राजपथ - जनपथ
एक पदाधिकारी मुद्दा बन गया !!
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रवि घोष की एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसमें वो माना एयरपोर्ट पर टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनने पर बधाई देते, और चरण छूकर आशीर्वाद लेते नजर आ रहे हैं। रवि घोष के संगठन में दायित्व को लेकर प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बीच मतभेद की स्थिति बनी हुई है।
सुनते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम चाहते हैं कि रवि घोष को राजीव भवन के कामकाज से मुक्त कर बस्तर संभाग का प्रभार दिया जाए। उन्होंने आदेश निकाल भी दिया था, लेकिन प्रदेश प्रभारी सैलजा ने हस्तक्षेप कर आदेश को फिलहाल रूकवा दिया। रवि घोष, मरकाम के करीबी रहे हैं। मरकाम ने ही प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कोंडागांव से यहां बुलाकर उन्हें महामंत्री (प्रशासन) का दायित्व सौंपा था।
रवि घोष जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं, और उन्हें पार्टी के कई लोग अच्छा संगठनकर्ता भी मानते हैं। मगर संगठन के भीतर ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि रवि घोष की ज्यादा जरूरत बस्तर में है। सालों से वो मरकाम के विधानसभा चुनाव का संचालन करते आए हैं। उनके नहीं रहने से मरकाम का चुनाव प्रबंधन गड़बड़ा सकता है। जबकि सीएम खेमा उन्हें बस्तर भेजने के पक्ष में नहीं है।
चर्चा है कि रवि घोष खुद भी रायपुर में ही रहना चाहते हैं। बस, इन्हीं सब वजहों से पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच किचकिच चल रही है। अभी तो रवि घोष का प्रभार बदलने का आदेश रुक गया है, लेकिन आगे क्या कुछ बदलाव होता है यह देखना है।
सिंहदेव के बनते ही साय भी...
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय को कांग्रेस में आने के बाद दो माह के भीतर सीएसआईडीसी चेयरमैन का पद दे दिया गया। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। साय को कुछ न कुछ तो मिलना ही था। यह भी संयोग है कि टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने के साथ ही साय को भी पद दिया गया। दोनों ही सरगुजा से आते हैं। वैसे तो नंदकुमार साय जशपुर के रहने वाले हैं, लेकिन सरगुजा के सांसद भी रह चुके हैं।
साय विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं, लेकिन शायद पार्टी के भीतर उनके टिकट को लेकर एकमत न बने। क्योंकि जशपुर जिले की तीनों सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, और विधायक की टिकट काटकर भाजपा से आए नेता को प्रत्याशी बनाना जोखिम भरा भी हो सकता है।
ऐसे में उन्हें साथ रखने के लिए जिम्मेदारी तो मिलनी ही थी। इसके अलावा वो सरकारी बंगले में काबिज हैं। किसी पद पर न होने के बावजूद उनसे बंगला खाली नहीं कराया गया था। अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हो गया है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर वो बंगला रखने के पात्र हो गए हैं। साय को कांग्रेस में लाने में बस्तर सांसद दीपक बैज की भूमिका अहम रही है।
डिप्टी सीएम पद की संवैधानिक स्थिति
संविधान में केबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप-मंत्री पदों का प्रावधान तो है लेकिन उप-मुख्यमंत्री पद का कोई जिक्र नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देने क लिए एक मंत्री परिषद् होगी, जिसका मुखिया मुख्यमंत्री होगा। अनुच्छेद 164 के मुताबिक राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेंगे, साथ ही मुख्यमंत्री की सलाह पर ही मंत्रिपरिषद् में केबिनेट, राज्य और उप-मंत्री नियुक्त करेंगे। राज्यपाल और संविधान की दृष्टि में कोई उप-मुख्यमंत्री मंत्रि परिषद् के एक सदस्य से अधिक नहीं हैं। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति और व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होता हैं। राज्यपाल किसी को उप मुख्यमंत्री पद की अलग से शपथ भी नहीं दिलाते, वे केबिनेट मंत्री के रूप में ही शपथ लेते हैं।
प्रतीकात्मक होने के बावजूद पद में मुख्यमंत्री शब्द आ जाता है जिससे उप-मुख्यमंत्री को बाकी मंत्रियों से ऊपर और मुख्यमंत्री के ठीक बाद का ओहदा मान लिया जाता है। विभिन्न दल राजनीतिक, क्षेत्रीय, जातिगत संतुलन बनाने के लिए उप-मुख्यमंत्री पद का सृजन करते हैं और इसका लाभ भी मिलता है। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव के समर्थकों के बीच जश्न इसीलिये मनाया जा रहा है कि उनके साथ यह पदनाम जुड़ गया। राज्य बनने के बाद यह सिंहदेव पहले उप-मुख्यमंत्री पर छत्तीसगढ़ के दूसरे नंबर के हैं। संयुक्त मध्यप्रदेश में जब 1993 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी, तब रामपुर (कोरबा) से 6 बार विधायक रहे प्यारेलाल कंवर उप-मुख्यमंत्री बनाये गए थे। तब उनके पास वित्त और आदिम जाति कल्याण विभाग की जिम्मेदारी थी।
राजीव शुक्ला के होते हुए...
नया रायपुर का शहीद वीरनारायण अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम देश का तीसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है, जिसकी क्षमता 65 हजार लोगों के बैठने की है। दुनिया का यह चौथा सबसे बड़ा स्टेडियम भी है। मध्य भारत में तो इससे बड़ा कोई स्टेडियम नहीं। 2010 में यहां पहली बार कनाडा और छत्तीसगढ़ का एक फ्रैंडली मैच हुआ था। सन् 2013 में आईपीएल का एक मैच हुआ। पहला अंतर्राष्ट्रीय वन डे क्रिकेट इसी साल भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ जिसमें भारत की जीत हुई। यहां रोड सेफ्टी वर्ल्ड क्रिकेट भी हुआ था। प्रत्येक आयोजन यहां सफलता के साथ हुआ था। मेहमान खिलाडिय़ों तथा एसोसिएशन ने इसकी तारीफ भी की। इस बार भारत में 5 अक्टूबर से 12 नवंबर तक क्रिकेट वर्ल्ड कप होने जा रहा है, जिसमें 12 स्थानों पर 48 मैच होंगे। पर नया रायपुर के इतने महत्वपूर्ण स्टेडियम का नाम इस सूची में नहीं है। मोहाली सहित पंजाब में एक भी मैच तय नहीं करने पर वहां के क्रिकेट एसोसियेशन ने गहरी नाराजगी जताई है। तिरूअनंतपुरम् में मैच तय नहीं करने पर वहां के सांसद शशि थरूर ने भी आपत्ति दर्ज कराई है। मई महीने में खबर चली थी कि एक मैच नया रायपुर में होने जा रहा है लेकिन जून में जब आईसीसी ने सूची जारी की तो नाम गायब था। जिन शहरों में मैच हो रहे हैं वे हैं- अहमदाबाद, बेंगलूरू, चेन्नई, दिल्ली, धर्मशाला, लखनऊ, हैदराबाद, पुणे, कोलकाता और मुंबई। कई लोग इसे राजनीति से जोडक़र भी देख रहे हैं। जहां भाजपा शासित राज्य है, वहां की कम क्षमता और सुविधा वाले स्टेडियम भी तय कर दिए गए हैं। बीसीसीआई के पदाधिकारियों के हिसाब से भी जगह तय किए गए हैं। यह आरोप पंजाब क्रिकेट एसोसियेशन ने खुलकर लगाया भी है। अहमदाबाद में ओपनिंग सहित 6 मैच होने वाले हैं, जहां स्टेडियम का नाम ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर है, फिर जय शाह भी वहीं से आते हैं। छत्तीसगढ़ के लोग भी उम्मीद कर रहे थे कि बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में पहुंचे हैं तो कम से कम एक मैच यहां कराने के लिए जोर दे सकते थे।
देशभर में ईडी...
मोदी सरकार की दूसरी पाली में ईडी की धमक देशभर में सुनाई दे रही है। ईडी ने पिछले चार साल में कुल 7 सौ से अधिक केस दर्ज किए हैं। इनमें से राजनेताओं पर कुल 180 केस दर्ज हुए हैं। छत्तीसगढ़ में भी ईडी की कार्रवाई तेज रफ्तार से चल रही है। यहां अभी सिर्फ 3 नेताओं पर ही कार्रवाई हुई है। इनमें कांग्रेस विधायक द्वय देवेन्द्र यादव, चंद्रदेव राय, और प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल हैं।
हालांकि कई और नेताओं के यहां ईडी ने जांच पड़ताल की है। लेकिन अभी किसी और खिलाफ प्रापर्टी अटैच, या गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई नहीं की है। विधानसभा चुनाव नजदीक आ गए हैं। राजनीतिक हल्कों में ये चर्चा है कि आने वाले दिनों में ईडी कई और को निशाने पर ले सकती है। चर्चा है कि ईडी ने जांच के लिए कुछ नए सेक्टर खोज लिए हैं। देखना है कि आगे क्या कुछ हो सकता है।
धरसीवां में एक अनार सौ बीमार
विधानसभा चुनाव में चार महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में भाजपा में रायपुर शहर से सटे धरसींवा विधानसभा में टिकट के लिए दावेदारों की फौज खड़ी हो गई है। दावेदार एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत भी कर रहे हैं। पिछले दिनों रायपुर ग्रामीण जिलाध्यक्ष अनिमेश कश्यप (बॉबी) को हटा दिया गया। हटाने की एक वजह दावेदारों की शिकायत भी थी।
अनिमेष को धरसींवा से टिकट का दावेदार माना जा रहा है। इससे परे पूर्व विधायक देवजी पटेल की स्वाभाविक दावेदारी है। रायपुर से अंजय शुक्ला भी धरसींवा में सक्रिय हैं, और वो भी टिकट मांग रहे हैं। इसके अलावा पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा भी धरसींवा से टिकट चाहते हैं। इनके अलावा अशोक सिन्हा, दिलेन्द्र बंछोर सहित कुछ कारोबारियों की नजर भी धरसींवा सीट पर है। यहां दावेदारों में इतनी खींचतान है कि कुछ लोग तो सामूहिक इस्तीफा दे चुके हैं। कहा जा रहा है कि धरसींवा से प्रत्याशी तय करने में पार्टी को सबसे ज्यादा मुश्किल आ सकती है।
एनएच पर खड़े यमराज..
शायद ही कोई दिन गुजरता हो छत्तीसगढ़ में भारी वाहनों के कारण सडक़ दुर्घटनाएं न होती हों। इसके लिए जरूरी नहीं कि वह सडक़ पर दौड़े, खड़े होने पर भी जान-माल की हानि हो सकती है। यह राजधानी रायपुर की सडक़ है जहां शहर के भीतर नो पार्किंग पर खड़ी दोपहिया गाडिय़ों, कारों का रोज चालान कर पुलिस प्रेस नोट जारी करती है। वहीं नेशनल हाईवे पर भाटागांव के सामने रात में कतार में ट्रकों को इस तरह से खड़ा कर दिया गया है मानो वह पार्किंग की जगह हो। रोजाना यही हाल होता है।
‘बस्तर’ एजेंडे वाली फिल्म तो नहीं?
इस साल जनवरी माह में रायपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस लेकर मुंबई की एक प्रोडक्शन कंपनी डी. सोनी ने झीरम हमले पर फिल्म बनाने की घोषणा की थी। यह फिल्म कांग्रेस नेताओं की नक्सली हिंसा में मारे जाने की घटना पर आधारित होने की बात कही गई थी। छत्तीसगढ़ में भी इसकी शूटिंग होनी थी, पर यह अभी किस मुकाम पर पहुंची है, कोई घोषणा नहीं की गई है। हो सकता है अचानक विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रिलीज हो जाए। पर जब तक निर्माता –निर्देशक इस बारे में नहीं बताएंगे, कुछ नहीं कहा जा सकता।
इधर ‘द केरला स्टोरी’ की निर्माता कंपनी सनशाइन प्रोडक्शन की ओर से सोशल मीडिया पर ऐलान किया गया है कि वे बस्तर पर फिल्म बनाएंगे। घोषणा के साथ ही इसके रिलीज की तारीख भी घोषित कर दी गई है- 5 अप्रैल 2024। फिल्म की पटकथा क्या है इस पर कोई घोषणा नहीं की गई है लेकिन पोस्टर में कहा गया है कि- एक छिपा हुआ सच, जो देश में तूफान लेकर आएगा।
इसके पहले लाल सलाम (नंदिता दास), रेड अलर्ट (सुनील शेट्टी, समीरा रेड्डी), चक्रव्यूह (प्रकाश झा), बुद्धा इन ट्रैफिक जाम ( विवेक अग्निहोत्री), न्यूटन (राजकुमार राव) जैसी कुछ फिल्में आ चुकी हैं जिनमें अलग-अलग कोण से बस्तर की माओवादी समस्या का जिक्र है। अब तक बस्तर के सभी पहलुओं को किसी एक फिल्म में समेट पाना किसी भी निर्माता के लिए मुमकिन नहीं हो पाया, है भी नहीं।
द केरला स्टोरी के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह और निर्देशक सुदीप्तो सेन विवादों में घिरे हुए हैं। उन्होंने इस फिल्म के टीजऱ में दावा किया गया कि केरल की 32 हजार लड़कियों का धर्मांतरण कर दिया गया और सीरिया ले जाकर उन्हें आतंकियों के संगठन में भर्ती करा दिया गया। कर्नाटक चुनाव के पहले यह फिल्म रिलीज हुई थी। केरल सरकार ने इस फिल्म को रिलीज करने पर रोक लगाई। कहा कि यह उनके प्रदेश की छवि खराब करने के लिए बनाई गई फिल्म है। कई काउंटर तथ्य सामने रखे जाने के बाद 32 हजार लड़कियों की लाइन वापस लेनी पड़ी। पता चला कि सिर्फ दो चार लड़कियों का मामला है। द केरला स्टोरी फिल्म का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में भी किया। फिल्म रिलीज करने की टाइमिंग और कई गलत तथ्यों के चलते निर्माताओं पर आरोप लगा कि यह फिल्म खास एजेंडे से बनाई गई है। अब इन्हीं निर्माताओं की फिल्म बस्तर, ठीक लोकसभा चुनाव से पहले आ रही है। निर्माताओं ने छिपा हुआ सच सामने लाने का दावा किया है। फिल्म निर्माताओं ने जरा भी संकेत नहीं दिया है कि वे किस पहलू को फिल्म में दिखाने वाले हैं। क्या सुरक्षा बलों और नक्सलियों की ज्यादती पर आधारित होगी, तालमेटड़ा और झीरम जैसी घटनाओं पर होगी या फिर अभी धर्मांतरण पर?
पहला ट्राइबल इंटरनेशनल क्रिकेटर
जशपुर के खिलाडिय़ों ने खेलों में राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाया है। हॉकी और फुटबाल में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने प्रदेश का नाम ऊंचा किया है। अब व्यावसायिक क्रिकेट में भी उनकी इंट्री हो रही है। जशपुर के प्रशांत पैकरा काफी समय से बतौर गेंदबाज छत्तीसगढ़ की टीमों में खेल रहे हैं। इसी सिलसिले में वे अंडर 25 वन डे ट्रॉफी खेलने के लिए मुंबई गए थे। वहां मुंबई इंडियंस कंपनी के स्काउट ने उन्हें देखकर सपोर्ट बॉलर के रूप में चुन लिया है। प्रशांत दायें हाथ के गेंदबाज हैं और 135 किलोमीटर की रफ्तार से गेंद फेंक सकते हैं। उन्हें ट्रेनिंग के लिए इंग्लैड भेजा जाएगा। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद मुंबई इंडियंस की ओर से खेलने की पूरी संभावना है और तब वे पहले आदिवासी इंटरनेशनल खिलाड़ी हो जाएंगे। उनके साथ रांची के ही आदिवासी युवक रॉबिन मिंज को भी चुना गया है वे भी इंग्लैंड प्रशिक्षण लेने इंग्लैंड जाएंगे।
ओहदे से परे भी ताकत होती है...
वन विभाग में अफसरों के बीच आपसी खींचतान चल रही है। पड़ोस के वन मंडल में तो सीसीएफ ने एक शिकायत पर डीएफओ के वित्तीय अधिकार छीन लिए। आदेश जारी हुए 48 घंटे नहीं हुए थे कि डीएफओ के वित्तीय अधिकार को मुख्यालय ने बहाल कर दिया। ऐसा नहीं है कि शिकायत गंभीर नहीं थी। बल्कि सीसीएफ को डीएफओ की ताकत का अंदाजा नहीं था।
सुनते हैं कि डीएफओ एक राजनीतिक दल के राष्ट्रीय पदाधिकारी के नजदीकी रिश्तेदार हैं। राष्ट्रीय पदाधिकारी कई बार रायपुर आ चुके हैं, और पार्टी कार्यक्रम निपटने के बाद दामाद से भी मिलने जाते रहे हैं। विभाग के ज्यादातर प्रमुख अफसरों को इसकी जानकारी है। सिर्फ सीसीएफ ही इससे अनभिज्ञ थे। फिर क्या था, शीर्ष अफसरों ने हस्तक्षेप किया, और डीएफओ को वित्तीय अधिकार वापस करने में देर नहीं लगाई।
पोस्टर पर चेहरा भले न हो, लड़ेंगे...
भाजपा ने भले ही मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। पार्टी के रणनीतिकार यह भी साफ कर चुके हैं कि सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा। बहुमत मिलने पर विधायक दल में ही नेता का चुनाव किया जाएगा। ऐसे में 15 साल सीएम रहे डॉ. रमन सिंह के चुनाव लडऩे को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थी। लेकिन पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने दो दिन पहले अपने विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में मीडिया कर्मियों से अनौपचारिक चर्चा में संकेत दिए, कि वो विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे।
पूर्व सीएम ने मीडियाकर्मियों के साथ लंच भी किया, और राजनांदगांव के विकास के लिए उनकी सरकार में किए गए कार्यों का ब्यौरा भी दिया। पूर्व सीएम ताल ठोककर चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं, और उनके करीबी समर्थकों ने ग्रामीण इलाकों में वाल पेंटिंग शुरू भी कर दिया है। अब पूर्व सीएम चुनाव लड़ेंगे, तो वो स्वाभाविक तौर पर अघोषित सीएम का चेहरा हो जाएंगे। अब पार्टी में सीएम पद के दूसरे दावेदार, और रमन विरोधी नेताओं का क्या रूख रहता है, यह तो चुनाव के नजदीक आते-आते पता चल जाएगा।
सरकार पर कर्मचारियों का दबाव
राज्य सरकार के अधीन काम कर रहे अनियमित और संविदा कर्मचारियों को नियमित करना कांग्रेस की चुनावी घोषणाओं से एक था, जो अब तक अधूरी है। ? ऐसी कर्मचारियों की संख्या करीब 45 हजार है। दैनिक वेतन भोगी और अन्य अस्थायी कर्मचारियों को जोडऩे पर उनकी संख्या एक लाख 80 हजार तक पहुंच रही है। नियमित करने की मांग पर संविदा कर्मचारी लगातार आंदोलन चला रहे हैं। इसी माह उन्होंने प्रदेश भर में एक महीने लंबी रथयात्रा भी जगह जगह निकाली। 8 माह पहले भूपेश सरकार ने इस दिशा में थोड़ी कार्रवाई शुरू की। उसने सामान्य प्रशासन विभाग से सभी विभागों से डाटा एकत्र करने के लिए कहा था। सरकार के करीब 42 विभाग हैं, जिनमें से 20 विभागों की जानकारी जीएडी के पास आ चुकी है लेकिन 22 विभागों से कोई ब्यौरा नहीं मिला है। आंदोलनरत कर्मचारियों की चिंता है कि यदि यही रफ्तार रही तो उनकी मांगे आचार संहिता लागू होने के पहले पूरी ही हो पाएगी भी या नहीं? दरअसल जीएडी के पास सूची आ जाने के बाद भी वरिष्ठता क्रम तय करने और वित्त विभाग से मंजूरी लेने की प्रक्रिया बची रहेगी। कई कर्मचारी ऐसे हैं जो पूरी नौकरी अनियमित या संविदा कर्मचारी के रूप में कर चुके और कुछ बरस बाद उनके रिटायरमेंट का समय आ जाएगा।
दूसरी ओर रेगुलर कर्मचारी संगठनों का फेडरेशन भी 7 जुलाई को तालाबंदी आंदोलन करने जा रहा है। एक अगस्त से उन्होंने बेमियादी हड़ताल की घोषणा कर दी है। उनकी चार स्तरीय वेतनमान, पिंगुआ कमेटी की रिपोर्ट और सातवें वेतनमान में संशोधित गृह भाड़ा तथा केंद्र के समान महंगाई भत्ता देने जैसी मांगें हैं।
यह भी सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। चुनाव मैदान में उतरने से पहले कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहेगी कि अधिकारी कर्मचारी उनसे नाराज चलें। देखना है कि इन दबावों के बीच सरकार क्या कदम उठाती है।
महुआ पेड़ों पर मंडराता संकट
महुआ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्य भारत ?के कई राज्यों में आदिवासियों के जीविकोपार्जन का बहुत बड़ा माध्यम है। आदिवासी परिवारों में संपत्ति का जब बंटवारा होता है तो इन पेड़ों को भी गिना जाता है। अभी तो छत्तीसगढ़ के जंगल महुआ पेड़ों से मुक्त नहीं दिखाई देते हैं, मगर ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का शोध जरूर चिंताजनक है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान के चलते महुआ पेड़ की जो औसत आयु 8 से 15 वर्ष की होती थी, वह घट रही है। बीजों पर इसका क्या असर हुआ है इस पर शोध करना बचा है। और पेड़ों की आयु को धीरे धीरे कम हो रही है। इस नुकसान के लिए सरकार को कानून बनाने की भी जरूरत पर यह वैज्ञानिक बल देते हैं।
कुछ बरस पहले एक और शोध छपा था, जिसमें इस बात पर चिंता जताई गई थी कि पहले महुआ और जामुन जैसे पेड़ों से जंगल आबाद दिखाई देते थे लेकिन अब स्वाभाविक रूप से इनके उगने की रफ्तार कम हो गई है। लोग भी इन पेड़ों को कम लगा रहे हैं। क्योंकि इसे तैयार करने में ज्यादा श्रम और देखभाल की जरूरत पड़ती है।
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि वह 65 प्रकार के लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी करती है। मगर ये वनोपज भविष्य में भी जंगल में रहने वालों की आजीविका के स्रोत बने रहेंगे, इस पर शासन स्तर पर शायद ही कोई अध्ययन हो रहा हो। (rajpathjanpath@gmail.com)
खैरागढ़ फिर बीजेपी की ओर ?
