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कब और कैसे विकसित होता है यौन रुझान?
03-Jun-2025 7:48 PM
कब और कैसे विकसित होता है यौन रुझान?

यौन रुझान कई तरह के हो सकते हैं। आप बड़े होकर किस लिंग के प्रति आकर्षित होंगे, यह किशोरावस्था में तय होता है। आपके शरीर और आसपास के माहौल का इस पर काफी ज्यादा असर होता है।

 डॉयचे वैले पर अलेक्जांडर फ्रॉयंड का लिखा-

दुनिया भर में लाखों लोग 35 साल पहले अचानक ‘स्वस्थ’ हो गए। वह दिन था 17 मई, 1990। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने समलैंगिकता को इंसानी रोगों की सूची से हटा दिया था। तब तक, समलैंगिक प्रेम को एक तरह की मानसिक बीमारी माना जाता था। प्रभावित लोगों को अक्सर सैनिटोरियम या जेलों में बंद कर दिया जाता था। बिजली के झटके देने वाली थेरेपी और दूसरी संदिग्ध मनोचिकित्सक पद्धति से ‘इलाज’ किया जाता था।

बर्लिन चैरिटी अस्पताल में सेक्सोलॉजी और यौन चिकित्सा संस्थान के निदेशक क्लाउस एम बायर ने कहा कि समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांससेक्सुअल लोग बीमार नहीं हैं और कभी नहीं थे। बायर ने कहा कि इंसानों में यौन आकर्षण अलग-अलग तरह का होता है।

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वह कहते हैं, ‘आजकल यह बात समझ में आ गई है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद से यह तय नहीं करता कि वह किस लिंग के व्यक्ति के प्रति आकर्षित होगा। यह किस्मत की बात है, अपनी मर्जी की नहीं। यौन रुझान, जिसे विशेषज्ञ ‘यौन पसंद की संरचना' कहते हैं, किशोरावस्था के दौरान विकसित होता है। यह व्यक्ति के सेक्स हार्मोन से प्रभावित होता है। इसी समय यह तय होता है कि उन्हें शारीरिक रूप से क्या आकर्षक लगता है और वे किस तरह का यौन संबंध चाहते हैं।’

बायर के मुताबिक, किशोरावस्था में इस बदलाव के बाद, जो यौन पसंद बनती है वह आमतौर पर बदलती नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यौन रुझान किशोरावस्था में विकसित होता है और फिर जीवन भर के लिए स्थिर हो जाता है। भले ही, कुछ लोगों में यौन रुझान बदलने की इच्छा हो। उदाहरण के लिए, अगर सामान्य लोगों की तरह बनने का सामाजिक दबाव हो।’

समलैंगिकता कई जगहों पर समस्या बन गई है

सभी इंसानों के अधिकारों में अपनी यौन पसंद की स्वतंत्रता शामिल है। यौन आकर्षण हमेशा से अलग-अलग तरह का रहा है। यह ना तो कोई नया शौक है, और ना ही सिर्फ खुले विचारों वाले समाजों में ऐसा होता है।

बायर ने कहा, ‘हमारे पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार, समलैंगिक रुझान लगभग 3 से 5 फीसदी आबादी में होता है और यह हर संस्कृति में ऐसा ही है। इंसानों में आकर्षण इसी तरह अलग-अलग होता है और इसे किसी और तरीके से नहीं देखा जा सकता है।’ इसलिए, किसी व्यक्ति के यौन रुझान की वजह से उसकी निंदा करना या उसका आकलन करना गलत है।

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इसके बावजूद, लोगों की यौन पसंद पूरे समाज को दो हिस्सों में बांट देती है। कई बार, इसकी वजह से उन्हें अलग-थलग किया जाता है, उनके साथ भेदभाव होता है और उन्हें सताया जाता है। उदाहरण के लिए, कम से कम 67 देशों में समलैंगिक होना जुर्म है और सात देशों में तो समलैंगिक यौन संबंधों के लिए मौत की सजा भी दी जा सकती है।

यौन रुझान कैसे विकसित होता है?

यह एक सरल प्रश्न है, लेकिन इसका कोई सरल या निर्णायक जवाब नहीं है। यौन रुझान का कोई एक कारण नहीं है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने जीन, हार्मोन और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के विश्लेषण से यह समझने की कोशिश की है कि यौन रुझान कैसे विकसित होता है।

बायर ने कहा, ‘वर्तमान सोच यह है कि यह कई चीजों पर निर्भर करता है। अब तक किसी को भी ऐसा एक कारण नहीं मिला है जिससे यह बताया जा सके कि क्यों एक व्यक्ति समलैंगिक है और दूसरे को विपरीत लिंग के लोग पसंद हैं।’

यह माना जा सकता है कि यौन रुझान के विकास के लिए जैविक और सामाजिक कारकों की एक जटिल परस्पर क्रिया जिम्मेदार है। यौन रुझान के विकास को प्रभावित करने वाले जैविक कारकों में व्यक्ति की आनुवांशिक बनावट के साथ ही, जन्म से पहले के हार्मोन और रासायनिक पदार्थ शामिल हैं।

हालांकि, यौन रुझान वंशानुगत नहीं होता है। परिवारों और तथाकथित जुड़वा बच्चों पर हुए शोध से पता चलता है कि एक ही परिवार में कई लोग समलैंगिक हो सकते हैं। हालांकि, इन शोधों में जो जीन मिले, उन्हें वैज्ञानिकों ने इतना अहम नहीं माना कि वे यह कह सकें कि ‘समलैंगिकता का कोई जीन’ होता है।

हार्मोन और सामाजिक प्रभाव यौन रुझान को कैसे प्रभावित करते हैं?

