राजपथ - जनपथ
ग़म साझा किया तो आंसू बह निकले
शहर के एक नामी चिकित्सक ने एक वाट्सऐप ग्रुप में मजकिया वीडियो पोस्ट किया। वीडियो में यह दिखाया गया कि एक महिला चिकित्सक अपनी समस्या लेकर गेरूवा वस्त्रधारी बाबा के पास पहुंची। बाबाजी ने पर्चा निकाला, और पर्चा पढ?र बताया कि वो (महिला) अस्पताल संचालक हैं। अस्पताल ठीक से नहीं चल रहा है। 54 तरह की लाइसेंस लेना पड़ता है। हर तीसरे दिन लाइसेंस का रिनीवल करना होता है। कमाई कम है, और खर्चा ज्यादा है।
बाबा ने नसीहत दी कि उन्हें तत्काल अस्पताल बंद कर देना चाहिए, और आगे कहा कि आप दोसा अच्छा बनाती है। आपको तुरंत दोसा सेंटर शुरू कर देना चाहिए। बाबाजी ने बताया कि उनका खुद का 50 बेड का अस्पताल था। जिसे उन्होंने बंद कर दिया है और अब खुद का आश्रम है। इसके बाद महिला चिकित्सक बाबाजी की बात मानकर वहां से चली गई। इस वीडियो पर गु्रप में प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई। एक-दो अस्पताल संचालकों ने वीडियो को कड़ुवा सच करार दिया। और जब ग्रुप के सदस्य, जो कि चिकित्सक नहीं थे, ने वीडियो को वास्तविकता से अलग बताया, तो सरकार के करीबी एक प्रतिष्ठित सर्जन ने लिखा कि आप 8-10 चिकित्सक मित्रों के पास चले जाइए, आपको वास्तविकता का पता चल जाएगा।
उन्होंने आगे लिखा कि डॉक्टरों की गर्दन पर नियम कायदों का सिकंजा हर वक्त कसा रहता है। आखिरी में शहर के सबसे बड़े निजी अस्पताल के संचालक ने अपने पोस्ट में लिखा कि मुश्किल है अस्पताल चलाना। या तो चोरी सीखो या बाबा बन जाओ, नहीं तो दूसरा धंधा देखो। चाहे कुछ भी हो, इस मजकिए वीडियो के बहाने प्रतिष्ठित अस्पताल संचालकों का दर्द छलक ही गया।
उम्मीद अभी बाक़ी है
आमतौर पर अफसरों का अच्छी पोस्टिंग की चाह रहती है। कई तो इसके लिए राजनेताओं और धर्मगुरूओं के दरवाजे पर मत्था टेकने से नहीं चूकते हैं। ऐसे ही ट्रांसफर-पोस्टिंग की सुगबुगाहट होते ही नए जिले के एक कलेक्टर बड़े जिले की चाह में पड़ोसी जिले में चल रहे एक धर्मगुरू के दरबार में चले गए।
धर्मगुरू इन दिनों मीडिया में काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं। कलेक्टर का पर्चा निकला या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन दरबार से लौटने के बाद उनका तबादला हो गया। नई पोस्टिंग भी मनमाफिक नहीं मानी जा रही है। खैर, सरकार में अफसरों की कमी है। ऐसे में अच्छी पोस्टिंग की उम्मीद अभी बाकी है।
बारिश के देवी-देवता
बस्तर का जनजीवन प्रकृति के साथ रचा-बसा होता है। ऋतुओं का स्वागत वे देवों की पूजा, नृत्य गीत और सामूहिक भोज से करते हैं। जेठ महीने के खत्म होने के बाद बस्तर में भी आषाढ़ आते ही बारिश की प्रतीक्षा होने लगी है। इस मौके पर भीमा-भीमिन का विवाह होता है। इन्हें वर्षा का देवी-देवता माना जाता है। ये प्रतिमा बस्तर के गांवों में इन दिनों देखी जा सकती है। अलग-अलग गांवों में तीन साल से पांच साल के अंतराल में यह विवाह समारोह होता है, जिसमें सैकड़ों ग्रामीण एकत्र होते हैं। साल लकड़ी से बनी दो प्रतिमाएं एक डेढ़ फीट की दूरी पर स्थापित होती हैं। दूल्हे-दुल्हन, देवी-देवता का हल्दी तेल से लेप किया है। दोनों के बीच मटके रखे होते हैं। पूजा अर्चना की जाती है। प्रार्थना की जाती है कि इस बार अच्छी बारिश हो, सबकी सेहत बनी रहे और गांव में किसी पर कोई विपदा न आए। फिर पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य गीत होता है। सामूहिक भोज किया जाता है। यह तस्वीर बकावंड ब्लॉक के बजावंड गांव की है।
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जोगी पार्टी टीआरएस की ओर
चर्चा है कि अमित जोगी, जनता कांग्रेस का के चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में विलय करने पर सहमत हो गए हैं। इस सिलसिले में अमित की तेलंगाना के सीएम, और टीआरएस के सीएम चंद्रशेखर राव के साथ बैठक भी हो चुकी है। राव टीआरएस का आधार बढ़ाकर राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता चाहते हैं।
तेलंगाना, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है, और कहा जा रहा है कि जनता कांग्रेस के विलय से उन्हें छत्तीसगढ़ में अपनी पार्टी का आधार बढ़ाने में मदद मिल सकती है। पिछले विधानसभा आम चुनाव में जनता कांग्रेस को करीब 13 फीसदी वोट हासिल हुए थे। तब पूर्व सीएम अजीत जोगी पार्टी के मुखिया थे। उनके गुजरने के बाद ज्यादातर पुराने साथी पार्टी छोड़ चुके हैं।
पांच विधायकों में अकेली डां रेणु जोगी रह गईं हैं। ऐसे में जनता कांग्रेस का आधार अब सिमट कर रह गया है। फिर भी कई लोगों का मानना है कि टीएसआर के बैनर तले अमित चुनाव लड़ाते हैं, तो दक्षिण बस्तर की तीन सीटों पर पार्टी काफी कुछ प्रभाव छोड़ सकती है। क्योंकि इन तीनों क्षेत्रों में रहने वाली आदिवासी आबादी तेलगुभाषा भी समझती हैं। बाकी इलाकों में टीआरएस के साधन -संसाधन का सहयोग रहेगा ही। ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ता आगे कैसे बढ़ता है, यह तो कुछ दिन बाद पता चलेगा।
बाक़ी तबादले
सीएस अमिताभ जैन के 7 जून को छुट्टी से लौटने के बाद छोटा-सा प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। इसमें कुछ सचिव और विशेष सचिव स्तर के अफसरों के साथ विभाग प्रमुखों को भी इधर से उधर किया जा सकता है।
चुनाव आयोग ने भी मैदानी इलाकों में चुनाव कार्य से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर भी निर्देश जारी किए हैं। इन सबको देखते हुए बदलाव हो सकता है। चर्चा है कि दो एसपी, और कलेक्टरों को भी बदला जाना है, लेकिन भेंट-मुलाकात कार्यक्रमों के चलते बदलाव नहीं हो पाया है।
चुनाव के पहले बढ़ता तीखापन
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने राष्ट्रीय रामायण मेला पर टिप्पणी देते हुए कांग्रेसियों की तुलना राक्षसों से की। कहा कि इनके पूरे 14000 सैनिक उसी तरह मारे जाएंगे जैसा अरण्य कांड में उल्लेख है। उन्होंने कांग्रेस पर कुछ आरोप लगाए और कहा कि मां का दूध पिया है तो इनकी जांच करवाएं। विपक्ष का काम आरोप लगाना होता है और सत्तारूढ़ दल का काम जांच कराने का। संसदीय सचिव रेखचंद जैन के अलावा किसी नेता की इस बयान पर प्रतिक्रिया नहीं आई है। शायद इसे वे गंभीर आरोप नहीं मान रहे हों या चंद्राकर को ही गंभीरता से नहीं ले रहे हों। पर एक बात है कि जैसे-जैसे चुनाव के दिन करीब आएंगे इस तरह के तीखे बयान आएंगे और यह भी लगेगा की भाषा की मर्यादा टूट रही है।
ट्रेनों की वंदे भारत स्पीड
उड़ीसा में हुई भयंकर रेल दुर्घटना को लेकर लोग बड़े हताश-निराश हैं। सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी है कि वही समय ठीक था जब लालटेन दिखाकर रेलगाड़ी आगे बढ़ाई जाती थी। आजकल 100 से ऊपर स्पीड में ट्रेन चलाने की जिद में पता नहीं कब आपका वंदे भारत हो जाए।
कांग्रेस सम्मेलन में पॉकेटमार
जगदलपुर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मेलन रखा गया। कुछ जेब कतरे जी भी घुस गए। अलग-अलग लोगों से करीब 10 हजार रुपए की पॉकेटमारी हो गई। भाजपा के सम्मेलनों में अमूमन बिना किसी पहचान की कोई नहीं घुस पाता है कांग्रेस कुछ उदार है। इसी का नुकसान उठाना पड़ा।
गर्मी में फले सीताफल
ये खूबसूरत सीताफल किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं, मगर जो मौसम की जानकारी रखते हैं उनके लिए चिंतित करने वाला है। यह फल ठंड के दिनों में दशहरा के आसपास दिखाई देते हैं लेकिन बैकुंठपुर, कोरिया की एक बाड़ी में ये भीषण गर्मी में भी फल गए। ध्यान होगा इस बार गर्मी में भी रुक रुक कर बारिश होती रही। मौसम में बदलाव देखने को मिला लेकिन इसका प्रकृति पर इतना अधिक असर होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था।
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मुहिम कामयाब
उदंती सीतानदी अभ्यारण्य इलाके में सालभर के भीतर तीसरी बार बेजा कब्जा हटाने के लिए शुक्रवार जोरदार अभियान चला। यह इलाका ओडिशा से सटा हुआ है, और वहां के कई लोग अवैध कटाई से लिप्त रहे हैं, उन्हें बेेदखल किया गया। दिलचस्प बात यह है कि वन अफसरों ने बेजा कब्जा हटाने के लिए गरियाबंद पुलिस से सहयोग मांगा था। कहा जा रहा है कि पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा देने से मना कर दिया। बावजूद इसके आईएफएस अफसर वरूण जैन ने खुद इसकी अगुवाई की, और अतिक्रमणकारियों के तगड़े विरोध के बाद भी 6 सौ हेक्टेयर जमीन खाली कराने में सफल रहे।
बताते हैं कि ये पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है। कुछ साल पहले यहां नक्सल हमले में एक डीएसपी समेत दर्जनभर पुलिस जवान शहीद हुए थे। ऐसे में वन कर्मियों के लिए अभियान जोखिम भरा भी था। अतिक्रमणकारियों ने वरूण जैन की गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ की। कई वनकर्मियों को चोटें भी आईं। इस सबके बाद भी अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने में वनकर्मी कामयाब भी रहे। जानकार बताते हैं कि सालों बाद इस तरह अतिक्रमण के खिलाफ वनअमले ने कार्रवाई की है। इससे पहले तक थोड़े विरोध पर ही अमला लौट आता था। कई बार तो जनप्रतिनिधि भी आड़े आ जाते थे। चर्चा यह भी है कि इस बार की कार्रवाई से पहले विभाग के उच्चाधिकारियों को भी विश्वास में नहीं लिया गया था। अभियान सफल हो गया।
कवच तो काम ही नहीं आया
यह तस्वीर 4 मार्च 2022 की है। आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत एक प्रणाली विकसित की गई जिसमें एक ट्रेन के इंजन पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और सामने से आ रही दूसरी ट्रेन पर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सवार हैं। दोनों ट्रेनों को टकरा जाना था लेकिन 380 मीटर पहले कवच प्रणाली के तहत दोनों ट्रेन आपस में टकराने से बच गईं। रेल मिनिस्टर ने ग्राफिक्स के जरिए एक वीडियो शेयर किया और बताया कि इंजीनियरिंग का छात्र होने के नाते इस प्रणाली को भारत में विकसित करने से उन्हें बड़ी खुशी हो रही है। इस परियोजना पर बताते हैं कि करीब 3 हजार करोड रुपए खर्च किए गए। उड़ीसा के बालासोर में हुई दर्दनाक और पिछले 30 सालों के भीतर सबसे बड़े रेल हादसे को लेकर आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि कवच प्रणाली कारगर है भी या नहीं।
पसीना आग के हवाले
हाथियों को लेकर वनांचलों में रहने वाले ग्रामीणों के बीच कितनी दहशत है इसका अंदाजा कटघोरा वन मंडल के केंदा रेंज के पचरा गांव में हुई घटना से लगाया जा सकता है। ग्रामीणों ने अपने खड़ी फसल पर आग लगा दी। इसके दो मकसद थे। एक तो आग की लपटों की वजह से हाथी नजदीक नहीं आएंगे दूसरा उनके घर भी सुरक्षित रहेंगे। यह बहुत समझने वाली बात है कि चार महीने मिट्टी में सन कर, खून पसीने के साथ उगाई हुई फसल को हाथियों के डर से ग्रामीण आग लगा रहे हैं। हाथियों से बचाव के लिए इसी अभयारण्य में कॉरिडोर बनाने की बात हुई थी मगर अब तक सब सिर्फ कागज में है।
पानी के लिए जद्दोजहद
यह चिरमिरी की महापौर कंचन जायसवाल का वार्ड है। सार्वजनिक पानी टंकी से पानी की सप्लाई चार दिन में एक बार होती है। जरूरतमंद लोगों को 400 मीटर नीचे उतर कर पानी लेना पड़ता है। कुछ मजदूरों के लिए यह व्यवसाय भी हो गया है, क्योंकि बड़े घरों के लोग उनसे अपने लिए पानी खरीदते हैं। यह एक उदाहरण है केंद्र सरकार की राज्य सरकार की मदद से चल रही हर घर में नल लगाने की योजना पर किस तरह से काम किया जा रहा है।
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वक्त बदल रहा है
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही अफसरशाही का रंग धीरे-धीरे बदलता दिख रहा है। अफसरों के प्रति कुछ जनप्रतिनिधियों का व्यवहार रूखा रहा है। पहले तो अफसर उनकी उल्टी-सीधी बातें खामोशी से सुन लिया करते थे लेकिन अब उन्हें जवाब मिलने लगा है।
ऐसे ही एक विधायक के व्यवहार को लेकर जिले के अफसर काफी परेशान रहे हैं। उनको लेकर यह प्रचारित है कि वो अफसरों से दबावपूर्वक हर काम करा लेते हैं। विधायक महोदय भी शासन-प्रशासन में अपनी पकड़ दिखाने के लिए अक्सर कहते सुने जा सकते हैं कि फलां एसपी को हटवा दिया। फलां कलेक्टर की पोस्टिंग भी मनमाफिक हुई है।
मगर पिछले दिनों विधायक महोदय उस वक्त झटका लगा कि जब जिले में पदस्थ नई महिला आईएएस को फोन लगाया, और अपनी आदत के मुताबिक कुछ काम के लिए कहा। विधायक का लहजा महिला अफसर को पसंद नहीं आया। उन्होंने न सिर्फ विधायक का काम करने से मना कर दिया बल्कि दोबारा फोन न करने की नसीहत दे दी। अब चुनाव नजदीक आ चुका है। ऐसे में हर किसी से शालीनता बरतने में समझदारी है।
नये आये लोगों से परेशानी
प्रदेश भाजपा ने तामझाम के साथ छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेता पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए अनुज शर्मा और राधेश्याम बारले व पार्षद अमर बंसल समेत कई को पार्टी में शामिल किया। मगर उनके आने से पार्टी के भीतर कई नेता असहज हैं। मसलन, अनुज को भाटापारा से टिकट का दावेदार माना जा रहा है। वहां से शिवरतन शर्मा तीसरी बार के विधायक हैं।
बताते हैं कि वर्ष-2013 के चुनाव में अनुज को प्रत्याशी बनाने की चर्चा थी। मगर अंतिम समय में बृजमोहन अग्रवाल के प्रयासों से तत्कालीन प्रदेश प्रभारी जेपी नड्डा ने लगातार दो चुनाव हार चुके शिवरतन को फिर से प्रत्याशी बनवा दिया। इसके बाद शिवरतन चुनाव जीत गए। मगर पिछला चुनाव ले-देकर त्रिकोणीय मुकाबले में जीते थे। ऐसे अब जब अनुज आ गए हैं, तो उनके समर्थक परेशान बताए जाते हैं।
यही नहीं, पार्षद अमर बंसल को रोकने की भी काफी कोशिश हुई थी। उन्होंने चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी ओंकार बैस को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था। चर्चा है कि उनके पार्टी में शामिल न करने के लिए कुछ नेताओं ने सीधे प्रभारी ओम माथुर से बात की थी, लेकिन उन्होंने शिकायत करने वाले नेताओं को अनसुना कर दिया। दरअसल, अमर बंसल को पार्टी में शामिल करने के लिए आरएसएस ने पैरवी की थी। इसी तरह रिटायर्ड आईएसएस आरपीएस त्यागी का विरोध तो नहीं हुआ लेकिन यह जरूर कहा गया कि वो कांग्रेस में रहकर भाजपा सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करते रहे हैं। कुछ भी हो, एक साथ नेताओं के आने से माहौल बना है।
खास दाम वाले आम
इन दिनों बाजार में आम की रौनक है। तमाम वेरायटी उपलब्ध हैं। 30 रुपये से लेकर 140 रुपये किलो तक। पर यह आम खास है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी इलाके में हापुस आम की भरपूर पैदावार होती है। अपने स्वाद और सुगंध के लिए इसकी देशभर में मांग है। इन दिनों बाजार में आकर्षक पैकिंग के साथ यह आम भी उपलब्ध है। कीमत दो किलो वजन वाले डिब्बे का केवल 800 रुपये है।
आप से निपटने का कांग्रेस को मौका
अफसरों के तबादले पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को शून्य करने के लिए लाए गए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन लेने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष के नेताओं से लगातार संपर्क में हैं। कांग्रेस यह तो चाहती है कि दिल्ली पर केंद्र की ओर से मनोनित उप –राज्यपाल का हस्तक्षेप कम हो और निर्वाचित मुख्यमंत्री को अधिक अधिकार मिले लेकिन आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की ताकत बढ़े यह उसे मंजूर नहीं है। छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल है, जहां आप ने सभी 90 सीटों पर फिर विधानसभा चुनाव लडऩे की योजना बनाई है। इसकी गंभीर तैयारी भी दिखाई दे रही है। अगले कुछ दिनों में केजरीवाल की रैली भी होने वाली है। जाहिर है यहां सत्ता में कांग्रेस है तो उसने कांग्रेस के ही खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इधर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है कि उनके 31 सदस्य राज्यसभा में केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ वोट करेंगे या नहीं। वह यह देख रही है कि राज्यों में पार्टी के नेता क्या कहते हैं। दिल्ली और पंजाब की कांग्रेस कमेटियों ने केजरीवाल के प्रस्ताव का विरोध किया है। मगर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अब तक अपना का रुख अब तक साफ नहीं किया है। हो सकता है यहां उन्हें लग रहा हो कि आप या तो बेअसर रहेगी या फिर भाजपा को ही नुकसान पहुंचाएगी।
किस दिशा में जाएगी जोगी की पार्टी?