खैरागढ़ राजपरिवार की एक महिला सदस्य भाजपा का दामन थाम सकती है। चर्चा है कि महिला सदस्य भाजपा के कुछ प्रमुख नेताओं के संपर्क में हैं।
खैरागढ़ राजघराने के मुखिया, और दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह के निधन के बाद रिक्त सीट पर डेढ़ साल पहले उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। तब दिवंगत विधायक के परिवार के सदस्य कांग्रेस के साथ थे, और इस वजह से कांग्रेस को फायदा मिला था।
उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा वर्मा ने जीत हासिल की थी। मगर अब चर्चा है कि प्रापर्टी से जुड़े विवाद के नहीं सुलझने से राजघराने के सदस्यों में नाराजगी है, और इसी वजह से कांग्रेस से नाता तोडक़र भाजपा से जुडऩे की तैयारी कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
शैलजा से टकराव
छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी शैलजा को इन दिनों विवादों से दो-चार होना पड़ रहा है। शैलजा ने विवादों की वजह से प्रदेश महामंत्रियों के कार्य विभाजन को निरस्त करने के आदेश दिए थे, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के अडऩे की वजह से अमल नहीं हो पाया। अब विवाद को निपटाने के लिए कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है।
दूसरी तरफ, शैलजा के गृह प्रदेश हरियाणा में भी पार्टी के भीतर खूब झगड़ा है। पिछले दिनों चंडीगढ़ में वो भाषण दे रही थीं, तो कई नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के समर्थन में नारेबाजी की। हरियाणा के भीतर शैलजा को हुड्डा के विरोधियों में गिना जाता है। इस नारेबाजी से खफा होकर शैलजा मंच छोडक़र निकल गई। यानी वहां भी उन्हें वर्चस्व की लड़ाई से उलझना पड़ रहा है।
शैलजा कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की करीबी मानी जाती है, और केन्द्र की नरसिम्ह राव और डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। ऐसे में पार्टी हाईकमान में उनकी पकड़ किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में देखना है कि वो इस तरह के विवादों को किस तरह सुलझाती हैं।
खिंची हुई हैं तलवारें दोनों तरफ
चुनाव आचार संहिता के पहले ईडी की कार्रवाई के जवाब में भूपेश सरकार को विपक्षी भाजपा नेताओं पर इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले पर हमला बोलने का मौका मिल गया है। जिला अदालत के आदेश के बाद घोटाले के मुख्य सूत्रधार उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट की सीडी पुलिस को जांच के लिए सौंपी जा चुकी है।
चर्चा है कि ईडी अब कोल, शराब, और अन्य केस पर अपनी जांच तेज करेगी, और कहा जा रहा है कि सरकार के करीबी लोगों को निशाने पर ले सकती है। इससे परे इंदिरा बैंक घोटाला केस में रायपुर पुलिस भाजपा के ताकतवर बड़े नेताओं से पूछताछ की तैयारी है। कुल मिलाकर तलवारें दोनों तरफ से खींच चुकी हंै। देखना है आगे क्या होता है।
टपरी में सिंहदेव की चाय पर चर्चा
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव आगामी चुनाव में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए मैदान पर उतर गए हैं। बस्तर में उन्होंने मीडिया से बात करने के दौरान कुर्ते का ऊपरी बटन खोलकर गले की चेन दिखाई और पूछा बताओ किस धर्म से हूं मैं? दरअसल भाजपा प्रवक्ता केदार कश्यप ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस का पूरी तरह धर्मांतरण हो चुका है। कश्यप, मंत्री कवासी लखमा की उस चुनौती पर बोल रहे थे जिसमें कहा था कि एक भी धर्मांतरण इस सरकार के कार्यकाल में हुआ हो तो वे पद से इस्तीफा दे देंगे।
बहरहाल, बस्तर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को तब अच्छा लगा जब सिंहदेव बारिश के बीच गाड़ी से उतरे और उनके साथ एक टपरी पर बैठकर चुनावी माहौल का जायजा लिया। सिंहदेव कई बार सच मुंह पर बोल देते हैं, चाहे सुनने में अच्छा न लगे। इसका नुकसान भी उठाते हैं। पिछले साल बस्तर दौरे पर थे तो स्थानीय विधायक, वरिष्ठ नेता और कलेक्टर, एसपी मिलने नहीं पहुंचे थे। उन्होंने इस पर नाराजगी जताई थी।
पटरी पर चाय के दौरान जो लोग इक_े हुए उनमें पार्टी के लिए 20-20, 25 साल से काम कर रहे कार्यकर्ता भी थे। इनसे बातचीत के बाद उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले, वे कुछ इस तरह से हैं- एक, पिछली बार बस्तर ने कांग्रेस पर जबरदस्त भरोसा जताया था। अभी सभी 12 सीट कांग्रेस के पास है। ऐसा सोचकर चलना ठीक नहीं कि इस बार भी वैसे ही नतीजे आएंगे। हालांकि यह असंभव नहीं है, पर मेहनत करनी होगी। दूसरा- संगठन की प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के बीच चुनाव से पहले तालमेल में कमी दिखाई देना अच्छी बात नहीं है। हालांकि मरकाम ने साफ कर दिया है कि वे प्रभारी के मार्गदर्शन पर ही काम करेंगे। तीसरा- सर्व आदिवासी समाज चुनाव मैदान में उतरने वाला है, बस्तर की सभी सीटों से लड़ रहा है। हमें भी उसी के मुताबिक तैयार रहना होगा। आदिवासी नेताओं को अपने साथ लेना होगा।
सिंहदेव की बातें कांग्रेस के बाकी नेताओं के उन बयानों से अलग है जो बार-बार कह रहे हैं कि बस्तर में सभी सीट और प्रदेश में पिछली बार से अधिक सीटों पर कांग्रेस जीत रही है। यह भी कहा गया कि मरकाम और कुमारी शैलजा के बीच कोई विवाद नहीं है और सर्व आदिवासी समाज का चुनावी जनाधार नहीं है।
बाइक बनेगी तो यहीं पर ही
रायपुर के एक वर्कशॉप में बुलेट गाड़ी रिपेयरिंग के लिए खड़ी है, भाईजान के पास। हमारा एक दूसरे के बिना काम चलता ही नहीं, फिर कुछ भी लोग पता नहीं किस मकसद से बहिष्कार की शपथ देते-दिलाते रहते हैं।
एनएच के लिए रोड़ा खत्म हुआ?
कोरबा से चांपा आने-जाने वाले जानते हैं कि इस सडक़ की हालत वर्षों से बेहद खराब है। कोयला से भरी गाडिय़ों के चलते प्रदूषण और दुर्घटनाएं भी बहुत ज्यादा हैं। इस सडक़ को फोरलेन करने का काम नेशनल हाईवे एथॉरिटी ने हाथ लिया है लेकिन निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा है। किसानों और ग्रामीणों की शर्त है कि वे अधिग्रहीत जमीन से कब्जा तभी छोड़ेंगे जब उनके हाथ में मुआवजे की रकम आ जाएगी। इनमें विधायक ननकीराम कंवर भी शामिल थे। प्रस्तावित सडक़ पर कंवर का एक राइस मिल और उनकी कुछ जमीन आ रही है। एनएच के अधिकारियों से वे नई नीति के मुताबिक चार गुना मुआवजा मांग रहे थे। यह मुआवजा तय नहीं हुआ तो उन्हें हाईकोर्ट जाना पड़ा। हाईकोर्ट के आदेश आने के बाद उनके लिए नया मुआवजा 2 करोड़ 34 लाख रुपया निर्धारित हुआ। पता चल रहा है कि उनको यह मुआवजा अभी कुछ दिन पहले मिल गया है और वे अपने मिल व जमीन को खाली करने जा रहे हैं। कंवर को देखकर बाकी किसानों ने भी हिम्मत जुटाई थी और कब्जा नहीं छोड़ रहे थे। अब कंवर जब खाली करने के लिए राजी हो गए हैं तो क्या बाकी किसान भी पीछे हट जाएंगे? एनएच के अफसरों को इसकी उम्मीद तो है, पर कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि प्रभावित किसान दर्जनों की संख्या में है और उनकी शिकायत अभी दूर नहीं हुई है।
सोशल मीडिया का असर
सोशल मीडिया का चुनाव पर असर के लेकर हाल ही में एक निजी संस्था ने सर्वे कराया है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष-2024 के लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया का काफी असर देखने को मिल सकता है। यह भी आकलन है कि 543 लोकसभा सीटों में से 120 सीट पर सोशल मीडिया विशेष प्रभाव डालेगी।
सर्वे रिपोर्ट में पिछले लोकसभा चुनाव में वाट्सऐप, यू-ट्यूब चैनल, फेसबुक व ट्विटर के यूजर संख्या, और वर्तमान इसकी उपयोगिता व प्रभाव का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला गया है। यह कहा गया कि सोशल मीडिया की पहुंच विशेषकर शहरी इलाकों में हर घर तक हो गई है। गांवों में भी इसकी रफ्तार बढ़ रही है। ऐसे में चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक-प्रिंट से परे सोशल मीडिया के रूप में जंग का एक नया मैदान तैयार हो गया है।
राजनीतिक दलों को भी इसका अंदाजा है। इसीलिए छत्तीसगढ़ में प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस, राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर काफी पहले आईटी सेल का गठन कर चुकी है। अब विधानसभा चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ में दोनों दल सोशल मीडिया प्लेटफार्म को मजबूत बनाने में लगे हैं। भाजपा ने तो 45 लोगों की एक टीम तैयार की है। सोशल मीडिया में काम करने वाले ये लोगों दूसरे प्रदेशों से आए हुए हैं, और लोकसभा चुनाव कर यहां रहकर काम करेंगे। कुल मिलाकर चुनाव में सोशल मीडिया पर लड़ाई ज्यादा आक्रामक रहेगी।
दिल्ली जाने का सिलसिला
चर्चा है कि केन्द्र सरकार ने बस्तर एसपी जितेन्द्र सिंह मीणा की प्रतिनियुक्ति को मंजूरी दे दी है। मीणा आईबी में जा सकते हैं। इसके अलावा डीआईजी स्तर के अफसर डी श्रवण, और राजेन्द्र दास ने भी प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन कर दिया है। उनकी भी प्रतिनियुक्ति को जल्द मंजूरी मिल सकती है। ऐसे में पुलिस में एक और फेरबदल की गुंजाइश बन रही है।
दूसरी तरफ, बस्तर आईजी सुंदरराज पी. को चुनाव तक बस्तर में ही बनाए रखने के लिए सरकार ने मुख्य चुनाव पदाधिकारी के माध्यम से चुनाव आयोग को चि_ी लिखी है। इसके लिए आयोग भी सहमत है। सुंदरराज को बस्तर में करीब साढ़े तीन साल से अधिक हो चुके हैं। आयोग ने तीन साल से एक ही स्थान पर पदस्थ अफसरों के तबादले के आदेश दिए हैं, लेकिन संवेदनशील बस्तर में चुनाव के दौरान अनुभवी अफसरों की जरूरत रहेगी। ऐसे में सुंदरराज के मामले में आयोग नियम को शिथिल करने पर विचार कर रहा है। इस पर जल्द फैसला हो सकता है।
कांग्रेस की ट्रेनिंग
कांग्रेस का विधानसभा स्तरीय बूथ कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है। शिविर में सीनियर नेता, कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं। प्रशिक्षण शिविर में कई जगहों पर एलईडी लगाकर वीडियो क्लिपिंग दिखाई जा रही है। वीडियो क्लिपिंग पिछले विधानसभा चुनाव के पहले की है जब भूपेश बघेल को परिवार समेत ईओडब्ल्यू दफ्तर तलब किया गया था। कुछ इसी तरह की क्लिपिंग दिखाकर रमन सरकार की कांग्रेसियों के खिलाफ कार्रवाईयों को याद दिलाया जा रहा है। यह सब देखकर कार्यकर्ता कितने सक्रिय होते हैं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
हसदेव में समानांतर आंदोलन
हसदेव अरण्य इलाके में स्वीकृत नई कोयला खदानों की मंजूरी के बावजूद जन विरोध के चलते उत्खनन कार्य रूका हुआ है। खदानों को शुरू करने के लिए अदानी समूह और राजस्थान सरकार ने सोनिया गांधी से लेकर सरगुजा और सूरजपुर जिला प्रशासन पर हरसंभव दबाव बनाया। बल प्रयोग करके भी देख लिया गया। मगर प्रभावित आदिवासियों के डटे रहने और उनको कांग्रेस के ही बड़े नेताओं का समर्थन मिलने के कारण मंजूरी नहीं दी जा सकी। इधर कुछ समय से प्रस्तावित नई खदानों को शुरू करने की मांग पर एक समानांतर आंदोलन शुरू कर दिया गया है। इनमें अधिकांश वे लोग हैं जिन्हें वर्तमान में चल रही खदानों से रोजगार मिला हुआ है। इनका कहना है कि नई खदानों में खनन की मंजूरी नहीं मिलने पर वे बेरोजगार हो जाएंगे। खदान के आने से उन्हें अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मिली। अब तो राजस्थान सरकार की बिजली कंपनी यहां पर 100 बिस्तर अस्पताल भी खोलने जा रही है। उनकी यह दलील वाजिब होगी लेकिन दूसरी ओर इन्हीं खदानों के खुलने से हजारों लोग प्रभावित हुए हैं जो बेदखल हुए। रोजी रोटी और पारंपरिक आजीविका के साधन नष्ट हो गए। पर्यावरण, वन्य जीवों और जंगल पर पड़े प्रभाव पर कई अध्ययन हो चुके हैं जो बताते हैं कि अगर कुछ लोगों की नौकरी या रोजगार को बचाने के लिए अगर और खनन हुआ तो भविष्य में इससे होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाएगी। । वैसे पिछले डेढ़ साल से आंदोलन कर रहे आदिवासी इस तरह के ज्ञापन आवेदन को प्रायोजित भी बताते हैं।
इमरजेंसी का चुनावी लाभ
भारत में इमरजेंसी 48 साल पहले 25 जून 1975 को लगाई गई। इसे लोकतंत्र की हत्या और जनता की आवाज कुचलने के दौर के रूप में हर साल याद किया जाता है। भाजपा आज छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों पर मीसा बंदियों का सम्मान और आपातकाल पर बनी डॉक्युमेंट्री का प्रदर्शन कर रही है। इमरजेंसी ने इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद बनी जनता पार्टी की सरकार पूरे 5 साल चल ही नहीं पाई। भाजपा और आरएसएस की दोहरी सदस्यता का विवाद इतना गहरा गया कि ढाई साल में सरकार गिर गई। इसके बाद हुए चुनाव में मानो जनता ने इंदिरा गांधी को माफ कर दिया और वह दोबारा सत्ता में लौट गईं। फिर भी यह विषय कांग्रेस का कभी पीछा नहीं छोड़ती। इस अपराध या गलती को याद दिलाने के लिए अब सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सएप पर्याप्त नहीं रह गए हैं। एक ऑडियो ऐप कुकू एफएम नेहरू, इंदिरा और कांग्रेस पर एक के बाद एक एपिसोड ला रहा है। नेहरू इंदिरा परिवार में हुई मौतों के पीछे एक संत का श्राप भी बताया जा रहा है। ढेर सारे तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है जिसे लाखों लोग सुन रहे हैं और भरोसा कर रहे हैं। इधर कल एक ट्रेलर जारी हुआ है इमरजेंसी फिल्म का। यह फिल्म 2014 को भारत की असली आजादी का वक्त बताने वाली कंगना राणावत की है। यह फिल्म नवंबर में आएगी जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे होंगे। जाहिर है इस फिल्म का लाभ बीजेपी को मिलेगा। फिल्मों में कितना सच सामने लाया गया गया है, यह तो रिलीज होने के बाद ही पता चलेगा।
सैर करने निकला बादल
मानसून के दस्तक देते ही छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाकों का नजारा अद्भुत दिखाई दे रहा है। यह जशपुर जिले के गांव केरी की तस्वीर है, जिसे बादलों ने घेर लिया है।
साय के लिए किसकी टिकट कटेगी?
चार दशकों तक भाजपा के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद पार्टी से नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हुए नंद कुमार साय को महीने भर से अधिक गुजर जाने के बावजूद कोई बड़ी जिम्मेदारी अभी तक नहीं मिली है। बीच में चर्चा चली थी कि उनको किसी निगम या मंडल का अध्यक्ष बना दिया जाएगा लेकिन बात बनी नहीं। कांग्रेस ने उनके जनाधार का इस्तेमाल करने के बारे में जरूर कुछ सोचा होगा लेकिन साय क्या चाहते हैं, हाल में एक न्यूज़ चैनल से चर्चा के दौरान इशारा कर दिया। उन्होंने कहा है कि वे विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने संभावित सीट भी बता दी पत्थलगांव या कुनकुरी। उन्होंने यह नहीं कहा कि कांग्रेस हाईकमान के कहने पर लड़ेंगे। अभी इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। कुनकुरी विधायक यू डी मिंज पहली बार के विधायक हैं तो पत्थलगांव से राम पुकार सिंह रिकॉर्ड 9 बार के। जब नंदकुमार साय को पार्टी में लाया गया तो कांग्रेस ने कुछ न कुछ आश्वासन तो उनको दिया ही होगा। पर शायद साय को लगता है कि अपनी इच्छा सार्वजनिक कर दें ताकि आगे कोई भ्रम की स्थिति ना रहे और टिकट बांटने वाले मानसिक रूप से तैयार रहें। इस बयान पर चिंता इन दोनों जगहों के विधायकों को भी होनी चाहिए।
ब्राह्मण बहुल क्षेत्र
एक देश के भीतर कितने ही देश बसे होते हैं और एक गांव के भीतर भी कितने गांव। सबको अपनी अपनी पहचान इस तरह नहीं बतानी पड़ती, जैसा इस बोर्ड में दर्शाया गया है। यह यूपी के अमेठी जिले के किसी गांव की सडक़ पर लगा हुआ साइन बोर्ड है। पता नहीं यहां पर बताने की जरूरत क्यों पड़ी कि यहां ब्राह्मण लोगों की बहुलता है। इस समय देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के पक्ष में एक वर्ग लगातार अभियान चला रहा है। मान लो कभी ऐसा हो भी गया तो इस तरह के बोर्ड हट जाएंगे या अपनी अपनी पहचान बताने के लिए ऐसे बोर्ड लगाने की होड़ मच जाएगी?
बारले से शाह की मुलाकात के मायने
पंडवानी गायिका उषा बारले के घर जाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के पीछे की राजनीति क्या थी, यह चर्चा का विषय बना हुआ है। पृष्ठभूमि यह बताई जा रही है कि पद्मश्री ग्रहण करने के लिए जब बारले दिल्ली गई थीं तब राष्ट्रपति भवन में अमित शाह की उनकी संक्षिप्त बातचीत हुई थी। शाह के पूछने पर बारले ने बताया था कि वह छत्तीसगढ़ की लोक कलाकार हैं। शाह ने कहा था कि मैं तो छत्तीसगढ़ आता रहता हूं, अब जब आऊंगा तो आपके घर जरूर आऊंगा। और इस तरह अतिव्यस्त शाह ने एक कलाकार के घर पर 20 मिनट समय दिया।
दरअसल, भाजपा छत्तीसगढ़ में दोबारा सरकार बनाने के लिए हर छोटी-बड़ी कोशिश कर रही है। जिस सतनामी समाज से उषा बारले आती हैं, उस समाज का प्रदेश में करीब 18 प्रतिशत वोट है। छत्तीसगढ़ में 10 सीटें अनुसूचित जाति की हैं। सन् 2013 के चुनाव में इनमें से 9 भाजपा के पास थी लेकिन सन् 2018 में सिर्फ दो सीटें मुंगेली और मस्तूरी उसके पास रह गई। इसकी एक बड़ी वजह सतनामी समाज के धर्मगुरू बालदास का कांग्रेस को समर्थन मिल जाना था। एक और गुरु रुद्र कुमार भी कांग्रेस में मंत्री हैं। भाजपा पर अक्सर यह आरोप कांग्रेस लगाती है कि उसे स्थानीय संस्कृति और छत्तीसगढिय़ावाद से कोई लेना-देना नहीं। भाजपा के लिए चुनाव से पहले इस धारणा को तोडऩा जरूरी है। अनुसूचित जाति सीटें जरूर 10 हैं लेकिन इस सतनामी समाज पूरे प्रदेश में फैले हैं। कम से कम 35-40 सीटों पर उनका असर है। हाल ही में पंथी नर्तक आरएस बारले ने भाजपा प्रवेश किया था। अभी उषा बारले से शाह की इस बारे में कोई बात नहीं हुई, जैसा उन्होंने मीडिया को बताया है। बारले का दावा है कि उन्होंने आज राजनीति में आने का विचार नहीं किया है, लेकिन कोई बोलेगा तो देखेंगे।
कौन विधायक बचा रहा अफसर को?
