विचार / लेख

-डॉ आर के पालीवाल
बेतवा नदी के कुछ महीने पहले सूखे उदगम स्थल को पुनर्जीवित करने के लिए हम लोगों ने जन सहयोग का एक भागीरथ प्रयास का आव्हान किया था। हम लोगों ने बेतवा नदी के अध्ययन एवं जन जागरण समूह की तरफ से मध्य प्रदेश के प्रकृति प्रेमी नागरिकों से अपील की थी कि वे 25 मई से 31 मई तक सामूहिक श्रमदान से नदी के उदगम स्थल के कैचमेंट एरिया में जगह जगह चैक डैम बना कर बेतवा नदी के उदगम स्थल को पुनर्जीवित करने के लिए जल संरक्षण करने के रचनात्मक कार्य में सहभागिता करें। इस आव्हान पर अमल होना थोड़ा मुश्किल दिखता था क्योंकि यही नौतपा की सड़ी गर्मी का दौर था और जल संरक्षण के कार्य बरसात के पहले ही संपन्न हो सकते हैं। पुरानी कहावत है कि मुश्किल वक्त में ही लोगों की अग्नि परीक्षा भी होती है, इस दृष्टि से यह आव्हान हम सब प्रकृति प्रेमियों के लिए चुनौती भी थी।
25 मई को जब यह अभियान शुरू हुआ तो तपती गर्मी में भोपाल और विदिशा के लगभग एक दर्जन लोग ही श्रमदान के लिए पहुंचे। हमारे दो साथी अरविंद द्विवेदी और विनोद पटेरिया ने श्रमदान से पहली रात झिरी गांव में रात्रि विश्राम कर ग्रामवासियों से भी श्रमदान की अपील की। गांव के बच्चों ने उनकी बात पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया और कई बच्चे उत्सुकता वश श्रमदान में शामिल हुए। पहले दिन सुबह और शाम के सत्र में केवल दो चैक डैम बन सके। दूसरे दिन श्रमदान में कुछ और साथी जुड़े और बच्चों की संख्या में भी इजाफा हुआ और इस दिन तीन चैक डैम बने। जैसे जैसे सप्ताह के दिन आगे बढ़े श्रमदानियों की संख्या और उत्साह निरंतर बढ़ता रहा। इस बीच भोपाल और दिल्ली से प्रकाशित होने वाले कई समाचार पत्रों में श्रमदान की चर्चा होने से काफी लोगों का ध्यान इस अभियान पर गया। श्रमदान के पांचवें और छठे दिन भोपाल, विदिशा, इंदौर, हरदा, बैतूल और गंजबासौदा के श्रमदानी समूहों का अदभुत सहयोग मिला। सप्ताह समाप्त होते होते सैकड़ों साथियों ने मन से श्रमदान कर मई की सड़ी गर्मी में मात्र सात दिन में 55 चैक डैम बनाकर अविश्वसनीय और अकल्पनीय इतिहास रच दिया।
बेतवा अध्ययन और जन जागरण समूह के माध्यम से पिछले तीन साल से हम बेतवा प्रेमी लोग बेतवा नदी की बदहाली पर समाज, सरकार, प्रकृति एवं पर्यावरण प्रेमियों और मीडिया का ध्यान आकर्षित करते आ रहे हैं। जब सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रयास होता नहीं दिखा तो समूह ने मार्च 2025 में यह निर्णय किया कि हम सरकार के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठेंगे और बरसात से पहले भोपाल और आसपास के जिलों के जमीनी कार्यकर्ताओं को जोड़कर बेतवा उदगम स्थल का जल स्तर बढ़ाने के लिए जल संरक्षण के कुछ ठोस कार्य करेंगे। जगह जगह चैक डैम बना कर बरसात के पानी को बहने से रोकना सबसे जरूरी काम था इसलिए मई का अंतिम सप्ताह सामूहिक श्रमदान के लिए निश्चित किया गया। इस अभियान को आशातीत सफलता मिली। हमें विश्वास नहीं हो रहा कि हम लोगों ने एक सप्ताह में पचपन चैक डैम बना दिए क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार पिछले तीन महीने में केवल तीन चैक डैम बनाकर पल्ला झाड़ लिया। हमारा यह अभियान इसीलिए संभव हो पाया कि हमें पूरे प्रदेश से समर्थन और सहयोग मिला। अब उम्मीद बनी है कि बरसात में ये चैक डैम काफी जल संरक्षण करेंगे और बेतवा उदगम स्थल का जल स्तर बढ़ाकर उसे पुनर्जीवित कर सकते हैं।
बेतवा के उदगम स्थल को पुनर्जीवित करने के लिए हमारा फोकस निम्न तीन प्रमुख कामों पर है -
1. उदगम के चारों तरफ पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध हो जिससे भविष्य में वन क्षेत्र बिल्कुल न सिकुड़े।
2. उदगम के चारों तरफ की पहाड़ियों का बरसात का पानी सैकड़ों छोटे चैक डैम के माध्यम से जगह जगह रोककर भू जल स्तर बढ़ाया जाए।
3. उदगम के चारों तरफ धीरे धीरे गेहूं और मूंग आदि की पानी की अधिक खपत वाली फसलों की बजाय फलदार पौधों के बगीचे विकसित हों जिनसे भू जल दोहन रुकेगा और हरियाली बढ़ने से प्राकृतिक जल संरक्षण होगा।
हम उपरोक्त तीनों बिंदुओं पर एक साथ फोकस कर रहे हैं। पेड़ों की कटाई रोकना मूलतः सरकार का काम है लेकिन हम लोग आसपास के लोगों को इस बारे में समझाईश देकर जागरूक बना रहे हैं कि पेड़ काटने से सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं को होगा। जल संरक्षण के लिए हमने पचपन चैक डैम बना दिए अगले सीज़न में इतने ही और बनाएंगे और यदि कुछ चैक डैम तेज बरसात से क्षतिग्रस्त होते हैं तो उनकी मरम्मत करेंगे। बेतवा समूह का और अधिक विस्तार कर इन रचनात्मक कार्यों को गति प्रदान करेंगे।
जून और जुलाई 2025 में हमारा दूसरा प्रमुख चरण बेतवा उदगम स्थल क्षेत्र के किसानों को उनकी पसंद के फलदार पौधे उपलब्ध कराना है। शुरुआत में हम हर परिवार को दस पौधे देंगे जिनमें आम, अमरूद, नींबू और कटहल की मांग सबसे ज्यादा है। प्रति परिवार दस पौधे का खर्च लगभग ग्यारह सौ रुपए आ रहा है। हमारे बहुत से साथी एक या एक से अधिक परिवारों के लिए यह पौधे स्पॉन्सर कर रहे हैं। इस अभियान में देश भर के सभी नागरिक जुड़ सकते हैं और वे अपनी सामर्थ्य और इच्छाशक्ति के अनुसार संसाधन जुटाने में मदद कर सकते हैं।