पूर्व विधायक और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष अमित जोगी ने कार्यकर्ताओं को भावुक चि_ी लिखकर सन् 2023 के चुनाव में पार्टी की भूमिका के लिए राय मांगी है। स्व. अजीत जोगी के बाद भी परिवार के साथ जुड़े रहने के लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं का आभार माना है और कहा है कि जो भी निर्णय होगा, आपका भविष्य उज्ज्वल रहेगा। एक बात उन्होंने यह भी लिखी है कि दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला करने के लिए बड़े संसाधन की जरूरत पड़ेगी। और भी कई बातें हैं।
करीब एक माह पहले भी उन्होंने एक बयान दिया था कि वे अपनी अस्वस्थ मां विधायक डॉ. रेणु जोगी को पूरा समय देना चाहते हैं, तब लगा था कि वे पार्टी का काम छोड़ देंगे। बाद में साफ किया कि पार्टी की जिम्मेदारी तो उठाते रहेंगे। इसके बाद पार्टी का सदस्यता अभियान भी कई विधानसभा क्षेत्रों में चला। इसके पहले वे जनवरी महीने में छह सात विधानसभा क्षेत्रों को कव्हर करते हुए पदयात्रा भी कर चुके हैं।
उनसे जुड़े तमाम दिग्गज नेता जो पार्टी के संस्थापक थे वे भी अब उनके साथ नहीं हैं। विधायक धर्मजीत सिंह बर्खास्त हैं। बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा पार्टी से लगभग अलग हो चुके हैं। कुल मिलाकर अमित जोगी अकेले दिखाई दे रहे हैं। डॉ. रेणु जोगी अपनी उम्र और स्वास्थ्य की वजह से अधिक योगदान पार्टी में दे नहीं पा रही हैं। अमित जोगी का यह पत्र पार्टी का विलय किसी और दल में करने के लिए कार्यकर्ताओं को मानसिक रूप से तैयार करने का प्रयास लग रहा है।
कांग्रेस का एक खेमा डॉ. रेणु जोगी की वजह से उन्हें पार्टी में लाना चाहते हैं, पर एक धड़ा विरोध कर रहा है। भाजपा की ओर से भी कोई उत्सुक नहीं दिखाई दे रहा है। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने जोगी कांग्रेस और भाजपा के बीच साठगांठ की हवा बनाई थी। उसे इसका काफी नुकसान हुआ। मरवाही उप-चुनाव में भाजपा को समर्थन मिला था लेकिन चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं हुआ। बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन पिछले लोकसभा चुनाव में ही समाप्त हो गया था, जब बसपा ने छजकां से पूछे बिना अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। अब और कुछ छोटे दल बच जाते हैं। सर्व आदिवासी समाज जोगी परिवार को आदिवासी नहीं मानता। उन्हें साथ लेने से विवाद खड़ा हो जाएगा। आम आदमी पार्टी का रुख भी साफ नहीं है। दल से जुड़े लोग बताते हैं कि हमारे बीच यह सवाल आया ही नहीं है। ये सब आकलन उस स्थिति में है जब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ किसी दल में अपने विलय के लिए तैयार हो। असली तस्वीर एक सप्ताह बाद साफ होगी, जब कार्यकर्ता अपनी राय जाहिर कर चुके होंगे।
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अनुज शर्मा को भाजपा में लेने का मतलब?
कांग्रेस सरकार की प्राथमिकता में नरवा, गुरुवा घुरवा बारी जैसी योजनाएं शामिल हैं। लोक त्यौहारों पर अवकाश दिया गया, सरकारी आयोजन होने लगे। बासी बोरे खाने को भी उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। राम वन गमन पथ से लेकर राष्ट्रीय रामायण मेला तक, राम और राम कथा से छत्तीसगढ़ के जुड़ाव को मौजूदा कांग्रेस सरकार दर्शा रही है। राम का नाम भाजपा का चुनावी औजार रहा है, इसमें कांग्रेस बढ़त ले रही है छत्तीसगढिय़ा महक के साथ।
हालांकि तब कांग्रेस को जवाब देते नहीं बना था जब पिछले साल भाजपा ने सवाल उठाया था कि छत्तीसगढिय़ावाद की हिमायती भूपेश बघेल सरकार ने दोनों राज्यसभा टिकट बाहर के लोगों को क्यों दी। क्या कोई काबिल छत्तीसगढिय़ा नहीं मिला? मगर इसके बाद बिहार के भाजपा विधायक और छत्तीसगढ़ में सह प्रभारी का काम देख रहे नितिन नबीन तब घिर गए, जब उन्होंने सवाल उठा दिया था कि छत्तीसगढ़ महतारी की हर जिले में प्रतिमा लगाने से क्या होगा, क्या महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी। कांग्रेस ने भाजपा को छत्तीसगढिय़ा विरोधी बताया। बाद में भाजपा ने सफाई दी थी कि हम छत्तीसगढिय़ा वाद को नहीं, भारतीयवाद यानि राष्ट्रवाद को मानते हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष एक झटके में बदले गए। अन्य राज्यों से नियुक्त संगठन के प्रभारी, स्थानीय दिग्गज नेताओं पर भारी पड़ रहे हैं, उससे लोगों को यह न लगे कि पार्टी में सब कुछ दिल्ली से तय होता है। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता हो कि हमें छत्तीसगढिय़ा दिखना जरूरी है। गोठानों में घोटाले पर आवाज उठाना, छत्तीसगढिय़ा, किसानों, महिलाओं के खिलाफ नहीं है- जैसा कि कांग्रेस आम राय बनाने की कोशिश कर रही है।
लगता है कि पद्मश्री अनुज शर्मा को भाजपा प्रवेश कराना पार्टी को अधिक छत्तीसगढिय़ा बताने की एक कोशिश है। अनुज शर्मा छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में लोकप्रिय हैं। उनके लाखों फैन्स हैं। छत्तीसगढ़ फिल्मों में अभिनय गीत गाने के अलावा वे आम बोलचाल में भी प्राय: छत्तीसगढ़ी ही बोलते हैं। उनकी सभाओं में भीड़ जुट सकती है। एक लोकप्रिय छत्तीसगढिय़ा कलाकार को अपनी ओर खींच लेना भाजपा की कामयाबी है, जिसके जवाब में कांग्रेस को भी कुछ करना होगा।
इस बार मोबाइल नहीं, मछली के लिए
पखांजूर की घटना के बाद जशपुर जिले के बादलखोल अभयारण्य के तुम्बालता बीट में भी लाखों लीटर पानी की बर्बादी की घटना सामने आई है। गर्मियों में वन्यप्राणियों को जल संकट का सामना न करे, इसलिए यहां के एक नाले में स्टाप डेम बनाया गया था। पर किसी ने इस डेम का लकड़ी का गेट खोल दिया और पूरा पानी बह गया। यह भी लाखों लीटर पानी था। कितने दिन पहले खोला गया यह वन विभाग के अधिकारी बता नहीं पा रहे हैं, शायद इधर गश्त ही नहीं हुई। जिस तरह पखांजूर के एसडीओ को डेम खाली कराने की जानकारी चौथे दिन मिल पाई थी। वन विभाग के मैदानी कर्मचारी अब पास के गांवों के लोगों से पूछताछ कर रहे हैं। उनका दावा है कि मछली पकडऩे के लिए बांध खाली कराया गया। पर ग्रामीण कह रहे हैं कि भरी गर्मी में बांध का पानी मछली के लिए हम कभी नहीं बहा सकते। किसी ने शरारत की है पता लगाएंगे और हम खुद भी कहेंगे कि उसे सजा मिले। इन दोनों घटनाओं से एक बात साफ हो रही है कि पानी कितना बहुमूल्य है इसका एहसास संकट के दिनों में भी कुछ लोगों को नहीं होता था। चाहे वे पढ़े-लिखे क्यों न हों। बाकी बांधों का पानी कम से कम बारिश आते तक बचे रहे, इसका उपाय संबंधित विभागों को करना जरूरी हो गया है।
सबसे छोटा शर्मीला हिरण
बस्तर के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में हिरण की सबसे छोटी प्रजाति माउस डियर को 29 मई को रात 2.20 बजे ट्रैप कैमरे में कैद किया गया है। हिरण, सूअर और चूहे की मिश्रित शारीरिक संरचना वाला यह वन्य प्राणी बहुत शर्मीला होता है, इसीलिए प्राय: यह रात में ही निकलता है। यह आमतौर पर दिन में दिखाई नहीं देता।
भारत में 12 प्रजातियों के हिरण पाए जाते हैं। माउस डियर को हिरण समूह का सबसे छोटा प्राणी माना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मोसीयोला इंडिका है। इसका वजन केवल 3 किलोग्राम होता है और लंबाई 57.5 सेंटीमीटर हो सकती है। हिरण की एकमात्र ऐसी प्रजाति है जिसके सींग नहीं होते। नमी वाली घनी झाडिय़ों के बीच ये छिपे होते हैं। जंगल में आगजनी की घटनाओं, अतिक्रमण और शिकार के कारण पूरे भारत में माउस डियर एक दुर्लभ प्राणी के रूप में देखा जा रहा है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में ये बचे रह सकें तो इससे अच्छी बात और क्या होगी।
(rajpathjanpath@gmail.com)
मीडिया के भी नाम हैं?
एक प्रतिष्ठित वेबसाइट की खबर है कि दिल्ली के शराब स्कैम में कुछ मीडिया जगत के नामी गिनामी लोग भी लपेटे में आ सकते हैं। एक-दो की गिरफ्तारी तक का अंदेशा जताया है। झारखंड में भी शराब स्कैम में कुछ मीडियाकर्मी लपेटे में आ चुके हैं।
आप सोच रहे होंगे कि दिल्ली, और झारखंड के शराब स्कैम का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, ईडी यहां भी दो हजार करोड़ के शराब स्कैम का आरोप लगा चुकी है, और कई जेल में हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या कोई स्कैम से छत्तीसगढ़ के मीडिया जगत के लोगों का कोई लेना-देना है? इसे लेकर दावे से कुछ नहीं कहा जा रहा है।
ईडी कोल-शराब स्कैम केस में कई नेताओं से पूछताछ कर चुकी है, और हल्ला है कि एक ने तो हितग्राही मीडिया कर्मियों के नाम भी गिनाए हैं। मगर अब तक ईडी ने किसी भी मीडियाकर्मी से सीधे कोई पूछताछ नहीं की है। ऐसे में यह अफवाह भी हो सकती है। अलबत्ता, पिछले सालों में कुछ घटनाएं ऐसी हो चुकी है जिसकी चर्चा काफी रही है।
बताते हैं कि पिछली सरकार में एक ताकतवर नेता ने दीवाली के मौके पर संपादकों को सोने का चेन गिफ्ट किया था। बात तब सार्वजनिक हुई जब एक प्रतिष्ठित अखबार के संपादक ने न सिर्फ चेन लेने से मना कर दिया, बल्कि अखबार में लिख भी दिया। जिन्होंने चुपचाप ले लिया वो जरूर असहज थे।
यही नहीं, छत्तीसगढ़ विधानसभा में तो पिछली सरकार में विधानसभा सचिवालय के अफसर बजट से पहले विभागों पर दबाव डालकर विधायकों, और अपने सचिवालयों के अफसरों के लिए महंगे उपहार लेते थे। चूंकि सारे विधायक इसमें हिस्सेदार थे, इसलिए कभी किसी ने कुछ नहीं कहा।
मीडिया के लोगों को भी उपहार मिल जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से यह परम्परा बंद हो गई। इसके पीछे मीडिया के लोगों की भीड़ को प्रमुख वजह मानी जाती रही है। खैर, शराब स्कैम को नजदीक से देख रहे लोगों का कहना है कि राशि ज्यादा होगी, तो देर सवेर पूछताछ जरूर होगी। देखना है आगे क्या होता है।
बस्तर पर फोकस
बस्तर की 12 सीटों पर भाजपा के रणनीतिकारों की नजर है। माइक्रो लेवल पर पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम चल रहा है। प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर, और पवन साय विधानसभावार पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की। उनका कार्यकर्ताओं को एकमात्र संदेश था कि मतभेदों को भुलाकर बस्तर की सारी सीटें जीतना है, और प्रदेश में पार्टी की सरकार बनाना है।
ये नेता जगदलपुर में पार्टी के एक पूर्व निगम के चेयरमैन के आलीशान होटल में रूके थे। वो बुधवार को कांकेर के लिए निकल गए। इसके बाद वो देर शाम तक रायपुर आने का कार्यक्रम है। संगठन के एक और बड़े नेता अजय जामवाल बालोद में तीनों विधानसभा की कोर कमेटी, और पदाधिकारियों की बैठक लेते रहे।
उनका भी यही संदेश था कि एकजुटता बनाए रखना है, और किसी भी तरह सीट जीतकर प्रदेश में सरकार बनाना है। बस्तर की तरह बालोद की स्थिति भी अच्छी नहीं रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों को बुरी हार का सामना करना पड़ा। दोनों जगहों पर पार्टी गुटबाजी से जूझ रही है। बैठकों में संगठन नेताओं की समझाइश का कितना असर पड़ता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
बस्तर को लेकर दोनों दलों की बेचैनी
पहले भी छत्तीसगढ़ विधानसभा पहुंचने का दरवाजा बस्तर से खुलता है ऐसा माना जाता था। सन् 2018 के चुनाव परिणाम ने इस तर्क को अच्छी तरह स्थापित कर दिया। दंतेवाड़ा उप-चुनाव के बाद अब भाजपा के पास वहां कोई सीट नहीं है। मगर इस साल होने वाले चुनाव के लिए हौसले जबरदस्त दिखाई दे रहे हैं। सीटें भले ही नहीं आई लेकिन कई सीटों पर तो करारी टक्कर दी ही गई थी। लता उसेंडी और केदार कश्यप कम मार्जिन से हारे थे। दंतेवाड़ा सीट उप-चुनाव में गंवानी पड़ी। इस बार 2018 से अलग परिस्थिति यह है कि कम से कम दो और दल यहां अपनी प्रभावी मौजूदगी दिखाने जा रहे हैं। सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी।
सर्व आदिवासी समाज पार्टी पेसा कानून को लेकर कांग्रेस के खिलाफ चल रही है, वहीं भाजपा से भी जल, जंगल, जमीन पर सवाल कर रही है। भानुप्रतापपुर के उप चुनाव में जिस तरह से सर्व आदिवासी समाज की मौजूदगी के बावजूद भाजपा 11 हजार मतों से पिछड़ी, उसने दोनों पारंपरिक दलों के बीच एक उलझन पैदा कर दी। आखिर इसके मैदान में उतरने से किसे नुकसान हुआ था और आगे होगा। कई कांग्रेसी नेता यह मान रहे हैं कि अगर सर्व आदिवासी समाज मैदान में नहीं होता तो जीत का अंतर 30 हजार तक पहुंचता। वहीं भाजपा को लगता है कि तीसरे दमदार प्रत्याशी की मौजूदगी ने उसे नुकसान पहुंचाया, वरना यह सीट नहीं छिनती।
इधर, छत्तीसगढ़ के संगठन प्रभारी ओम माथुर 4 दिन से बस्तर दौरे पर हैं। उन्होंने लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में बैठकर कर ली है और आज बुधवार को उनके दौरे का समापन होगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा फरवरी में आ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान उनके बस्तर जाने का भी प्लान बताया जा रहा है। कांग्रेस ने भी कम से कम एक बड़ी सभा प्रियंका गांधी की हो ही है। ताजा हालात बता रहे हैं कि कि कांग्रेस के लिए बस्तर सन् 2018 की तरह अगर आसान नहीं है तो बीजेपी के लिए खोई हुई सीटों पर दोबारा कब्जा कर पाना मुश्किल है। कम से कम 6 सीटें ऐसी है जहां पिछली बार कड़ी टक्कर थी। ऐसे में सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी के प्रति मतदाताओं का रुख नतीजों को प्रभावित करेंगे। उन सीटों पर बाजी पलट सकती है जहां जीत हार का फासला 20-25 हजार वोटों का है।
उफ्फ! इस गर्मी में भी लेटलतीफी
नौतपा की गर्मी में यात्री ट्रेनों के घंटों देरी से चलने से यात्रियों की तकलीफ दोगुनी हो गई है। यह रायपुर से दुर्ग जा रही लोकल ट्रेन है। जितने यात्री सीटों पर बैठे हुए हैं उससे अधिक कहीं खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।
पीने वालों, अत्याचार मत सहो
शराब दुकान बंद करने की मांग पर ज्ञापन, आंदोलन, प्रदर्शन तो होते रहे हैं लेकिन बालोद जिले के करहीभदर के ग्रामीणों ने अपने यहां शराब दुकान खोलने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट में ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि 10 साल पहले यहां शराब दुकान होती थी। अब 10-12 किलोमीटर में कोई दुकान नहीं रह गई है। इसलिए यहां अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है। पुलिस और आबकारी विभाग कार्रवाई करती है लेकिन दिखावे के लिए। सरकारी शराब दुकान खोली जाए ताकि लोग जान को खतरे में डालने वाला अवैध शराब खरीदने के लिए मजबूर ना हो। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि यदि दुकान नहीं खोली गई तो वह आगे चक्का जाम करेंगे। हालांकि इसके अलावा भी तीन-चार मांगे है जिनमें से एक उप तहसील खोलने की भी है।
वैसे, इन दिनों शराब दुकानों से ब्रांडेड माल गायब है। घटिया शराब की भी अनाप-शनाप कीमत ली जा रही है। बालोद जिले के ग्रामीणों ने शराब के शौकीनों को एक रास्ता बताया है वे भी अपनी समस्याएं बताएं। प्रशासन से सवाल करें और आंदोलन की चेतावनी दें।
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फ्रॉड करने वाले किस इलाके के?
