विचार / लेख

-पुरन्दर मिश्रा
विधायक, रायपुर उत्तर
जनजातीय गौरव दिवस, स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे मकसद, आने वाली पीढिय़ों को देश के लिए उनके बलिदानों के बारे में जागरूक करना है. आदिवासी समुदाय, बिरसा मुंडा को भगवान के रूप में पूजता है।
धरती आबा’ बिरसा मुंडा की अपने माटी के प्रति संघर्ष की ही पृष्ठभूमि थी कि अंग्रेजों को छोटा नागपुर काश्तकारी-सीएनटी अधिनियम बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। जिसके अधीन परंपरागत वन अधिकार भुईंहरी खूँट के नाम से निहित है। भुईंहरी खूँट, जो जल, जंगल, जमीन पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार देता है।
जनजातीय लोगों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति की धरोहरों को युगों से संजोया हुआ है, जनजातीय गौरव दिवस एक अवसर है आदिवासियों की जीवन परंपरा, रीति-रिवाज व सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को समझने का जो कि अत्यधिक समृद्ध है।
सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और राष्ट्रीय गौरव, वीरता तथा आतिथ्य के भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में आदिवासियों के प्रयासों को मान्यता देने हेतु प्रतिवर्ष ‘जनजातीय गौरव दिवस’ का आयोजन किया जाता है। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई आदिवासी आंदोलन किये। इन आदिवासी समुदायों में तामार, संथाल, खासी, भील, मिज़ो और कोल शामिल हैं।
स्वतंत्रता हासिल करने तक जनजातीय समुदाय अंग्रेजों से लड़ते रहे. चाहे पूर्वी क्षेत्र में संताल, कोल, हो, पहाडिय़ा, मुंडा, उरांव, चेरो, लेपचा, भूटिया, भुइयां जनजाति के लोग हों या पूर्वोत्तर क्षेत्र में खासी, नागा, अहोम, मेमारिया, अबोर, न्याशी, जयंतिया, गारो, मिजो, सिंघपो, कुकी और लुशाई आदि जनजाति के लोग हों या दक्षिण में पद्यगार, कुरिच्य, बेड़ा, गोंड और महान अंडमानी जनजाति के लोग हों या मध्य भारत में हलबा, कोल, मुरिया, कोई जनजाति के लोग हों या पश्चिम में डांग भील, मैर, नाइका, कोली, मीना, दुबला जनजाति के लोग हों, इन सबने अपने दुस्साहसी हमलों और निर्भीक लड़ाइयों से ब्रिटिश राज को असमंजस में डाले रखा।
समग्र राष्ट्रीय विकास और जनजातीय समुदाय का विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए, ऐसे अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे जनजातीय समुदायों की अस्मिता बनी रहे, उनमें आत्म-गौरव का भाव बढ़े और साथ ही वे आधुनिक विकास से लाभान्वित भी हों। समरसता के साथ जनजातीय विकास की यही मूल भावना सबके लिए लाभदायक है।
भारत के संविधान ने, अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के प्रावधानों के साथ, उनके अधिकारों की रक्षा करने और समावेशिता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन अधिकार अधिनियम, पेसा और अन्य कानूनों ने आदिवासी समुदायों के अधिकारों को और मजबूत किया है और उन्हें अपने जीवन के तरीके की रक्षा करने के लिए सशक्त बनाया है। ट्राइफेड और एनएसटीएफडीसी जैसे संस्थानों ने आदिवासी समुदायों को आर्थिक रूप से आगे बढऩे और उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए सहायता और अवसर प्रदान किए हैं।
न्याय के हित में सर्वस्व बलिदान करने की भावना, जनजातीय समाज की विशेषता रही है।
भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चेतना की पहचान भगवान राम हैँ। प्रभु श्री राम के राजा राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनने की यात्रा में जनजातीय समाज अपनत्व का सेतु है। भगवान राम को वनवास के दौरान जनजातीय समाज के साथ न सिर्फ साहचर्य मिला बल्कि दोनों ने एक दूसरे पर आस्था व्यक्त की। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अनेक चौपाई में इस बात का उल्लेख किया है।
छत्तीसगढ़ के वनांचल में रहने वाले रमातीन माडिया, झाड़ा सिरहा, चमेली देवी नाग, हिड़मा मांझी, गुण्डाधूर, सुखदेव पातर हल्बा जैसे अनेक वीर सपूत सिर्फ जनजातीय समाज के नहीं अपितु भारत मां के वीर सपूत व वीरांगना हैं।
जनजातीय गौरव दिवस हमें बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, भीमा नायक, खज्या नायक, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, बादल भोई, गंजन सिंह कोरकू, मंशु ओझा, रघुनाथ शाह और कई अन्य, जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए हैं, जैसे जनजातीय नायकों के जीवन को जानने का अवसर देगा।
यह दिन श्री बिरसा मुंडा की जयंती है, जिन्हें देश भर के आदिवासी समुदाय भगवान के रूप में पूजते हैं। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था की शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ देश के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और ‘उलगुलान’ (क्रांति) का आह्वान करते हुए ब्रिटिश उत्पीडऩ के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया।