक्षित, उड़ाने मे आसान एयरक्राफ्ट बनाकर बोइंग ने, कमर्शियल एयरलाइन बिजनेस को वो रूप दिया, जो हम देखते हैं।
अब साधारण लोग उड़ सकते है। दूर देश आ-जा सकते हैं। पर्यटन, होटल, व्यवसाय, एमएनसी जैसी नए जमाने मे पले बढ़े सेक्टर, बोइंग के कर्जदार है।
हजारों प्लेन्स, कई मॉडल और दुर्घटना रहित उड़ान सबसे सुरक्षित रिकार्ड बोइंग का था।यह रुतबा उसका 20 सदी में कोई छीन नही सका।
कहानी इसके बाद बदलती है।
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बोइंग विमान बनाती है।
जो इंजीनियरिंग है। तो बोइंग में इंजीनियर ही किंग था। बोल्ड था, मुखर था, परफेक्शनिस्ट था। उसकी सुनी जाती, मानी जाती। मोटी तनख्वाह थी, सो महंगा भी था।
ये कल्चर बोइंग ने दशकों में विकसित किया था। तो कई-कई बिलियन्स के विमान बेचकर भी, उसका मुनाफा सीमित होता था।
रिसर्च और डेवलपमेंट में पैसा पानी की तरह बहता।
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1990 के दशक में यूरोप में एयरबस कम्पनी आयी। नए फीचर्स, कम्प्यूटराइज्ड कॉकपिट, मॉर्डन, सेफ प्लेन्स देने लगी। बोइंग को तगड़ा कम्पटीशन मिला। उसने मार्किट शेयर बढ़ाने को नई रणनीति बनाई।
अमेरिका में एक प्रतिद्वंद्वी था। मैकडोनल्ड डगलस और बोइंग, एक जमाने मे कोक और पेप्सी की तरह राइवल थे। लेकिन फिर, ष्ठष्ट बहुत पीछे रह गया।
उसने युद्धक विमानों पर फोकस किया। खूब पैसे बनाए। थोड़ा बहुत कमर्शियल एयरलाइनर बनाने में भी हाथ था। 1996 में बोइंग ने इसी मैकडोनल्ड डगलस से मर्जर कर लिया।
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मर्जर कुछ इस तरह हुआ कि नई विशाल बोइंग कम्पनी का चेयरमैन, डगलस का सीईओ बना।
अब अच्छे दिन आ गए।
बोइंग का मुनाफा तेजी से बढऩे लगा। शेयर प्राइज बढऩे लगे। इन्वेस्टर भर भर कर पैसे लगाने लगे। कम्पनी का वैल्यूएशन इतना बड़ा हो गया कि कई देशों के जीडीपी पीछे छूट जाएं।
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मुनाफा बढ़ा नए मैनेजमेंट की कॉस्ट कटिंग से, टैक्स मैनेजमेंट से, आउट सोर्सिंग से। अब डीसी का मैनेजर कल्चर, बोइंग के इंजीनियर कल्चर पर हावी था।
कम्पनी का हेडक्वार्टर सियेटल से 1000 किमी दूर, अन्य स्टेट में जाया गया, क्योकि सियेटल में टैक्स ज्यादा थे। इससे मेन प्लांट और मैनेजमेंट की दूरी बढ़ गयी।
कॉस्ट कटिंग के लिए सप्लाई ठेकों में तगड़ा नेगोशिएशन करके कम्पनी के पैसे बचाये गए। लेकिन मिलने वाले उपकरणों की गुणवत्ता घट गई।
दसियों हजार ‘महंगे’ इंजीनियर नौकरी से निकाल दिए गए। ये अनुभवी लोग थे। इनकी जगह रूक्च्र मैनजरों ने ली।
मैनजर होशियार थे। हर काम सस्ते में काम कराना आता था।
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सबसे गजब था- ग्लोबल आउटसोर्सिंग।
चक्का बने जापान में, उसका नट जर्मनी में, बोल्ट इटली से आये। लागत में जबरजस्त कमी। बस, इसे अमेरिका में असेंबल करना था। अगर थोड़ा नाप जोख का फर्क आया तो की फर्क पेंदा ए।
ठोक पीट कर मैनेज करो, जोड़ो, बेच दो। पैसा ही पैसा। बोइंग के मैनजेमेंट और इन्वेस्टर मालामाल हो गए।
80 साल पहले विलियम बोइंग ने इतने पैसे की कल्पना भी न की थी।
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और फिर बोइंग में तकनीकी खराबियों की शिकायतें आने लगीं। कभी कोई प्रणाली काम करना बंद कर देती, कभी कोई सिस्टम फाल्ट करता।
कई नए सिस्टम्स क्र&ष्ठ के बाद, पूरी तरह सुरक्षा मानकों पर कसे नहीं गए। लेकिन मार्केटिंग तगड़ी थी। 737, 747, ड्रीमलाइनर, मैक्स.. धकाधक बिके।
लेकिन शिकायतें बढ़ी, बिक्री पर असर पड़ा। विमान वापस मंगाना, सुधार करना बढ़ता गया।
फिर बोइंग क्रैश भी होंने लगे।
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लिथुआनिया, चाइना, कोस्टारिका, मलेशिया, ट्रांसएयर (स््र), तुर्की, इथोपिया, जमैका, कांगो में बड़े एक्सीडेंट हुए। कई खतरनाक, कई छोटे मोटे फेलियर, लेकिन बच निकलने की घटनाएं सैकड़ों हैं।
दुनिया का भरोसा से बोइंग से उठने लगा। अलास्का एयर क्रैश के बाद स् गवर्मेंट ने ऑफ 2021 में बोइंग पर इंक्वायरी बिठा दी।
100 साल पुरानी रेपुटेशन मिट्टी में मिल गई।
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अहमदाबाद मे ड्रीमलाइनर क्रेश की जांच का नतीजा जो आये, बोइंग कम्पनी के क्रेश एक बड़ा झटका है।
लेकिन ये कहानी सिर्फ क्रैश के नजरिये से न देखें। बल्कि यह सीख लें कि जब कोई व्यापारी, कर्मचारी, अफसर, नेता, या सेवादार-अपने कर्म..
अपने प्रोडक्ट की गुणवत्ता, सही डिलीवरी पर फोकस करता है, तो धन और यश खुद-बखुद चलकर आता है।
पर धन कमाना ही उद्देश्य हो जाये, तो एक न एक दिन धन, साख, पद, व्यापार, नौकरी, इज्जत सब हाथ से निकल जाती है।
उसके साथ, शायद आपका लालच, मासूमो की चीख पुकार का बायस भी बन जाये। आपकी कम्पनी, आपका ब्रांड, आपकी पहचान मिट्टी में मिल जाये।
तो बताइये गुणवत्ता, या पैसा??
क्या चुनेंगे आप?