सरगुजा

गंगा दशहरा: जल प्रतिष्ठा, कठपुतली विवाह और लोकसंस्कृति का अनूठा संगम
04-Jun-2025 10:56 PM
गंगा दशहरा: जल प्रतिष्ठा, कठपुतली विवाह और लोकसंस्कृति का अनूठा संगम

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

प्रतापपुर, 4 जून। सरगुजा अंचल के प्रतापपुर क्षेत्र में गंगा दशहरा का पर्व इस वर्ष भी परंपरा, भक्ति और जल संरक्षण के संदेश के साथ धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर स्थानीय जलाशयों को गंगा तुल्य मानकर पूजा-अर्चना की गई और विवाह व जन्म से जुड़े प्रतीकों का विसर्जन किया गया।

इस अनूठी परंपरा के अंतर्गत, ग्रामीणों ने वर्ष भर के शुभ कार्यों से जुड़ी वस्तुएं—जैसे नाल, मौर, ककन, कलश आदि—को कमल पत्तों से युक्त जलाशयों में विधिपूर्वक विसर्जित किया। बैगा (स्थानीय पुजारी) ने पूजा संपन्न करवाई, और उपवास रखकर श्रद्धालु जलाशय तक पहुँचे।

इस अवसर पर गांव की कुंवारी लड़कियों द्वारा कठपुतली विवाह भी संपन्न कराया गया। तीन दिनों तक लकड़ी के बने गुड्डा-गुडिय़ा की शादी की सभी रस्में निभाई गईं, जिसमें बुजुर्गों ने मार्गदर्शन दिया। अंतिम दिन इन कठपुतलियों को जलाशय में विसर्जित किया गया। यह आयोजन बच्चों को लोकसंस्कार सिखाने का माध्यम माना जाता है।

प्रतापपुर क्षेत्र के ग्रामीणों ने बताया कि गंगा बहुत दूर है, इसलिए स्थानीय जलाशयों को ही गंगा समान मानकर श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है। यह परंपरा आस्था और प्रकृति से जुड़ाव का अद्भुत उदाहरण है।

पांच दिवसीय गंगा दशहरा मेले में पान की दुकानों, छाता ओढ़े युवक-युवतियों द्वारा गाए गए ‘दसराहा गीतों’ ने माहौल को लोकसंगीत की मिठास से भर दिया। इन गीतों में प्रेम, विरह, हास्य और संवाद का रोचक मिश्रण देखने को मिला। जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य, राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने इसे ‘जल प्रतिष्ठा का उत्सव’ बताते हुए कहा कि,गंगा दशहरा जैसे पर्व ग्रामीण जनजीवन की जल संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का अनुपम उदाहरण हैं।


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