साहित्य, कला, विज्ञान, उद्योग ऐसी कौन सी विधा है जिसमें पश्चिम बंगाल की धाक ना हो। डॉक्टर्स डे पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय की स्मृति में ही मनाया जाता है। इसी राज्य की आनंदीबाई जोशी को भारत की पहली महिला चिकित्सक का दर्जा मिला हुआ है। मगर विडंबना देखिए कि जैसे ही किसी संदिग्ध मेडिकल प्रैक्टिशनर, जादू-टोने वाले का जिक्र होता है उसे बंगाल से जोड़ दिया जाता है, चाहे वे देश के किसी कोने से क्यों न हों। गांव-कस्बों में इनकी सस्ते इलाज वाली दुकान बढिय़ा चलती है। बिना कोई साइन बोर्ड लगाए, संकरी गली के भीतर भी। गलत इलाज में जानें चली जाती हैं, पर लोगों के पास झोलाछाप का कोई दूसरा विकल्प नहीं।
बंगाली डॉक्टर कहना वैसे सम्मानजनक संबोधन भी नहीं है। एक खास इलाके को किसी गैर कानूनी काम से क्यों जोड़ा जाए। पर रायपुर पुलिस इस बात को दोबारा याद दिला रही है। ऑनलाइन ठगी झारखंड के जामताड़ा से शुरू होकर देश के दूसरे हिस्सों में फैली। अब छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय युवकों की ऑनलाइन ठगी का जाल बिछ चुका है, मगर लोगों को सजग, सतर्क करने के लिए सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट में रायपुर पुलिस ने बंगाली शब्द का मिसाल देना जरूरी समझा।
पीएससी प्रतिभागी हार मानने लगे?
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में एक लाख से अधिक युवाओं ने भाग लिया था। कुछ विवादित और अजीबोगरीब सवालों के बावजूद इनमें से 3095 परीक्षार्थी प्रारंभिक परीक्षा में सफल हो गए। अब इन्हें मुख्य परीक्षा में भाग लेने का अवसर मिला है। इधर मुख्य परीक्षा के लिए प्रारंभिक उत्तीर्ण कर चुके अनेक परीक्षार्थियों ने आवेदन ही नहीं किया। ऑनलाइन आवेदन जमा करने की तारीख पहले 25 मई थी। फिर इसे बढ़ाकर 27 मई किया गया। फिर भी कई अभ्यर्थियों ने जब आवेदन जमा नहीं किया तो अब इसे 30 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इसी बीच सन् 2021 के चयनित परीक्षार्थियों की सूची घोषित की गई, जिस पर भाई भतीजावाद और रसूखदारों को मौका देने का आरोप है। इसके विरोध में प्रदेश में अलग-अलग बैनर पर आंदोलन हो रहे हैं। कड़ी मेहनत के बाद जिन परीक्षार्थियों ने प्रारंभिक उत्तीर्ण कर ली वे क्या मुख्य परीक्षा में भाग नहीं लेना चाहेंगे? यदि वे पारदर्शी भर्ती की सारी उम्मीद छोड़ चुके हैं तो यह बड़े अफसोस और चिंता की बात होगी।
ऐ भाई जरा देख के चलो...
कबीरधाम जिला मुख्यालय से भोरमदेव की ओर जाने वाली इस सडक़ में आगे अंधा मोड़ होने की चेतावनी देकर पीडब्ल्यूडी ने अच्छा किया। पर गड़बड़ी यह हो गई है कि आगे सडक़ दाहिने ओर मुड़ती है और यह बोर्ड बाईं ओर मुडऩे के लिए कह रहा है।
पहला नहीं दूसरा वीआरएस आवेदन
आईएएस नीलकंठ टेकाम राजनीति में अपनी किस्मत चमकाने के लिए वीआरएस की अर्जी देकर सुर्खियों में आ गए हैं। सुनने वालों के लिए टेकाम का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन देना पहली बार होगा, लेकिन यह उनका दूसरा मौका है। बताते हैं कि टेकाम ने दो दशक पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के बड़वानी में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहते 2003 में चुनाव लडऩे के लिए दिग्विजय सरकार को वीआरएस की अर्जी दी थी। टेकाम की उस अर्जी को दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ कैडर का अफसर होने का हवाला देकर जोगी सरकार को मंजूरी के लिए भेज दिया था।
बड़वानी में डिप्टी कलेक्टर चुने जाने से पहले टेकाम कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर पदस्थ थे। सुनते हैं कि टेकाम ने अपनी सर्विस के दौरान राजनीतिक पार्टियों से मधुर रिश्ता बना लिया था। वह कॉलेज में कार्य करते सियासी दांव-पेंच में माहिर हो गए थे। सहायक प्राध्यापक रहते टेकाम का मध्यप्रदेश में डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन हो गया। संयोगवश टेकाम बड़वानी में ही एसडीएम पदस्थ हुए। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में हाथ मारने के लिए टेकाम ने वीआरएस की अर्जी भेज दी। दिग्विजय सिंह ने टेकाम का पत्ता काटने के लिए छत्तीसगढ़ कैडर का अफसर होने की वजह गिनाते जोगी सरकार को इस्तीफा मंजूर करने फाईल भेज दी। टेकाम की अर्जी स्वीकार नहीं हुई। अब वह अगले विस चुनाव में फिर से वीआरएस लेकर कूदने तैयार हैं। इस बार उनकी अर्जी पर सरकार की मुहर लगना लगभग तय है।
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तुर्की ब तुर्की
उत्तर प्रदेश के बड़े कांग्रेस नेता, और राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी पिछले दिनों यहां रायपुर में प्रदेश के कुछ कांग्रेस नेताओं से देश-प्रदेश के राजनीतिक माहौल पर अनौपचारिक चर्चा की। बात घुमफिर कर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति पर आ गई।
देश के सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का हाल बेहाल है। लेकिन प्रमोद तिवारी जैसे नेता अपने पारिवारिक प्रतापगढ़ की विधानसभा सीट बचा लेते हैं। वो लगातार 7 बार विधायक रहे हैं, और वर्तमान में उनकी बेटी मोना मिश्रा तीसरी बार की विधायक हैं।
प्रमोद तिवारी जिंदादिल माने जाते हैं। बताते हैं कि विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद राहुल गांधी ने उन पर नाराजगी जताते हुए यह कहा कि पार्टी के कई लोग कह रहे हैं कि आप दूसरे दलों के नेताओं के साथ मिलकर अपनी सीट बचा लेते हैं, लेकिन पार्टी के अन्य प्रत्याशियों को नहीं जिता पाते हैं।
कहते हैं कि प्रमोद तिवारी ने राहुल गांधी से कहा, माफ कीजिएगा, यही बात कुछ लोग अमेठी और रायबरेली सीट को लेकर भी कहते हैं। दोनों सीट तो किसी तरह जीत जाते हैं, लेकिन वहां की विधानसभा की सारी सीट हार जाते हैं। यह सुनकर राहुल खामोश हो गए।
एआई का एक खतरा यह भी
हाल ही में दिग्गज टेक कंपनी टेस्ला और ट्विटर प्रमुख एलन मस्क सहित करीब 1300 विशेषज्ञों ने एआई पर नई शोध पर रोक लगाने की अपील की। इनकी अनेक चिंताओं में से एक नैरोएथिक्स से जुड़ी हुई थी, जो नैतिकता और मानवता से संबंधित है। दिल्ली में कल नए संसद भवन की तरफ बढ़ती हुई महिला पहलवानों को घसीट-घसीट कर पुलिस वैन में ठूंसा गया। पुलिस की इस कार्रवाई का अपनी क्षमता के मुताबिक वे विरोध कर रही थी। उनके आक्रोश से उबलते बेबस चेहरों ने लोगों को परेशान किया। मगर सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी फर्जी तस्वीरें कल शाम से वायरल हो रही हैं, जिन्हें देखने से ऐसा लगता है कि वे अपनी गिरफ्तारी को एंजॉय कर रही हैं। पहले से ही व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर फोटो शॉप के जरिए फेक ऑडियो, वीडियो और पिक्चर कम वायरल नहीं हो रहे हैं, अब एआई तकनीक ने झूठ फैलाने वालों का काम और आसान कर दिया है। विडंबना यह है कि कल ही कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर का बयान आया है जिसमें वे डिजिटल निजी डेटा संरक्षण विधेयक पर बात करते हुए कह रहे थे कि इस से गलत सूचनाओं पर रोक लगेगी और बोलने की आजादी के अधिकार के नाम पर लोगों को भ्रमित नहीं किया जा सकेगा। वे यह भी कह रहे थे कि गलत सूचना, सच्ची सूचना के मुकाबले 20 से 50 गुना अधिक फैलती है।
महिला पहलवानों का मामला आज दिल्ली का जरूर है पर कल के दिनों में इसका सामना हमको आपको भी करना पड़ सकता है।
विधानसभा के अंदर, और बाहर मंत्री कवासी लखमा का दूध-भात रहता है।
गोताखोरों ने क्या बिगाड़ा था?
सीजीडब्ल्यूए (केंद्रीय भूजल प्राधिकरण) ने सन् 2020 में एक आदेश निकाला था कि पीने योग्य पानी के दुरुपयोग पर एक लाख रुपए जुर्माना और 5 साल की सजा दी जा सकती है। कांकेर के परलकोट बांध के पानी का गर्मियों में निस्तार के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसे व्यावसायिक जल माना गया। इसी आधार पर आकलन हो रहा है कि 41 लाख लीटर पानी का दाम क्या हो सकता है। यह रकम कई लाख रुपए हो सकती है। जो सूचना आ रही है उसके मुताबिक यह वसूली फूड इंस्पेक्टर से नहीं बल्कि एसडीओ के वेतन से की जाएगी क्योंकि बांध की हिफाजत की जिम्मेदारी उसी की थी। फिर उसने फूड इंस्पेक्टर को पानी निकालने की मौखिक अनुमति भी दी थी। यहां पर तो फूड इंस्पेक्टर लगता है, बच गए। पर जैसी खबर आ रही है उसके मुताबिक वह उन गोताखोरों को भी पैसे नहीं दे रहे हैं जिन्होंने बड़ी मुश्किल से खोए हुए मोबाइल फोन को ढूंढ कर बाहर निकाला। सौदा 20 हजार में हुआ था। अब गोताखोरों का कोई कसूर तो था नहीं, मगर अब रकम के लिए फूड इंस्पेक्टर चक्कर लगवा रहे हैं। बताया जा रहा है कि उनका कहना है, फोन तो खराब हो गया और वे सस्पेंड भी हो गए बहाली होगी तो देखेंगे, जल्दी हो जाएगी धीरज रखो।
वाचिक परंपरा में जनजाति
कहानी, कविता पाठ के लिए अब जरूर लिटरेचर फेस्टिवल होने लगे हैं लेकिन वाचिक परंपरा लोक से शुरू हुआ है। गांव के चौपालों में, तालाब और खेतों के मेढ़ में सदियों से अलिखित किस्से, कहानियां, हाना, गीत, लोकोक्तियां, मुहावरे, जन्म लेते और एक पीढ़ी से दूसरी में हस्तांतरित होते आए हैं। साहित्य में यह बाद में दर्ज हुआ। बहुत सी रचनाएं अब भी किताबों में नहीं आ पाई हैं। बाजार के हमले ने कई बोलियों को विलुप्त होने के कगार पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में हाल ही में नवा रायपुर में आदिम जाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान में जनजातीय वाचिक परंपरा के इतिहास और अन्य पहलुओं पर हुई चर्चा ने इस विधा की याद दिलाई।
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अनुशासन समितियों का हाल
पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम खुले तौर पर विधानसभा चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। नेताम के खिलाफ कार्रवाई का मसला पार्टी की केंद्रीय अनुशासन समिति के पास लंबित हैं।
अनुशासन कमेटी के चेयरमैन एके एंटनी हैं, जो 93 साल के हैं। उनकी सक्रियता लगभग नहीं के बराबर रह गई है। उनके खुद के बेटे अनिल एंटनी पार्टी छोडक़र भाजपा में जा चुके हैं। ऐसे में अब कहा जाने लगा है कि जिस मामले पर कार्रवाई को लटकाना हो, उसे अनुशासन कमेटी को भेज दिया जाता है।
कांग्रेस महामंत्री अमरजीत चावला के खिलाफ भी शिकायत अनुशासन कमेटी में पेंडिंग है। यही नहीं, प्रदेश की अनुशासन कमेटी का हाल भी केन्द्रीय कमेटी की तरह है। यहां पूर्व विधायक बोधराम कंवर कमेटी के चेयरमैन हैं। बोधराम की भी उम्र 90 हो चुकी है। ऐसे में राज्य की कमेटी में भी वो ही मामले भेजे जाते हैं जिन्हें लटकाना होता है। इन सब वजहों से पार्टी के भीतर अनुशासन को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
शराबबंदी पर भाजपा का रुख क्या?