रायपुर में उद्योग विभाग के अतिरिक्त संचालक संतोष भगत पर वहीं की एक महिला अधिकारी ने छेडख़ानी के गंभीर आरोप लगाये थे। ठीक एक माह पहले महिला को ऑफिस से घर निकलने में देर हो गई थी। आरोप के मुताबिक शराब के नशे में उक्त अधिकारी ने महिला की कार का शीशा खुलवाकर गलत तरीके से छुआ। इस आरोप के बाद कार्यस्थल पर होने वाले यौन अपराध को लेकर गठित समिति की जांच अलग चल रही है, जिसकी रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है लेकिन भगत के तबादला की विभागीय फाइल चली। इसमें उनको मंत्रालय भेजने का प्रस्ताव था। पर, तबादला नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि यह फाइल विभागीय मंत्री के पास जाकर अटक गई है। आरोप यह भी है कि जशपुर इलाके के एक विधायक ने उन पर कार्रवाई नहीं करने का दबाव बना रखा है। जशपुर के तीनों विधायक कांग्रेस से हैं। किसी महिला अधिकारी से छेड़छाड़ पर हो रही कार्रवाई में आरोपी को बचाने के लिए विधायक की दखलंदाजी और मंत्री की उनकी सिफारिश को मान लेना क्या दर्शाता है?
अमित शाह के साथ अचानक मौका
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बालाघाट दौरा रद्द हुआ, तो यहां के प्रमुख भाजपा नेताओं के पास उनसे एयरपोर्ट पर बतियाने का अच्छा अवसर था, लेकिन वो चूक गए।
दुर्ग की सभा के बाद अमित शाह को बालाघाट जाना था, वो रवाना भी हुए, लेकिन मौसम की खराबी की वजह से हेलीकॉप्टर लैंड नहीं कर पाया, और वो माना एयरपोर्ट वापस आ गए।
बताते हैं कि पार्टी के कुछ छोटे नेताओं को अमित शाह के माना पहुंचने की जानकारी हो गई थी, लेकिन उन्होंने प्रमुख नेताओं को नहीं बताया। किसी तरह अमर अग्रवाल ही वहां पहुंच पाए। उनकी अमित शाह ने 15 मिनट अकेले में चर्चा हुई।
चर्चा है कि अमर अग्रवाल पहले भी पार्टी नेतृत्व को कई तरह से सुझाव देते रहे हैं, लेकिन उनकी बात पर ज्यादा गौर नहीं किया गया। कहा जा रहा है कि अमित शाह ने इस बार उनकी बातों को गंभीरता से लिया है।
दूसरी तरफ, बाकी प्रमुख नेताओं को मीडिया से शाह के एयरपोर्ट पर होने की जानकारी मिली। इसके बाद पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव सहित कई नेता हड़बड़ाकर वहां पहुंचे। तब तक शाह के जाने का समय हो गया था। उनसे ज्यादा कुछ बात नहीं हो पाई।
बड़े नेताओं की गैर मौजूदगी का छोटे नेताओं ने फायदा उठाया, और अमित शाह के साथ टाइम स्पेंड करने का अच्छा अवसर मिला। छोटे तो काफी खुश थे, लेकिन बड़े नेता नाराज हो गए। क्योंकि अमित शाह से मेल मुलाकात का समय आसानी से नहीं मिल पाता है।
शाह के कार्यक्रम से खुश, और दुखी
अमित शाह की सभा भीड़ के मामले में सफल रही, और इससे पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय, विजय बघेल, और राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय काफी खुश थे। क्योंकि सभा की जिम्मेदारी इन तीनों पर ही थी। इससे परे रायपुर एयरपोर्ट पर अमित शाह के स्वागत-सत्कार को लेकर काफी किचकिच भी हुई।
बताते हैं कि अमित शाह के स्वागत के लिए प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, पूर्व सीएम रमन सिंह, और कई प्रमुख नेता थे। कई जिला स्तर के नेताओं का तो पास बन गया था, और उन्होंने शाह का स्वागत किया। लेकिन शहर जिलाध्यक्ष जयंति पटेल, और ग्रामीण अध्यक्ष टंकराम वर्मा का पास ही नहीं बना। उन्हें सुरक्षाकर्मियों ने बाहर ही रोक दिया।
आम तौर पर राजधानी के जिला अध्यक्षों को एयरपोर्ट पर बड़े नेताओं की अगुवानी करने की जिम्मेदारी रहती है, मगर इस बार प्रदेश दफ्तर से ही उनका नाम नहीं भेजा गया था। इसको लेकर दोनों जिलाध्यक्ष काफी खिन्न नजर आए।
ऑफेन्स इज द बेस्ट डिफेंस
चीनी कहावत है-हमला रक्षा का सबसे अच्छा रूप है। राजनीति में भी कई बार ये कहावत प्रासंगिक नजर आती है। अमित शाह आए, तो स्वाभाविक तौर पर उनसे कांग्रेस सरकार पर तीखे हमले की उम्मीद थी। उन्होंने कुछ हद तक सरकार पर वार भी किए, लेकिन वैसा हमला नहीं बोल पाए, जिसकी उम्मीद प्रदेश के कुछ भाजपा नेताओं को थी।
शाह से पीएससी की गड़बडिय़ों को लेकर, और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर सीबीआई जांच कराने का ऐलान करने की उम्मीद थी। शाह ने पीएससी पर हमला भी बोला, लेकिन जांच की बात रह गई। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की रणनीति भी कुछ हद तक शाह को हमलावर न होने के लिए कारगर रही।
शाह के दौरे के एक दिन पहले इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक घोटाले का जिन्न बाहर निकल आया। कांग्रेस के रणनीतिकार चुपचाप बैंक घोटाले पर काम कर रहे थे। और जब जिला अदालत ने जांच के आदेश दिए, तो सीएम ने एक के बाद एक ट्वीट कर पूरी भाजपा को कटघरे पर खड़ा कर दिया। यही नहीं, आदिपुरुष फिल्म पर बैन की मांग कर शाह के लिए असहजता की स्थिति पैदा कर दी थी। ऐसे में शाह हमलावर तो रहे, लेकिन वैसा कुछ नहीं बोल पाए जिससे कांग्रेस नेताओं को जवाब देने में मुश्किल आ रही है। सीएम ने आरोपों का जवाब भी दे दिया।
राजभवन से छत्तीसगढ़ पर नजर
महाराष्ट्र का राजभवन अब छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं, और कई कारोबारियों का नया ठिकाना बन गया है। छत्तीसगढ़ भाजपा के बड़े नेता, और राज्यपाल रमेश बैस भले ही संवैधानिक पद पर हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति पर पैनी नजर रहती है।
छत्तीसगढ़ के भाजपा के नेता मुंबई जाते हैं, तो बैस से मिलने जरूर जाते हैं। और उनका मार्गदर्शन भी लेते हैं। पिछले दिनों बैस ने विधायक सम्मेलन में आए सभी विधायकों को अपने यहां लंच पर आमंत्रित भी किया था। भाजपा के तो सभी विधायक पहुंचे, लेकिन कांग्रेस से सिर्फ विकास उपाध्याय, और आशीष छाबड़ा ही थे। बैस ने सबकी अच्छी खातिरदारी की। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल तो सपरिवार राजभवन के गेस्टहाउस में रूके थे। चंदेल, बैस के नजदीकी रिश्तेदार भी हैं।
पार्टी के ज्यादातर नेता अनौपचारिक चर्चा में बैस को सलाह दे देते हैं कि उन्हें छत्तीसगढ़ की राजनीति में लौट आना चाहिए। कुछ उत्साही नेता तो उन्हें सीएम का फेस भी बता देते हैं। इन सब पर बैसजी बोलने से परहेज करते हैं, और ठहाका लगा देते हैं।
खारिज होती आदिवासियों की गुहार
गांधीवादी मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने बस्तर में हिंसा के शिकार आदिवासियों के मामले में अदालतों खासकर हाईकोर्ट के कुछ फैसलों का सोशल मीडिया में जिक्र किया है। सन् 2009 में सुकमा में 17 आदिवासियों को, जैसा आरोप है- सुरक्षा बलों ने लाइन में खड़ा कर गोली मार दी, जिनमें 4 महिलाएं थीं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने माना कि जांच में पुलिस ने लीपापोती की। 14 साल बाद हाईकोर्ट ने मुकदमा खारिज कर दिया। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिंगाराम गांव में 2009 में सुरक्षाबलों ने 17 आदिवासियों को लाइन में खड़ा करके गोली से उड़ा दिया था, इनमें 4 महिलाएं थीं। 2017 में बीजापुर जिले के पेद्दा गेलूर की 28 आदिवासी महिलाओं ने सिपाहियों पर बलात्कार करने का मामला हाईकोर्ट में उठाया। पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट महिलाओं की यह याचिका भी खारिज कर दी। अर्जुन नाम के एक नाबालिग आदिवासी बच्चे को पुलिस ने गिरफ्तार किया, कोर्ट ने उसे जमानत दे दी। वह जमानत पर रिहा होकर घर गया। पुलिस ने घर में जाकर उसे गोली मार दी। पिछले हफ्ते हाईकोर्ट ने यह मामला भी खारिज कर दिया। एक नाबालिग आदिवासी लडक़ी के साथ थाने में बलात्कार किया गया और उसके बाद फर्जी मामले में फंसा कर 7 साल जेल में रखा गया, 7 साल बाद उसे अदालत ने बरी कर दिया।
वह मुआवजे और दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग लेकर अदालत आई थी, अदालत ने उसका मामला भी खारिज कर दिया।
हिमांशु कुमार लिखते हैं कि आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्याओं के कई मामले हाईकोर्ट ने एक ही हफ्ते में खारिज कर दिए गए हैं। इस तरह से बड़े पैमाने पर आदिवासियों के मानवाधिकारों से जुड़े मामले खारिज करने से आदिवासियों में अदालत के प्रति अविश्वास पैदा होगा। आदिवासियों के पास न्यायालय जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है लेकिन अगर अदालत उनकी याचिकाओं को न्याय दिए बिना खारिज कर देगी तो आदिवासियों के पास कोई रास्ता नहीं बचता। मीडिया, किसी आदिवासी संगठन या वकील का बयान अब तक इन पर सामने नहीं आया हैं।
वन नेशन वन कार्ड की परेशानी
राशन उठाने वाले एपीएल बीपीएल परिवारों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे एक बार अपने परिवार के पूरे सदस्यों के साथ, जिनका कार्ड में नाम दर्ज है, राशन दुकान पहुंचें और अपना आधार कार्ड वेरिफिकेशन कराएं। केंद्र सरकार ने वन नेशन वन कार्ड की योजना लागू की है, जिसके लागू होने पर कोई भी कार्डधारक देश के किसी भी कंट्रोल की दुकान से राशन उठा सकेगा। प्रवासी मजदूरों के लिए यह एक फायदेमंद योजना है, पर इस बात का सर्वे तो शायद किया ही नहीं गया है कि ज्यादातर लोग अपने ही मोहल्ले या गांव की दुकानों से राशन लेते हैं। बस्तर, सरगुजा, जशपुर में तो कई दुकानें दूसरे-दूसरे गांवों में कई-कई किलोमीटर दूर हैं। नदी नाले पगडंडी, पहाड़ी पार करना पड़ता है। इन्हें वन नेशन वन कार्ड का फायदा कभी लेना होगा, इसकी उम्मीद ही कम है। पर, आधार कार्ड अपडेट करना सबके लिए जरूरी कर दिया गया है। इसके चलते हो यह रहा है कि राशन दुकानों में पूरे परिवार के साथ लोग पहुंच रहे हैं। इनमें बच्चे और बूढ़े भी हैं। गर्मी में घंटों इंतजार करना पड़ रहा है और उनकी बारी नहीं आ रही है। यह काम कितनी धीमी चल रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बस्तर में 2.20 लाख राशन कार्ड धारी हैं, उनमें से केवल 18 हजार आधार कार्ड अपडेट हो सके हैं। अनेक गांवों में कनेक्टिविटी की समस्या भी खड़ी हो रही है। पहले अपडेट करने की तारीख जून के आखिरी तक थी, जिसे बढ़ाकर जुलाई कर दी गई है, पर जिस रफ्तार से यह प्रक्रिया चल रही है, जुलाई में भी पूरा होने के आसार नहीं है। गरीब परिवारों के लिए जिनके लिए कंट्रोल का राशन बहुत मायने रखता है, वे इस बात से घबराए हुए हैं कि अंतिम तारीख निकलते तक अगर अपडेट नहीं कराया तो उनके नाम का आवंटन नहीं आएगा। क्या यह व्यावहारिक नहीं होता कि वन नेशन वन कार्ड के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जाती, उन लोगों का कार्ड अपडेट करने में प्राथमिकता से किया जाता, जिन्हें बाहर जाना पड़ता है और अलग-अलग दुकानों से राशन उठाने की जरूरत पड़ती है?
(rajpathjanpath@gmail.com)
कांग्रेस में बदलाव का इंतजार
राहुल गांधी के विदेश प्रवास से लौटने के 23 तारीख के बाद कांग्रेस में हलचल शुरू होगी। मध्यप्रदेश, और राजस्थान के मसले पर चुनावी दृष्टिकोण से हाईकमान काफी कुछ फैसला ले चुकी है। छत्तीसगढ़ पर चर्चा अभी बाकी है।
कहा जा रहा है कि हाईकमान संगठन में बदलाव पर कोई फैसला ले सकता है। प्रदेश संगठन से तीन माह पहले 90 सचिवों की नियुक्ति के लिए नाम मांगे गए थे लेकिन यह सूची अटकी पड़ी है। इन सबके बीच प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से मिलकर आ चुके हैं।
प्रदेश प्रभारी शैलजा, सीएम भूपेश बघेल, और अन्य सीनियर नेताओं से लगातार बदलावों पर चर्चा कर रही हैं। पार्टी नेताओं का अंदाजा है कि हफ्ते-दस दिन में संगठन में काफी कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
गजब का एड्रेस है
सोशल मीडिया पर तैर रही जमीन की खरीदी-बिक्री के एक विज्ञापन ने कई लोगों का ध्यान खींचा है। विज्ञापन में कमल विहार के पीछे बोरिया कला में तीन एकड़ जमीन खरीदने के लिए इच्छुक लोगों को कॉल करने कहा गया है। बकायदा मोबाइल नंबर भी जारी किया गया है।
जमीन का लोकेशन एक दिलचस्प अंदाज में बताया गया है। यह कहा गया कि उक्त जमीन संवैधानिक पद पर आसीन एक चेयरमैन के फार्महाउस के सामने हैं। विज्ञापन में चेयरमैन का नाम भी लिखा गया है जो कि इन दिनों गड़बड़ी के आरोपों से घिरे हुए हैं।
आगे कहा गया है कि फार्महाउस के सामने 30 फीट का डब्ल्यूबीएम रोड है। प्लाटिंग के लिए बहुत शानदार जमीन है। अब लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वाकई जमीन बेचने के लिए विज्ञापन जारी किया गया है, अथवा चेयरमैन की प्रापर्टी की जानकारी दी गई है।
योग से नहीं नौकरी का जोग
जब से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है दुनिया के साथ-साथ भारत में भी निरोगी रखने की इस प्राचीन विधा का आम लोगों में भरपूर प्रचार हुआ। समय-समय पर केंद्र और राज्य सरकारों ने स्कूल कॉलेजों में योग पाठ्यक्रम की घोषणा की। कॉलेज, विश्वविद्यालयों ने इसके कोर्स भी शुरू किए। पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय में ही चल रहे एक वर्ष डिप्लोमा पाठ्यक्रम में पहले सीटें खाली रह जाती थीं, लेकिन अब यहीं पर ही नहीं बल्कि इसके अधीन आने वाले कई कॉलेजों में योग कक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। बिलासपुर के केंद्रीय विश्वविद्यालय और गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में योग के पाठ्यक्रम संचालित हैं। केंद्रीय विद्यालयों में भी योग कक्षाएं दी जा रही है। पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में तो इसे डिस्टेंस कोर्स में भी शामिल किया गया है। योग को लेकर आई जागरूकता ने युवाओं को इस फील्ड में रोजगार की संभावना भी दिखाई देने लगी है लेकिन इनमें से किसी भी शिक्षण संस्थान में नियमित भर्ती का कोई पद नहीं है। केंद्रीय विद्यालय और विश्वविद्यालयों में संविदा पर कुछ भर्तियां की गई है। कई संस्थानों में तो दूसरे विषयों के ऐसे टीचर्स जिन्होंने योग का प्रशिक्षण लिया है उनसे ही काम चलाया जा रहा है। स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूलों में भी योग को एक कोर्स के रूप में शामिल किया गया है लेकिन इनमें भी योग शिक्षकों की भर्ती नहीं की गई है। छत्तीसगढ़ योग शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने इसके लिए राजधानी रायपुर में आंदोलन करना भी तय कर लिया है। इन लोगों योग विषय में पीजी, डिप्लोमा, एम एम एस सी, यहां तक कि पीएचडी भी की हुई है। पिछले साल नवंबर महीने में स्कूल शिक्षा विभाग में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 4612 योग शिक्षकों की भर्ती करने की घोषणा की थी, जिसका अभी तक कुछ पता नहीं है। कोरिया जिले में बेरोजगार योग डिग्रीधारियों ने कलेक्टर को ज्ञापन तीन-चार दिन पहले सौंपा था। जांजगीर-चांपा जिले के प्रशिक्षित युवाओं ने सीएम के लिए पोस्टकार्ड अभियान चला रखा है। इस समय सरकार ने बड़े पैमाने पर विभिन्न विभागों में भर्ती अभियान चला रखा है, पर इनमें योग की वेकेंसी दिखाई नहीं दे रही है।
बारिश लेकर नहीं आई रथ यात्रा
जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के दिन होने वाली बारिश को एक शगुन के रूप में देखा जाता है। किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें तब खींच जाती है जब किस दिन बिल्कुल पानी ना गिरे। छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाकों में कल यह चिंता देखी गई। मौसम विभाग की और से जो बताया गया है उसके मुताबिक केरल जहां से मानसून प्रवेश करता है, वहां 15 जून की स्थिति में बीते साल के मुकाबले 50 फीसदी कम बारिश हुई है। दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ में मौसम विभाग का एक बयान आया था जिसमें 21-22 जून तक प्री मानसून बारिश की संभावना जताई गई। जून माह के तीसरे सप्ताह में रायगढ़ जैसी जगह का तापमान 46 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा है। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के दूसरे जिले में तफ रहे हैं। हालांकि बस्तर और नारायणपुर में थोड़ी वर्षा हो चुकी है। छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था धान पर काफी कुछ निर्भर है। बारिश में देरी से किसानों का यहां हिसाब-किताब तो बिगड़ेगा ही, देश में एक बार फिर महंगाई बढऩे की आशंका मंडरा रही है।
हिंदी-अंग्रेजी के जुदा रास्ते
कोरबा इलाके का यह मार्ग संकेतक सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जो लोगों में कौतूहल पैदा कर रहा है। हिंदी में आगे का रास्ता जिस दिशा में बताया गया है अंग्रेजी में वहीं पहुंचने की दूसरा दूसरी बताई जा रही है। अब यह तो इस जगह पर पहुंचकर ही पता लगाया जा सकता है कि किसी ने फोटोशॉप जैसा खेल किया है यह सचमुच नगर निगम के इंजीनियर ने ही अंग्रेजी हिंदी के बीच गड्ढा खोद दिया। (rajpathjanpath@gmail.com)
रॉ के टॉप पर छत्तीसगढ़ से
छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रवि सिन्हा देश की शीर्ष खुफिया एजेंसी रॉ के चीफ बन गए। वो छत्तीसगढ़ कैडर के पहले आईपीएस हैं जो इस प्रतिष्ठित एजेंसी के शीर्ष पद पर काबिज हुए।
आईपीएस के 88 बैच के अफसर रवि सिन्हा रायपुर, और दुर्ग में सीएसपी रहे। वो दुर्ग में अनिल धस्माना के मातहत काम कर चुके हैं। उस वक्त धस्माना दुर्ग एसपी थे। बाद में धस्माना रॉ के मुखिया बने। रॉ से रिटायरमेंट के बाद धस्माना वर्तमान में एनटीआरओ के डायरेक्टर हैं।
सुनते हैं कि धस्माना की प्रेरणा से ही रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए। उस समय सिन्हा राज्य गठन के बाद पीएचक्यू में डीआईजी के पद पर पहली पोस्टिंग हुई थी। इसके बाद केंद्र में जाने के बाद रवि सिन्हा की पोस्टिंग रॉ में हुई, और रॉ में भी सिन्हा को धस्माना साथ काम करने का अवसर मिला।
यह भी संयोग है कि धस्माना,और रवि सिन्हा की तरह काफी पहले दुर्ग में सीएसपी रह चुके 61 बैच के आईपीएस बी रमण भी लंबे समय तक रॉ में रहे। उनकी गिनती गुजरे जमाने के बेहतरीन खुफिया अफसरों में होती है। मगर रमण रॉ के शीर्ष पद तक नहीं पहुंच पाए। वो रॉ में स्पेशल सेक्रेटरी के पद से रिटायर हो गए।
उन्होंने रिटायरमेंट के बाद द कॉव बॉयज ऑफ रॉ नामक किताब भी लिखी, जो काफी चर्चित हुई। मगर रवि सिन्हा पोस्टिंग के मामले में भाग्यशाली रहे। उन्हें अपने रिटायरमेंट से पहले 6 महीने रॉ के शीर्ष पद पर नियुक्त किया गया, जहां वो दो साल इस पद पर रह सकेंगे।
अब कोई और ईडी के निशाने पर
चर्चा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के बाद प्रदेश में ईडी फिर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर सकती है। कहा जा रहा है कि ईडी, कोल और लिकर से पर किसी नए सेक्टर में दबिश दे सकती है।
चर्चा है कि एक आईएएस अफसर ने तो एक बैठक में अपने मातहतों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने के लिए कहा है। उन्होंने मोबाइल पर गैर जरूरी रिकॉर्ड नहीं रखने की नसीहत भी दी है।
पिछली बार भी अमित शाह के दौरे के बाद लिकर कारोबार से जुड़े लोगों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई थी। ऐसे में जितनी मुंह, उतनी बातें हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
संग्राम के अंदर एक और संग्राम
कल युवा मोर्चा के पीएससी संग्राम के अंदर एक और संग्राम होने की खबर है । रायपुर से भूतपूर्व विधायक और 3 बार के भूतपूर्व मंत्री को पार्टी के एक युवा कार्यकर्ता से कड़वा जवाब सुनना पड़ा ।
देश के नामी कॉरपोरेट में पद छोडक़र आये और विश्व के ख्यातिनाम यूनिवर्सिटी से पढ़े, ठेठ छत्तीसगढिय़ा परिवार में जन्मे और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार से आये युवा कार्यकर्ता को उन्होंने प्रदर्शन स्थल से जाने के लिए कह दिया । उनकी इस बात का उन्हें करारा जवाब मिला । अपनी हाजिऱ जवाबी के लिए जाने जाने वाले कार्यकर्ता ने उनको कह दिया कि ये तो उनके पिता की भूमि है, जो जनसंघ के छत्तीसगढ़ में संस्थापकों में रहे हैं, परदेसिया तो वो हैं और उनको इस राज्य से ही चला जाना चाहिये । ये सुनकर उनके कार्यकर्ता मारपीट को उतारू हो गये थे पर वहाँ मौजूद पुलिस के आला अफ़सरों ने मामले को निपटाया।
पीएससी का मुद्दा इस युवा कार्यकर्ता ने ही उछाला है और नेता जी उसी कार्यक्रम में अपने समर्थकों के साथ आये थे । इस नेता के लिये कल का दिन बहुत ही बेइज़्ज़ती वाला रहा। दिलचस्प यह भी है कि दोनों ही रमन सिंह कैम्प के हैं !
