विचार / लेख

- प्रकाश दुबे
सडक़ पर चलते राहगीर बीचोंबीच खड़े वाहन, वाचाल दोपाए से लेकर होटल-ढाबा चलाने, इमारत बनाने वाले तक को टोंकने से घबराते हैं। आम तौर पर अहंकारी उत्तर मिलता है। नागरिक अधिकारों की जानकारी रखने वाले संबंधित विभाग में शिकायत करने से हिचकिचाते हैं। कोई भी दुत्कारते हुए कह सकता है-तेरे बाप की जमीन है? किसी राहगीर ने हिम्मत की। सलाह दे डाली-अपने पिताजी से नोटिस लगाने कहो। उसकी आयुजनित कृशकाय काया की टूट-फूट की नौबत नहीं आई। निकट खड़े साथी ने अघोषित युद्ध विराम कराया-जाओ बाबा, जाओ। कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादी की बहन बताने वाले मध्यप्रदेश के मंत्री का आशय वही था-तुम्हारे बाप की जमीन है? ऐसा सवाल पूछना आजकल आसान है। दबंगई के आदी के मुंह पर गाली की तरह इस तरह की हिकारत भरी धौंस का कब्जा है।
न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने पूरे देश में दो महीने के अंदर फुटपाथ अतिक्रमण मुक्त कराने का आदेश 15 मई को जारी किया। न्यायमूर्ति ओका ने जोर देकर कहा-संविधान के अनुच्छेद- 21 के अंतर्गत नागरिकों को फुटपाथ का उपयोग करने की गारंटी है। उनका अधिकार है। न्यायमूर्ति ओका और भुयान दोनों के पिता वकील थे। दोनों उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश का दायित्व संभाल चुके हैं। जस्टिस ओका कर्नाटक में और न्या भुयान तेलंगाना में। न्यायमूर्ति ओका 21 मार्च 2021 को कर्नाटक हाइकोर्ट में सुनवाई के दौरान पहले भी बता चुके थे कि वाहन पार्किंग या किसी तरह के अन्य कारण से अतिक्रमण मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
रोज धक्के खाने वाले और जान गंवाने वालों के अपनों की तरह हम आप नहीं सोचते। वर्ष 2021 में 17 हजार से अधिक पैदल चलने वाले दुर्घटना की चपेट में आए। 9 हजार 462 का प्राणांत हुआ। 2022 में 32 हजार से अधिक की जान गई। 2023 के औसत का निष्कर्ष है कि सडक़ दुर्घटना में जान गंवाने वाला हर पांचवां भारतवासी पैदल चलता था। पैदल चल रहे व्यक्ति को गैरकानूनी कब्जेदार डपटकर पूछता है-सडक़ तुम्हारे बाप की है? समृद्ध, सक्षम किंतु अनधिकार चेष्टा में माहिर व्यक्ति को जनगणमन अधिनायक वाली संवैधानिक भावना तथा सबै भूमि गोपाल की मान्यता कतई नहीं झकझोरती। सत्ता की निकटता से मिलने वाले अधिकार का पहला प्रयोग आम तौर पर कानून तोडऩे के लिए होता है। अशिष्ट कथन से साख खोने वाले मध्यप्रदेश के मंत्री से पूछा नहीं गया कि भारत-भूमि सिर्फ उसके बाप की है? उन देशवासियों को रहने का अधिकार है या नहीं जिनकी पैदाइश, पालन-पोषण यहां हुआ। जो देश सेवा कर रहे हैं? कपोल कल्पना, अतीत या अपने संकुचित विचार के कारण मेरे बाप की जागीर वाली अतिक्रमण भावना मजबूत होती है। हमारे गली कूचे तक सीमित बीमारी नहीं है, यह। ट्रम्प इस रोग से बुरी तरह पीडि़त हैं। उनका दावा है-1 व्यापार बंद कराने की धमकी देकर भारत और पाकिस्तान को एक दूसरे पर हमला करने से रोक दिया। 2- भारत जीरो टेरिफ पर कारोबार के लिए राजी हुआ। 3- एपल को हिंदुस्तान में निवेश करने से रोका। बिना युद्ध घोषणा वाली मुठभेड़ों को युद्ध विराम कहने वाले की राजनीतिक समझदारी पर भारतवासी चुप हैं। अमेरिकी नागरिक अवश्य पूछेंगे- हे पाकिस्तान और भारत को धौंस देने वाले प्रेसिडेंट, उस व्यक्ति से हाथ मिलाकर कैसा लगा जिसे अमेरिका ने आतंकवादी घोषित कर बरसों कैद किया। करीब नौ करोड़ रुपए का ईनाम उसके सिर पर घोषित किया। अलकायदा के मददगार को ओसामा बिन लादेन की श्रेणी में रखा था। कल का आतंकी अहमद अल शरा सीरिया का अंतरिम राष्ट्राध्यक्ष बन चुका है। अब उसे आकर्षक युवा बताया जा रहा है। ट्रम्प ने मुस्कराकर तारीफ में कसीदे पढ़े- उसका अतीत सशक्त है, बहुत सशक्त। लड़ाकू। समझने वाली बात बस इतनी सी, अतिक्रमण करने वाले ने कहा-यह हमारे बाप की जमीन है। ट्रम्प शैली की कूटनीति में हामी भरी- वाह। क्या बात है!!!
अफगानिस्तान के तालिबान ने ललकार कर कहा-तुम्हारे बाप की जमीन है। बहादुर अमेरिकी सैनिक हवाई अड्डे पर माल असबाब छोडक़र स्वदेश लौटे। पाकिस्तान के जंगजू फौजी आतंकी घुसपैठियों से पूछने में डरते हैं और धर्म की छतरी तले कुर्सी बचाने वाले फौजियों से हुक्मरान नहीं पूछ पाते कि पाक-पवित्र कहलाने वाली सरजमीं किसके बाप की है? कुटाई-पिटाई के दौर में दहशतगर्दों से शासक-प्रशासक भयभीत हैँ और पादचारी-पैदल चलने वालों की चिंता में न्यायपालिका खामख्वाह नौकरशाही को डपट रही है। श्रमजीवी नारा लगाते थे- जमीन किसकी? जो जोतेगा, उसकी। इसे बदलकर इस दौर में जिसके जूते की ठोकर ऊंची, उसकी, बताने वाले दुनियाभर के दबंग आंखें तरेरने लगते हैं। सडक़ों, फुटपाथ, गड्ढों को भाड़ में जाने दो। यह कहने का हक है, आपको। अगर अपने में मगन हैं, दीन दुनिया की फिक्र को अपनी चिंता नहीं मानते, तब मेघराज से कहिए- सावन को आने दो।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)