शराबबंदी का वादा पूरा नहीं करने को लेकर कांग्रेस सरकार को भाजपा लगातार घेर रही है। इसी कड़ी में भाजपा महिला मोर्चा की ओर से एक हस्ताक्षर अभियान धरसींवा इलाके के मांढर में चलाया गया जिसमें दावा है कि 5 हजार महिलाएं शामिल हुईं। लगातार आंदोलनों के बाद भी भाजपा यह साफ नहीं कर रही है कि यदि उनकी सरकार बनेगी तो क्या शराबबंदी होगी? पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह धरसींवा के कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने भूपेश सरकार की वादाखिलाफी पर आक्रामक तेवर दिखाए, पर यह नहीं बताया कि भाजपा की सरकार आएगी तो उसका रुख क्या होगा? यदि सिर्फ कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाना ऐसे प्रदर्शनों का उद्देश्य है तो सरकार बदलने के बाद भी शराबबंदी की पक्षधर महिलाओं को हासिल क्या होगा। जो समस्या आज वे भोग रही हैं, कल भी रहेगी। भाजपा यदि इसे लेकर कोई वादा नहीं भी करे तब भी उसे सरकार बनने की स्थिति में इसी सवाल का सामना करना पड़ेगा।
हनुमान चालीसा का पाठ
कर्नाटक चुनाव के बाद राजनीतिक संगठनों की बजरंगबली पर आस्था बढ़ती जा रही है। उन्हें ऐसा लगने लगा है कि संकटमोचक हर समस्या हल कर देंगे। शायद इसीलिए दुर्ग में एनएसयूआई के सदस्यों ने स्टेशन के भीतर हनुमान चालीसा का पाठ किया। उनका विरोध यात्री ट्रेनों के घंटों देर से चलाने को लेकर था। रेलवे के अधिकारी इस मामले में सांसद, विधायकों तक की नहीं सुन रहे हैं। हो सकता है भगवान के शरण में जाने से ही बात बने।
राजकीय पशु की संख्या कितनी
वनभैंसा छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु है। इसका अस्तित्व संकट में है। पर आज की तिथि में वनभैंसों की संख्या कितनी है यह वन विभाग को ही पता नहीं है। इंद्रावती नेशनल पार्क के कुटरू में सात-आठ साल पहले एक प्रजनन केंद्र बनाने की योजना लाई गई थी लेकिन यह अब तक पूरा नहीं हो सका। न ही जंगलों में घूमकर इनकी गिनती की जा सकी है। ये दोनों काम नक्सलियों के विरोध के चलते नहीं हो पा रहे हैं। स्थिति यह है कि केवल ट्रैप कैमरे ही हैं, जिनके जरिये इंद्रावती में इनकी मोजूदगी का पता चलता है। हर साल इनके संरक्षण के नाम पर लाखों रुपये का बजट मंजूर होता है पर वास्तव में इसका उपयोग इनकी वंशवृद्धि में हो रही है या नहीं यह कोई नहीं बता सकता।
इतनी बेइज्जती...
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की शीर्ष पदों पर भर्ती में हुए कथित घोटाले का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार और कांग्रेस नेता चाहे जितनी सफाई दें, लोग भरोसा ही नहीं कर रहे। वैसे भी लोक सेवा आयोग की तरफ से कोई सफाई अब तक आई नहीं है। अखिल भारतीय विद्या,र्थी परिषद् प्रदेश में जगह-जगह इस मुद्दे के खिलाफ सडक़ पर है। बिलासपुर में उन्होंने ठेला लगाया। यह बताने की कोशिश की कि आलू-प्याज की तरह बड़े-बड़े पद बेचे जा रहे हैं। डिप्टी कलेक्टर का रेट केवल 75 लाख रुपए है। हैसियत है तो बोलो।
नार्को टेस्ट से सच सामने आएगा?
झीरम हत्याकांड की 10वीं बरसी पर बीजेपी नेताओं ने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा को जमकर घेरा और उनके नार्को टेस्ट की मांग की। अब बस्तर से एक वीडियो सामने आया है जिसमें स्वर्गीय महेंद्र कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा न केवल कवासी लखमा बल्कि अमित जोगी के भी नार्को टेस्ट की मांग कर रहे हैं। छबिंद्र की मां यानि स्वर्गीय महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा कांग्रेस विधायक हैं। छबिन्द्र का कहना है कि उन्होंने तो स्वर्गीय अजीत जोगी का भी नार्को टेस्ट कराने की मांग पहले की थी। लखमा का टेस्ट इसलिये होना चाहिए कि एक भीड़ में पांच लोग हों और चार मार डाले जाएं, एक को छोड़ दिया जाए, यह कैसे हुआ?
नार्को टेस्ट किसी जांच में नतीजे तक पहुंचने के लिए एक अच्छा रास्ता होता है। लेकिन यह टेस्ट तभी हो सकता है जब कोई व्यक्ति सहमति दे। इसके अलावा नार्को टेस्ट में दर्ज बयान के बाद उसके समर्थन में दूसरे सबूतों की भी जरूरत पड़ती है। वरना अदालत में वे टिकेंगे नहीं। 11 साल पहले रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी महिला नागरिक सहकारी बैंक में हुए करीब 54 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच के दौरान बैंक के प्रबंधक और कुछ कर्मचारियों का नार्को टेस्ट कराया गया था। इसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और तब के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जैसे कई बड़ी हस्तियों का नाम लिया था। मगर उसके समर्थन में जांच एजेंसी दूसरे सबूत नहीं जुटा पाई। मतलब यह है कि नार्को टेस्ट से जांच आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है लेकिन दोषी को पहचान के लिए यह काफी नहीं है।
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तबादले क्यों?
आखिरकार आईपीएस अफसरों के तबादले की बहुप्रतीक्षित सूची शुक्रवार को जारी हो गई। इसमें सांप्रदायिक विवाद से झुलसे बेमेतरा, और कबीरधाम जिला एसपी का तबादला अपेक्षित था, और उनका तबादला हो भी गया।
एक-दो एसपी के तबादले पर सोशल मीडिया में खूब प्रतिक्रिया हो रही है। मसलन, दुर्ग एसपी अभिषेक पल्लव को कबीरधाम का एसपी बनाया गया है। कबीरधाम वैसे तो काफी छोटा जिला है, लेकिन पिछले कुछ समय से सांप्रदायिक झगड़े के चलते माहौल तनावपूर्ण रहा। ऐसे में वहां चुनावी साल पहले की तरह शांति व्यवस्था कायम रखना पल्लव के लिए चुनौती भी है।
पल्लव ने अपराधियों का वीडियो वायरल करते थे। जिसकी लोगों के बीच काफी चर्चा रही। इसी तरह यातायात व्यवस्था को बहाल करने के लिए कुछ इसी अंदाज में बाइकर्स पर भी कार्रवाई की। अब तबादले के बाद कई लोग सोशल मीडिया पर खुशी जाहिर कर रहे हैं।
इसी तरह सरगुजा एसपी भावना गुप्ता के तबादले पर सोशल मीडिया में फेसबुक पर यहां तक लिखा गया कि सरगुजा को मुक्ति मिली है। हालांकि भावना पर कोई गंभीर आरोप नहीं है। उन्हें बेमेतरा एसपी बनाया गया है। इन सबके बावजूद अभी और तबादले की गुंजाइश बाकी रह गई है।
आगे और कौन?
विधानसभा चुनाव आचार संहिता से पहले रायपुर, बलौदाबाजार, जशपुर, और बस्तर एसपी को इधर से उधर किया जा सकता है। ये सभी डीआईजी हो चुके हैं। इसी तरह आईजी की लिस्ट भी जारी हो सकती है।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी को करीब साढ़े तीन साल से अधिक हो चुके हैं। एक ही जगह पर तीन साल से अधिक समय से पदस्थ अफसरों को बदलने का चुनाव आयोग का नियम है। लेकिन आयोग नक्सल इलाकों के लिए छूट दे सकती है। सुंदरराज ने नक्सल मोर्चे पर काफी अच्छा काम किया है। कुल मिलाकर एक और सूची आना बाकी है।
कम अनुभवी को दंतेवाड़ा का जिम्मा
2019 बैच केे गौरव राय को दंतेवाड़ा जैसे घोर नक्सल जिले का जिम्मा दिए जाने के फैसले पर आईपीएस बिरादरी हैरत में पड़ गया। सरकार ने इस बैच को पुलिस कप्तानी देने की शुरूआत करते गौरव राय को सीधे दंतेवाड़ा में भेज दिया।
बताते हैं कि गौरव के पास नक्सल क्षेत्र में काम करने का अनुभव नाममात्र है। राजनांदगांव में सीएसपी रहते सरकार नेे पिछले साल गौरव को बीजापुर में एएसपी पदस्थ किया। गौरव महज 4-5 माह में ही राजधानी लौटकर एसीबी में रहे। गौरव राय के पास साईबर अपराधों की पकडऩे की काबिलियत है, लेकिन नक्सल जिलों में काम करने के सीमित अनुभव के बावजूद सरकार ने दंतेवाड़ा में सरप्राईजिंग पोस्टिंग कर दी। भौगोलिक रूप से दंतेवाड़ा नक्सलियों के लिए काफी मायने रखता है।
सुनते हंै कि सरकार के करीबी अफसरों को इस बात की भनक नही थी कि युवा अफसर गौरव सीधे दंतेवाड़ा भेज दिए जाएंगे। पिछले विस चुनाव से पहले कम अनुभवी अफसर अभिषेक पल्लव को पदस्थ करने पर नक्सलियों ने कई वारदातें की थी। जिसमें भीमा मंडावी विधायक रहते एक विस्फोट में मारे गए थे। वैसे सरकार नेे गौरव को भेजने से पहले रणनीतिक तौर पर काफी विचार किया होगा, पर अनुभव की कमी भी पोस्टिंग में मायनेे रखती है।
सत्तारूढ़ विधायक की जिद
राज्य के उत्तरी इलाके के आखिरी जिले बलरामपुर के पुलिस अधीक्षक मोहित गर्ग के तबादले के पीछे क्षेत्रीय विधायक बृहस्पति सिंह की जिद का असर रहा। लगभग तीन माह पूर्व एक मामले को लेकर विधायक सिंह एसपी के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे। विधायक लगातार सरकार पर अपने जिले से एसपी को हटाने के लिए दबाव बनाए हुए थे। 2013 बैच के गर्ग करीब आठ माह पूर्व उस वक्त मुख्यधारा में लौटे जब कवर्धा में एसपी रहते साम्प्रदायिक दंगे हुए। गर्ग को अच्छे रणनीतिककार अफसरों में शुमार किया जाता है। बीजापुर और नारायणपुर जैसे घोर नक्सल क्षेत्र में अच्छी पारी खेलकर लौटे गर्ग को मैदानी इलाकों टिकने के लिए विषम राजनीतिक परिस्थितियों से जूझना पड़ा है। बलरामपुर में उनकी विधायक से आपसी अनबन जगजाहिर थी। विधायक से मनमुटाव होने के कारण महकमे में गर्ग को हटाए जाने की चर्चा लंबे समय से थी। सुनते हैं कि विधायक किसी भी सूरत में एसपी को हटाने के लिए भिड़े हुए थे। विधायक को नाराज नहीं करके, एसपी को ही हटाना सरकार ने मुनासिब समझा। इसमें साफ संदेश है कि सत्तारूढ़ दल के विधायक से बैर लेना एसपी को महंगा पड़ गया।
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम...
नये संसद भवन के उद्घाटन से जुड़े अनेक विवादों के बीच लोगों का ध्यान इस ओर भी जाता है कि करीब 980 करोड़ की लागत वाले इस विशाल परिसर का निर्माण 29 महीने में हो गया। हो सकता है कि इसे शीघ्रता से इसलिए भी तैयार किया गया हो ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटन कर सकें।
अब छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने वाले हैं। बहुत से शिलान्यास और भूमि पूजन के शिलालेख धूल खा रहे हैं। 2 महीने में जिस काम को पूरा होना था, 2 साल बाद भी उनमें एक ईट नहीं रखी गई है। जो विधायक कांग्रेस की सरकार दोबारा लाना चाहते हैं और अपनी टिकट पक्की करनी चाहते हैं, कम से कम उनको तो याद कर लेना चाहिए कि उन्हें कहां-कहां ऐसे शिलालेख छोड़ कर भूल गए हैं। यह बार नवापारा के आदिवासी कन्या आश्रम के बाहर रखा हुआ पीडब्ल्यूडी का 2 साल पुराना पत्थर है। मुख्यमंत्री सुगम सडक़ योजना के तहत मुख्य मार्ग से इस आश्रम तक एक सडक़ 15.66 लाख की लागत से 2 माह के भीतर बननी थी, मगर अब तक इस सडक़ के लिए एक ट्रैक्टर गिट्टी भी नहीं बिछाई गई है। पूरे राज्य में इस तरह के अधूरे और रुके हुए कामों की लंबी सूची बन सकती है।
अपनी ही सरकार के खिलाफ सडक़ पर
एनएचएआई के पास या तो बजट की कमी है या फिर मॉनिटरिंग की। बीते 3 साल से हाईकोर्ट में प्रदेश की खराब सडक़ों पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। न्याय मित्रों ने प्रदेश की 32 सडक़ों की हालत या तो जर्जर बताई या फिर लंबे समय से निर्माणाधीन। प्रदेश की पीडब्ल्यूडी के अधीन कई सडक़ों की मरम्मत हाईकोर्ट की फटकार के बाद हो गई। पर एनएचएआई पर इसका असर नहीं हुआ है। अंबिकापुर से रायगढ़ के बीच सन् 2016 से बन रही सडक़ अब तक अधूरी है। किसान, व्यापारी और आम यात्री परेशान हैं। प्रधानमंत्री को भी शिकायत भेजी गई लेकिन जैसा कि होता है, पीएम ऑफिस से एक पत्र कलेक्टर को आया और जवाब मांग लिया गया।
एनएचएआई केंद्र की भाजपा सरकार के अधीन है, मगर भाजपा कार्यकर्ताओं को कल इस सडक़ को जल्द बनाने की मांग पर चक्काजाम करना पड़ा। यह भी चेतावनी दी गई कि यदि एक माह में पूरा नहीं किया गया तो एनएचएआई दफ्तर जाकर वहां घेराव करेंगे। यह अजीब सी बात है कि प्रदेश की एकमात्र केंद्रीय मंत्री सरगुजा से हैं और रायगढ़ से भी सांसद भाजपा की ही हैं। मगर वे एनएचएआई के अफसरों पर दबाव नहीं बना पा रही हैं और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सडक़ पर आना पड़ रहा है।
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खाना तो ठीक है, पर किसके घर?
