विचार / लेख

-रति सक्सेना
अधिकतर यह सोचा जाता है कि तुर्की शुरू से कट्टर इस्लामी रहा है, जबकि अततुर्क ने तुर्की को बहुत मॉडर्न देश के रूप में खड़ा किया था, इसलिए तुर्की की लिपी भी रोमन रखी, अरबी नहीं। वहाँ की जीवन शैली कट्टर कम थी। अटोल बरहामुगलू ने देश की कट्टरता से जीवन भर लड़ाई लड़ी। उन्हीं के बुलावे पर जब मैं 2011 में तुर्की पहुँची थी, तो यह देश बहुत कुछ यूरोपीय सा लग रहा था, सिवाय भाषा के। उस वक्त का अनुभव है, जो मेरे यात्रा वृत्तांत सफर के पड़ाव में वर्णित है। कुछ सारंश दे रही हूं, पुस्तक अमेजन में उपलब्ध है। इस पुस्तक में बहुत महत्वपूर्ण देशों के यात्रा वृतान्त हैं।
‘डेन्जिली के विश्वविद्यालय मे-ं’
वह लगभग ऐसे हाँफ रहा था, जैसे कि मीलों से दौडक़र चलता आया हो, जबकि हम जानते थे कि वह इसी ठसाठस भरे सभागार के किसी कोने में बैठा होगा, हो सकता है कि काफी वक्त से कुछ कहने की हिम्मत भी जुटा रहा होगा। हो सकता है कि वह मन ही मन उन सब बातों को दुहरा होगा, जिन्हें कहने की कोशिश में वह भागा चला आया था।
अतौल, तुर्की के लोकप्रिय कवि छात्रों की भीड़ से घिरे हुए थे। घनघोर राजतंत्रीय जीवन शैली वाले इस राज्य में, जो अपने उदारवादी विचारधारा के कारण पश्चिम में ही नहीं पूर्व में भी खासा लोकप्रिय है, अतौल वामपंथी विचारधारा के कवि हैं, जो राजनीतिज्ञों के आँख की किरकिरी होते हुए भी युवा वर्ग और जनता में बेहद लोकप्रिय हैं।
जब हम विश्वविद्यालय पहुँचे तो गेट पर छात्र संघ के अध्यक्ष और सांस्कृतिक प्रतिनिधि ने हम लोगों का स्वागत किया था। ये दोनों प्रतिनिधि बेहद चुस्त-दुरस्त और स्मार्ट लग रहे थे।
ये दोनों प्रतिनिधि हमें लेकर सभागार पहुँचे जहाँ हजारों की संख्या में छात्रों ने तालियों के साथ अतौल का स्वागत किया। हम लोगों के पहुँचते तालियों की गडग़ड़ाहट शुरू हो गई, इसके उपरान्त सभी छात्र त्वरित गति से उठे और राष्ट्रीय गीत गाने लगे। मैंने ऐसा दृश्य अपने देश में तो कभी नहीं देखा था। रकेल जो स्पेनिश कवि हैं, वे भी इस प्रथा से खासी प्रभावित लग रही थी। मंच पर अतुतुर्क का बड़ा सा चित्र लगा हुआ था। सभागार ठसाठस भरा था। निसन्देह वे सब भाषा के छात्र मात्र नहीं थे, इसका अर्थ तो यही था कि कविता विषय से अलग भी महत्व रखती है।
विश्वविद्यालय के कार्यक्रम के उपरान्त अतौल ने हमसे कहा कि हम दोनो होटल लौट जाएँ, जिससे शाम के कविता पाठ के लिए तैयार हो सकंे, वे वहीं रूककर छात्रों से संवाद करेंगे। छात्रों की एक बड़ी भीड़ अतौल के हस्ताक्षर लेने के लिए इंतजार कर रही है।
इसी वक्त वह छात्र दौड़ा-दौड़ा आया था, उसने आते ही कहना शुरू किया कि वह हमसे बहुत जरूरी बात करना चाह रहा है। उसकी अंग्रेजी बहुत अच्छी तो नहीं, लेकिन वह अपनी बात प्रस्तुत कर सकता है।
यूनिवर्सिटी से होटल का रास्ता ज्यादा नहीं था, इसलिए वह लगातार बोलने लगा।
‘देखिए, मैं आप लोगों के द्वारा दुनिया को संदेश देना चाहता हूँ। आपको शायद मालूम ही नहीं होगा कि हमारे हजारों छात्र आज जेल में हैं।’
जेल में, मैं आश्चर्यचकित थी। देखने में तुर्क एक बेहद सम्पन्न देश लगता है। इस्लाम धर्म होते हुए भी कट्टरता का नामोनिशान भी नहीं दिख रहा था। हालाँकि यूनिवर्सिटी का ऑडिटोरियम में दो तुर्क साफ-साफ दिखाई दीं। एक वह बेहद मॉडर्न और दूसरा परम्परावादी, लेकिन कट्टरवाद कहीं नहीं महसूस हुआ।
वह युवा अपने छात्रों के सघर्ष के बारे में लगातार कुछ बताता जा रहा था। वह कह रहा था कि हजारों छात्र जेल में है, बस पुलिस आती है और छात्रों को पकडक़र जेल में बंद कर देती है।
‘ऐसे कैसे? मैं आश्चर्यचकित थी, यहाँ तो सब कुछ इतना खुला-खुला लगता है, लगता ही नहीं कि हम किसी इस्लाम देश में रह रहे हैं।’ मैंने कहा