टेस्टोस्टेरॉन जैसे हार्मोन और फेरोमोन जैसे शरीर में मौजूद रसायन भी यौन रुझान के विकास के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं। फेरोमोन रासायनिक स्राव होते हैं जो यौन आकर्षण और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

शोध में पाया गया कि पुरुषों के शरीर से निकलने वाले कुछ रसायन (फेरोमोन) महिलाओं को आकर्षित करते हैं और समलैंगिक पुरुषों को भी आकर्षित करते हैं, लेकिन ये रसायन उन पुरुषों को आकर्षित नहीं करते जिन्हें महिलाएं पसंद हैं। यह रसायन दिमाग के एक हिस्से (हाइपोथैलेमस) को जगाते हैं, जो हमारी भावनाओं और यौन इच्छाओं को कंट्रोल करता है।

लड़कियों के लिए गुडिय़ा और कपड़े? लडक़ों के लिए अलग-अलग तरह के उपकरण और कार? जो खिलौने आमतौर पर लड़कियों या लडक़ों के लिए माने जाते हैं, उनका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि बड़े होकर उन्हें कौन पसंद आएगा। यही बात पढ़ाई पर भी लागू होती है।

यह सच है कि कुछ लोग अपने वास्तविक यौन रुझान के बारे में जीवन के आखिरी पड़ाव तक खुलकर नहीं बता पाते हैं, लेकिन उम्र बढऩे के साथ यौन प्राथमिकताएं नहीं बदलती हैं।

बायर ने कहा, ‘हमारे पास इस बात के बहुत पुख्ता संकेत हैं कि यह संभव नहीं है। यौन रुझान पर आगे भी अध्ययन हुए हैं। समलैंगिक पुरुषों को ‘बदलने’ की कुछ दुखद कोशिशें हुई थीं। अमेरिका में 1970 के दशक में एक बड़ी रिसर्च में ऐसा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन उसमें कोई कामयाबी नहीं मिली। यह इस बात का पक्का सबूत है कि यौन रुझान बहुत स्थिर होता है, वह बदलता नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘यौन रुझान किशोरावस्था के दौरान विकसित होता है, जबकि लैंगिक पहचान (आप खुद को लडक़ा मानते हैं या लडक़ी) बचपन में ही शुरू हो जाता है और ज्यादातर लोगों में 5 से 6 साल की उम्र तक पूरा हो जाता है। इस उम्र के बाद बच्चे यह सोच सकते हैं कि बड़े होकर उनकी यौन पसंद क्या होगी और वो खुद को एक मर्द या औरत के तौर पर कैसे देखेंगे।’

यौन रुझान कोई बीमारी नहीं है

जब एक बार यौन रुझान विकसित हो जाता है, तो वह कभी नहीं बदलता। ना ही किसी के बहकाने से और ना ही पहले के यौन अनुभवों से। बायर ने कहा, ‘इसका कोई असर नहीं होता। इसका एक बड़ा सबूत यह है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने युवावस्था में समलैंगिक यौन संबंध बनाए, लेकिन वे समलैंगिक नहीं हैं।

यह तय करने वाली सबसे जरूरी चीज ये होती है कि बच्चे कैसे बड़े होते हैं, उन्हें अपने मां-बाप का साथ मिलता है या वे उन्हें ठुकरा देते हैं। अगर बच्चों और किशोरों को बहुत ज्यादा बुरा कहा जाता है, तो उन्हें खुद पर भरोसा कम हो जाता है। अगर मां-बाप किसी बच्चे की यौन पहचान या पसंद को नहीं मानते, तो उसे उदासी और आत्महत्या के ख्याल आ सकते हैं।

बायर ने कहा कि खासकर उस समाज में जहां कथित तौर पर असामान्य यौन रुझान यानी समलैंगिक लोगों को दूर रखा जाता है और उन्हें परेशान किया जाता है, वहां यौन विविधता पर बिना किसी भेदभाव के खुलकर बात करना बहुत जरूरी है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, कोई भी यौन रुझान बीमारी या ‘अप्राकृतिक’ नहीं है। यह सामाजिक नियमों के हिसाब से तय होता है कि किस तरह के यौन रुझान को समाज में स्वीकृति मिलेगी, क्या ‘सामान्य' है और क्या ‘अप्राकृतिक’ है। ये नियम समय और हालात के हिसाब से बहुत बदल सकते हैं, पर इंसानों का स्वभाव नहीं बदलता। (dw.com/hi)


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