कोरबा आगजनी के सबक
कोरबा के सबसे व्यस्त ट्रांसपोर्ट नगर इलाके में एक कमर्शियल कॉम्पलेक्स में आग लगने से लाखों का नुकसान तो हुआ ही, इलाहाबाद बैंक के 2 ग्राहकों सहित तीन लोगों की मौत भी हो गई। यह भीषण दुर्घटना बताती है कि बड़ी-बड़ी इमारतों में अग्नि सुरक्षा को कैसे नजरअंदाज किया जा रहा है। नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने 7 माह पहले इस परिसर का निरीक्षण किया था और कई खामियां पाई थीं। इन्हें दूर करने की हिदायत कोई नोटिस देकर नहीं बल्कि मौखिक दी गई थी। उसके बाद दोबारा जमा कर उन्होंने देखा नहीं इन कमियों को दूर किया गया या नहीं। बिल्डिंग की सीढिय़ां बंद थी, जो ऐसी आपात स्थिति में बाहर निकलने का आसान तरीका हो सकता था। ऊपर के किसी भी फ्लोर में कोई इमरजेंसी खिडक़ी या एग्जिट प्वाइंट नहीं। कांपलेक्स के भीतर आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम भी नहीं थे।
दूसरा सवाल तमाशबीनों का भी है। आग पहले बिल्डिंग के बाहर बिजली ट्रांसफार्मर पर लगी। उसके बाद एक बड़े फ्लैक्स तक पहुंच गई। बिल्डिंग तक आग पहुंचने में वक्त था लेकिन समय रहते किसी ने ध्यान नहीं दिया। जिन्होंने देखा वे मोबाइल पर वीडियो बनाने लगे। बिल्डिंग में आग लगने के बाद धीरे-धीरे सैकड़ों लोग जमा हो गए, मगर वे आग बुझाने में मदद नहीं कर रहे थे बल्कि वीडियो, फोटो ले रहे थे। बिल्डिंग के भीतर फंसे लोग अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे और इन्हें रोमांच और सनसनी का मजा आ रहा था।
कोरबा आगजनी प्रदेशभर के नगरीय निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अफसरों की लापरवाही का उदाहरण है।
प्रतिबंधित इलाके में बाइकर्स
देश भर के 75 बाइकर्स इन दिनों बस्तर भ्रमण पर हैं। जिला प्रशासन इन्हें प्रोत्साहित कर रहा है ताकि वे बस्तर के पर्यटन को बढ़ावा मिले। मगर उसका एक फैसला विवादों से घिर गया है। बाइकर्स को कांगेर घाटी नेशनल पार्क के कोर एरिया में बाइक पर घूमने की इजाजत दे दी गई। यह सुविधा दूसरे पर्यटकों को नहीं दी जाती। बाइक यहां पर प्रतिबंधित है। वहीं इस राष्ट्रीय उद्यान से एक साथ 75 गाडिय़ां धड़ाधड़ाते हुए गुजरी। मालूम यह भी हुआ है कि यह सुविधा देने का सुझाव उन वन अफसरों की ओर से ही आया, जिन्हें यह मालूम है जैव विविधता संरक्षण का नियम यहां प्रभावी है, जहां से एक पत्ती तोडऩा भी मना है और इस जंगल में किसी तरह का व्यवधान नहीं डाला जा सकता।
दो एथेनॉल प्लांट शुरू होने के आसार
छत्तीसगढ़ में दो एथेनॉल प्लांट लगभग बनकर तैयार हैं। एक कबीरधाम जिले के भोरमदेव में शक्कर कारखाने के पास, जिसकी टेस्टिंग भी शुरू हो गई है, दूसरा कोंडागांव के कोकोड़ी में। कबीरधाम के प्लांट में गन्ने से तो कोंडागांव में मक्के से एथेनॉल का उत्पादन होगा। कोंडागांव का एथेनॉल प्लांट 140 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है, जिससे करीब 25 हजार किसानों को फायदा पहुंचने का दावा किया जा रहा है। किसानों ने भी प्लांट में करीब 7 करोड़ रुपये का अंशदान दिया है। यानि फैक्ट्री के लाभ में उनकी भी हिस्सेदारी होगी। सरकार चाहती है कि केंद्र सरकार धान से एथेनॉल के उत्पादन की अनुमति केंद्र दे, ताकि छत्तीसगढ़ जैसे धान उत्पादक राज्य में धान की कीमत किसानों को और अच्छी मिल सके। राज्य में 20 कंपनियां या तो एथेनॉल प्लांट लगाना शुरू कर चुकी हैं, या फिर यह काम शुरू होने वाला है।
गए तो थे बड़े मियाँ भी, नोटिस छोटे को...
प्रदेश के एक राष्ट्रीय उद्यान प्रमुख युवा आईएफएस अफसर को बिना अनुमति के विदेश यात्रा करने पर नोटिस थमा दिया गया। यह नोटिस उन्हें अरण्य भवन (वन मुख्यालय) से जारी किया गया। और जब नोटिस जारी हुआ, तो कई बातें छनकर निकली।
पहली यह कि वो अकेले विदेश ट्रिप पर नहीं गए थे। उनके साथ विभाग के पीएस, और सीनियर अफसर भी थे। विभाग के पीएस की अगुवाई में ट्रिप था, तो स्वाभाविक है कि शासन से अनुमति मिली होगी। युवा आईएफएस अफसर की गलती यह थी कि उन्होंने अपने रिपोर्टिंग अफसर को सूचित नहीं किया।
युवा आईएफएस अफसर जब विदेश में थे तो रिपोर्टिंग अफसर उद्यान का निरीक्षण करने पहुंच गए। वहां उन्हें बताया गया कि उद्यान प्रमुख विदेश गए हैं। इस पर रिपोर्टिंग अफसर नाराज हो गए। उन्होंने युवा आईएफएस से स्पष्टीकरण मांग लिया है।
शाह से उम्मीद
भले ही पीएससी राज्य सेवा परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई हो, लेकिन चुनावी साल में यह मुद्दा बना गया है। सोशल मीडिया में इतने हमले हो रहे हैं, कि इसका जवाब देते नहीं बन रहा है। पीएससी की तरफ से सफाई आई, कि सब कुछ नियमानुसार हुआ है। उन्होंने अभ्यार्थियों को विचलित नहीं होने की भी सलाह दी है।
भाजयुमो का धरना-प्रदर्शन हुआ है। और अब चर्चा है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी 22 तारीख को दुर्ग के कार्यक्रम में इस पर काफी कुछ कह सकते हैं। चर्चा है कि पार्टी नेता चाहते हैं कि शाह यह कह दे कि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के पीएससी भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाएगी। मगर शाह क्या कुछ कहते हैं इस पर सबकी नजर हैं।
इसकी गुठली कितने में मिलेगी?
17 से 19 जून तक चल रहे जोरा की आम प्रदर्शनी में सबसे ज्यादा चर्चा दुनिया के सबसे महंगी वैरायटी के आम मियाजाकी की हो रही है। प्रदर्शनी में केवल एक आम लाया गया है। इसके उत्पादक सूरजपुर के कृषक आरके गुप्ता बताते हैं कि 14 आम पेड़ पर लगे थे। आंधी-पानी में 13 समय से पहले गिर गए, एक बचा रह गया जिसे वे यहां लेकर आ गए। 639 ग्राम इस आम की कीमत 1.82 लाख है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका दाम 2.70 लाख रुपये किलो है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर इस आम में रखा क्या है, जो इसकी इतनी ज्यादा कीमत है? कुछ नहीं सिर्फ खुशबू और स्वाद का फर्क है। बड़े उद्योगपति किसी नेता, अफसर को खुश करने के लिए इसे गिफ्ट में दे सकते हैं। वरना स्वादिष्ट तो बाजार में मिल रहे 40-50 रुपये किलो वाले आम भी हैं। छत्तीसगढ़ सहित अपने देश के कई राज्यों में मौसम आम की पैदावार के अनुकूल होता है। पर मियाजाकी पर कृषकों ने निवेश शुरू नहीं किया है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम में इसका व्यावसायिक उत्पादन होता है, जिसे निर्यात भी किया जाता है। जबलपुर में एक दंपती ने आम के दो पेड़ लगाए हैं, जिसकी सुरक्षा दो गनमैन और चार खूंखार कुत्ते करते हैं। बिहार में भी एक इंजीनियर ने इस साल इसकी खेती शुरू की है। आम की कीमत सुनकर आम लोग इसे महक लेने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते, खरीदना तो दूर की बात। पर सोशल मीडिया पर यह जरूर पूछा जा रहा है कि इसकी गुठली कितने में मिल जाएगी?
जिओ टावर की पूजा
केंद्र सरकार के पास एक यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड ( यूएसओएफ ) होता है। इसका उद्देश्य देश के ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में संचार सेवाएं पहुंचाना है। पहले इस फंड का काफी हिस्सा डाक और तार सेवाओं पर खर्च किया जाता था। अब मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने में किया जाता है। नक्सल प्रभावित बस्तर के ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिले, इसके लिए तेजी से मोबाइल टावर लगाए जा रहे हैं। यह बस्तर के गिदावरली गांव की तस्वीर है जहां जिओ का मोबाइल टावर लगने पर आदिवासी उसकी पूजा कर रहे हैं।
एटीआर में बढ़ता गौर का कुनबा
अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर होने का दावा वन विभाग के अफसर करते हैं। इसके नाम पर यहां होने वाले करोड़ों रुपयों के खर्च पर सरकार को विधानसभा में घेरा जा चुका है। पर एक दूसरा आकर्षण इन दिनों पर्यटकों को यह अभयारण्य अपनी ओर खींच रहा है। यहां पर गौर का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है। 5 साल पहले हुई गणना में इसकी संख्या करीब 2000 बताई जा रही थी। पर इस समय अनुमान है ये बढक़र 4000 हो चुके हैं। जंगल सफारी पर निकलें तो सडक़ के दोनों ओर बड़ी संख्या में गौर विचरण करते दिखाई दे रहे हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
गए तो थे बड़े मियाँ भी, नोटिस छोटे को...
प्रदेश के एक राष्ट्रीय उद्यान प्रमुख युवा आईएफएस अफसर को बिना अनुमति के विदेश यात्रा करने पर नोटिस थमा दिया गया। यह नोटिस उन्हें अरण्य भवन (वन मुख्यालय) से जारी किया गया। और जब नोटिस जारी हुआ, तो कई बातें छनकर निकली।
पहली यह कि वो अकेले विदेश ट्रिप पर नहीं गए थे। उनके साथ विभाग के पीएस, और सीनियर अफसर भी थे। विभाग के पीएस की अगुवाई में ट्रिप था, तो स्वाभाविक है कि शासन से अनुमति मिली होगी। युवा आईएफएस अफसर की गलती यह थी कि उन्होंने अपने रिपोर्टिंग अफसर को सूचित नहीं किया।
युवा आईएफएस अफसर जब विदेश में थे तो रिपोर्टिंग अफसर उद्यान का निरीक्षण करने पहुंच गए। वहां उन्हें बताया गया कि उद्यान प्रमुख विदेश गए हैं। इस पर रिपोर्टिंग अफसर नाराज हो गए। उन्होंने युवा आईएफएस से स्पष्टीकरण मांग लिया है।
शाह से उम्मीद
भले ही पीएससी राज्य सेवा परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई हो, लेकिन चुनावी साल में यह मुद्दा बना गया है। सोशल मीडिया में इतने हमले हो रहे हैं, कि इसका जवाब देते नहीं बन रहा है। पीएससी की तरफ से सफाई आई, कि सब कुछ नियमानुसार हुआ है। उन्होंने अभ्यार्थियों को विचलित नहीं होने की भी सलाह दी है।
भाजयुमो का धरना-प्रदर्शन हुआ है। और अब चर्चा है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी 22 तारीख को दुर्ग के कार्यक्रम में इस पर काफी कुछ कह सकते हैं। चर्चा है कि पार्टी नेता चाहते हैं कि शाह यह कह दे कि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के पीएससी भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाएगी। मगर शाह क्या कुछ कहते हैं इस पर सबकी नजर हैं।
इसकी गुठली कितने में मिलेगी?
17 से 19 जून तक चल रहे जोरा की आम प्रदर्शनी में सबसे ज्यादा चर्चा दुनिया के सबसे महंगी वैरायटी के आम मियाजाकी की हो रही है। प्रदर्शनी में केवल एक आम लाया गया है। इसके उत्पादक सूरजपुर के कृषक आरके गुप्ता बताते हैं कि 14 आम पेड़ पर लगे थे। आंधी-पानी में 13 समय से पहले गिर गए, एक बचा रह गया जिसे वे यहां लेकर आ गए। 639 ग्राम इस आम की कीमत 1.82 लाख है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका दाम 2.70 लाख रुपये किलो है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर इस आम में रखा क्या है, जो इसकी इतनी ज्यादा कीमत है? कुछ नहीं सिर्फ खुशबू और स्वाद का फर्क है। बड़े उद्योगपति किसी नेता, अफसर को खुश करने के लिए इसे गिफ्ट में दे सकते हैं। वरना स्वादिष्ट तो बाजार में मिल रहे 40-50 रुपये किलो वाले आम भी हैं। छत्तीसगढ़ सहित अपने देश के कई राज्यों में मौसम आम की पैदावार के अनुकूल होता है। पर मियाजाकी पर कृषकों ने निवेश शुरू नहीं किया है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम में इसका व्यावसायिक उत्पादन होता है, जिसे निर्यात भी किया जाता है। जबलपुर में एक दंपती ने आम के दो पेड़ लगाए हैं, जिसकी सुरक्षा दो गनमैन और चार खूंखार कुत्ते करते हैं। बिहार में भी एक इंजीनियर ने इस साल इसकी खेती शुरू की है। आम की कीमत सुनकर आम लोग इसे महक लेने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते, खरीदना तो दूर की बात। पर सोशल मीडिया पर यह जरूर पूछा जा रहा है कि इसकी गुठली कितने में मिल जाएगी?
जिओ टावर की पूजा
केंद्र सरकार के पास एक यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड ( यूएसओएफ ) होता है। इसका उद्देश्य देश के ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में संचार सेवाएं पहुंचाना है। पहले इस फंड का काफी हिस्सा डाक और तार सेवाओं पर खर्च किया जाता था। अब मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने में किया जाता है। नक्सल प्रभावित बस्तर के ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिले, इसके लिए तेजी से मोबाइल टावर लगाए जा रहे हैं। यह बस्तर के गिदावरली गांव की तस्वीर है जहां जिओ का मोबाइल टावर लगने पर आदिवासी उसकी पूजा कर रहे हैं।
एटीआर में बढ़ता गौर का कुनबा
अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर होने का दावा वन विभाग के अफसर करते हैं। इसके नाम पर यहां होने वाले करोड़ों रुपयों के खर्च पर सरकार को विधानसभा में घेरा जा चुका है। पर एक दूसरा आकर्षण इन दिनों पर्यटकों को यह अभयारण्य अपनी ओर खींच रहा है। यहां पर गौर का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है। 5 साल पहले हुई गणना में इसकी संख्या करीब 2000 बताई जा रही थी। पर इस समय अनुमान है ये बढक़र 4000 हो चुके हैं। जंगल सफारी पर निकलें तो सडक़ के दोनों ओर बड़ी संख्या में गौर विचरण करते दिखाई दे रहे हैं।
झुलसने से कहीं नहीं बचेंगे
देश के कई दूसरे हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी भीषण गर्मी पड़ रही है। यदि आप राजधानी रायपुर, जिसका तापमान आज दोपहर 3 बजे 41 डिग्री सेल्सियस था, उससे बचने के लिए छत्तीसगढ़ के किसी हिल स्टेशन में जाना चाहते हों तो बमुश्किल पांच-छह डिग्री की राहत ही मिलेगी। आज दोपहर में कुछ प्रमुख हिल स्टेशन और वन आच्छादित इलाकों का तापमान इतना है- मैनपाट 36 डिग्री सेल्सियस, चिल्फी 37 डिग्री, चिरमिरी 38 डिग्री, बैलाडीला 34 डिग्री, कांकेर 37 डिग्री, अंबिकापुर 38 डिग्री, पेंड्रारोड भी 38 डिग्री सेल्सियस, जगदलपुर का भी इतना ही यानि 38 डिग्री सेल्सियस तापमान है। मैनपाट, चिरमिरी, बैलाडीला, कांकेर आदि में ठंड के दिनों में तापमान दहाई अंकों से नीचे चला जाता है। मैनपाट और चिल्फी घाटी में ठंड पर 3-4 डिग्री सेल्सियस तापमान हो जाता है और बर्फ की चादर भी जमीन पर बिछी दिखाई देती है। पर धीरे-धीरे औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। कुछ लोग गर्मियों में छत्तीसगढ़ से बाहर अमरकंटक जाना चाहते हों तो वहां का भी तापमान 35 डिग्री सेल्सियस दोपहर में पहुंच रहा है। छत्तीसगढ़ के 40 फीसदी इलाके को वनों से आच्छादित बताया जाता है इसलिये वैसे तो पूरे प्रदेश को ही ठंडा होना चाहिए, पर रायपुर और चांपा देश के सर्वाधिक तापमान वाले शहरों में शामिल हो चुके हैं। तीन साल पहले तो यहां का तापमान कुछ देर के लिए 49 डिग्री सेल्सियस तक चला गया था। अब शहरों और जंगलों के बीच तापमान का फासला ही घटता चला जा रहा है। तिब्बती शरणार्थियों के लिए मैनपाट को इसीलिये चुना गया था कि यह देश के सबसे ठंडे इलाकों में से एक माना जाता है। लोग गर्मियों से राहत पाने यहां पहुंचते हैं, पर यह जानकारी दिलचस्प हो सकती है कि मैनपाट में रहने वाले कुछ तिब्बती परिवार खुद गर्मी से राहत पाने के लिए नार्थ ईस्ट भ्रमण पर निकल गए हैं।
पटवारी के बगैर काम चल जाए तो?