‘हाँ, बाहर से सब कुछ अच्छा है, हमारी सरकार बेहद आधुनिक लगती है। पूरी अमेरिकिन संस्कृति की अनुयायी, लेकिन भीतर ही भीतर बड़ा वबण्डर मच रहा है। कट्टर ताकतें सिर उठा रही हैं। सरकार उन्हें भी खुश रखना चाहती है, और ऐसे नियम बनाती है जो देखने में सामान्य लगते हैं लेकिन उनके भीतर कट्टरवाद है। उदाहरण के लिए पहले यहाँ आठ तक शिक्षा मुफ्त थी, लेकिन अब उसे घटाकर केवल चार तक कर दिया। इसका परिणाम शहरों पर तो नहीं , लेकिन गाँवों में पड़ेगा। ग्रामीण अभी भी शिक्षा पर ज्यादा धन खर्च नहीं करना चाहेंगे। जिससे वे मुफ्त में चलने वाले मदरसों में अपने बच्चों को भेजने लगेंगे। ये मदरसे सरकारी शह पर कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं। यह अधिकतर पूर्वी तुर्क में ज्यादा हो रहा है। इसी तरह से सरकार एक अलग तरीके से कट्टरता को बढ़ावा दे रही है। पर्यटन के बहाने पुरातन विचारधारा को तश्तरी में परोसा जा रहा है। यह स्थिति तुर्क के लिए ठीक नहीं है। सूफी संगीत के नाम पर कट्टरता को बढ़ावा दिया जाता है। हम छात्र जानते हैं, और अपनी पीढ़ी को बचाना चाहते हैं, अतुतुर्क का सपना भंग नहीं होने देना चाहते हैं। सरकार हम पर नजर रखती है। और मौका देखकर अलग तरीके से हमारी आवाज बंद करना चाह रही है।
‘यदि हम साधारण सी बात, जैसे कि तकनीकी सुविधा आदि के लिए भी सवाल उठाएं जेल में बंद कर दिए जाते हैं। हमारे ना जाने कितने साथी जेल में बंद हैं, ना जाने कितने साथी गायब हो गए हैं। हमारा मनोबल कम नहीं हुआ है, लेकिन हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी हकीकत समझे। मैं आप लोगों से गुजारिश करने आया हूँ कि आप अपने देशों में अपनी भाषा में तुर्क की हकीकत को सामने लायें।’
इसके उपरान्त वह मुझसे कहने लगा कि हमने सुना है कि भारत में छात्र नक्सलवाद का सहारा ले रहे हैं। मैंने उसे बताया कि भारत में अधिकतर छात्रों और बुद्धिजीवियों की मानसिकता साम्यवाद से प्रेरित है, और वे हर गलत चीज का पुरजोर विरोध करते हैं, लेकिन नक्सलवाद अलग मुद्दा है।
मुझे संदेह हुआ कि तुर्क की युवा शक्ति को ज्यादा दबाया जाये तो वह कुछ ऐसा कदम भी उठा सकती है, जो तुर्क की वर्तमान तस्वीर को बदल देगा। वैसे भी मैंने यह तो देखा था कि यहाँ के रईस लोग अपने बच्चों को पढऩे के लिए अन्य यूरोपीय देशों में भेज रहे हैं।
‘देखिए आप केवल सम्पन्न लोगों को देख रहे हैं, सुदूर गाँवों में स्थिति इतनी सरल नहीं है। वहाँ कट्टरता बढ़ती जा रही है। सरकार उनकी मदद भी कर रही है, छिपे तरीके से। धार्मिक मदरसे खोले जा रहे हैं, और सरकारी कॉलेजों में शिक्षा महंगी होती जा रही है। अतौल जैसे कवि सरकार की नीतियों के विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि वे युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। ’ वह छात्र कुछ तल्ख हो उठा था।
‘आप लोग देख रहे होंगे कि यूनिवर्सिटी में दो तरह की संस्कृतियाँ साफ -साफ दिखाई दे रही हैं। बेहद माडर्न और थोड़ी परम्परावादी।
मुझे यद आया कि अतौल ने बताया था कि वे देश के प्रमुख पत्रों में लेख लिखते हैं, जिसमें सरकारी नीतियों की जमकर आलोचना होती है। मैं यह तो नहीं समझ पाई कि आलोचना का मुद्दा क्या होता है। लेकिन उनकी एक बात ने मुझे चकित जरूर किया कि उनके लेखों के कारण कई बार उन पर सरकारी मुकदमा चलाया गया है। एक मजेदार बात यह थी कि उन्होंने अब लेख लिखने की बजाय कविता में सरकारी आलोचना करनी शुरु कर दी है। वे बता रहे थे कि उनके लेख के जवाब में कई सरकार प्रायोजित लेख आ जाते हैं, लेकिन अब जब वे अपनी बात कविता में कहेंगे तो सरकार को जवाब देने में तकलीफ होगी, और उनकी बात सरकार के पास आसानी से पहुंच जायेगी। अतौल के कविता अस्त्र के बारे में जान कर मुझे बेहद अच्छा लगा, वे अच्छे कवि हैं, लेकिन कभी भी अपने दायित्वों को बेहतर समझते हैं, कविता उनके लिए व्यक्तिगत शगल नहीं, बल्कि जिंदगी का शगल है।
मैं उन तुर्की छात्रों की आवाज अपने देश के बुद्धिजीवियों के सम्मुख लाना चाहती हूँ, मैं कविता की शक्ति से पहचान करवाना चाहती हूँ.... संभवतया यही मंत्र था जो मुझे तुर्क की यात्रा में मिला।