विचार / लेख

कांग्रेस की एक बड़ी गलती
15-Sep-2022 4:08 PM
कांग्रेस की एक बड़ी गलती

-आर.के. जैन
जैसा कि सभी जानते है कि केंद्र की यूपीए सरकार के विरुद्ध अन्ना हजारे को मोहरा बनाकर अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी ने 2011 से 2013 तक निरंतर आंदोलन चलाया था, जिसमें तत्कालीन यूपीए सरकार को महाभ्रष्ट प्रचारित किया गया था। अन्ना की गांधीवादी छवि और भ्रष्टाचार का मुद्दा ऐसा था कि तत्कालीन यूपीए सरकार दोषी न होते हुये भी बैकफुट पर आ गई थी। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले, 2 फीसदी स्कैम, कोयला घोटाला आदि को कुछ ऐसे मीडिया के माध्यम से उछाला गया कि जनता को भी धोखा हो गया कि वाक़ई तत्कालीन दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस आंदोलन से केजरीवाल साहब रातों रात पूरे देश में प्रसिद्धि पा गये और आम जनमानस को लगने

लगा कि यह व्यक्ति सार्वजनिक जीवन के भ्रष्टाचार से लड़ सकता है और आवाज उठा सकता है।
वर्ष 2013 के आखिर में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने वाले थे। अन्ना आंदोलन से प्रसिद्धि पाकर केजरीवाल साहब की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उछाल मारने लगी थी और उन्होंने अपनी एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई जिसका नाम ‘आम आदमी पार्टी’ रखा। उनकी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा और चुनाव प्रचारों में भी कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार के कथित भ्रष्टाचारों का जमकर निशाना बनाते रहे। चुनाव में शीला दीक्षित सरकार की बुरी तरह पराजय हुई और कांग्रेस को 70 विधानसभा सीटों में से मात्र 8 सीटें ही प्राप्त हुई थी। इन चुनावों में बीजेपी को 32 सीटें मिली थी और आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिली थी। किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था।
दिल्ली विधानसभा का जनादेश कांग्रेस के विरुद्ध था पर कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के नाम पर केजरीवाल की पार्टी को बिना शर्त समर्थन देकर उनकी सरकार बनवा दी। केजरीवाल की पार्टी ने इस बिन माँगे समर्थन को लपक लिया और मुख्यमंत्री बन गये।

मुख्यमंत्री बनते ही केजरीवाल साहब लोकलुभावन फैसले लेने लगे ताकि दिल्ली की जनता के दिलों में जगह बनाई जा सके। जिस दल के समर्थन से सरकार चला रहे थे उसे ही हर कमियों/अव्र्यवस्था के लिए जिम्मेदार बताने लगे। केजरीवाल साहब को जब लगा कि दिल्ली की जनता उन्हें मसीहा समझने लगी है तो 49 दिनों तक सरकार चलाने के बाद यह कहकर इस्तीफा दे दिया कि कांग्रेस उन्हें भ्रष्टाचार से लडऩे नहीं दे रही हैं और इसके लिए क़ानून नहीं बनाने दे रही हैं। केजरीवाल साहब की इस चाल से कांग्रेस की रही सही छवि भी खत्म हो गई थी।

बाद की कहानी तो मालूम ही है कि उन 49 दिनों में बनाई गईं अपनी छवि से केजरीवाल साहब ने अगले चुनावों में 70 में से 68 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था और दिल्ली विधानसभा विपक्ष हीन हो गई थी। कांग्रेस तो दिल्ली विधानसभा से पूरी तरह साफ ही हो गई।

अब सवाल यह है कि जिस व्यक्ति ने कांग्रेस को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उसे समर्थन देकर मुख्यमंत्री क्यों बनवाया था। कायदे से सबसे बड़ा दल होने के नाते बीजेपी को सरकार बनानी चाहिए थी पर उसने नहीं बनाई थी लेकिन कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हुए केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनवा दिया था जबकि दिल्ली की जनता का जनादेश कांग्रेस के खिलाफ था। सरकार बीजेपी बनाये या केजरीवाल या दोनों मिलकर बनाते यह कांग्रेस को नहीं सोचना था ।

अगर उस समय कांग्रेस ने समर्थन देकर केजरीवाल को मुख्यमंत्री न बनवाया होता तो बीजेपी जोड़-तोडक़र सरकार जरूर बनाती और केजरीवाल साहब को दिल्ली का मुख्यमंत्री कभी नहीं बनने देती।
कांग्रेस की उस भूल या गलती ने केजरीवाल को संजीवनी देने का काम किया था और उसी का नतीजा कांग्रेस आज भी भुगत रही हैं। अगर केजरीवाल साहब को उस समय दिल्ली की सत्ता न मिली होती तो बीजेपी अपनी सरकार जरूर बनाती और केजरीवाल साहब को कभी भी मुख्यमंत्री न बनने देती और न ही उन्हें इतना प्रसिद्ध होने देती।

निकट भविष्य में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। हिमाचल प्रदेश व गुजरात में आम आदमी पार्टी भी मैदान में हैं, जहां वर्तमान में बीजेपी की सरकार है । हो सकता है कि इन राज्यों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिले और दो दलों को मिल-जुलकर सरकार बनाने की नौबत आ जाये। मेरा यह मानना है कि यदि इनमें से किसी राज्य में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलता है तो उसे किसी दल के समर्थन करने के बजाय विपक्ष में बैठना चाहिए और खासकर बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के नाम पर आम आदमी पार्टी से तो न समर्थन लेने की जरूरत है और न ही देने की क्योंकि आम आदमी पार्टी को ताकत देने का मतलब है खुद को खत्म करना जैसा कि दिल्ली में देख चुके है।
 


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