एक महीने से अधिक लंबी पटवारी हड़ताल खत्म हो गई। पदाधिकारियों ने कहा कि आम जनता की तकलीफ को देखते हुए वे लौटे। मगर दूसरी ओर सरकार ने एस्मा लगाने के साथ कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि पटवारियों के बिना भी लोगों के काम हो जाएं। उनके बहुत से अधिकार तहसीलदारों को दे दिए गए। ज्यादातर रिकॉर्ड ऑनलाइन उपलब्ध हैं, उसी के मुताबिक फैसला लेने कहा गया। पटवारियों की आईडी ब्लॉक कर दी गई। सबसे ज्यादा परेशानी छात्रों, युवाओं को जाति, निवास, आमदनी प्रमाण पत्र बनवाने को लेकर हो रही थी। सरकार ने इसका भी अधिकार राजस्व निरीक्षकों और तहसीलदारों को दे दिया और कहा कि आवेदकों से कोई भी ऐसा दस्तावेज नहीं मांगा जाए जिसके लिए उन्हें पटवारी की जरूरत पड़े। कुल मिलाकर सरकार ने ऐसा बंदोबस्त कर दिया था कि पटवारी हड़ताल चाहे जितनी लंबी खिंचे राजस्व विभाग के काम ना अटकें। तब पटवारी नेताओं को लगने लगा कि जब उनके बगैर काम निपटने लगेंगे तो उनकी कोई पूछ-परख ही नहीं रह जाएगी। एस्मा लगने के बाद तनख्वाह भी कटेगी और निलंबन, बर्खास्तगी की फाइल भी चलने लगेगी। वैसे पटवारियों के पीछे चक्कर लगाने से परेशान लोगों को सरकार का वह फैसला ठीक ही लग रहा था जिसमें उनके अधिकार छीन लिए गए थे। खुद राजस्व सचिव एनएन एक्का ने अपना अनुभव बताया कि छात्र जीवन में उन्हें कई किलोमीटर साइकिल चलाकर अंबिकापुर पहुंचना पड़ा। कई-कई बार, तब जाति प्रमाण पत्र बन सका।
दूसरी तरफ, सरकार ने उनकी दो मांगें मान ली हैं, एक तो बिना विभागीय जांच के उनके खिलाफ एफआईआर नहीं होगी, जो एक बड़ी राहत है। इसके अलावा वेतन में संशोधन की बात भी मान ली गई है। मुख्यालय में रहने से छूट देने की मांग नहीं मानी गई। वैसे बिना छूट लिए भी पटवारी ज्यादातर तैनाती गांवों में रुकने के बजाय शहरों में रहते हैं। लोगों की परेशानी का उनका गायब रहना भी एक बड़ा कारण है।
सूर्या के आने से पहले
छत्तीसगढ़ पीएससी भर्ती में हुई कथित गड़बड़ी और घोटाले के खिलाफ भारतीय जनता युवा मोर्चा ने 19 जून को मुख्यमंत्री निवास घेराव का कार्यक्रम बनाया है। इसमें मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद तेजस्वी सूर्या भी आने वाले हैं। पिछले साल अगस्त में भी मुख्यमंत्री निवास के घेराव के लिए सूर्या रायपुर आए थे। तब बेरिकेड्स टूटे थे, कुछ पुलिस कर्मियों ने बताया था कि उन पर हमला भी हुआ। कुछ नेता कुछ घंटों के लिए गिरफ्तार भी किए गए थे। लगता है कि इस बार सरकार सोमवार को होने वाले प्रदर्शन को लेकर कुछ अधिक ही सतर्क है। पीएससी संग्राम नाम से मुख्य मार्गों पर लगाए गए पोस्टर बैनर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने उखाड़ दिए और गाड़ी में भरकर ले गए। (rajpathjanpath@gmail.com)
ताकि जनता के बीच के लगें
विधायकों, मंत्रियों का उत्सव, मेलों में नाचने-झूमने की बात अब नई नहीं रह गई है। कल विधायक रामकुमार यादव और केशव प्रसाद चंद्रा डभरा में आयोजित एक विवाह समारोह में शामिल हुए। समारोह में सपना चौधरी का हरियाणवी गाना बजने लगा तो कार्यकर्ताओं ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया और डांस करने पर मजबूर कर दिया। दोनों विधायकों ने जमकर ठुमके लगाए। वैसे तो दोनों अलग-अलग दलों से हैं लेकिन डांस के दौरान दोनों में अच्छा तालमेल दिखा। कई बार इस तरह से डांस करने के लिए उतरना अजीब लग सकता है लेकिन मतदाता यह पसंद करते हैं। जनप्रतिनिधि को भी बताने का मौका मिलता है कि वह उनके बीच के ही हैं, हम पर पद का गुरुर सवार नहीं हुआ है। चुनाव करीब आ रहे हों तो ऐसा करना और जरूरी हो जाता है।
अब पार्टी में भी नए विभाग!!
भाजपा में टिकट के दावेदार बड़े नेताओं के आगे-पीछे होने लगे हैं। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर तो भीड़-भाड़ से बचने के लिए प्रतिनिधि मंडलों को प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव से मिलने भेज दे रहे हैं।
माथुर अपने को पॉलिसी, और सभा-सम्मेलनों के आयोजन की रूपरेखा तैयार करने तक सीमित रखे हुए हैं। अरूण साव ने भी एक अलग विभाग बना दिया है, जो प्रतिनिधि मंडलों से मुलाकात करेगी। इसके संयोजक यशवंत जैन हैं, और हेमेन्द्र साहू, नवीन शर्मा, महेश नायक व मनु शुक्ल को सदस्य बनाया गया है।
हालांकि नए विभाग के गठन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे पहले किसी अध्यक्ष ने अपनी कार्यालयीन व्यवस्था के लिए नए विभाग का गठन नहीं किया था। खैर, चुनाव नजदीक आ गए हैं, तो कार्यालयों मेें भीड़ तो बढ़ेगी ही।
अब बड़े पुलिस अफसरों की बदली
पुलिस में एसपी के तबादले तो हो चुके हैं। अब पीएचक्यू में सर्जरी की तैयारी चल रही है। इसमें आईजी स्तर के अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। चर्चा है कि चुनाव को देखते हुए रायपुर आईजी अजय यादव को किसी एक प्रभार से मुक्त किया जा सकता है। उनके पास इंटेलीजेंस का भी प्रभार भी है।
डीआईजी रामगोपाल गर्ग सरगुजा आईजी के प्रभार पर हैं। कहा जा रहा है कि यहां पूर्णकालिक पोस्टिंग हो सकती है। इसी तरह बस्तर आईजी सुंदरराज पी को साढ़े तीन साल हो चुके हैं। ऐसे में उन्हें बदला जा सकता है, लेकिन चुनाव आयोग बस्तर की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें यथावत बनाए रखने की छूट दे सकता है।
अगले महीने डीजी (जेल) संजय पिल्ले रिटायर हो रहे हैं। उनकी जगह स्पेशल डीजी राजेश मिश्रा या फिर एडीजी स्तर के अफसर की पोस्ंिटग हो सकती है। चर्चा है कि चुनाव आयोग 2 अगस्त के बाद तबादलों पर पूरी तरह बैन लग सकता है। ऐसे में जल्द से जल्द फेरबदल की हड़बड़ी भी है।
कर्क रेखा संकेतक धराशायी
राजस्थान सहित कई दूसरे राज्यों में जहां से कर्क रेखा गुजरती है, वहां बकायदा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त निर्माण और जानकारी दी गई है। लोग आते जाते कुछ देर रुककर इसे कौतूहल के साथ देखते हैं। अपने राज्य के सूरजपुर जिले में एक जगह महान नदी के पुल के आगे अंबिकापुर की तरफ भैंसामुड़ा गांव है, जहां से भी कर्क रेखा गुजरती है। पर्यटन विभाग ने कभी यहां पर एक संकेतक लगाया था ताकि लोग जब यहां से गुजरते हुए थोड़ी देर रुकें और दिलचस्पी के साथ इस जगह को देखें और खगोल विज्ञान को समझें। मगर यहां संकेतक किस हालत में पड़ा हुआ है, तस्वीर ही बता रही है।
लाभ की बातों का असर कितना?
मिशन 2023 के अंतर्गत अपनी खोई हुई जमीन दोबारा हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी बहुआयामी अभियान चला रही है। कोयला, चावल, शराब, नरवा गरवा घोटालों को लेकर कांग्रेस सरकार को घेर रही है। धर्मांतरण मुद्दा उठा रही है। साथ ही अब लाभार्थी सम्मेलन हो रहे हैं। गरीब कल्याण योजना, किसान सम्मान निधि योजना, आयुष्मान भारत इलाज, उज्जवला कनेक्शन, कोविड-19 फ्री वैक्सीनेशन, स्टार्ट अप और स्टैंड अप रोजगार, जन-धन खाता आदि मोदी सरकार की कामयाबी के तौर पर गिनाये जा रहे हैं। सम्मेलनों के अलावा लाभार्थियों के घर में चाय-पानी भोजन के लिए भी दस्तक दी जा रही है। सम्मेलनों में केंद्रीय मंत्रियों का भी आना-जाना शुरू हो गया है।
दूसरी तरफ इन सम्मेलनों में रोजमर्रा की जरूरतों का इंतजाम केंद्र सरकार के फैसलों से क्या फर्क पड़ा है इस बारे में बीजेपी नेता बात करने से बच रहे हैं। डीजल पेट्रोल, खाने पीने की चीजों के दाम, रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी, रिकॉर्ड बेरोजगारी, 2016 की नोटबंदी से ठप हुए काम धंधे, जीएसटी से छोटे व्यापारियों की बढ़ी मुसीबत जैसे मुद्दों पर बात ही नहीं हो रही है। सरकार के ये फैसले यदि असरदार थे तो उन पर बीजेपी नेताओं को बात करनी चाहिए, मगर हो नहीं रही है। शायद कोविड वैक्सीन, गरीब कल्याण, जन-धन खाता से लाभ लेने वालों से इन फैसलों पर पूछा जाए तो वे भी बिफर पड़ें। समय-समय पर मिले लाभ का अर्थ तो उन्हें तब समझ में आएगा जब रोजमर्रा की जिंदगी इससे आसान हो गई हो। (rajpathjanpath@gmail.com)
अब अफसर देंगे टक्कर ?
भाजपा के लिए सरगुजा की सीतापुर सीट ऐसी है जिसे पार्टी अब तक फतह नहीं कर पाई है। पहले प्रोफेसर गोपाल राम निर्दलीय विधायक थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के अमरजीत भगत ने जीत हासिल की थी। इसके बाद से वो अब अजेय बने हुए हैं।
भाजपा सीतापुर सीट जीतने के लिए कई प्रयोग कर चुकी है। जशपुर से दिग्गज आदिवासी नेता गणेशराम भगत को सीतापुर लाकर अमरजीत खिलाफ लड़ाया गया था लेकिन वो भी बेदम साबित हुए। अब अमरजीत सरकार में मंत्री हैं, और सरकार में प्रभावशाली हैं। चर्चा है कि भाजपा अब एक अफसर को इस्तीफा दिलवाकर अमरजीत के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारने की सोच रही है।
अफसर लोकप्रिय हैं, और तमाम बड़े आदिवासी नेताओं के पंसदीदा भी हैं। पार्टी नेताओं से हरी झंडी मिलते ही अफसर ने वहां सामाजिक कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि उन्हें किसी राष्ट्रीय नेता के समक्ष पार्टी में प्रवेश दिलाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
होटल के लिए सरकारी सडक़!
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन विवादों से घिर गई हैं। रंजीत रंजन ने भिलाई नगर निगम को सांसद निधि से 25 लाख रूपए सीसी रोड निर्माण के लिए दिया था। इस राशि से उस जगह सीसी रोड का निर्माण हुआ, जहां कांग्रेस नेता का होटल है। इस पर स्थानीय भाजपा के नेता, रंजीत रंजन और महापौर पर निशाना साधा रहे हैं।
भाजपा नेताओं का तर्क है कि गंदी बस्तियों को छोड?र कांग्रेस नेता के होटल व्यवसाय को फायदा पहुंचाने के लिए वहां सीसी रोड बनाया गया है। रंजीत रंजन बिहार की रहवासी हैं, और उन्हें छत्तीसगढ़ के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं हैं। वो तो ऐसी हंै कि प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूछा गया कि छत्तीसगढ़ में कितनी विधानसभा की सीटें हैं, तो वो कुछ क्षण चुप रहीं। पीछे से भिलाई महापौर ने बताया, तो सही जवाब दे पाईं।
सिंहदेव का सरगुजा में पिघलना
रहीम ने कहा है-चाह गई, चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह, जिनको कछु नहीं चाहिए वो साहन के साह। सरगुजा रियासत के प्रतिनिधि टीएस सिंहदेव सरगुजा सम्मेलन में शाहों के शाह की तरह ही नजर आए। कुछ समय पहले तक मुख्यमंत्री पद के लिए कथित रूप से तय हुए ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले पर अमल नहीं होने से वे व्यथित थे। कह दिया था कि उनका इस बार चुनाव लडऩे का पहले जैसा मन नहीं है, सोचेंगे लड़ेंगे या नहीं। इधर सरगुजा कांग्रेस सम्मेलन में उन्होंने तमाम अटकलों पर विराम देते हुए साफ कर दिया कि वे खाली नहीं बैठेंगे। कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तमाम नेताओं की मौजूदगी में मंच से यह खुलासा किया कि भाजपा के कैबिनेट स्तर के मंत्रियों ने उनसे दिल्ली के फाइव स्टार होटल में मुलाकात की थी। सिंहदेव इस शर्त पर मिलने के लिए तैयार हुए कि उन्हें भाजपा में शामिल होने नहीं कहा जाएगा। इसके बावजूद वे मिलने आए और भाजपा में आने का ऑफर भी दिया। भाजपा के अलावा कुछ दूसरे दलों ने भी संपर्क किया, पर वे जीवन पर्यन्त कांग्रेसी रहेंगे। कांग्रेस में काम करने का मौका मिलेगा तो पीछे नहीं हटेंगे, नहीं मिला तो घर बैठना चाहेंगे।
सिंहदेव ने भावुकता के साथ सन् 2018 में सत्ता में वापसी के लिए मिल-जुलकर किए गए संघर्ष को याद किया। साथ ही आगाह किया कि कांग्रेस को विरोधी दल से ज्यादा अपनी ही गुटबाजी से खतरा है। यह भी कहा कि हर कोई कांग्रेस के लिए फिर से सत्ता में आने की बात कह रहा है, संभावना भी यही है, पर विपक्ष को कम न आंकें।
वैसे, सत्ता के साढ़े चार साल में सिंहदेव ने काफी कुछ बर्दाश्त किया। मंत्रिमंडल में मनपसंद विभाग नहीं मिला। विधायक बृहस्पत सिंह की ओर से सीधे हमले हुए तो खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के समर्थकों ने भी कसर बाकी नहीं रखी। इसका असर प्रशासन के रवैये पर भी दिखा। सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद उन्होंने कई दौर की दिल्ली यात्रा की। हाईकमान से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। शीर्ष नेताओं से तो मुलाकात भी नहीं कर पाए। इन सब बातों का मलाल मन में हो न हो, यह जाहिर कर बड़प्पन दिखाया है कि वे कांग्रेस को अपनी वजह से कोई नुकसान अगले चुनाव में नहीं होने देंगे। उनके खाली बैठ जाने की आशंका से सरगुजा के उनके समर्थकों में असमंजस और निराशा का भाव भर रहा था। सरगुजा के बाहर भी उनके समर्थक हैं, कुछ विधायक भी हैं। इन सबको सिंहदेव ने अपने रुख से राहत पहुंचाई है। सत्ता और संगठन दोनों की चिंता भी घटी है।
साजिश के बिना भी संभव
दो जून की शाम ओडिशा के बालासोर के बहानगा बाजार स्टेशन पर हुई भीषण रेल दुर्घटना की वजह यह बताई गई कि कोरोमंडल एक्सप्रेस मेन लाइन की जगह एकाएक लूप लाइन में चली गई। लूप लाइन में उन ट्रेनों को खड़ा किया जाता है जिन्हें दूसरी ट्रेनों को आगे बढ़ाने के लिए रोकना हो। प्राय: ये मालगाडिय़ां ही होती हैं। रेल मंत्री और मंत्रालय के उच्चाधिकारियों का कहना है कि सिग्नल प्रणाली में छेड़छाड़ किए बिना ऐसा संभव नहीं है कि मेन लाइन में जा रही यात्री ट्रेन लूप लाइन में चली जाए। इसमें साजिश की आशंका को देखते हुए अब सीबीआई जांच शुरू हो गई है। पर रेलवे के जानकार अधिकारियों का दावा है कि बिना साजिश के भी सिग्नल फेल हो सकता है। सेफ्टी इंजीनियर्स की चौकस रहने की जिम्मेदारी है। सिग्नल ठीक काम कर रहे हैं या नहीं यह देखें। ऐसी एक लापरवाही बिलासपुर रेलवे जोन में बरती गई थी। करीब 11 साल पहले अक्टूबर 2012 में दगौरी स्टेशन से जिस मालगाड़ी को सीधे आगे निकल जाना था, वह सिग्नल में गड़बड़ी के चलते लूप लाइन में चली गई। वहां एक मालगाड़ी पहले से खड़ी थी, जिससे दूसरी मालगाड़ी जाकर टकरा गई। इस हादसे में लोको पायलट और गार्ड की मौत भी हो गई थी। दगोरी दुर्घटना में सेफ्टी इंजीनियर और स्टेशन मास्टर की लापरवाही पाई गई थी। पर बालासोर दुर्घटना में यह पता लगने में देर है कि दुर्घटना लापरवाही की वजह से हुई या कोई साजिश थी, क्योंकि जांच सीबीआई कर रही है।
न उडऩे की जगह न चलने की
सन् 2018 में कांग्रेस सरकार आई तब लोगों को उम्मीद थी कि राजधानी रायपुर के जीई रोड में बनाया गया अधूरा स्काई वाक या तो पूरा तैयार होगा या फिर तोड़ दिया जाएगा। कांग्रेस इसे भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का स्मारक बताती है। इसकी उपयोगिता को लेकर विधायक सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है। कांग्रेस ने ढेर सारे दस्तावेज ईओडब्ल्यू को सौंपे हैं। जांच के घेरे में पूर्व मंत्री राजेश मूणत और पीडब्ल्यूडी के अधिकारी हैं, पर अब तक यह जांच पूरी नहीं हुई है। अब इंसानों के पास ऐसा हुनर तो है नहीं कि नीचे सडक़ जाम हो तो 25 फीट ऊंचे खंडहर बनते स्काई वाक पर उडक़र चढ़ ले। चढ़ भी ले तो छोर नहीं मिलेगा। तोड़ ही दिया जाता तो कम से कुछ सडक़ कुछ चौड़ी हो जाती। इधर 40 डिग्री सेल्सियस की ऊमस भरी गर्मी में बची खुची सडक़ पर पैदल और दोपहिया गाड़ी में सरक-सरक कर चलने वालों की सहनशीलता नापी जा रही है। (rajpathjanpath@gmail.com)
विभाग से इंकार
सरकार ने आईएएस केडी कुंजाम को संचालक खनिज बना दिया है, लेकिन वो नया दायित्व संभालने के तैयार नहीं है। उन्होंने अपनी भावनाओं से सीएस को अवगत भी करा दिया है।
बताते हैं कि कुंजाम से जूनियर जेपी मौर्य खनिज विभाग के सर्वेसर्वा हो गए हैं। नया दायित्व संभालने की हिचक के पीछे यही एक वजह नहीं है, बल्कि हाल ही में उनके यहां ईडी की रेड को प्रमुख कारण माना जा रहा है।
कुंजाम के कथित तौर पर कोल स्कैम में शामिल होने के शक में रेड डला था। हालांकि जानकार मानते ह कि उनका कोल स्कैम से दूर-दूर तक लेना देना नहीं रहा है। खैर, कुंजाम के इंकार के बाद अब खनिज संचालक के पद पर नई पोस्टिंग हो सकती है।
बारी-बारी से सबके घर
प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी शैलजा सीनियर नेताओं के घर बैठक कर अपने पूर्ववर्ती पीएल पुनिया का अनुशरण कर रहीं है। पुनिया ने विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल की अगुवाई में कोर कमेटी बनाई थी।
कोर कमेटी में 6-7 सीनियर नेता थे। इन नेताओं के यहां एक-एक कर बैठक होती थी, और चुनाव को लेकर रणनीति तैयार की जाती थी। उस समय पहली बैठक रविन्द्र चौबे के घर हुई थी। चुनावी रणनीति तैयार करने के लिहाज से बैठक सफल भी रही। कुछ इसी अंदाज में पहले कोर कमेटी की बैठक मोहम्मद अकबर के घर हुई, और बुधवार को रविन्द्र चौबे के निवास में सभी प्रमुख नेता जुटे। बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। अब अगली बैठक गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के घर होगी।
अपनी सरकार में हताश विधायक...
कांग्रेस सरकार में विधायक अफसरों-कर्मचारियों से इतने त्रस्त हैं कि मारने-पीटने की बात किए बिना उनका काम नहीं चल रहा है। यहां मामला मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल का है। यहां के वार्ड 15, में कई दिनों से पानी की किल्लत है। महिलाओं ने पानी टंकी के सामने प्रदर्शन किया। विधायक जायसवाल वहां पहुंचे, और क्या समझाया? उन्होंने कहा कि नगरपालिका के कर्मचारी दिखें तो उन्हें झाड़ू से मारना। उसके बाद मुझे फोन करना। पुलिस कुछ नहीं करेगी।
विधायक ने समस्या हल करने का जो तरीका बताया है उसे आजमा कर सरगुजा के एक विधायक बृहस्पत सिंह भी देख चुके हैं। पर कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी। विधायक के नुस्खे को आजमाने पर जरूर पुलिस कुछ न करे, नगरपालिका के कर्मचारी जरूर निपट लेंगे। अभी तो एक ही वार्ड में पानी की सप्लाई रूकी है, हड़ताल पर गए तो भरी गर्मी में बाकी वार्डों में भी परेशानी खड़ी हो जाएगी।
एक और आदिवासी नेता नाराज?
जशपुर इलाके में भाजपा के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जशपुर के कद्दावर नेता नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे के बाद भी वहां के वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा का सिलसिला थमा नहीं है। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की मौजूदगी में भाजपा का संभाग स्तरीय सम्मेलन हुआ, जिसमें गणेश राम भगत शामिल नहीं हुए। बताया जाता है कि उन्हें कार्यक्रम में सम्मानजनक तरीके से बुलाया नहीं गया। जो विज्ञापन और होर्डिंग लगाए गए उनमें से भी उनकी तस्वीर गायब थी। गणेशराम भगत जशपुर से लगातार चुनाव जीतते रहे। उनकी विजय यात्रा पर विराम तब लगा जब उनकी टिकट यहां से काटकर सीतापुर से लड़ा दिया गया। फिर न उनके पास सीतापुर की सीट रही न जशपुर की। वे 6 बार विधायक रहे। पहली बार जब भाजपा सरकार बनी तो पूरे पांच साल केबिनेट मंत्री भी थे।
हालांकि भगत ने बात संभालने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि कार्यक्रम की सूचना उन्हें दी गई थी। पर वह किसी दूसरे काम के सिलसिले में बाहर थे। हो सकता है कि उन्हें सम्मेलन से ज्यादा जरूरी कोई काम रहा हो, पर उनके समर्थक कार्यकर्ता तो सम्मेलन में उपेक्षा से खासे नाराज चल रहे हैं।
ऐसे बढ़ेगा छत्तीसगढ़...?