सीएम भूपेश बघेल के लंच डिप्लोमेसी की राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा है। भूपेश भेंट-मुलाकात के लिए जिस गांव में उनका पड़ाव होता है, वहां वो भोजन करते हैं। कुछ इसी अंदाज में भाजपा संगठन के कर्ता-धर्ता अजय जामवाल और पवन साय भी घूम-घूमकर भोजन कर रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि भूपेश गांव के निर्धन परिवार के यहां भोजन करते हैं, तो जामवाल और पवन साय के मेजबान टिकट के दावेदार अथवा पार्टी के धनिक नेता होते हैं।
अजय जामवाल, और पवन साय पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं के यहां भोजन पर जा चुके हैं। स्वाभाविक है कि संगठन दिग्गजों के लिए भोजन भी राजसी होता है। इससे परे सीएम जिस परिवार के यहां भोजन करते हैं वो एकदम सात्विक, और सामान्य होता है। जमीन पर बैठकर परिवार के लोगों के साथ वो भोजन करते हैं। आदिवासी इलाकों में तो उन्होंने वहां के समाज में प्रचलित रोजमर्रा का खाना ही खाया। लेकिन जामवाल, और पवन साय के लिए आदिवासी इलाकों में भी विशेष इंतजाम होता है।
जामवाल सरगुजा प्रवास पर गए तो बड़े कारोबारी अखिलेश सोनी, हरपाल भांमरा के घर जाकर भोजन ग्रहण किया। वो अब तक किसी गरीब-आदिवासी, दलित कार्यकर्ता के यहां भोजन पर नहीं गए। पत्थलगांव जैसे दूरस्थ इलाके में भी जामवाल नगर सेठ के मेजबान थे। जबकि भाजपा हाईकमान ने बड़े नेताओं को स्पष्ट रूप से निर्देशित किया है कि वो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के यहां जाएं, और उनके यहां भोजन ग्रहण करे। मगर अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। खास बात यह है कि बड़े नेताओं की भोजन को लेकर भाजपा में विवाद भी हो चुका है।
बताते हैं कि कुछ दिन पहले सह प्रभारी नितिन नबीन का दुर्ग प्रवास के दौरान एक कार्यकर्ता के यहां भोजन का आमंत्रण था, लेकिन बाद में वो सरोज पाण्डेय के यहां चले गए। इस पर दुर्ग सांसद विजय बघेल ने सहप्रभारी से मिलकर आपत्ति की थी। बाद में नबीन नाराजगी दूर करने उस कार्यकर्ता के यहां चाय पर गए। भेंट मुलाकात में जब भी भूपेश की भोजन करते तस्वीर मीडिया में आती है, तो भाजपा के भीतर जामवाल, और साय के भोजन से तुलना होती है। असंतुष्ट नेता इसकी शिकायत हाईकमान तक पहुंचाने के फेर में हैं।
ईडी भी कोर्ट के इंतजार में
सोशल मीडिया पर शराब घोटाला केस से जुड़े अरविंद सिंह, और एक आईएएस अफसर के गिरफ्तारी की खबर उड़ी। यह चर्चा रही कि अरविंद सिंह को ईडी ने नेपाल बॉर्डर के पास से गिरफ्तार किया गया है, लेकिन इसकी किसी भी स्तर पर पुष्टि नहीं हो पाई है।
दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनवर ढेबर की याचिका पर सुनवाई के बीच ईडी के वकील को साफ तौर पर कहा था कि जिनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पेंडिंग है उसे गिरफ्तार न किया जाए। हालांकि ऑर्डर शीट में इस तरह की कोई बात नहीं लिखी है। अरविंद सिंह, और अन्य की याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में कथित गिरफ्तारी को लेकर कई तरह की चर्चा होती रही।
खैर, शराब घोटाला केस में 29 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में चार अलग-अलग याचिकाओं पर अहम सुनवाई होनी है। जानकारों का अंदाजा है कि कोर्ट के फैसले से ईडी की आगे की कार्रवाई की दिशा तय होगी। ऐसे में सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है।
बेरोजगारी भत्ता कितने दिन तक?
कड़ी शर्तों से गुजरकर जो बेरोजगार भत्ते के पात्र हुए हैं, उनके फायदे के लिए सरकार ने एक और नियम बनाया है। उनको कौशल विकास और स्वरोजगार का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से लेना होगा। पर बेरोजगार इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। बहुत से युवाओं ने तो अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा है। कुछ ने फोन पर ही बता दिया कि वे ट्रेनिंग नहीं लेना चाहते। रायगढ़, दुर्ग और राजनांदगांव से इस तरह की खबरें आ चुकी हैं। बाकी में भी ऐसी ही स्थिति होगी। दुर्ग में ही 5784 युवाओं को भत्ते का पात्र माना गया है लेकिन यहां 500 युवा भी ट्रेनिंग के लिए तैयार नहीं हुए। बताया जा रहा है कि यदि युवा प्रशिक्षण नहीं लेंगे तो उनका भत्ता 6 महीने में बंद कर दिया जाएगा। भत्ता वैसे दो साल के लिए है लेकिन एक साल बाद इसकी समीक्षा होगी। जिनको रोजगार मिल चुका है उन्हें भी भत्ता बंद नहीं मिलना है।
इधर भत्ता पाने वाले बेरोजगारों का कहना है कि ढाई हजार तो उनके प्रशिक्षण के लिए आने-जाने में ही निकल जाएंगे। उनको डाटा एंट्री ऑपरेटर जैसा प्रशिक्षण लेने कहा जा रहा है जबकि वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इस पैसे से कुछ किताबें ले सकते हैं, घर खर्च में थोड़ी सी मदद कर सकते हैं। ज्यादातर लोग प्रशिक्षण नहीं लेना चाहते, मतलब उनका भत्ता 6 महीने के बाद शायद ही जारी रहे। फिर भी चुनावी साल में शुरू किया गया बेरोजगारी भत्ता वोट डाले जाने तक तो चलेगा ही।
एक मोबाइल से शुरू इतनी लंबी बहस
पखांजूर के जलाशय में गिरे फूड इंस्पेक्टर के महंगे मोबाइल और उसकी तलाश में पूरा पानी बहा देने के मामले ने सोशल मीडिया में बहस और चटखारे लेने का मौका दिया है। इसके जरिए लोग प्रशासनिक अमले के पद दुरुपयोग की पोल खोल रहे हैं। ऐसे ही एक ग्रुप की चर्चा बड़ी खूब रही। एक मेंबर के खबर का लिंक सेंड करते ही दूसरे सदस्य ने कहा-ये खबर बाहर आने के बाद भी इस अधिकारी के खिलाफ कुछ गलत नहीं हो सकता क्योंकि पहला पत्थर वो मारे जिसने कोई पाप ना किया हो, ऐसा भी कोई है नहीं। जिसके मन में जो आ रहा है वो किए जा रहा है...डर, खौफ, राज्य के प्रति वफादारी कुछ नहीं बची है। अंग्रेजों की तरह पहले वाले 15 साल नोचे खाए। अब ये है जो कोई भी कुछ भी किसी भी तरह से नोच खसोट कर सकता है करने की अनुमति दी हुई है। जनता जाए भाड़ में। अभी तो शुरुआत है।
दूसरे ने लिखा- आपने पंद्रह साल का उल्लेख किया मैं खुश नहीं हूं। आप मर्यादा लांघ रहें हैं। आपको याद रखना चाहिए नीति/पॉलिसी अफसर बनाते हैं उनको पैंतीस चालीस साल तक आजादी है उसे आप लूट खसोट कह रहें डबल अटैक नहीं चलेगा, ये। मतलब अल्लाह, भगवान, जीजस, और वाहेगुरु से एक ही दुआ है कि अगला जन्म छत्तीसगढ़ में ही दे। वह भी सरकारी अधिकारी या उसके रिश्तेदार के रूप में दे। सिंचाई विभाग का मासूम अधिकारी थोड़ा बहुत पानी निकलेगा। इसकी भी विभागीय जांच हो और दोनो के खिलाफ अपराधिक मामला (बांध को तोडक़र पानी बहाने का) 430/34 आईपीसी दर्ज होना चाहिए। कुछ नहीं होगा क्योंकि 2 लाख जांच अधिकारी के रूप में आने वाले एसडीएम को। 25-25 हजार जलाशय के चारों जिम्मेदारों को बयान पलटने के लिए। सबसे बाद में जांच रिपोर्ट पर फाइनल टीप लिखने के लिए स्थानीय आईएएस साब की पत्नी के मार्फत लाख दो लाख देने का मन बना लिया है। इससे अच्छा तो किसे ठेकेदार को बोल के एक लाख का नया मोबाइल मंगा लेते बिचारे।
तीसरे ने लिखा - आप नाखुश, तो मैं नाखुश। आप हमारे हो। क्योंकि पिछला रिकॉर्ड उठाकर देखे तो,चंगुल में आए सरकारी अधिकारियों की पत्नियों का भी बड़ा रोल सामने आया है। एक ईडी अधिकारी कोर्ट में किसी को बोल रहा था कि फलाने आईएएस की आईएएस पत्नी पैसे देखकर सबसे ज्यादा पागल होने के पूरे सबूत मिले है। उसको जब चाहेंगे जब उठायेंगे। अभी पहले हिडन लॉक को तलाश रहे हैं।
मिठाई के जैसा मीठा फल
गुलाबजामुन केवल मिठाई नहीं, एक दुर्लभ फल का भी नाम है। यह नाम इसकी खुशबू और स्वाद की वजह से ही है। बिल्कुल हलवाई के पास मिलने वाले मिठाई गुलाब जामुन की तरह। अमरकंटक की तराई में और पेंड्रा-गौरेला के जंगल में जितना भीतर जाए यह फल फरवरी के बाद से बारिश के पहले तक मिलते हैं। इसे कान के पास लाकर हिलाएं तो भीतर से बीज की आवाज आएगी। नरम इतना कि उंगलियों से दबा लें। गुलाब जामुन के फल ही नहीं इसके पत्ते और बीज भी फायदेमंद है। खासकर डायबिटीज के लिए। छत्तीसगढ़ के अलावा यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि में भी जंगलों के भीतर ये फल पाए जाते हैं। इसके पेड़ अब कम दिखते हैं। अभी यह डेढ़ सौ से 200 रुपए किलो में बिक रहा है।
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एक और दंपत्ति पर भी ईडी की नजर
प्रदेश की एक अफसर दंपत्ति दफ्तर नहीं आ रहे हैं। पति आबकारी विभाग में फील्ड में पोस्टेड हैं, तो पत्नी मंत्रालय के दो विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर हैं।
बताते हैं कि पति ईडी की जांच के घेरे में है, और चर्चा है कि ईडी उनसे पूछताछ भी कर चुकी है। पत्नी जमीन से जुड़े विभाग में है, वे भी ईडी की नजर में हैं। दोनों का किसी स्कैम में कोई सीधा वास्ता है, यह तो साफ नहीं है, लेकिन एक साथ दोनों की गैरमौजूदगी प्रशासनिक हल्कों में खूब चर्चा हो रही है। तब से वह दफ्तर भी आ रहीं हैं। उन्होंने छुट्टी ली है या नहीं इसे लेकर परस्पर विरोधी दावे हैं। ईडी इससे पहले दो आईएएस दंपत्ति के यहां रेड कर चुकी है। एक की तो प्रापर्टी अटैच भी कर चुकी है।
पिता पर बेटे की पीएचडी
रविशंकर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में करीब 500 गोल्ड मेडल और पीएचडी उपाधियां कल दी गईं। इनमें से एक डॉक्टरेट उपाधि इस मायने में खास है कि वह एक बेटे को अपने पिता पर किए गए शोध के लिए दी गई है। स्व. रेशम लाल जांगड़े आजाद भारत की पहली लोकसभा के निर्वाचित सांसद ही नहीं, बल्कि संविधान सभा के सदस्य, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सुधारक भी थे। वे सतनामी समाज के पहले वकील भी रहे। उन्होंने 1949 में नागपुर विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की थी। संसद में 1956 में पारित अस्पृश्यता निवारण कानून के लिए उन्होंने पुरजोर आवाज उठाई थी। लंबे समय तक राजनीति में रहने के बावजूद उन्होंने कोई संपत्ति नहीं बनाई। जीवन के अंतिम दिनों में उसकी खबर उनके बीमार होने पर बाहर आई। तभी बहुत से लोगों को पता चल पाया कि वह एक साधारण से दो कमरों के जनता क्वार्टर में रहते हैं। उनके बेटे हेमचंद्र जांगड़े को इस बात का अफसोस था कि लंबे सामाजिक राजनीतिक योगदान के बावजूद पिता के नाम से कोई स्कूल, कॉलेज, सडक़, प्रतिमा स्थापित करने में न काग्रेस ने रुचि दिखाई, न भाजपा ने। तब उन्होंने फैसला लिया कि आने वाली पीढ़ी के लिए उन्हें अपने पिता पर खुद ही एक शोध ग्रंथ तैयार करना चाहिए। पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय से उन्हें छत्तीसगढ़ के विकास में स्वर्गीय रेशम लाल जांगड़े का योगदान विषय पर पीएचडी करने की अनुमति मिल गई। शोध की ज्यादातर सामग्री कोविड-19 के दौरान जुटाई गई। इसी दौरान वे संसद की लाइब्रेरी में पहुंचे। शोध ग्रंथ स्वीकृत होने के बाद कल उन्हें रविवि के दीक्षांत समारोह में डॉक्टरेट की उपाधि सौंपी गई।
एटीएम उगल रहे छोटे नोट
2000 रुपए के नोट चलन से बाहर करने के बाद सन् 2016 की नोटबंदी की तरह आपदा तो दिखाई नहीं दे रही है लेकिन कुछ दूसरे प्रभाव जरूर हैं। बैंक वालों की मानें तो दिनों लॉकर खोलने के लिए आने वालों की तादात बढ़ गई है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने घर में रखने के बजाय लॉकर में ही कैश बंद करके रखे हुए थे। अकाउंट में 2000 के नोटों को जमा करने में तो बैंक कर्मचारियों को दिक्कत नहीं हो रही है लेकिन एक्सचेंज के लिए 5-5 सौ कि नोटों की अतिरिक्त व्यवस्था रखनी पड़ रही है। यह जानकारी आरबीआई तक भी पहुंच चुकी है कि आने वाले दिनों में 500 के नोटों की मांग बढ़ सकती है। एटीएम भी 500 से छोटे 100-200 के नोट इन दिनों आसानी से उगल रहे हैं।
बस्तर की बुलंद बेटियां
यूपी के लखनऊ में 17 से 21 मई तक हुई छठवीं राष्ट्रीय मिक्स मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में बस्तर की बेटियों ने 5 गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीतने का कमाल किया है। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पलक नाग ने फिर से गोल्ड मेडल हासिल किया। इस तरह की कामयाबी बस्तर को नक्सल हिंसा ग्रस्त इलाका होने की पहचान से अलग करती है। जगदलपुर पहुंचने पर इनका गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ।
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लोग अछूत हो रहे हैं
ईडी के घेरे में आए नेता, और कारोबारियों से अब करीबी लोग ही कन्नी काटने लगे हैं। एक बोर्ड चेयरमैन के यहां मुलाकातियों का तांता लगा रहता था। लेकिन अब सन्नाटा पसरा रहता है। एक और बोर्ड के चेयरमैन की नाराजगी इस बात को लेकर है कि करीबी लोग भी एक बार में मोबाइल कॉल रिसीव नहीं कर रहे हैं। जबकि उनका किसी स्कैम से कोई लेना-देना नहीं है। और वो प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर ईडी की कार्रवाई चुनौती भी दे चुके हैं। मगर करीबियों का भय निकल नहीं रहा है।
कारोबारियों का भी हाल कुछ ऐसा ही है। ईडी की पूछताछ से फ्री होने के बाद दो दिन पहले एक कारोबारी फुर्सत के क्षण बिताने के लिए क्लब पहुंचे, तो उन्हें देखकर वहां मौजूद कई लोग इधर-उधर निकल गए। कारोबारी दो घंटे तक वहां बैठे रहे, लेकिन किसी ने उनसे कुशलक्षेम तक नहीं पूछा। इससे पहले तक तो कारोबारी के क्लब पहुंचते ही वहां के सदस्य उनके आगे-पीछे होते रहते थे, लेकिन अब उनसे नजर मिलाने से भी परहेज करने लगे हैं।
भाजपा संगठन, और शुकराना
भाजपा हाईकमान ने अरुण साव को फ्री हैंड दे दिया है, लेकिन वो अपनी टीम से काम नहीं ले पा रहे हैं। यही वजह है कि कुछ पदाधिकारियों को बदलने की नौबत आ गई है। चुनाव में पांच महीने बाकी रह गए हैं, फिर भी उन्होंने जोखिम लेकर रायपुर ग्रामीण के जिलाध्यक्ष, और संगठन प्रभारी को बदल दिया।
सुनते हैं कि कुछ और जिला अध्यक्षों का परफार्मेंस साव के मनमाफिक नहीं है। जिन्हें बदलने पर विचार हो रहा है। यही नहीं, जिस मोर्चे से साव, और कार्यकर्ताओं को बड़ी उम्मीदें थी उनकी गतिविधियां ठप सी पड़ गई है। साव ने मोर्चा अध्यक्ष पद पर अपनी पसंद के नेता को बिठाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया था। अब हल्ला है कि मोर्चे में कई पदों के लिए नजराना-शुकराना जैसा कुछ हुआ है।
मोर्चा अध्यक्ष राजधानी से दूर हैं। मगर उन्होंने कई ऐसे लोगों को उपकृत किया है, जिनको लेकर कई तरह की शिकायतें आई है। ये अलग बात है कि सुदूर इलाके में रहने वाले अध्यक्ष पहले दो पहिया वाहन में घूमते थे। पद पाने के बाद स्विफ्ट डिजायर पा गए, और अब वो नई इनोवा में नजर आ रहे हंै। ये अलग बात है कि अध्यक्ष की खुशहाली कई लोगों को खटक रही है। कुछ ने ‘ऊपर’ तक बात पहुंचाई है। देखना है आगे क्या होता है।
दिव्यांगों को ताकत देने की मुहिम
महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत दिव्यांगों को भी काम करने का अधिकार मिला हुआ है। पर, प्राय: इस पर अलग से ध्यान नहीं दिया जाता। वहीं, जशपुर जिले में कुछ ऐसी कोशिश की गई है जो राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रही है। 2019 बैच के आईएएस जितेंद्र यादव यहां जिला पंचायत के सीईओ हैं। एक मजदूर से उनका सामना हुआ जो कोविड-19 महामारी के दौरान काम की तलाश में राज्य से बाहर चला गया था और अपना एक हाथ गंवा बैठा। सबसे पहले उसको गांव में मनरेगा का काम दिलाया गया। इसके बाद पूरे जिले में सीईओ ने ऐसे विकलांगों का सर्वे कराया है, जो मनरेगा में काम कर सकते हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है। इसके लिए पंचायतों में शिविर आयोजित किए गए। विकलांगों के बीच चर्चा की गई कि वे किस तरह का काम कर सकते हैं। इनमें दूसरे मजदूरों के बच्चों के सहायक के रूप में काम करना, पर्यवेक्षक का काम करना, मजदूरों को पानी पिलाना, कंक्रीट निर्माण के दौरान दीवारों और पौधों को पानी देना जैसे काम पहचाने गए। इसके चलते करीब एक हजार विकलांग मनरेगा में काम कर रहे हैं और उन्हें करीब 26000 श्रम दिवस की राशि का भुगतान किया जा चुका है। देश में शायद यह पहला जिला है जहां इतनी बड़ी संख्या में विकलांग मनरेगा का लाभ उठा रहे हैं। उनको महसूस हो रहा है कि वे कुछ कर सकते हैं। शारीरिक अक्षमता इसमें बाधा नहीं है।
फिर लंपी वायरस की आहट
पिछले साल लंबी वायरस से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा सहित करीब 7 राज्यों में हजारों पशुओं की मौत हो गई थी। साथ ही छत्तीसगढ़ में भी इसका प्रकोप फैला। हालांकि पशुओं की मौत ज्यादा नहीं हुई। उस समय टीकाकरण अभियान चलाया गया और मवेशी बाजारों पर रोक लगा दी गई। इधर एक बार फिर कबीरधाम जिले से कुछ गांवों से लंबी वायरस फैलने की खबरें आ रही हैं। इस बार प्रशासन जरा भी अलर्ट दिखाई नहीं दे रहा। कबीरधाम जिले के कई बाजारों में दूसरे राज्यों के पशु लाए जाते हैं, जिनसे वायरस फैलने का खतरा बढ़ रहा है। इन बाजारों पर रोक लगाने का कोई आदेश अब तक नहीं निकला है और न ही ग्रामीणों को इस खतरे को लेकर मुनादी आदि के जरिए आगाह किया जा रहा है।
छप्पर के घर की मरम्मत
प्रधानमंत्री आवास में भी अब कांक्रीट के छत बनने लगे हैं। खपरैल से तैयार घर अब कम ही दिखते हैं। पर ये घर पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। कांक्रीट के घरों के मुकाबले इसके भीतर का तापमान कम होता है। पर लगभग हर साल इसकी मरम्मत करनी पड़ती है। बारिश के पहले जब इसे तैयार किया जाता है तो धूप बड़ी तेज होती है। छत्तीसगढ़ के एक गांव में 40 डिग्री तापमान पर छत की मरम्मत करता परिवार। (rajpathjanpath@gmail.com)
मोदी आयेंगे?
