विचार / लेख

घनाराम साहू
बिहार की जनता में शेष भारत की तुलना में राजनीतिक परिपक्वता अधिक है क्योंकि महात्मा गांधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, बाबू जयप्रकाश नारायण प्रभृति विभूतियों ने अनेक सफल प्रयोग किए हैं । कहा जाता है कि बिहार भगवान महावीर और गौतम बुद्ध का कर्म क्षेत्र रहा है इसलिए बिहारियों को तर्कशीलता विरासत में मिली है ।
मेरा मन नहीं मानता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू की जुबान फिसली है । वे जानबूझकर बड़ी राजनीति के अंतर्गत कुछ बोल गए हैं। नीतीश बाबू के इस वक्तव्य ने उन्हें फिलहाल सर्वाधिक चर्चित बना दिया है। वे स्वयं क्षमा मांग रहे हैं और उनके विरोधी तूफान खड़ा कर रहे हैं लेकिन उनके समर्थक उतनी ही ताकत से बचाव में खड़े दिख रहे हैं। तथ्य तो यह भी है कि बदनाम में भी नाम जुड़ा होता है और नीतीश बाबू इस वक्तव्य से सभी शिक्षितों के घर तक प्रवेश कर गए हैं।
नीतीश बाबू की जाति जनगणना (हेड काउंट) ने भारतीय राजनीति का दिशा परिवर्तन कर दिया है । कुछ दिनों पूर्व तक जाति जनगणना के कारण जो समाज में विघटन देख रहे थे उनके स्वर भी अब ‘डिफेंसिव मोड’ में आ गए हैं। आसन्न विधानसभा का चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में ओबीसी और किसान बड़ा मुद्दा होगा। मेरा मानना है कि समाज को एससी, एसटी, माइनॉरिटी में तथा अभी-अभी ओबीसी और ईडब्ल्यूएस में बांटने से समाज में बिखराव प्रभावी नहीं रहा तो इनकी अलग-अलग गिनती कर लेने से समग्र समाज को कुछ खास फरक नहीं पडऩे वाला है लेकिन हां! राजनीतिक दलों की आंतरिक संरचना में बड़ा बदलाव अवश्य आएगा और रामकथा के धोबी की तरह मूक-बधिर बना दिए गए लोग व्यवस्था पर सवाल दागने लगेंगे।
कुछ विदेशी यात्रियों ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जब भारत के दो राजा आपस में युद्ध करते रहते हैं तब भारत का किसान अपने खेतों में हल चलाते दिखते हैं। महाकवि तुलसीदास जी ने भी मानस में लिखा है ‘कोई नृप होई हमें का हानि’ , मेरा मानना है कि ये दोनों कथन अर्धसत्य हैं। हमारी व्यवस्था ही ऐसी है कि जो राज दरबारी नहीं हैं उनके कथन का कुछ अपवादों को छोडक़र महत्व नहीं रहा है इसलिए आम आदमी आंख, कान खुली रखता है और जुबान बंद।