भाजपा नेता, पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी ने सोशल मीडिया पर अपना एक अनुभव शेयर किया है-
कल मैं बलौदा बाजार रोड में गुजर रहा था। सामने भैंसा गांव के पास एक ट्रक बाइक को टक्कर मारकर भागने लगा। उसे हार्न देते हुए दौड़ाया, साथ में एंबुलेंस के लिए फोन भी किया। मुझे पीछा करते देखकर ट्रक वाला रुका। मैं उसे डांटते हुए वापस लेकर आया। इस बीच वह मुझे कहता रहा कि गलती बाइक वाले की ही है। एक्सीडेंट की जगह पर पहुंचा तो देखा कि बाइक डैमेज हुई थी, मगर आदमी की जान सलामत थी। दुर्भाग्य की बात है कि वह बाइक वाला शराब के नशे में धुत था। मुझे बड़ी निराशा हुई।
फिर मैं आगे बढ़ा। थोड़ी दूर आगे जाने पर ही फिर से एक बाइक सडक़ पर गिरी हुई थी। वहां एक आदमी सडक़ किनारे बैठा था। मैंने फिर अपनी गाड़ी रोकी और देखा तो इस बार भी बाइक वाला शराब के नशे में धुत मिला। इस तरह की स्थिति को देखकर बड़ी निराशा हुई। मन में विचार आने लगा कि ऐसे में हमारा छत्तीसगढ़ कैसे आगे बढ़ेगा ??(rajpathjanpath@gmail.com)
कमल सारडा को बधाई
उद्योगपति कमल सारडा बुधवार को एक शादी समारोह में पहुंचे, तो कई लोगों ने उन्हें बधाई दी। सारडा हल्की मुस्कान बिखेरकर बधाई स्वीकार करने में थोड़ा हिचक भी रहे थे। दरअसल, कमल सारडा की अगुवाई में सारडा समूह ने ऊंची छलांग लगाई है। कंपनी रायगढ़ स्थित एसकेएस पॉवर को खरीदने की रेस में सबसे आगे निकल गई है। कहा जा रहा है कि कुछ कागजी कार्रवाई के बाद एसकेएस पॉवर, सारडा एनर्जी का हिस्सा बन जाएगा।
बताते हैं कि कर्ज अदायगी न कर पाने के कारण एसकेएस पॉवर को बैंकों ने नीलाम कर दिया था। एसकेएस पॉवर को खरीदने में कई नामी कंपनियां मसलन, टाटा पॉवर, अदानी सहित कुल पांच कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई थी। मगर सारडा एनर्जी ने सबको पीछे छोड़ दिया। जानकार बताते हैं कि कई बिजली कंपनियों की माली हालत अच्छी नहीं होने के बाद भी एसकेएस को खरीदना सारडा एनर्जी के लिए बड़े फायदे का सौदा है।
एसकेएस पॉवर का उत्तर प्रदेश सरकार से पॉवर परचेस एग्रीमेंट है। ऐसे में उत्पादित बिजली को बेचने के लिए सारडा एनर्जी को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।
पिल्ले दंपत्ति राज्य सरकार से बाहर
एसीएस रेणु पिल्ले केन्द्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सचिव बन गई है। 91 बैच की अफसर रेणु पिल्ले केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हुई है। रेणु राज्य की दूसरी अफसर हैं, जो केन्द्र सरकार के किसी आयोग में सचिव के पद पर पदस्थ हुई हैं। इससे पहले आईपीएस अफसर केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग में सचिव रहे हैं।
रेणु पिल्ले का 5 साल बाद रिटायरमेंट है। उनके पति डीजी (जेल) संजय पिल्ले का अगले महीने रिटायरमेंट हैं। रेणु पिल्ले जनगणना निदेशक भी रह चुकी हैं। रेणु और संजय के पुत्र भी ओडिशा कैडर के आईएएस हो चुके हैं।
कहीं ये वो तो नहीं
ईडी ने लिकर स्कैम में दो दिन पहले एक कर्मचारी गिरफ्तार किया था। इसके नाम से मिलता जुलता राज्य प्रशासन ने भी एक अधिकारी कार्यरत है। नाम सामने आते ही हर कोई उनकी पतासाजी, और खैरियत पूछने में जुट गया। इनमें एसीएस स्तर के अफसर भी शामिल हंै। पूछ परख क्यों न हो, यह भी उन दिनों देश से बाहर ही थे। पहले वाले का भी गोरखपुर के रास्ते नेपाल जाने का हल्ला था। कल रात एक विवाह समारोह में ये जनाब दिखे तो साहब लोगों ने शुक्र बनाया। कहने लगे हमें शंका हो रही थी कहीं वो तुम तो नहीं थे। इन्होंने कहा कि मैं अमेरिका गया था। लोगों ने वहां भी कॉल कर ऐसी ही टोह ली थी।
चेहरे को लेकर भाजपा में असमंजस
राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मौजूदगी में भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने अगले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इस सवाल पर कहा कि केंद्रीय समिति यह तय करती है इंतजार करिये। साथ ही यह भी कहा कि कई राज्यों में बिना चेहरे के भी भाजपा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को बुहत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। वहां दो प्रयोग हुए थे, एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ा गया था और दूसरा राज्य के बड़े पार्टी नेता को किनारे कर नये लोगों को टिकट दिए गये थे। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा किया जाना एक जोखिम भरा फैसला होगा। उसे कार्यकर्ताओं की तरफ इशारा करना होगा कि यदि सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन हो सकते हैं।
शायद संगठन के शीर्ष नेता सोच रहे हैं कि सन् 2018 की ऐतिहासिक पराजय के बाद डॉ. रमन सिंह को दुबारा चेहरे के रूप में पेश करने का जोखिम भी नहीं उठाया जा सकता। यह न केवल उन कार्यकर्ताओं को नाराज करेगा जो सत्ता में रहने के दौरान अपनी उपेक्षा से नाराज थे, बल्कि उन नेताओं को भी जो कद्दावर होने के बावजूद डॉ. सिंह के दौर में हाशिये पर डाल दिए गए थे।
विधानसभा चुनाव में अब लगभग 5 माह रह गए हैं। यदि कोई चेहरा भाजपा को तय करना है तो ज्यादा इंतजार नहीं किया जा सकता। पार्टी यह भी साफ नहीं कर रही है कि सामूहिक नेतृत्व चुनाव लड़ेगा। मोदी के चेहरा कामयाबी का रास्ता जरूर बनेगा पर सत्ता में दोबारा लौटने की गारंटी नहीं। कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल प्रदेश के नतीजों ने यह बता दिया है।
अब यह सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए कौन-कौन दावेदार हैं। जनाधार वाले एक बड़े नेता बृजमोहन अग्रवाल हैं। उनके पास चुनाव जीतने और जिताने का रिकॉर्ड भी है। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय की भी पूरे प्रदेश में पकड़ है। सांसद संतोष पांडेय भी वरिष्ठ नेता हैं। पर इन नामों को नतीजे से पहले ही आगे कर देना खुद को नुकसान पहुंचाना हो सकता है। यह सही है कि डॉ. रमन सिंह सामान्य वर्ग से आते रहे। रमेश बैस और नंदकुमार साय को किनारे रखकर उनका नाम सन् 2003 के नतीजों के बाद तय किया गया, पर इधर चार सालों में पिछड़ा वर्ग फैक्टर प्रदेश की राजनीति में हावी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिच ही कुछ ऐसी तैयार कर दी है।
पिछड़े वर्ग के वरिष्ठ नेताओं में विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और सांसद विजय बघेल दावेदार हो सकते हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी भी उभरते हुए नेता हैं। इन नेताओं के सीमित जनाधार, अनुभव की कमी और कार्यकर्ताओं में सहमति नहीं बनने जैसे अलग-अलग कारण हैं। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल को इस रेस में माना जाना सही नहीं होगा, उनकी अपने इलाके के अलावा कहीं पकड़ नहीं। सन् 2018 का चुनाव जीतने के लिए तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव साथ-साथ हर जगह दिखते थे। यहां चंदेल अलग-थलग दिखाई देते हैं।
आदिवासी वर्ग के नेताओं में नंदकुमार साय एक बड़ा नाम थे, पर वे अलग हो गए। केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर जैसे कुछ नेता रह जाते हैं। सरगुजा, कोरबा इलाके में इनका नाम आने पर जरूर भाजपा कार्यकर्ता उत्साहित हो सकते हैं, पर बाकी इलाकों में कार्यकर्ताओं के घर बैठ जाने का खतरा है, क्योंकि वे किसी और को इस पद पर देखना चाहते हैं। कांग्रेस की तरह भाजपा में भी खेमेबंदी कम नहीं है।
अब नाम आता है राज्यपाल रमेश बैस का। सन् 2003 में भी उनका दावा था। इसके बाद कई बार चर्चा हुई कि उन्हें मौका मिल सकता है पर वे पिछले आठ साल से छत्तीसगढ़ की राजनीति से अलग हैं। एक बार फिर उनकी चर्चा होने लगी है। हाल के दिनों में उन्होंने छत्तीसगढ़ का कई बार दौरा किया। न केवल रायपुर बल्कि दूसरे शहरों में भी गए। कम विवादित नाम है और आरएसएस की पसंद भी रहे हैं। कांग्रेस की ओबीसी पॉलिटिक्स के जवाब के लिए भी दुरुस्त नाम है। शायद सर्वाधिक सहमति उनके नाम पर बन जाए। राज्यपाल पद से इस्तीफा लेकर उन्हें फिर राजनीति में सक्रिय करना सही है या नहीं, इस सवाल का मतलब नहीं है। कांग्रेस ने भी अर्जुन सिंह सहित कई नेताओं के मामले में ऐसा किया है। सवाल बैस का है कि वे क्या इतने लंबे अंतराल के बाद पार्टी के भीतर खुद को सहज पाएंगे।
जर्जर सडक़ पर शव के साथ..
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक के ये ग्रामीण शव को खाट में ले जा रहे हैं। ऐसी तस्वीर तो सरगुजा के अंदरूनी इलाकों से अक्सर आती रहती है। पर इनका एक दूसरा दर्द भी है। सडक़ नाम की है। सात साल से ग्रामीण सडक़ बनाने की मांग कर रहे हैं। न अफसरों ने सुनी न क्षेत्र के विधायक ने। यहभ्राम पटकुरा की तस्वीर है। जो मुख्य मार्ग से सात किलोमीटर दूर है। (rajpathjanpath@gmail.com)
नया भव्य भवन फला नहीं
भाजपा ने करोड़ों खर्च कर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर का निर्माण कराया है। लेकिन विधानसभा चुनाव का संचालन पुराने प्रदेश कार्यालय एकात्म परिसर से ही होगा। चर्चा है कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में वास्तु संबंधी कुछ समस्याएं हंै। जो कि पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले हैदराबाद से कुछ वास्तुविद भी आए थे, और मुख्य द्वार को बदला भी गया था लेकिन पार्टी के रणनीतिकार इससे संतुष्ट नहीं है।
पार्टी नेताओं के मुताबिक एकात्म परिसर ईस्ट फेसिंग है, जो कि शुभ है। यहां से संचालित चुनावों में से ज्यादातर में पार्टी को सफलता मिली है। ऐसे में अब चुनाव संबंधी ज्यादातर कार्य एकात्म परिसर में ही होंगे। मीडिया सेल तो पहले ही एकात्म परिसर में शिफ्ट हो चुका है। चुनाव प्रबंधन के लिए कंट्रोल रूम भी एकात्म परिसर में बनेगा। देखना है कि विधानमभा चुनाव के लिहाज से एकात्म परिसर शुभ साबित होता है या नहीं।
तो वह अरविंद सिंह कौन था?
शराब घोटाला केस में बीएसपी कर्मचारी, और कारोबारी अरविंद सिंह को ईडी ने सोमवार को उस वक्त नाटकीय अंदाज में हिरासत में लिया जब वो अपनी मां के अंत्येष्टि में शामिल होने भिलाई आया था। मां को मुखाग्नि देने के बाद ईडी ने श्मशान से ही उसे अपने साथ ले लिया। उस वक्त कांग्रेस, और भाजपा के कई नेता मौजूद थे।
अरविंद सिंह को आबकारी अफसर एपी त्रिपाठी का करीबी माना जाता है, और उसे घोटाले का अहम सूत्रधार भी बताया जा रहा है। एक चर्चा यह भी है कि अरविंद सिंह को ईडी कुछ समय पहले नेपाल बॉर्डर से अपने कब्जे में ले चुकी थी। ईडी की टीम ही उसे भिलाई लेकर आई थी। अब इसकी सच्चाई का तो पता नहीं, लेकिन इसकी खूब चर्चा हो रही है।
सीबीआई पर भरोसा, साहू पर नहीं
बिलासपुर में सरगुजा के लखनपुर से आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे 18 साल के यश साहू की कथित रूप से त्रिकोणीय प्रेम की वजह से हुई हत्या को लेकर पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार तो किया है लेकिन कई सवाल तैर रहे हैं। मसलन आरोपियों के पास युवती के रिश्तेदारों की कार कहां से आई। कार पुलिस ने जब्त तो की लेकिन क्यों की यह नहीं बताया। रायपुर हाईवे पर गुंबर पेट्रोल पंप चौराहे पर लाश फेंकी गई तो लोगों ने एक कार को ऐसा करते देखा था, पर पुलिस कहती है कि यश आखिरी बार ऑटो रिक्शा में दिखा। जिस ऑटो रिक्शा में लादकर यश को चकरभाठा से बिलासपुर लाया गया वह न जब्त है न उसके चालक के पूछा गया। कार जब्त है मगर कार मालिक से कोई पूछताछ नहीं।
बंद ढाबे में पिटाई हुई तो वहां चौकीदार मौजूद था। उससे क्या सबूत मिले? आरोपियों के काल डिटेल्स में किन लोगों से बातचीत निकलकर बाहर आ रही है? ऐसे कई सवाल हैं जिस पर पुलिस जांच आधी-अधूरी दिखाई दे रही है। यश साहू के पिता राजेश साहू कई दिन से लखनपुर से बिलासपुर आकर रुके हैं। वे कह रहे हैं कि वारदात में कई और लोग शामिल थे। वे रसूखदार हैं, पुलिस उनको बचा रही है। ऐसे कई सवालों का जवाब मांगते हुए साहू समाज ने सोमवार को बिलासपुर में कलेक्ट्रेट और एसपी ऑफिस के सामने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का राज्य की पुलिस से भरोसा उठ गया है। उन्होंने सीबीआई जांच की मांग रखी है। यह स्थिति तब है जब गृह विभाग के मंत्री भी साहू समाज से ही हैं। माना कि पुलिस या मंत्री जाति-बिरादरी देखकर काम नहीं करती लेकिन इस मामले में अपने समाज के मंत्री के रहते पुलिस से साहू समाज का भरोसा उठ गया और वे अब सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। मंत्री इन्हें आश्वस्त कर सकते हैं कि इंतजार करें, सच सामने आयेगा, सभी दोषी पकड़े जाएंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ है।
चुनाव का वक्त है, कब यह मामला राजनीतिक रंग ले कहा नहीं जा सकता। कुछ दिन पहले ही बेमेतरा के एक प्रधान आरक्षक संदीप साहू ने विधायक पर झूठी शिकायत का आरोप लगाया और राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर आत्मदाह की चेतावनी दी थी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव जो खुद भी साहू समाज से हैं, उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि इस सरकार ने तेली समाज को अपमानित करने का ठेका ले रखा है। उन्होंने बेमेतरा की हिंसा में हुई भुवनेश्वर साहू की मौत का भी लगे हाथ जिक्र कर दिया था। ध्यान रहे, साहू समाज के वोट ओबीसी में सबसे ज्यादा हैं।
दिग्विजय सिंह की सीएम को चिट्ठी
छत्तीसगढ़ के मामलों की मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह को हमेशा दिलचस्पी रही है। किसी राजनीतिक कार्यक्रम में आए न आएं, बमलेश्वरी दर्शन के लिए प्राय: हर साल पहुंचते हैं। अभी उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखा है। इसमें अनुरोध किया है कि वे सेवाकाल के दौरान दिवंगत हो चुके शिक्षाकर्मियों की पत्नियों को अनुकंपा नियुक्ति देने के बारे में विचार करें। अनुकंपा नियुक्ति शिक्षा कर्मी कल्याण संघ की अध्यक्ष माधुरी मृगे ने दिग्विज सिंह से ऐसी सिफारिश करने की अपील की थी। यह संगठन लंबे समय से रायपुर में आंदोलन कर रहा है। सरकार इस आधार पर अनुकंपा नियुक्ति देने से इंकार कर रही है कि शिक्षाकर्मी शासकीय सेवक की श्रेणी में नहीं आते। इसमें अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान नहीं है। हाल ही में संगठन की महिलाओं ने प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी कुमारी शैलजा को भी ज्ञापन सौंपा था। ऐसा लग रहा है कि बजाय अपनी मांगों को राजनीतिक विरोधियों के हाथ में सौंपने के, वे कांग्रेस के ही प्रभावशाली नेताओं के जरिये पूरी कराने की कोशिश कर रहे हैं। हो सकता है कोई रास्ता निकल जाए।
छत्तीसगढ़ से नए सैन्य अधिकारी
छत्तीसगढ़ के पांच जाबांज युवा कवर्धा के चिन्मय ठाकुर, रायपुर के कुशाग्र गर्ग, जांजगीर के सौरभ कपूर, कांकेर के धनंजय साहू और भिलाई के प्रिंस बत्रा ने इंडियन मिलिट्री अकादमी (आईएमए) देहरादून से कमीशन्ड प्राप्त किया। अब ये सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट बनकर अपनी-अपनी फील्ड पर तैनात होंगे। इस तरह की खबर इसलिये खास बन जाती है क्योंकि जो भारतीय सेना में प्रतिनिधित्व वाले शीर्ष 10 राज्यों में भी छत्तीसगढ़ नहीं है। शीर्ष में उत्तर प्रदेश है, उसके बाद हरियाणा का नंबर आता है जिसकी जनसंख्या लगभग छत्तीसगढ़ के बराबर है। तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ से कम जनसंख्या वाला उत्तराखंड है। बिहार, राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश महाराष्ट्र, दिल्ली और जम्मू कश्मीर इसके बाद भारतीय सेना में सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाले राज्य हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
मौके की नजाकत
चुनाव नजदीक आते ही नेताओं में जुबानी जंग तेज हो गई है। भाजपा के फायरब्रांड नेता, और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के खिलाफ स्थानीय प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने यह प्रचारित कर दिया कि वो रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं। कुरूद से लेना-देना नहीं रह गया है। अजय का मौलश्री विहार में बंगला है, और यहां से अपने विधानसभा क्षेत्र कुरूद आना जाना करते रहे हैं। मगर चुनाव के वक्त उनका रायपुर में रहना मुद्दा न बन जाए, यह देखकर वो सपरिवार कुरूद के अपने पैतृक निवास में शिफ्ट हो गए हैं। अजय अपने विरोधियों को कोई मौका नहीं देना चाहते हैंं।
गहना ने निकाह कर लिया...