खबर है कि पीएम नरेंद्र मोदी 10 जून के आसपास छत्तीसगढ़ दौरे पर आ सकते हैं। पहले 12 मई को आना प्रस्तावित था, लेकिन बाद में कार्यक्रम स्थगित हो गया। प्रदेश भाजपा प्रभारी ओम माथुर खुद मोदी के कार्यक्रम के लिए लगे हुए हैं।
प्रदेश के नेताओं ने कार्यक्रम तैयारियों से जुड़ी जानकारियां हाईकमान को भेजी है। यह कहा गया है कि 10 जून के आसपास छत्तीसगढ़ में मानसून आ जाता है, और बस्तर में बारिश शुरू हो जाती है। ऐसे में इससे पहले ही आना तैयारियों की दृष्टि से दौरा उचित रहेगा। इस पर केन्द्रीय नेतृत्व ने मौसम को देखकर प्रदेश इकाई के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमति दे दी है।
चर्चा है कि पीएम की सभा दुर्ग में हो सकती है। इसके अलावा सरगुजा में भी कार्यक्रम हो सकता है। खास बात यह है कि पीएम का अड़ोस-पड़ोस के राज्यों में दौरा तो हुआ है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले साढ़े तीन साल में एक बार भी नहीं आए। अब चुनाव नजदीक है, ऐसे में राज्य इकाई पीएम का दौरा कराने के लिए काफी जोर लगा रही है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव और ईडी के घेरे में अफसर
ईडी की जांच के घेरे में आए दर्जनभर आईएएस-आईपीएस अफसरों को फील्ड की पोस्टिंग में रुकावट आ सकती है। इस साल विधानसभा के चुनाव हैं, और सितम्बर से ही चुनाव आयोग से अफसर-कर्मियों की पोस्टिंग को लेकर दिशा-निर्देश जारी हो जाती है।
बताते हैं कि ईडी की चार्ज शीट में कई अफसरों के नाम हैं। इनमें से एक की पोस्टिंग फील्ड में है। इससे पहले आयोग कोई निर्देश जारी करे, उन्हें बदला जा सकता है। आयोग का साफ तौर पर निर्देश है कि जिनके खिलाफ कोई भी जांच चल रही है, उन्हें चुनाव कार्य से अलग रखा जाए। संकेत है कि आईएएस-आईपीएस अफसरों की ट्रांसफर सूची आयोग के निर्देशों को ध्यान में रखकर ही होगी।
एडसमेटा की दसवीं बरसी
बीते 19 मई को 10 साल पूरे हो गए एडसमेटा कांड को। सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस की पेट्रोलिंग टीम ने त्योहार मनाते ग्रामीणों पर नक्सली समझकर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी थी, जिसमें 3 बच्चों सहित आठ लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। एक बच्चे सहित दो ने बाद में दम तोड़ा। इस घटना की चर्चा कुछ दिन बाद 25 मई को परिवर्तन रैली पर हुए हमले की वजह से दब गई। सितंबर 2021 में जस्टिस बी एल अग्रवाल की न्यायिक जांच रिपोर्ट आ गई थी, जिसे 6 महीने के बाद मार्च 2022 में विधानसभा में पेश किया गया। इस रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि ग्रामीण निहत्थे और निर्दोष थे लेकिन हथियारबंद जवानों ने उन पर नक्सली समझकर 48 राउंड फायरिंग की।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि जवानों के पास उपकरणों की कमी थी, वरना वे पहचान सकते थे कि ग्रामीण त्यौहार मना रहे थे, न कि हथियार लेकर मुठभेड़ के लिए खड़े थे। आयोग ने जवानों की गलती तो मानी लेकिन उन पर किसी तरह की कार्रवाई की सिफारिश नहीं की। इस वजह से किसी भी गोली चलाने वाले जवान पर मामूली सी भी आंच नहीं आई है, पर आज तक मारे गए किसी भी ग्रामीण के परिजन को कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया है। बस्तर के मंत्री कवासी लखमा उस वक्त विपक्ष में थे। उनके ही नेतृत्व में कांग्रेस की जांच की एडसमेटा गई थी। फोर्स को कसूरवार माना गया था। उन पर कार्रवाई कथा मुआवजे की मांग तब कांग्रेस ने उठाई थी। इधर दसवीं बरसी के दिन हजारों ग्रामीण इक_े हुए। उन्होंने यही दोनों मांग फिर उठाई कि घटना के लिए जिम्मेदार जवानों पर अपराध दर्ज हो और सरकार पीडि़तों को मुआवजा दे।
घटना भाजपा के कार्यकाल में हुई थी। उसको 5 साल और मिले थे न्याय देने के लिए। कांग्रेस को भी अब साढ़े 4 साल बीत चुके, परिस्थिति नहीं बदली।
कांग्रेस विधायकों की चिंताजनक रिपोर्ट
सोशल मीडिया पर कल से कांग्रेस विधायकों की एक परफारमेंस रिपोर्ट वायरल हो रही है। यह अधिकारिक है या नहीं इसकी कोई पुष्टि नहीं कर रहा। इसके बावजूद लोग रिपोर्ट को दिलचस्पी से पढ़ रहे हैं। यदि इसे सही माना जाए तो ज्यादातर विधायकों का परफारमेंस चिंताजनक है।
रिपोर्ट में कोरिया जिले से सिर्फ अंबिका सिंहदेव को जीतने की स्थिति में बताया गया है। गुलाब कमरो के हार जाने और डॉ. विनय जयसवाल की टक्कर में होने की बात कही गई है। सूरजपुर जिले में मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम सहित तीनों विधायकों के हार जाने का दावा है। बलरामपुर जिले के दोनों विधायक बृहस्पति सिंह और चिंतामणि महाराज के भी हार जाने की बात कही गई है। सरगुजा में टीएस सिंहदेव के जीतने, डॉ प्रीतम राम के हारने और मंत्री अमरजीत सिंह भगत के टक्कर में होने का दावा है। जशपुर जिले में केवल विनय कुमार भगत के जीतने का दावा किया गया है। विधायक यूडी मिंज के बारे में कहा गया है कि वे व्यवहार कुशल नहीं हैं, प्रत्याशी बदलना पड़ेगा। पुराने रायगढ़ जिले की किसी भी सीट पर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित नहीं कही गई है। चक्रधर सिंह सिदार ,प्रकाश नायक और उमेश पटेल को टक्कर में और बाकी दोनों उत्तरी जांगड़े और लालजी सिंह को हारने के खाने में रखा गया है। कोरबा जिले में जयसिंह अग्रवाल की ही जीत सुनिश्चित बताई गई है। मोहित राम को टक्कर में बताया गया है। पुरुषोत्तम कंवर के हारने की बात की गई है। इस जिले की रिपोर्ट में ननकीराम कंवर के भी हारने का दावा है और सलाह दी गई है कि सशक्त प्रत्याशी को टिकट दी जाए, कांग्रेस जीत सकती है।
मरवाही स्वीट से डॉ. केके ध्रुव के हारने की बात की गई है। कोटा से भी डॉ. रेणु जोगी हार सकती है बशर्ते कांग्रेस अच्छे प्रत्याशी को वोट दे। लोरमी को धर्मजीत सिंह हार जाएंगे लेकिन मुंगेली से पुन्नूलाल मोहले फिर जीत जाएंगे, यहां कांग्रेस कमजोर है। तखतपुर से रश्मि सिंह और बिलासपुर से शैलेश पांडे दोनों की हार का दावा किया गया है। बिल्हा में भाजपा के धरमलाल कौशिक को टक्कर में बताया गया है। बेलतरा से भाजपा प्रत्याशी रजनीश कुमार सिंह हारेंगे और मस्तूरी से डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी टक्कर में रहेंगे।
जांजगीर से नारायण चंदेल टक्कर में रहेंगे। सौरभ सिंह जीत जाएंगे। डॉ चरणदास महंत भी जीतेंगे लेकिन स्वयं लड़ेंगे तब, किसी दूसरे को समर्थन देंगे तो कांग्रेस नहीं जीतेगी। चंद्रपुर के कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव के हारने का अनुमान लगाया गया है। बसपा के दो विधायक इसी इलाके के हैं। जैजैपुर के केशव प्रसाद चंद्रा को टक्कर में तथा पामगढ़ की इंदु बंजारे को हार जाने की स्थिति में बताया गया है।
महासमुंद से 4 सीटों में सिर्फ खल्लारी से कांग्रेस की जीत की बात कही गई है। बाकी तीन विधायकों के बारे में स्पष्ट रूप से हार जाने का दावा है। महासमुंद विधायक विनोद चंद्राकर के बारे में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देने, अवैध रेत खनन अवैध शराब बिक्री करने वालों को संरक्षण देने तथा परिवारवाद को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप रिपोर्ट में है।
बलौदा बाजार की बिलाईगढ़ और कसडोल सीटों पर कांग्रेस के हारने का दावा है। बलौदा बाजार से जेसीसी के प्रमोद कुमार शर्मा के भी हारने की बात कही गई है जबकि भाटापारा से भाजपा के शिवरतन शर्मा की जीत की संभावना रिपोर्ट में है।
रायपुर में सिर्फ विकास उपाध्याय के टक्कर में होने की बात कही गई है बाकी सभी कांग्रेसी विधायकों के हारने की बात कही गई है इसमें सत्यनारायण शर्मा और डॉ शिव कुमार डेहरिया भी शामिल है। रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल के फिर जीतने की बात कही गई है, लेकिन कहा गया है कि एजाज ढेबर अगर उम्मीदवार बनते हैं तो टक्कर देंगे।
राजनांदगांव से डॉ रमन सिंह अकेले भाजपा विधायक हैं, जिनके जीत की बात कही गई है। बाकी सभी कांग्रेस विधायकों के हारने का अनुमान लगाया गया है। इनमें छन्नी साहू तथा यशोदा वर्मा भी शामिल है। कांकेर जिले की अंतागढ़ सीट से अनूप चुनाव के हारने की बात कही गई है जबकि भानुप्रतापपुर के कांग्रेस प्रत्याशी की फिर से जीत होने का अंदाजा लगाया गया है। कांकेर से शिशुपाल सौरी के भी फिर से जीतने की बात है। कोंडागांव की दोनों सीटों केशकाल और कोंडागांव से कांग्रेस की जीत का अनुमान है। कोंडागांव से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम विधायक हैं। नारायणपुर के कांग्रेस विधायक चंदन कश्यप और चित्रकूट के राजमन बेंजाम की हार का दावा किया गया है जगदलपुर से भी कांग्रेस हार जाएगी, ऐसा कहा गया है। बस्तर से लखेश्वर बघेल को जीत का अनुमान है। दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा सीटों पर कांग्रेस की जीत का अनुमान लगाया गया है।
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अब तक रमन को ही तोहमत !