बॉलीवुड की बोल्ड अभिनेत्री गहना वशिष्ठ, जिसका असल नाम वंदना तिवारी है, का जिक्र होने पर छत्तीसगढ़ के लोगों का ध्यान खिंच ही जाता है, क्योंकि वह यहीं के चिरमिरी में पैदा हुई। उनके पिता कॉलरी में काम करते थे, जो शायद अब रिटायर होकर मध्यप्रदेश में शिफ्ट हो गए हैं।
पिछली बार कुछ अप्रिय सी खबरों के कारण गहना चर्चा में आईं। पुलिस ने जो आरोप लगाए, उसके मुताबिक शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए फिल्में बनाते थे और विदेशों में बेचते थे। गहना वशिष्ठ उनकी सहयोगी थीं। गहना को गिरफ्तार किया गया, जेल भी गईं और जमानत पर छूटीं। गहना अपने को गुनहगार नहीं मानती। वह कहती है कि बोल्ड व इरोटिक फिल्मों में वह काम करती है जो पोर्न फिल्मों से अलग होती है।
बहरहाल, अब गहना वशिष्ठ की चर्चा उनके निकाह को लेकर है। जैसा कि सोशल मीडिया में खबरें चल रही हैं। उसने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है और एक मीडिया एन्फ्लूयेंसर फैजान अंसारी से निकाह कर लिया है।
रेलवे की साख का सवाल
पिछले दो दिन से एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें जयरामनगर से गतौरा स्टेशनों के बीच एक ही ट्रैक पर दो गाडिय़ां चलती दिख रही हैं। सामने वाली पैसेंजर ट्रेन है, जबकि पीछे मालगाड़ी है। वीडियो में दिखाया गया है कि यात्री डर के कारण ट्रेन से उतर गए हैं, कहीं मालगाड़ी पीछे से आकर पैसेंजर को टक्कर न मार दे। इस पर रेलवे की तरफ से स्पष्टीकरण दिया गया है कि ऑटो सिग्नलिंग प्रणाली के चलते एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों का एक के पीछे एक चलना अब मुमकिन है। ऐसा काफी दिनों से किया जा रहा है। दो ट्रेनों को एक ही पटरी पर तो चलाई जाएगी लेकिन उनके बीच सुरक्षित दूरी बनी रहेगी। रेलवे की यह बात सही लग रही है क्योंकि कुछ माह पहले भी इस तरह के वीडियो वायरल हुए थे।
पर, बालासोर ट्रेन दुर्घटना के बाद यात्रियों के सुरक्षा के मुद्दे पर रेलवे की साख गिरी है। यात्रियों में भी अपनी जान-माल की हिफाजत की चिंता बढ़ गई है। रेलवे के लिए चुनौती है कि वह यात्रियों को आश्वस्त कर सके कि बालासोर जैसा भीषण हादसा फिर नहीं होगा। उसे लदान की ही नहीं यात्रियों की भी फिक्र बराबर है।
भजन रामनामी समाज का
महानदी के तट पर कई गांवों में रामनामी समाज के लोग बसे हैं। अपने आप में एक अनूठी परंपरा निभाते चला आ रहा है यह संप्रदाय। इनके पूरे शरीर पर राम नाम का गोदना गुदा होता है। बताते हैं कि करीब 100 साल पहले बगावत के रूप में यह परंपरा शुरू हुई, जब दलितों को ऊंची जातियों ने पूजा पाठ से वंचित कर दिया था। रामनामी समाज में एक लाख से भी अधिक बताए जाते हैं। हालांकि अब नई युवा पीढ़ी अपने शरीर पर इस तरह से टैटू बनवाना पसंद नहीं कर रही है। रामनामी समाज के लोग एक खास अंदाज में खास पहनावे के साथ भजन का कार्यक्रम देते हैं। यह तस्वीर रायपुर में आयोजित एक साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आखर की है, जिसमें राम नामियों ने पारंपरिक परिधान में मंच पर आकर भजन प्रस्तुत किया।
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गिरिराज सिंह के तेवर
अपने बिगड़े बोल,और बयानों के लिए चर्चित केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री गिरिराज सिंह शनिवार को एक समीक्षा बैठक में राज्य के अफसरों पर जमकर बरसे। उन्होंने पहले तो मनरेगा मद के कार्यों में स्पष्टता न होने पर नाराजगी जताई, फिर डीएमएफ को लेकर यह कह गए, कि इसका तो कोई माई बाप नहीं है।
गिरिराज सिंह ने यहीं नहीं रूके। उन्होंने अफसरों को चेताया,और कहा कि उन्हें नेताओं का पिछलग्गू नहीं होना चाहिए। गिरिराज सिंह के तेवर देखकर वहां मौजूद भाजपा के नेता पूरे समय मुस्कुराते रहे।
भाजपा ने गिरिराज सिंह को कोरबा,और बस्तर लोकसभा का प्रभारी बनाया है। वो हर एक-दो महीने में दोनों जगह जाते हैं। उन्हें यहां चल रही योजनाओं में ऊंच-नीच की पूरी जानकारी है। ऐसे में उनकी कुछ नाराजगी तो स्वाभाविक मानी जा रही थी।
सीनियर विधायक को सलाह
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा के बड़े नेता, और सीनियर विधायक को पिछले दिनों संगठन के एक प्रमुख नेता ने विधानसभा के बजाए लोकसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए कह दिया है। इस पर अभी विधायक का रुख सामने नहीं आया है।
कहा जा रहा है कि प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों को तीन भागों में बांटकर संगठन के तीन प्रमुख नेताओं को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। ये तीनों नेता विधानसभा क्षेत्रों में लगातार बैठक कर रहे हैं, और दावेदारों को टटोल रहे हैं।
चर्चा यह भी है कि प्रत्याशी चयन में इस बार नए चेहरों की संख्या पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा हो सकती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि 14 विधायकों में से कुछ की टिकट कट भी सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
गोबर बेचो वरना मनरेगा नहीं
राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी इलाके के कुछ गांवों से शिकायत आ रही है कि वहां सरपंच दबाव डालकर ग्रामीणों को गौठानों में गोबर लाने के लिए कर रहे हैं। बोगाटोला पंचायत के ग्रामीणों ने अपने इलाके के जिला पंचायत सदस्य से इसकी शिकायत की तो पता चला कि कई और पंचायतों में ऐसा किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यदि वे गोबर नहीं लाएंगे तो मनरेगा में उन्हें काम नहीं मिलेगा। मनरेगा में काम करने वाले ज्यादातर लोग मजदूर होते हैं। यदि उनके पास गाय-भैंस होते तो शायद मनरेगा में काम करने की जरूरत ही नहीं। अधिकतर के पास न तो गाय-भैंस है न खेती की जमीन। सरपंचों के फरमान से उन्हें मनरेगा की रोजी से भी वंचित होना पड़ रहा है।
सबको साथ लेकर चलने की मजबूरी
विधानसभा के बजट सत्र में कोंडागांव जिले में डीएमएफ के खर्चों पर काफी शोर शराबा हुआ था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के दबाव पर कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने भले ही एक महीने के भीतर जांच कर कार्रवाई की घोषणा की थी, लेकिन यह जांच अब तक पूरी नहीं हुई है।
मरकाम जिस ईई के खिलाफ कार्रवाई को लेकर मुखर थे वो अब सम्मानजनक तरीके से रिटायर हो गए। ईई, युवक कांग्रेस के प्रमुख पदाधिकारी के पिता हैं। चुनाव का समय है, ऐसे में मरकाम पर सबको साथ लेकर चलने की मजबूरी भी है। यही वजह है कि उन्होंने भी जांच रिपोर्ट, और कार्रवाई पर जोर नहीं दिया।
सडक़ पर रोलर स्कैटिंग
जशपुर-रायगढ़ की सारी सडक़ें खराब नहीं हैं। कुछ सडक़ों पर भारी वाहनों का दबाव नहीं है वे तो इतनी दुरुस्त भी हैं कि रोलर स्कैटिंग की जा सके। यह कुनकरी से 30 किलोमीटर दूर सुनकाडांड़ ग्राम की तस्वीर है जहां 6 वीं कक्षा का अंश एक्का रोलर स्केटिंग कर रहा है। उसे इसकी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना है। जशपुर पढ़ाई, खेल और उन्नत खेती के लिए जाना जाता है इसलिए यह वहां ऐसा दृश्य देखने को मिले तो कोई अनोखी बात नहीं।
शांति से जनपितुरी सप्ताह का गुजर जाना
जून महीने में हर साल माओवादी संगठन जनपितुरी सप्ताह मनाते हैं। इस बार भी 5 से 11 जून तक यह मनाया जा रहा है। अपने मारे गए साथियों की याद में वे इन दिनों को समर्पित करते हैं और स्थानीय लोगों से अपील करते हैं कि सुरक्षा बलों से सहयोग न करें। साथ ही हमले और सुरक्षा बलों के गश्त में व्यवधान कर अपनी मौजूदगी दिखाते हैं। बीते सालों में जनपितुरी सप्ताह के दौरान सुरक्षा बलों पर हमला कर, सडक़ों को काटकर, विस्फोट कर वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। हमलों की आशंका को देखते हुए रेलवे हर साल यात्री ट्रेनों को दंतेवाड़ा से किरंदुल के बीच बंद कर देती है। इस बार भी ऐसा ही किया गया है। मालगाडिय़ों को भी प्रभावित क्षेत्रों में धीमी गति से निकाला जा रहा है।
आज जनपितुरी सप्ताह के आखिरी दिन भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुरक्षा बलों को किसी माओवादी हमले का सामना इस बार नहीं करना पड़ा है, बल्कि इस दौरान वह माओवादियों पर ही भारी पड़ी। बीजापुर-सुकमा की सीमा पर सुरक्षाबलों के साथ माओवादियों की मुठभेड़ हुई थी। सुरक्षा बलों ने दावा किया है कि इसमें तीन माओवादियों की मौत हुई। झीरम घाटी हमले में वांछित हिड़मा के भी इस मुठभेड़ में मौजूद होने और भाग निकलने का दावा फोर्स की ओर से किया गया है।
25 अप्रैल को दंतेवाड़ा में ब्लास्ट कर एक पेट्रोलिंग वाहन को माओवादियों ने उड़ा दिया था, जिसमें 10 जवानों सहित 11 लोगों की मौत हो गई थी। इसलिये शांत जनपितुरी सप्ताह को लेकर गुरिल्ला वार में पारंगत बल को लेकर यह धारणा बना लेना कि उनकी स्थिति काफी कमजोर है, सही नहीं होगा। सुरक्षा बल अधिकारी जरूर दावा कर रहे हैं कि माओवादियों के पैर उखड़ रहे हैं और जल्द ही उन्हें खदेड़ दिया जाएगा। यह एक रणनीति भी हो सकती है। खासकर, तब जब विधानसभा चुनावों में कुछ माह ही बचे हैं और नेताओं के दौरे अंदरूनी इलाकों में होने वाले हैं।
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छत्तीसगढ़ भाजपा में बदलाव जल्द
रथयात्रा से पहले प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत हैं। चर्चा है कि पार्टी प्रदेश चुनाव अभियान समिति, कोर ग्रुप और चुनाव समिति व घोषणा पत्र समिति का ऐलान कर सकती है। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ समेत जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां की चुनाव प्रचार की रणनीति पर केंद्रीय नेतृत्व मंथन कर रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से चर्चा भी हुई है।
कहा जा रहा है कि संगठन को धार देने के लिए कुछ प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है। चुनाव अभियान समिति के मुखिया के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, और रामविचार नेताम का नाम प्रमुखता से उभरा है। कोर ग्रुप में भी बदलाव कर दो-तीन नए चेहरों को जगह दी जा सकती है। चुनाव समिति में भी बदलाव होगा। ये सब आठ-दिन के भीतर होने के संकेत हंै। फिलहाल पार्टी नेताओं की नजरें केन्द्रीय नेतृत्व पर टिकी हुई है।
आयोग की नजर काले धन पर
विधानसभा चुनाव की तैयारी देखने आई चुनाव आयोग की टीम कुछ जिलों के काम से नाखुश नजर आए। अलबत्ता, दो महिला कलेक्टर कांकेर की डॉ. प्रियंका शुक्ला, और बिलाईगढ़-सारंगढ़ की फरिहा आलम सिद्दीकी के प्रेजेंटेशन को सराहा गया।
सुनते हैं कि रायपुर, बिलासपुर, और बेमेतरा कलेक्टर तो लडखड़़ा गए थे, उन्हें जवाब देने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी। सबसे पहले रायपुर कलेक्टर को प्रेजेंटेशन देना था, और स्वाभाविक है कि जिन्हें सबसे पहले काम दिखाना होता है, उन पर दबाव भी होता है।
आयोग की टीम ने ईडी, आईटी, और एनसीबी के अफसरों के साथ भी अलग से बैठक की। चर्चा है कि बैठक में चुनाव में कालेधन को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने पर जोर दिया गया। संकेत साफ है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार चुनाव में सख्ती ज्यादा रहेगी।
उजड़ता जा रहा हाथियों का ठिकाना
हाथियों की आवाजाही पर एक दूसरे को अपडेट रखने के लिए वन विभाग, वन प्रबंधन समिति और ग्राम प्रमुखों के बीच व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं। रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ वन मंडल में एक दूसरे से लोगों ने जानकारी साझा की तो पता चला कि कोरबा से हाथियों के दो दल यहां पर पहुंचे हैं। एक दल में 44 तो दूसरे में 22 हाथी हैं। इस वन मंडल में पहले से ही अलग-अलग झुंड में हाथियों के कई दल विचरण कर रहे हैं। कल तक की स्थिति यह थी कि धर्मजयगढ़ बीट में 64, छाल बीट में 72 तथा कापू बीट में 15 हाथियों का दल ठहरा हुआ है।
ग्रामीण बता रहे हैं कि हाथियों का एक साथ इतना जमावड़ा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। वे दहशत में हैं। अपनी जान, फसल और झोपड़ी को बचाने के लिए रतजगा कर रहे हैं। स्थिति यह बन गई है कि ड्रोन से हाथियों की निगरानी करनी पड़ रही है। तेंदूपत्ता तोडऩे का सीजन है, जो उनकी साल भर की एकमुश्त कमाई होती है। डर के कारण वे पत्ता तोडऩे के लिए जंगल के भीतर नहीं जा रहे हैं।
यह गनीमत है कि अभी तक कोई बड़ी जनहानि इन हाथियों ने पहुंचाई नहीं है। मगर स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है। इस मामले में अधिकतर हाथी कोरबा की ओर से पहुंचे हैं। कोरबा वही जिसके लेमरू को एलिफेंट कॉरिडोर के लिए चुना गया है, जिसके हसदेव में भरपूर पानी है और घना जंगल है। पर यही वह जगह भी है जहां अंधाधुंध कोयला खदानों को मंजूरी दी गई है और आगे इनकी संख्या और बढ़ सकती है। गेवरा खदान का भी एसईसीएल विस्तार करने जा रहा है। यदि चौतरफा जंगल कटे, खदान खुले तो धर्मजयगढ़ जैसे किसी एक इलाके में सिमटकर हाथी कैसे रह पाएंगे और यहां के गांवों- शहरों में रहने वाले लोगों का क्या होगा?
खूशबू मिल जाती है, पेड़ नहीं मिलते
जिन वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में है उन्हें केवड़ा भी है। गर्मी के दिनों में पहले केवड़ा अपने आप उगे दिख जाते थे। इसे तोडऩा कुछ कठिन काम है। जगह-जगह कांटे चुभ सकते हैं, खून भी आ सकते हैं। पर उसकी खुशबू सब भुला देती है। इसे केतकी नाम से भी जाना जाता है। बहुत पुरानी फिल्म बसंत बहार में एक गीत पं. भीमसेन जोशी व मन्ना डे ने गाया था- केतकी, गुलाब, जूही चंपक बन फूले..।
केवड़े का इत्र सदियों से मशहूर है। किसी भी शरबत के साथ इसकी खुशबू मिल जाए तो हर मौसम में लोग तृप्त हो जाते हैं। फिर गर्मी की बात ही अलग है। पौराणिक कथाओं में इसे ब्रह्मा जी का एक सिर बताया गया है।
छत्तीसगढ़ में केवड़े की खेती के लिए अनुकूल जलवायु है। अब बहुत कम बाड़ी बगीचों में ये दिखाई देते हैं। बाजारों में इत्र और शरबत केवड़े के नाम से मिल रहे हैं, पर ज्यादातर में कृत्रिम सुगंध होती है।
यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने बिलासपुर से खींच कर सोशल मीडिया पर डाली है।
बंदा दीपक किंगरानी
ओटीटी प्लेटफार्म पर आई एक फिल्म ‘सिर्फ एक ही बंदा काफी है’ इन दिनों चर्चा में है। मनोज बाजपेयी ने वकील बंदे की भूमिका की है, जो तमाम अवरोधों, धमकियों, गवाहों और मददगारों की हत्या होने के बावजूद एक संत से बलात्कार का शिकार हुई नाबालिग के साथ खड़ा रहता है। तमाम प्रलोभनों के बावजूद वह डिगा नहीं और बलात्कारी संत को सजा दिला कर ही दम लेता है। फिल्म के निर्माता ने शुरू में साफ किया है कि यह कोई सच्ची घटना नहीं है, पर फिल्म देखकर हर एक दर्शक समझ जाते हैं कि यह किस पर आधारित है।
फिल्म से जुड़ी एक और खास बात यह है इसकी कहानी और पटकथा भाटापारा के एक दीपक किंगरानी ने लिखी है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर इस फिल्म के हिट होने के बाद वे बॉलीवुड में चर्चा में आ गए हैं और उन्हें अब कई नए काम भी मिल रहे हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
उथल-पुथल के बीच सिंहदेव विदेश...
विधानसभा चुनाव के चलते प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारियों के प्रभार बदले जा सकते हैं। चर्चा है कि इस सिलसिले में पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से राय मांगी है। यह नहीं, प्रदेश प्रभारी शैलजा, पदाधिकारियों के नामों को लेकर सीएम, और अन्य प्रमुख नेताओं से चर्चा भी कर सकती हैं।
दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस में 90 सचिवों की नियुक्ति के लिए नाम भी मांगे गए थे। मगर सूची जारी नहीं हो पाई है। कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के विदेश प्रवास से लौटने के बाद उनसे भी चर्चा होगी, और इसके बाद बदलाव पर मुहर लग सकती है।
सुनामी की तरह अफसर इधर-उधर
कांग्रेस सरकार के चार साल के कार्यकाल में तेज रफ्तार से ट्रांसफर पोस्टिंग हुई है। मंत्रालय में कुछ विभागों में हर छह महीने में सचिव और विभागाध्यक्ष बदले गए हैं। इनमें स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा, और गृह व कृषि विभाग शामिल हैं। यहां सबसे ज्यादा बदलाव हुआ है। स्वास्थ्य, और उच्च शिक्षा में तो चार साल में 8 सचिव हो चुके हैं।
सरकार बदली, तो सुब्रत साहू स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख थे। इसके बाद निहारिका बारिक सिंह की पोस्टिंग हुई। निहारिका के बाद डॉ आलोक शुक्ला, और फिर क्रमश: डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी, रेणु पिल्ले, और फिर आर प्रसन्ना को स्वास्थ्य विभाग का प्रभार दिया गया। दो महीना पहले रेणु पिल्ले की स्वास्थ्य विभाग में वापसी हुई, और प्रसन्ना सचिव बने रहे। रेणु पिल्ले एसीएस हैं। मगर अब प्रसन्ना को स्वास्थ्य विभाग से हटा दिया गया है। उनकी जगह सिद्धार्थ कोमल परदेशी की सचिव के रूप में पोस्टिंग हुई है।
इसी तरह उच्च शिक्षा विभाग में सिद्धार्थ कोमल परदेशी आठवें सचिव हैं। सरकार बनी तो एसके जायसवाल विभाग प्रमुख थे। वो दो बार विभाग प्रमुख रहे। इसी बीच रेणु पिल्ले भी दो बार उच्च शिक्षा की प्रमुख रह चुकी हैं। रेणु पिल्ले के बाद अलरमेल मंगाई डी उच्च शिक्षा सचिव बनी। अलरमेल मंगाई डी के बाद धनंजय देवांगन उच्च शिक्षा में आए। उनके हटने के बाद भुवनेश यादव उच्च शिक्षा सचिव बने। अब भुवनेश की जगह परदेशी को सचिव का दायित्व सौंपा गया है।
यही नहीं, गृह विभाग में भी आधा दर्जन प्रमुख हो चुके हैं। कांग्रेस सरकार आई, तो अमिताभ जैन एसीएस (गृह) थे। इसके बाद सीके खेतान गृह विभाग के मुखिया बने। उनके हटने के बाद आरपी मंडल, और फिर सुब्रत साहू गृह विभाग के प्रमुख बने। सुब्रत दो बार गृह विभाग के प्रमुख रहे हैं। और वर्तमान में मनोज पिंगुआ गृह विभाग के प्रमुख हैं। खास बात यह है कि गृह सचिव के पद पर अरूण देव पिछले 10 साल से बने हुए हैं। उन्हें नहीं हटाया गया है। अरुण देव गौतम एडीजी रैंक के हैं, और सचिव की जगह उन्हें गृह विभाग के ओएसडी के रूप में पदस्थ किया गया।
कृषि विभाग में भी काफी कुछ बदलाव हो चुका है। कृषि विभाग में कांग्रेस सरकार के आने के बाद सुनील कुजूर को प्रमुख बनाया गया था। वो जब सीएस बने, तो केडीपी राव कृषि विभाग के प्रमुख हुए। राव के रिटायरमेंट के बाद मनिंदर कौर द्विवेदी को कमान सौंपी गई। मनिंदर के बाद डॉ. कमलप्रीत सिंह कृषि सचिव बने। कृषि संचालक तो हर छह महीने में बदले गए हैं।
ऐसे पहुंचे थे सीएम बघेल विधानसभा
दुर्ग में हुए कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन में छत्तीसगढ़ की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले स्वर्गीय वासुदेव चंद्राकर का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत सहित मंच पर बैठे अन्य नेताओं ने स्मरण किया। सीएम बघेल उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। एक समय चंद्राकर के एक फैसले से यह स्पष्ट भी हो गया था कि बघेल उनके सबसे प्रिय शिष्यों में से एक हैं।
सन् 1993, मध्यप्रदेश के जमाने में जिला कांग्रेस कमेटी दुर्ग के अध्यक्ष होने के नाते बी फॉर्म चंद्राकर के पास आया। इसमें अधिकृत प्रत्याशियों का नाम भरकर जिला निर्वाचन अधिकारी के पास जमा करना होता है। तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष दिग्विजय सिंह ने चंद्राकर के पास बी फॉर्म भेज दिया था। हाईकमान ने बेमेतरा से चैतराम वर्मा, पाटन से तब के कृषि उप मंत्री अनंतराम वर्मा और भिलाई से रवि आर्या का नाम तय किया था। चंद्राकर ने बी फॉर्म में ये नाम बदल दिए। भिलाई से बदरुद्दीन कुरैशी, पाटन से भूपेश बघेल और बेमेतरा से चेतन वर्मा को अधिकृत प्रत्याशी बना दिया गया। बघेल और बदरुद्दीन कुरैशी अपनी-अपनी सीटों से जीत गए लेकिन चेतन वर्मा पराजित हो गए। बी फॉर्म में नाम बदले जाने के और भी अनेक किस्से हैं, मगर उनकी चर्चा फिर कभी।
चंद्राकर ने पार्टी लाइन से बाहर जाकर बघेल को आगे नहीं किया होता तो आज छत्तीसगढ़ में राजनीति का परिदृश्य अलग ही होता। मुख्यमंत्री बघेल ने उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुए लिखा था कि मेरी राजनीतिक यात्रा का हर पड़ाव दाऊ के सिखाए ककहरे को समर्पित है।
बात कहां से कहां चली गई
बेमेतरा के एक पुलिस हवलदार संदीप साहू का तबादला किया गया तो उन्होंने राज्यपाल को चि_ी लिखकर आत्मदाह करने की चेतावनी दे दी। विधायक आशीष छाबड़ा पर प्रताडि़त करने का आरोप लगाया और कहा कि सट्टा पकडऩे के कारण उनकी शिकायत पर तबादले की कार्रवाई की गई है। विधायक ने आरोप को गलत बताया और कहा कि इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। आरोप प्रत्यारोप हैं, जांच होनी चाहिए पर भाजपा ने इसे किस तरह से लिया? प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने वीडियो जारी कर कहा है कि साहू समाज के ही भुवनेश्वर की इसी बेमेतरा में निर्मम हत्या कर दी गई थी। कांग्रेस के विधायक जब चाहे किसी को थप्पड़ मार देते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गाली देते हैं। क्या कांग्रेस ने तेली समाज को अपमानित करने का ठेका ले रखा है?