भाजपा के रणनीतिकारों के बीच आपसी खींचतान की पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है। राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने तो पहले काफी सक्रियता दिखाई, लेकिन ओम माथुर की प्रदेश संगठन के प्रमुख के तौर पर एंट्री के बाद एक तरह से छत्तीसगढ़ से दूरियां बना ली है।
सुनते हैं कि माथुर ने पहले शिवप्रकाश, पवन साय, और अजय जामवाल से चर्चा कर कोर ग्रुप के सदस्यों के नाम तय कर लिए थे। चुनाव अभियान समिति, और घोषणा पत्र समिति का भी ऐलान होना था, लेकिन वो सब अटक गया है। एक खबर और आई है कि पूर्व सीएम रमन सिंह भी ओम माथुर से नाखुश हैं। यद्यपि पिछले दिनों रमन सिंह ने माथुर समेत तमाम प्रमुख नेताओं को अपने यहां चाय पर आमंत्रित किया था, लेकिन आपस में दूरियां कम होने का नाम नहीं ले रही है।
चर्चा है कि रमन सिंह इस बात को लेकर नाराज हैं कि माथुर कार्यकर्ताओं की बैठक में यदा-कदा विधानसभा चुनाव में बुरी हार के लिए रमन सरकार को दोषी ठहरा देते हैं। अब कांग्रेस सरकार को साढ़े चार साल हो गए हैं, मगर माथुर जैसे नेता भाजपा सरकार में हुए बेहतर कार्यों को नहीं गिनाते हैं। जबकि प्रदेश में अधोसंरचना का विस्तार, और गरीबी उन्मूलन के लिए चावल जैसी योजना रमन सरकार ने लांच की थी। ऐसे में डॉक्टर साब की नाराजगी स्वाभाविक है।
याददाश्त इतनी कमजोर तो नहीं है
सीएम भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र पाटन में कांग्रेस के भरोसे के सम्मेलन में अपार भीड़ उमड़ी। इससे पहले इतनी भीड़ पाटन इलाके में किसी भी दल की सभा में नहीं जुटी थी। कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी आना था, लेकिन वो व्यस्तता की वजह से नहीं आ पाए। भीड़ देखकर प्रदेश प्रभारी शैलजा काफी खुश थीं।
सब कुछ अच्छा होने के बाद भी एक-दो बातें ऐसी हो गई जिसकी पार्टी के भीतर खूब चर्चा हो रही है। मसलन, सीएम ने अपने उद्बोधन में प्रदेश प्रभारी से लेकर ब्लॉक स्तर तक के तमाम पदाधिकारियों का जिक्र तो किया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम का नाम लेना भूल गए। अब मरकाम के अध्यक्ष को हटाने या फिर पद पर बनाए रखने का मसला केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में मरकाम का नाम नहीं लेने के मायने तलाशे जा रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चुनाव को देखते हुए सीएम बस्तर के सांसद दीपक बैज को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। जबकि सिंहदेव खुले तौर पर मरकाम के साथ हैं। चाहे कुछ भी हो, भरोसे के सम्मेलन में सीएम का मरकाम पर भरोसे को लेकर संशय नजर आया।
धर्मजीत सिंह का भाजपा में जाना तय?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के संस्थापकों में से एक, पर निष्कासित लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर बहुत जल्दी ऐलान करने वाले हैं कि वे किस पार्टी में जाएंगे। उनकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की है लेकिन जिन परिस्थितियों में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर स्व. अजीत जोगी के साथ नई पार्टी बनाई, वह उनके मुताबिक अब भी विद्यमान है। यही वजह है कि डॉ. चरण दास महंत के खुले निमंत्रण और टीएस सिंहदेव की सहमति के बावजूद उनकी कांग्रेस से दूरी दिखती है।
रविवार को एक कार्यक्रम में सिंह ने अचानकमार अभयारण्य के संदर्भ में छिड़ी बात पर डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल की तारीफ और मौजूदा वन मंत्री मोहम्मद अकबर की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह के दौर में उनकी बात कम से कम सुन तो ली जाती थी लेकिन अब कोई सुनता भी नहीं।
धर्मजीत सिंह जिस दल में रहेंगे बिलासपुर मुंगेली जिले की कुछ सीटों पर असर डालेंगे। प्रदेश में करारी हार के बावजूद इन दोनों जिलों में सन् 2018 में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा। इधर कांग्रेस संगठन की ओर से कहा गया है कि उनका फोकस हारी हुई सीटों पर है। पर धर्मजीत सिंह की कांग्रेस वापसी की कोई गंभीर कोशिश नहीं हो रही है।
दूसरी ओर भाजपा उन्हें लेने के लिए उत्सुक है। उनको तखतपुर से टिकट भी दी जा सकती है। पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्षिता पांडेय तीसरे नंबर थी और कांग्रेस से करीब 10 हजार कम वोट उन्हें मिले। दूसरे स्थान पर जेसीसी के संतोष कौशिक थे, जो अब कांग्रेस में जा चुके हैं। पहले के विधानसभा चुनावों में तखतपुर में भाजपा का अच्छा प्रदर्शन होता रहा है लेकिन पिछली बार के नतीजे से लगता है कि यह सीट उससे फिर फिसल सकती है। धर्मजीत सिंह ऐसे में उनके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
बस्तर पर छोटे दलों की निगाह
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बस्तर संभाग की सीटों पर जिस तरह एकतरफा जीत मिली उसने तीसरे दलों का भी ध्यान खींचा है। उन्होंने भी अपने हिस्से की जगह तलाश करनी शुरू कर दी है। आम आदमी पार्टी ने कोमल हुपेण्डी को कमान दी है। बहुजन समाज पार्टी की जिम्मेदारी हेमंत पोयम को मिली है। दोनों ने ही सन् 2018 में बस्तर से विधानसभा चुनाव लड़ा था। कोमल हुपेंडी भानुप्रतापपुर से तो हेमंत ने अंतागढ़ से। इधर सर्व आदिवासी समाज ने छत्तीसगढ़ की 50 से 55 सीटों पर लडऩे का ऐलान कर दिया है, जिसमें बस्तर की सभी सीटें होंगी।
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में 23 हजार से अधिक वोट हासिल होने के बाद इस सामाजिक संगठन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उभरकर आई है। पामगढ़, मालखरौदा, चंद्रपुर, अकलतरा सहित प्रदेश की करीब आधा दर्जन दलित और ओबीसी सीटों पर असर और वर्तमान में दो विधायकों वाली बहुजन समाज पार्टी, संगठन का नेतृत्व आदिवासी वर्ग को सौंपने का यदि लाभ उठाने में सफल होती है तो यह आप और सर्व आदिवासी समाज के बाद तीसरी पार्टी होगी जो कांग्रेस-भाजपा के पारंपरिक वोटों पर बस्तर में सेंध लगाएगी। इन तीनों दलों की कोई सीट नहीं भी निकलती है तो भी दोनों प्रमुख दलों के समीकरण को बिगाडऩे वाला है। बस्तर की सीटों से ही प्रदेश में सरकार बनने का रास्ता निकलता है इसलिये इन तीनों दलों की मौजूदगी कांग्रेस भाजपा दोनों की चिंतित कर रही है।
चिडिय़ों के लिए दाना-पानी
भीषण गर्मी में पक्षियों की जान बचे, प्यास बुझे इसके लिए कोरबा में छात्र, युवाओं की एक टीम टीन के कनस्तर के घोंसले बना रही है। भीतर लकड़ी और भूसा है, जिससे तापमान न बढ़े। भीतर दाना और पानी दोनों रख रहे हैं।
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तब सच या अब?
खबर है कि शराब घोटाला केस में ईडी ने प्रदेश के सबसे बड़े शराब निर्माता नवीन केडिया को मुख्य गवाह बनाया है। ईडी ने केडिया के मुख्य आरोपी अनवर ढेबर से लिंक का ब्यौरा भी दिया है। दिलचस्प बात यह है कि करीब साढ़े तीन साल पहले आईटी रेड के बाद नवीन केडिया के बयान भी लिए थे।
चर्चा है कि केडिया ने लिखित बयान में कहा था कि वो अनवर ढेबर को जानते तक नहीं हैं। वो मेयर होने की वजह से एजाज ढेबर से परिचित हैं। लेकिन अनवर से दूर-दूर तक कोई कारोबारी रिश्ता नहीं है। अब सवाल उठ रहा है कि केडिया पहले सही बोल रहे थे या अब। चाहे कुछ भी हो, शराब घोटाला केस उलझा हुआ नजर आ रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
उठापटक और खुशी
सूत न कपास, जुलाहों में ल_म ल_ा। ये कहावत रायपुर के मेयर की दौड़ में शामिल कांग्रेस के कुछ पार्षदों पर फिट बैठ रही है। दरअसल, रायपुर के मेयर एजाज ढेबर से ईडी पांच बार पूछताछ कर चुकी है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। इस पूरे घटनाक्रम पर मेयर की दौड़ में शामिल एक-दो पार्षदों की पैनी नजर है।
दरअसल, एक युवा पार्षद ने मेयर के हटने की संभावनाओं के चलते कुछ पार्षदों के साथ बैठक की, तो इसकी खबर चारों तरफ फैल गई। अब इससे जुड़ी नई खबर यह है कि भविष्य में होने वाले शक्ति प्रदर्शन में साथ देने के लिए कुछ पार्षदों को एक-एक लाख दिए गए हैं। हल्ला यह भी है कि हितग्राहियों में एक-दो भाजपा के पार्षद भी हैं। भाजपा के लोगों को सेट करने की जिम्मेदारी ‘राम’ नाम के एक नेता को दी गई है।
मेयर हटेंगे या नहीं, इसकी संभावना तो बेहद कम है। लेकिन पार्षद दल के अंदरखाने में जिस तरह उठापटक चल रही है, उससे भाजपाई खेमे में खुशी की लहर है।
सिंहदेव पैराशूट से उतरेंगे?
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव इन दिनों विदेश घूम रहे हैं। उन्होंने कल शाम स्काईडाइविंग करते हुए एक वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किया। लिखा- आसमान की पहुंच की कभी कोई सीमा नहीं थी। ऑस्ट्रेलिया में स्काईडाइविंग का अविश्वसनीय अवसर मिला। यह एक असाधारण साहसिक कार्य था, बेहद सुखद अनुभव हुआ।
24 घंटे से भी कम समय में इसे 3 लाख लोग देख चुके है और सैकड़ों लोगों ने प्रतिक्रिया दी है। अनेक अफसर, नेताओं और आम लोगों ने इसे वंडरफुल, माइंड ब्लोइंग, अमेजिंग, सुपर, वाह- बाबा साहब, ग्रेट सर जी, नाइस आदि कहा है। लोगों ने कहा कि इस उम्र में भी आपकी एनर्जी कमाल की है।
पर कुछ प्रतिक्रियाएं चुटकी लेते हुए भी की गई है। जैसे एक ने कहा है कि दिल जवां तो बेबसी कैसी, सफेद बालों की ऐसी की तैसी। और एक ने सिंहदेव की जाहिर इच्छा की ओर इशारा करते हुए लिखा- बस इसी तरह से प्रदेश के मुखिया की कुर्सी संभालने के लिए आप जल्दी ही पैराशूट से उतरने वाले हैं।
पेड़ के नीचे हेल्थ कैंप
बस्तर के सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कितनी बदहाल है इसका बयान इस तस्वीर में है। बीजापुर जिले के ताकिलोड सहित आसपास के कई गांवों में एनीमिया का प्रकोप फैलने की खबर जिला मुख्यालय पहुंची। इन गांवों तक जाने का रास्ता नहीं था, क्योंकि इंद्रावती नदी पर पुल नहीं बना है। इन इलाकों में पुल-पुलिया, सडक़ बनाना कठिन काम है क्योंकि नक्सल प्रभावित है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम नाव से नदी पार कर वहां पहुंची। उन्होंने यहां एक अस्थायी स्वास्थ्य शिविर लगाया। साधन नहीं था तो पैरा और कपड़े बिछाकर पीडि़त मरीजों को जमीन पर लिटाया और पेड़ों के सहारे रस्सी खींच कर उन्हें सलाइन चढ़ाया। इन कर्मचारियों के जज्बे की वजह से ही तीन दिन के भीतर ही लगभग 200 लोगों की सेहत में सुधार आ सका है।
सरकारी स्कूल के छात्रों को आरक्षण
सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले मेधावी बच्चों का ख्याल रखने के लिए मध्य प्रदेश सरकार के फैसले की शायद आने वाले दिनों में दूसरे राज्य भी नकल करें। यहां एक आदेश पिछले सप्ताह जारी किया गया है जिसके मुताबिक छठी से बारहवीं तक सरकारी स्कूलों में नियमित पढ़ाई कर पास बच्चों के लिए एमबीबीएस और बीडीएस की पांच प्रतिशत सीट रिजर्व रहेगी। इसके अलावा निजी स्कूलों में आरटीई के तहत आठवीं तक पढऩे वाले और फिर आगे की पढ़ाई सरकारी स्कूलों में करने वाले बच्चों को भी यह लाभ मिलेगा।
सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार के तमाम प्रयास विफल हो जाने की वजह से ही स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों की मांग हो रही है। इन स्कूलों में दाखिले के लिए अर्जी देने वाले सिर्फ 10 या 20 प्रतिशत छात्रों को एडमिशन मिल पाता है।
कई बार कहा जाता है कि यदि बड़े अफसर अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना शुरू करें तो स्थिति बदल जाएगी। मध्य प्रदेश सरकार के फैसले से एक छोटी सी उम्मीद नजर आ रही है कि सरकारी स्कूलों में भी संसाधन और शिक्षा का स्तर उठाने के लिए कुछ गंभीर प्रयास होंगे।
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रंग में भंग
चुनावी साल में छोटे-बड़े नेता अपने जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन से पीछे नहीं है। कुछ दिन पहले पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और अन्य प्रमुख नेताओं का जन्मदिन समर्थकों ने उत्साहपूर्वक मनाया था। इससे परे सत्ताधारी दल के एक विधायक का जन्मदिन तनाव भरे माहौल में मनाया गया।
बताते हैं कि विधायक महोदय के जन्मदिन के दो दिन पहले ईडी ने समंस जारी कर पूछताछ के लिए बुलावा भेजा। महोदय के उम्मीद थी कि ईडी दो -चार घंटे में पूछताछ कर जाने देंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ। ईडी की पूछताछ रूक-रूक कर चलती रही। समर्थकों ने घूम-घूमकर जन्मदिन के लिए जरूरी संसाधन जुटा लिए, लेकिन ईडी के जांच के चलते वैसा तामझाम नहीं हो पाया है। जिसकी तैयारी महीनेभर से चल रही थी।
कुछ इसी तरह बिलासपुर संभाग के एक विधायक ने तो कुछ हफ्ते पहले जन्मदिन के लिए समर्थकों के माध्यम से खूब चंदा एकत्र करवाया, लेकिन अंतिम में उन्होंने किन्हीं कारणों से जन्मदिन को सादगी से मनाने का फैसला लिया। अब कहा जा रहा है कि जो संसाधन जुटाए गए हैं, वो विधानसभा चुनाव के काम आएंगे।
खेल-खेल से पढ़ाने में फर्क
एक बड़े राजा की बेटी, 2 दिन से बीमार पड़ी, 3 संतरी दौड़े आए, 4 दवा की पुडिय़ा लाए, 5 मिनट में घोल बनाए, छह घंटे बाद पिलाई, 7 दिनों में आंखें खुली, 8 दिनों में मां से बोली, नौवें दिन फिर दौड़ लगाई, दसवें दिन पाठशाला आई। छोटे बच्चों को खेल-खेल में गणित जैसे विषय कैसे सिखाया जाए इसके लिए यह तरीका समग्र शिक्षा अभियान के तहत अन्य राज्यों के अलावा छत्तीसगढ़ में भी अपनाया जा रहा है। इसके लिए एफएलएन (फाउंडेशन लिटरेसी एंड चार्ट पेपर) किट की पूरे राज्य के प्रायमरी स्कूलों में सप्लाई होने वाली है। सरकारी स्कूलों में तो सत्र लगभग बीत जाने के बाद यह मार्च तक पहुंची। ग्रामीण क्षेत्रों के कई स्कूलों में तो यह पहुंची ही नहीं। बहुत से बच्चों और अभिभावकों को तो इसके बारे में मालूम भी नहीं है। दूसरी ओर इसी नए प्रयोग ने प्राइवेट स्कूलों के अभिभावकों पर बोझ डाल दिया है। लर्न बाइ फन नाम से किट और बुक उन्हें अपनी पसंद के प्राइवेट प्रकाशकों के थमाये जा रहे हैं। छोटे बच्चों की पढ़ाई का सवाल है। स्कूल प्रबंधन अनिवार्य बताता है इसलिए खरीदना भी पड़ रहा है। सरकारी स्कूलों के किट में गुणवत्ता पर सवाल है, खर्च नहीं करना है। पर प्राइवेट स्कूलों में गुणवत्ता की शिकायत कम लेकिन खर्चीला है।
हसदेव के तट पर रस्साकशी
खेलों के जरिये सामूहिकता, सहयोग और संवाद का कौशल विकसित होता है। नदी की धारा और तट हो तो ऐसे खेल और आकर्षक हो जाते हैं, जो उनके स्वास्थ्य और स्वाभाविक विकास में मदद करता है। कोरबा के समीप झोरघाट पर बच्चे रस्साकशी के खेल में लगे हुए हैं। इस बात से अनजान कि इस नदी को बचाने के लिए सरकार और तट के निवासियों के बीच कितनी रस्साकशी चल रही है। इन दिनों वैसे हर तरफ नदियों में हाईवा ट्रैक्टर उतरे हुए दिखाई दे रहे हैं, पर यहां रेत पर बच्चे खेलते नजर आ रहे हैं।
तिरंगे पर सियासत
राष्ट्रध्वज मे जो तीन रंग हैं, उन्हीं तीन रंगों का कांग्रेस पार्टी के झंडे में इस्तेमाल होता है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की अलग पहचान इसके बीच के हिस्से में बने अशोक चक्र से होती है। कांग्रेस के झंडे में उसका चुनाव चिन्ह होता है। पर यदि सिर्फ तीन रंग हों, न ही अशोक चक्र न ही पंजे का निशान, तब उसे क्या समझा जाएगा? कोरबा में इसी बात को लेकर सियासत हो रही है। यहां पर बुजुर्गों के लिए एक सियान सदन बनाया गया। साज-सज्जा के दौरान इसमें एक पट्टी तिरंगे की भी बनाई गई। आरोप है कि नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल ने नगर-निगम के कर्मचारियों पर दबाव डाला, पट्टिका मिटा दी गई। प्रतिपक्ष के पार्षदों का कहना है कि सरकारी भवनों का कांग्रेसीकरण किया जा रहा है। भाजपा पार्षदों ने अपर आयुक्त से शिकायत की कि उनके वार्ड में कराए गए निर्माण कार्यों में कांग्रेसी पार्षदों का नाम लिखा जा रहा है। इधर कांग्रेसी पार्षदों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई है, तिरंगे के अपमान की। अब पुलिस पेशोपेश में है कि जो तिरंगा मिटाया गया उसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान माना जा सकता है या नहीं।
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ओपी ने मोर्चा सम्हाला
पीएससी में गड़बड़ी पर प्रदेश की राजनीति गरम है। इस पर भाजपा के अंदरखाने में काफी चर्चा भी हुई। ज्यादातर नेताओं का सुझाव था कि यह लाखों बेरोजगारों से जुड़ा मामला है, और इसको लेकर प्रदेश स्तर पर बड़ा आंदोलन होना चाहिए।
भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने तो शुरू में गड़बड़ी पर चुप्पी साध ली थी। प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास अकेले लड़ाई लड़ते दिख रहे थे। ऐसे में नौकरी छोडक़र सक्रिय राजनीति में आए ओपी चौधरी की खामोशी से कई नेता नाराज भी हो गए। चौधरी जी यूपीएससी और पीएससी परीक्षा की तैयारियों में लगे युवाओं को फेसबुक पर टिप्स भी देते हैं।
हजारों युवा उन्हें फालो भी करते हैं। मगर इस गंभीर विषय पर उनकी खामोशी कई नेताओं को बर्दाश्त नहीं हुई। एक-दो नेताओं ने पार्टी पदाधिकारियों को वाट्सएप ग्रुप में लिखा कि चौधरी जी को विधानसभा सीट खोजने के बजाए पीएससी में गड़बड़ी खोजना चाहिए। फिर क्या था, चौधरी जी सक्रिय हुए और पीएससी अभ्यर्थी का कथित गड़बड़ी के खुलासे वाला गुमनाम पर्चा ट्विटर पर डालकर सुर्खियों में आ गए। इस पर सैकड़ों लोगों की प्रतिक्रिया आई है।
मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ से कौन?