साव खुद भी इसी समाज से हैं। उनका गुस्सा इसी कारण है ऐसा नहीं लगता। इसका मकसद इस समाज के वोटों को भाजपा के लिए और पक्का करना हो सकता है।
धूप में 35 किलोमीटर सफर
हरेराम नाम का यह ग्रामीण जगदलपुर से 35 किलोमीटर दूर ग्राम पीठापुर का रहने वाला है। अपनी पत्नी के साथ चलकर कलेक्ट्रेट पहुंचा है। उसे प्रधानमंत्री आवास योजना की पहली किश्त मिली। जब उसने नींव की खुदाई शुरू की तो गांव के दबंगों ने आकर काम रुकवा दिया और कहा कि यह उसकी जमीन नहीं है। कड़ी धूप में वह कलेक्टर से यह पूछने पहुंचा है कि अब तक जो जमीन उसकी थी, उसे अब दबंग अपना बता रहे हैं तो वे ही बताएं कि अपना मकान वह कहां पर बनाए।
लिस्ट अभी बाकी है
सरकार ने 23 आईएएस अफसरों का फेरबदल किया है। चुनाव आचार संहिता लगने में चार महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में इस फेरबदल को अंतिम माना जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं है। अभी कम से कम प्रशासनिक फेरबदल की एक-दो और सूची आने की उम्मीद है।
आईएएस की वर्ष-2006 बैच की अफसर श्रुति सिंह होम कैडर यूपी से प्रतिनियुक्ति से वापस लौट आई है। उन्होंने जाइनिंग भी दे दी है, लेकिन उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है। श्रुति सिंह सचिव स्तर की अफसर है। वो गरियाबंद, और बेमेतरा कलेक्टर रह चुकी हैं। डायरेक्टर इंड्रस्टीज के पद पर काम कर चुकी हैं। ऐसे में उन्हें किसी विभाग का दायित्व सौंपा जा सकता है।
इसी तरह वित्त सचिव रह चुकीं अलरमेल मंगाई डी ने एक माह की छुट्टी और बढ़ा दी है। जुलाई में उनके लौटने के बाद उन्हें वित्त का फिर से दायित्व सौंपा जा सकता है। जिन्हें वर्तमान में अंकित आनंद संभाल रहे हैं।
बताते हैं कि दो सचिव स्तर की महिला अफसर आर संगीता, और शहला निगार भी अगले दो महीने में छुट्टी से लौटेंगी। उनके लौटने के बाद विभागों में बदलाव की गुंजाइश बनी है। चर्चा है कि एक अक्टूबर से पांच अक्टूबर के बीच विधानसभा चुनाव आचार संहिता लग सकती है। जानकारों का कहना है कि आचार संहिता लगने से पहले तक अफसरों के प्रभार बदलते रहेंगे।
प्रशासन के चार पिलर
सीनियर अफसरों की कमी के चलते सीएम सचिवालय के तीन अफसर एसीएस सुब्रत साहू, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, और अंकित आनंद, और डीडी सिंह पर पूरे प्रशासन की बागडोर है। चारों मिलकर एक दर्जन से अधिक अहम विभाग संभाल रहे हैं। एक तरह से उन्हें मंत्रालय की रीढ़ कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सुब्रत साहू के पास सीएम सचिवालय के साथ ही पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग, आईटी, चेयरमैन पर्यावरण संरक्षण मंडल, चेयरमैन रेल कॉरिडोर प्रोजेक्ट, और प्रशासन अकादमी के डीजी का दायित्व संभाल रहे हैं। सिद्धार्थ परदेशी के पास सीएम सचिवालय के अतिरिक्त उच्च शिक्षा, और स्वास्थ्य विभाग के अलावा विमानन का भी प्रभार है।
इसी तरह अंकित आनंद के पास सीएम सचिवालय के अलावा ऊर्जा, वित्त सचिव के साथ-साथ चेयरमैन पॉवर कंपनी का प्रभार भी है। इससे परे रिटायरमेंट के बाद संविदा पर नियुक्ति के बाद भी डीडी सिंह अहम बने हुए हैं। उनके पास सामान्य प्रशासन विभाग, और आदिवासी योजना का प्रभार संभाल रहे हैं।
चांपा की वह रेल दुर्घटना
रेल दुर्घटनाओं के बाद जितनी तेजी से राहत कार्य और पटरियों की मरम्मत का काम शुरू होता है, उसी रफ्तार से दुर्घटना की जांच की घोषणा भी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में पिछले दशकों में तीन बड़ी रेल दुर्घटनाएं हुई हैं। 14 सितंबर 1997 को अहमदाबाद हावड़ा एक्सप्रेस की 5 बोगियां चांपा के पास हसदेव नदी में गिर गई थी, जिसमें 88 यात्री मारे गए और 350 घायल हो गए थे। राजनांदगांव में 23 फरवरी 1985 को दो एसी डिब्बों में आग लग गई थी जिसमें 50 यात्रियों की मौत हो गई थी। रायगढ़ के पास 5 सितंबर 1992 को किरोड़ीमल नगर स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी को पीछे से एक यात्री ट्रेन ने टक्कर मारी थी, जिसमें 41 लोगों की जान चली गई थी।
हसदेव नदी पर अहमदाबाद एक्सप्रेस के गिरने की जांच शुरू की गई तो यह बात सामने आई थी कि पुल पर पटरियों का मेंटेनेंस वर्क चल रहा था। पटरी पर न तो डेटोनेटर-संकेतक लगाया गया था, न इसकी जानकारी स्टेशन मास्टर, गार्ड या ट्रेन ड्राइवर को थी। पटरी पर पूरी रफ्तार से गुजरी हसदेव एक्सप्रेस नदी में गिर गई। ट्रैक पर हो रही मरम्मत की जानकारी रेलवे लोको पायलट, स्टेशन मास्टर और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को होनी चाहिए थी ताकि सावधानी से किसी यात्री ट्रेन को वहां से गुजारा जाए। बड़े अफसरों की लापरवाही साफ दिख रही थी, मगर इस मामले में गिरफ्तारी पीडब्ल्यूआई के एक कर्मचारी अब्दुल खालिक की हुई। उसके खिलाफ आईपीसी और रेलवे एक्ट की कई धाराएं लगी। गैंगमैन तो घटना के तुरंत बाद फरार हो गया था। जांजगीर पुलिस ने 16 साल बाद सन् 2014 में उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। तब उसकी आयु 75 साल हो चुकी थी। इन 16 सालों तक मुकदमा चल ही रहा था। तब यह भी पता किया गया कि जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। मालूम हुआ कि डीआरएम, एडीआरएम और अधिकारियों की जवाबदेही पर एक जांच कमेटी बनी थी, जिसकी कोई रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है।
सभी बड़ी रेल दुर्घटनाओं की जांच की पहली जिम्मेदारी कमीशन ऑफ रेलवे सेफ्टी यानी सीआरएस की होती है। इसमें रेलवे के ही अधिकारी होते हैं लेकिन जांच में निष्पक्षता रहे इसके लिए इन्हें रेलवे डेपुटेशन पर दूसरे मंत्रालयों एवियेशन, पेट्रोलियम, डिफेंस आदि में रखता है। दुर्घटना के तुरंत बाद उन्हें मौके पर पहुंचकर जांच शुरू करनी पड़ती है। इंडियन रेलवे की वेबसाइट पर सीआरएस का लिंक दिया हुआ है। उसकी पेज पर जाने के बाद इंक्वायरी रिपोर्ट पढऩे के लिए भी क्लिक करने कहा जाता है लेकिन उसके सारे कॉलम खाली हैं। एक भी जांच रिपोर्ट और कार्रवाई का ब्यौरा नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि दुर्घटना चाहे बड़ी हो या छोटी रेलवे के अफसरों को बचा लिया जाता है। बालासोर रेल दुर्घटना के बाद से रेल मंत्री लगातार कह रहे हैं कि इसमें साजिश है। इस साजिश की जांच सीबीआई करेगी। सीबीआई जांच की घोषणा का मतलब यह है कि जानबूझकर किसी ने अपराध किया है। रेलवे ने अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से निभाई।
एक-एक ऐसी रेल दुर्घटना अनेक परिवारों को उजाड़ देता है। घायलों की भी शेष जिंदगी अभिशप्त हो जाती है। पर लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा क्या मिली, इसका कुछ पता नहीं चलता।
मनरेगा मजदूर तक जी 20
जी20 सम्मेलन का नेतृत्व करने का बारी-बारी मौका इससे जुड़े देशों को मिलता है। इस बार यह अवसर भारत को मिला है, जिसे मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करने में कोई कमी नहीं बरती जा रही है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को महान बनाने का माध्यम भी बना हुआ है। गांवों में 1 जून से 15 दिन का जी 20 जनभागीदारी कार्यक्रम चल रहा है। ऐसे में महात्मा गांधी नरेगा के तहत काम कर रही बिल्हा इस मजदूर महिला के हाथ में जी20 की तख्ती देखकर अचरज नहीं होना चाहिए।
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एक और अफसर घेरे में...
खबर है कि एक और आईएएस अफसर ईडी की जांच के घेरे में आ गए हैं। कहा जा रहा है कि कोल परिवहन, और शराब केस में अफसर से सोमवार को करीब चार घंटे पूछताछ हुई है। पहले अफसर प्रदेश से बाहर थे इसलिए पूछताछ नहीं हुई थी। मगर लौटने के बाद उन्हें समंस जारी किया गया। इसके बाद उन्होंने ईडी दफ्तर में उपस्थिति दर्ज कराई।
अफसर की कोल परिवहन और शराब केस से सीधे कोई ताल्लुक है या नहीं, यह तो साफ नहीं हो पाया है। मगर जिस जिले के वो मुखिया थे वहां कोल परिवहन का लंबा-चौड़ा काम है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि कोल परिवहन केस में ही उनसे पूछताछ हुई है। इससे पहले कोल केस को लेकर ईडी ने पूर्व कलेक्टर केडी कुंजाम के यहां छापेमारी कर चुकी है।
कुंजाम वर्ष-2012-13 में डिप्टी सेक्रेटरी माइनिंग के पद पर थे। वो बीजापुर कलेक्टर भी रहे, लेकिन उनका पूरा कार्यकाल नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव कराने में निकल गया। उन्हें अब तक समझ नहीं आ रहा है कि उनके यहां छापा क्यों डाला गया है। बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके यहां छापा तो डाला, लेकिन क्या मिला यह ईडी अब तक बता पाई है। हल्ला है कि ईडी एक पूरक चालान भी पेश कर सकती है। इसमें सारा ब्योरा होने की संभावना जताई जा रही है। देखना है कि आगे क्या होता है।
कमजोर विधायकों को चेतावनी
खबर है कि कांग्रेस विधानसभा टिकट के लायक दावेदारों को पहले से संकेत दे देगी ताकि वो चुनाव तैयारियों में लग जाए। सीएम भूपेश बघेल लगातार सर्वे करा रहे हैं, और जिन विधायकों का परफॉर्मेंस ठीक नहीं हैं, उन्हें वस्तु स्थिति की जानकारी भी दे रहे हैं ताकि वो समय रहते स्थिति में सुधार कर सके।
हल्ला है कि 30 से अधिक विधायकों के परफॉर्मेंस को कमजोर माना गया है। यह भी कहा जा रहा है कि कमजोर परफॉर्मेंस वाले विधायकों की जगह नए चेहरे को आगे करने से फायदा भी हो सकता है। ऐसे में कई विधायकों के क्षेत्र में नए दावेदार सक्रिय हो गए हैं। रायपुर संभाग के विशेषकर महासमुंद, और बलौदाबाजार-भाटापारा जिले की सीटों पर नए लोग ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। बाकी जिलों में भी यही स्थिति बन सकती है। देखना है आगे क्या होता है। कम से कम एक मंत्री को मुख्यमंत्री ने खबर भिजवा दी है कि वे अपनी सीट बदल लें, जहां हैं, वहाँ दुबारा नहीं जीतने वाले।
कांग्रेस सांसदों की सीटों पर केंद्रीय मंत्री
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह आज से 4 दिनों के बस्तर दौरे पर हैं। पिछले साल जुलाई महीने में में कोरबा प्रवास पर से और वहां भी 4 दिन रुके। छत्तीसगढ़ में कोरबा और बस्तर दो सीटें ही ऐसी हैं, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत हासिल हो पाई थी। कोरबा प्रवास के दौरान मंत्री गिरिराज सिंह ने केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना पर राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया था। इसका तब असर यह हुआ कि राज्य में इस विभाग को मंत्री टी एस सिंहदेव ने खुद को अलग कर लिया। अब देखना है कि केंद्रीय मंत्री बस्तर में 4 दिन तक रहकर कितनी ऊर्जा अपने पार्टी में भर जाते हैं। उनकी एक आमसभा भी इस दौरान है। भाजपा का महा जनसंपर्क अभियान 30 जून तक चलेगा। दिखाई दे रहा है कि विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव की भी तैयारी कर रही है।
दीवार बनते-बनते ढह गई
बिहार में एक निर्माणाधीन पुल के ढहने पर वहां सरकार की बड़ी आलोचना हो रही है। गुजरात के मोरबी पुल हादसे की भी लगे हाथ चर्चा हो रही है। पर छत्तीसगढ़ में दीवार निर्माण कार्य चलने के दौरान ही थोड़े से आंधी पानी से ढह गया, इसकी बात कोई कर ही नहीं रहा। विपक्ष में रहते हुए मुद्दा उठाने का काम भाजपा का है। वह भी चुप है।
दरअसल, सरकार ने आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें अलग-अलग उत्पादन से जोडऩे का कार्यक्रम चला रखा है। दो करोड़ रुपये की लागत से आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक घरघोड़ा में इसी उद्देश्य से दो करोड़ रुपये के मुनगा प्रोसेसिंग यूनिट की योजना बनी। इसके लिए बनाई जा रही बाउंड्रीवाल जरा सी आंधी पानी आया, ढह गई। पता चला कि दो करोड़ रुपये में से 87 करोड़ रुपये तो केवल इसी दीवार के लिए मंजूर है। इसका टेंडर सीधे रायपुर से हुआ था और यहां काम कैसा चल रहा है देखने के लिए कोई सरकारी इंजीनियर तैनात नहीं था। चूंकि दीवार गिरने के बाद सबको दिख रही है, इसकी जांच पहले पीडब्ल्यूडी से, फिर एडीएम से कराने का निर्णय लिया गया। जांच रिपोर्ट कब आएगी, दोषी कौन है-क्या उसी ठेकेदार से आगे काम कराया जाएगा, या नया टेंडर निकलेगा, रिकवरी होगी, रायपुर से टेंडर निकाला क्यों गया?- सब बाद में पता चलेगा। फिलहाल तो एक बार फिर सामने आ गया कि आदिवासियों के विकास के नाम पर आवंटित बजट की किस पैमाने पर बंदरबांट होती है।
विलुप्त होते सांप की मौजूदगी
गरियाबंद जिले का उदंती सीतानदी अभयारण्य वन्यजीवों की विविध प्रजातियों से भरा-पूरा है। इसी सप्ताह यहां दुर्लभ प्रजाति का सर्प बम्बू पिट वाइपर देखा गया। इसका रंग पेड़ों के रंग से मिल जाता है इसलिए आम तौर पर कम दिखते हैं। ज्यादा जहरीला नहीं होता। इसकी तस्वीर नोवा नेचर सोसाइटी के लिए काम करने वाले मैनपुर के युवक ओमप्रकाश नागेश ने खींची है।
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असरी के बाद राजनीति, मिली-जुली...
विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही कई प्रशासनिक, और पुलिस अफसरों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरे मार रही हंै। आईएएस नीलकंठ टेकाम तो वीआरएस के लिए आवेदन दे चुके हंै। कुछ और अफसर चुनाव लडऩे के लिए नौकरी छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि राजनीति में आने के बाद सबको दलों में सम्मान मिल पाता है। पूर्व कलेक्टर आरपीएस त्यागी कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ गए। त्यागी की कांग्रेस में पूछपरख नहीं रह गई थी। कुछ इसी तरह की स्थिति पूर्व डीजी राजीव श्रीवास्तव, शमशेर खान समेत दर्जनभर रिटायर्ड पुलिस अफसरों के साथ भी बन गई थी। ये सभी पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपामें शामिल हो गए थे लेकिन पार्टी को विधानसभा चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा। चुनाव नतीजे आने के महीने भर बाद सभी ने एक साथ राजनीति से ही तौबा कर लिया।
हालांकि कई अफसर सफल भी हैं। पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी भले ही चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी के भीतर उन्हें महत्व मिल रहा है। गणेशशंकर मिश्रा भी भाजपा संगठन में पद पा गए हैं। पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी तो चुनाव विधानसभा चुनाव जीतकर संसदीय सचिव का दायित्व संभाल रहे हैं। पूर्व एसीएस सरजियस मिंज को भले ही रायगढ़ लोकसभा से टिकट नहीं मिली, लेकिन सरकार ने वित्त आयोग के चेयरमैन पद पर बिठाया है। अलबत्ता, पूर्व आईएएस जीएस धनंजय, ,पूर्व सहकारिता अफसर पीआर नाईक, सुखदेव कुरैठी, पूर्व आईएएस आरसी पैकरा भाग्यशाली नहीं रहे। उनका राजनीतिक जीवन थोड़े समय चल पाया।
जुनेजा का टीना फैक्टर
वैसे तो डीजीपी अशोक जुनेजा इस महीने की 30 तारीख को रिटायर हो जाएंगे। बावजूद इसके डीजीपी के पद पर बने रह सकते हैं। केन्द्र सरकार ने डीजीपी, सीबीआई डायरेक्टर, और केन्द्रीय गृह सचिव को न्यूनतम दो साल तक पद पर बनाए रखने के लिए कानून बना रखा है। हालांकि सरकार के पास विकल्प है कि वो रिटायरमेंट के बाद डीजीपी बदल सकती है। मगर जुनेजा के मामले में फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
जुनेजा के ठीक नीचे 90 बैच के अफसर राजेश मिश्रा स्पेशल डीजी हैं, लेकिन उनके पास कोई महत्वपूर्ण दायित्व नहीं है। मिश्रा करीब सालभर पहले बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद यहां आए थे। वो रायगढ़, दुर्ग एसएसपी रह चुके हैं। सरगुजा आईजी रह चुके हैं, लेकिन सरकार के रणनीतिकारों की नजरें उन पर इनायत नहीं हुई है। इसके बाद अरूण देव गौतम, और पवन देव का नंबर आता है। ये अभी एडीजी ही हैं। ऐसे में सरकार के पास विकल्प सीमित है, और इसका फायदा जुनेजा को होते दिख रहा है। राजनीति में कहा जाता है, टीना फैक्टर, देयर इज नो अल्टरनेटिव...
सुलह तो होनी ही है, फिर देर क्यों?
प्रदेशभर के पटवारी पिछले 15 मई से हड़ताल पर हैं। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच संवाद की जो कमी दिख रही है, उससे ऐसा नहीं लगता कि आंदोलन जल्दी खत्म होगा। राजस्व सचिव एनएन एक्का का दावा है कि उन्हें चर्चा के लिए बुलाया गया लेकिन नहीं आए। वह काम ही नहीं करना चाहते। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दूसरी तरफ पटवारी संगठन के नेताओं कहना है कि जब तक शासन की ओर से कोई बुलावा नहीं आएगा, हम मिलने नहीं जाएंगे। 7 जून यानी कल से उन्होंने आंदोलन और तेज करने की चेतावनी भी दी है। पटवारियों की मांगें यदि अनुचित हैं तो उन्हें केवल चेतावनी क्यों दी जा रही है, जो दिए हुए भी एक सप्ताह से ज्यादा हो चुके।
आंदोलन का असर अब गहराता जा रहा है। बेरोजगारों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निवास, जाति, आय प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ रही है, जो नहीं बन रहे हैं। सरकार को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। रजिस्ट्री ठप है। नामांतरण, संशोधन, रिकॉर्ड दुरुस्त करने के लिए समय-समय पर चलने वाले शिविर, अभियान बहुत पीछे चले गए। पटवारियों का कहना है कि तीन साल पहले राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करवाया था, लेकिन कोई मांग पूरी नहीं हुई।
चाहे बस्तर के आंदोलन हों, संविदा कर्मचारियों का हो, मनरेगा कर्मचारियों या शिक्षा कर्मियों का ही क्यों ना हो। सरकार शायद आंदोलनकारियों के थक जाने तक इंतजार में होती है। पटवारी हड़ताल किसी न किसी दिन समझौते के नतीजे तक पहुंचकर खत्म हो जानी है, कुछ मांगें मानी जाएगीं, कुछ नहीं। अनुशासन की कार्रवाई प्राय: समझौते में वापस भी ले ली जाती है। पूरा वेतन भी अक्सर मिल जाता है। मगर इस बीच आम लोगों को तकलीफ हो रही है। लोग भटक रहे हैं और राजस्व दफ्तरों में सन्नाटा फैला है।
अकेला बाघ और सैकड़ों सैलानी
राजस्थान का रणथंभौर टाइगर रिजर्व विश्व पर्यटन के नक्शे में शामिल है। कुछ दिनों के बाद बारिश के मौसम में यह टाइगर रिजर्व भी बाकी अभयारण्यों की तरह अक्टूबर तक के लिए बंद कर दिया जाएगा। छत्तीसगढ़ से वहां घूमने गए एक पर्यटक ने वीडियो शेयर की है। वहां इन दिनों इतने पर्यटक उमड़ रहे हैं कि टाइगर को देखने के लिए सफारी गाडिय़ों की कतार लगी हुई है। सामने एक टाइगर चल रहा है, पीछे 100 से ज्यादा लोग उसके पीछे-पीछे गाडिय़ों में। छत्तीसगढ़ के सैलानी ने सवाल किया है कि क्या ऐसे में बाघ सुकून महसूस कर रहा होगा। सहमा सा दिख रहा है पर मूड बदल भी सकता है और पर्यटक मुश्किल में पड़ सकते हैं। पर्यटकों की संख्या कम से कम बाघ वाले ठिकाने के लिए तो सीमित होनी चाहिए।(rajpathjanpath@gmail.com)