चर्चा है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जल्द फेरबदल हो सकता है। जिन पांच राज्यों में सालभर के भीतर चुनाव होने वाले हैं, वहां से प्रतिनिधित् मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। अभी वर्तमान में रेणुका सिंह एकमात्र मंत्री हैं।
बताते हैं कि छत्तीसगढ़ से एक और सांसद को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। इसके लिए जांजगीर-चांपा के सांसद गुहाराम अजगले का नाम प्रमुखता से उभरा है। अजगले दूसरी बार के सांसद हैं। अजा वर्ग से आने वाले अजगले की साख अच्छी है। इससे परे कांकेर के सांसद मोहन मंडावी, और विजय बघेल व संतोष पाण्डेय के नाम का भी हल्ला है।
एक चर्चा यह भी है कि रेणुका की जगह रायगढ़ के सांसद गोमती साय को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। गोमती साय को रेणुका के मुकाबले ज्यादा प्रभावी माना जाता है। गौर करने लायक बात यह है कि कुछ महीने पहले भी इसी तरह केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हल्ला उड़ा था, तब कई उत्साही लोगों ने विजय बघेल को बधाई भी दे दी थी। मगर इस बार विधानसभा चुनाव को देखते हुए मंत्रिमंडल में जल्द फेरबदल के आसार दिख रहे हैं। भाजपा सांसद भी दिल्ली में कुछ ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बस्तर में सोशल मीडिया बूम
इंटरनेट कनेक्टिविटी के विस्तार के बाद दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक बात पहुंचाना बहुत आसान हो गया है। माओवाद प्रभावित बस्तर में यदि मीलों भीतर आंदोलन हों, हवाई हमले हों तो कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर अपलोड हो जाती है। नक्सली अपनी बात सरकार और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अखबारों में चि_ियां भेजते थे लेकिन अब उनके प्रेस नोट कुछ ही क्षण में वायरल हो जाते हैं। सुरक्षा बलों को भी बस्तर में इंटरनेट कनेक्टिविटी का विस्तार होने का लाभ मिला है। और वहां के युवा इसका अलग ही तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। दर्जनों यू ट्यूबर हैं। बहुत से लोग न्यूज पोर्टल चला रहे हैं। कोई सम-सामयिक खबरें कवर कर रहा है तो कोई बस्तर की प्रकृति और संस्कृति को। बस्तर के कोंडागांव की इस दुकान को देखने से पता चलता है कि वहां ट्राइपॉड और वीडियो कवरेज के काम आने वाले उपकरणों की कितनी मांग है। बहुत से युवा यू-ट्यूब और न्यूज पोर्टल से ठीक-ठाक कमाई भी कर रहे हैं।
बाबा के मंजन में मांसाहारी तत्व
बाबा रामदेव और उनके पतंजलि उत्पाद हमेशा विवादों में रहे हैं। पतंजलि के कई प्रोडक्ट दूसरे देशों में बैन होने की खबरें आती रही हैं। पर ये खबरें किसी कोने में छिपी होती हैं क्योंकि तमाम टीवी चैनल, अखबार इनसे विज्ञापन पाते हैं। अपने यहां उनके उत्पाद बैन नहीं होते। सन् 2014 में अपने लाखों भक्तों के बीच उन्होंने 40 रुपये में पेट्रोल बिकने और हर किसी की जेब में काला धन का 15 लाख रुपये आने वादा कर केंद्र में भाजपा की सरकार बनाने में मदद की थी। कोविड महामारी के समय भी उन्होंने कोरोनिल नाम की दवा निकालकर कोरोना से छुटकारा देने का दावा किया। लाखों लोगों ने यह दवा ली। चिकित्सक संगठनों ने इस दावे को झूठ बताया, तब उन्होंने कहना शुरू किया कि कोरोनिल इम्युनिटी बढ़ाने की दवा है जिससे कोरोना ठीक करने में मदद मिलेगी। अब उनका एक और प्रोडक्ट विवाद में है। दिल्ली की एक अधिवक्ता शाशा जैन ने बाबा, आचार्य बालकृष्ण और उनकी कंपनी को कानूनी नोटिस भेज दी है। नोटिस में कहा गया है कि उनके प्रोडक्ट दिव्य दंतमंजन में कैटल फिश ( समुद्री फेन) का इस्तेमाल किया गया है, जो मांसाहार की श्रेणी में आता है, जबकि मंजन की डिबिया में ग्रीन सिंबल दिया गया है जो शाकाहारी उत्पाद में ही प्रयोग हो सकता है। ऐसा करना उन उपभोक्ताओं के साथ धोखा है, जो मांसाहारी नहीं है। साथ ही ग्रीन, रेड लेबलिंग के नियमों का भी उल्लंघन है।
शाशा जैन ने यह पोस्ट अपने ट्विटर हैंडल पर 15 मई को डाली है, जो 11 मई को भेजी गई थी। अब तक पतंजलि की ओर से कोई जवाब आया हो, इसकी जानकारी उन्होंने नहीं दी है। छत्तीसगढ़ में भी पतंजलि उत्पादों के कई बड़े शो-रूम हैं और छोटी दुकानें तो हर शहर कस्बे में हैं। यहां भी यह मंजन बिक रहा है, शाकाहारी लोग भी इसे खरीद रहे हैं।
धार्मिक आयोजन की तैयारी?
ऊर्जा नगरी कोरबा में इन दिनों इस तरह की होर्डिंग कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिज्ञासा पैदा करने की तकनीक है कि इसमें होर्डिंग लगाने वाले का कोई विवरण नहीं है। मीडिया के लोगों ने जानना चाहा तो उन्हें कुछ पता नहीं चला। नगर-निगम जिसकी अनुमति होर्डिंग के लिए जरूरी है, को भी नहीं मालूम। चुनाव नजदीक आ रहे हैं। अकेले भाजपा धार्मिक आयोजन करती हो तब तो लोग अंदाजा लगा लेते कि बाबा बागेश्वर जैसा कोई प्रवचनकार आ रहा होगा, पर अब तो प्रदेशभर में कांग्रेस सरकार भी रामायण का आयोजन करा रही है। लोग कह भी कर रहे हैं कि जून में होने वाले राम मंदिर के शिलान्यास की तैयारी है। कुछ कह रहे हैं जया किशोरी आने वाले हैं, कुछ का अनुमान है शंकराचार्य पहुंचने वाले हैं।
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खाना कैसे लेट करें?
पिछले 4 साल से एक के बाद एक हो रही बैठकों से भाजपा नेता ऊबने लगे हैं। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक बीच में छोडक़र कई नेता बाहर निकल गए थे। इसके लिए उन्हें फटकार भी सुननी पड़ी।
हुआ यूं कि कार्यसमिति की बैठक से पहले ही बता दिया गया था कि तीन बजे भोजन होगा। बैठक मोदी सरकार के 9 साल का कार्यकाल पूरे होने के पर प्रदेशभर में सभा-सम्मेलनों के आयोजन के लिए बुलाई गई थी।
बैठक में बड़े नेताओं के भाषण के बीच कुछ पदाधिकारी चुपके से बाहर निकल गए, और भोजन शुरू कर दिए। एक के बाद एक पदाधिकारियों को निकलते ही महामंत्री (संगठन) पवन साय की नजर उन पर पड़ गई। पवन साय ने कुछ नहीं कहा, और वो भी चुपचाप पदाधिकारियों के पीछे हो लिए। साय ने देखा कि भोजन अवकाश से पहले ही कुछ ने खाना शुरू कर दिया है। साय को देखते ही पदाधिकारी थाली छिपाने लगे। फिर क्या था, साय का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
और उन्होंने महत्वपूर्ण बैठक को गंभीरता से नहीं लेने पर पदाधिकारियों को जमकर फटकार लगाई। इसके बाद पदाधिकारी खाना अधूरा छोड़ बैठक में जाना पड़ा। सायजी को कौन समझाए कि बीपी, शुगर से जूझ रहे एक-दो पदाधिकारियों के दवाई खाने का समय हो गया था। खाली पेट तो दवाई खा नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने खाना शुरू कर दिया। इससे नाराज पदाधिकारी आपस में बतियाते निकले कि पार्टी के कर्णधार अब भी छोटे नेताओं, और कार्यकर्ताओं की समस्याएं नहीं समझ पा रहे हैं।
असंतुष्ट मंत्रियों की गुहार
सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव, जयसिंह अग्रवाल, और रूद्र कुमार गुरु की अपनी समस्याएं हैं। चर्चा है कि उन्होंने प्रदेश प्रभारी सुश्री शैलजा को अवगत करा दिया है। जयसिंह पहले भी प्रशासनिक अड़चनों को लेकर काफी कुछ कह चुके हैं।
नई खबर यह है कि चुनाव से पहले असंतुष्ट नेताओं की समस्याओं के निराकरण का फार्मूला तैयार हो रहा है। चर्चा है कि पुलिस और प्रशासनिक फेरबदल में इसकी छाया देखने को मिल सकती है। फेरबदल की सूची जल्द जारी होने की संभावना है।
इसी बीच रुद्र गुरु एक और बात को लेकर खफा हो गए हैं। शैलजा ने सीएम हाउस की बैठक के लिए नाम खुद तय किए थे, लेकिन रुद्र गुरु बिना बुलाए पहुंच गए थे। उन्हें मीटिंग में शामिल नहीं किया गया, वापस आना पड़ा। शिकायत के लिए गए थे, एक और शिकायत लेकर लौटे।
खिलाडिय़ों के खाने के साथ खेल
एक केला, एक उबला अंडा और थोड़ा सा अंकुरित मिलेट। यह किसी बीमार-बुजुर्ग का नाश्ता लग रहा हो लेकिन यह उन खिलाडिय़ों क है जो रायगढ़ में चल रहे ग्रीष्मकालीन खेलों में अपनी ताकत झोंक रहे हैं। जानकारी यह भी आई है कि ऐसी एक प्लेट के पीछे कांट्रेक्टर को 75 रुपए भुगतान किया जा रहा है। ऐसी प्लेट खिलाडिय़ों की पेट भरे न भरे, जो लोग फंड संभाल रहे हैं उनकी सेहत जरूर बन जाएगी।
पटवारी से बचें तो एसडीएम दफ्तर में भटकें
प्रदेश के पटवारी 15 मई से बेमियादी हड़ताल पर हैं। 2 साल पहले भी इन्होंने 10 दिन की हड़ताल की, फिर राजस्व मंत्री के आश्वासन पर वापस लौट गए। बीते 24 अप्रैल को एक दिन की हड़ताल करके इन्होंने याद दिलाया कि 2 साल पहले का आश्वासन अब तक पूरा नहीं हुआ है।
आगामी चुनाव के मद्देनजर बहुत से कर्मचारी संगठन आंदोलन कर अपनी मांगें मनवाने की आखिरी कोशिश में हैं।
वैसे तो पटवारियों की वेतन विसंगति, प्रमोशन, मुख्यालय में रहने की बाध्यता, स्टेशनरी भत्ता जैसी करीब 8 मांगे हैं मगर इनमें से एक भुइयां सॉफ्टवेयर से होने वाली परेशानी का हल निकालने की मांग है। यह समस्या ऐसी है जिसे दूर करने की शासन से कोई पहल नहीं हो रही है। यह सॉफ्टवेयर किसानों को पटवारी के चक्कर लगाने से बचाता है ने लेकिन इसमें दर्ज हो जाने वाली त्रुटियों को लेकर वे काफी परेशान हैं। किसान की जाति, जमीन का रकबा दर्ज कुछ और किया जाता है और एंट्री कुछ अलग हो जाती है। इसमें जो त्रुटि होती है उसका संशोधन नीचे कोई अधिकारी-कर्मचारी नहीं कर सकता। एसडीएम के पास आवेदन करना पड़ता है। राजस्व विभाग किसानों का ख्याल रखते हुए कम से कम इस सॉफ्टवेयर को तो ठीक करा दें। अभी पटवारी से तो राहत मिल रही है, पर त्रुटि में सुधार के लिए एसडीएम ऑफिस का चक्कर लगाना पड़ता है।
रूट दोगुनी, बोगियां आधी
वंदे भारत एक्सप्रेस की जगह नागपुर-बिलासपुर के बीच तेजस एक्सप्रेस चलाने का निर्णय अस्थायी है, यह तो रेलवे ने बताया था लेकिन इतनी जल्दी यू-टर्न होगा इसका किसी को अनुमान नहीं था। तेजस तीन दिन ही चली अब दोबारा वंदे भारत की ही स्पेशल बोगियां दौड़ रही है। मगर एक बड़ा बदलाव यह हुआ है कि ट्रेन की बोगियां घटकर आधी हो गई हैं। पहले इसमें एग्जीक्यूटिव क्लास के 2 कोच और 14 चेयर कार थे। अब जो कल से वंदे भारत दौड़ रही है उसमें एग्जीक्यूटिव कार एक और चेयर कार घटाकर सात कर दी गई है। दरअसल यह आधी बोगियां खाली ही दौड़ रही थी। लंबाई आधी करने का लाभ हुआ कि दूसरे राज्यों में नई वंदे भारत ट्रेन चलाने के लिए बोगियां मिल गई। जैसा कि आज भी हावड़ा पुरी के बीच एक और वंदे भारत शुरू हो गई है।
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भाजपा की रणनीति फ्लॉप ?
भाजपा में अंतर्कलह यदा-कदा सामने आ जा रही है। बड़े नेताओं की आपसी खींचतान का सीधा असर पार्टी के कार्यक्रमों पर पड़ रहा है, और कई कार्यक्रम इसकी वजह से फ्लाप-शो बनकर रह जा रहे हैं।
हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने अपने करीबी दोनों महामंत्री ओपी चौधरी, और विजय शर्मा से मिलकर सरकार की गौठान योजना की पोल खोलने की रणनीति तैयार की थी। इससे बाकी बड़े नेताओं को अलग रखा गया। यह तय किया गया कि रायपुर के 25 किमी की परिधि में स्थित दो-तीन गौठान में जाकर मीडिया के जरिए आम लोगों तक पहुंचाएंगे।
रायपुर ग्रामीण के एक-दो नेताओं से चर्चा कर खराब तरीके से चल रहे कुछ गौठान चिन्हित किए गए। इनमें महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस के गृहग्राम गोढ़ी का गौठान भी था। नेताओं ने तय किया कि सबसे पहले गोढ़ी में ही छापेमारी करेंगे, और अनियमितता को उजागर करेंगे। सारे पत्रकारों को 2 बजे पार्टी दफ्तर आमंत्रित किया गया, और साथ लेकर गोढ़ी जाने का फैसला लिया गया। कहां जाना है, यह गोपनीय रखा गया था।
चर्चा है कि पार्टी के मीडिया सेल के जिम्मेदार लोगों ने मीडियाकर्मियों को सुबह-सुबह जानकारी दे दी, और फिर बात इतनी तेजी से फैली कि सुबह 10 बजे तक ग्राम गोढ़ी तक बात पहुंच गई। प्रदेश अध्यक्ष के आने से पहले एक-दो पदाधिकारी चुपचाप गौठान देखने पहुंचे थे कि बड़ी संख्या में गौठान के लोग, और ग्रामवासी एकत्र हो गए। इसके बाद भाजपा पदाधिकारियों के साथ झूमा झटकी हो गई। तब तक आसपास के गांव के कांग्रेस के कार्यकर्ता गोढ़ी पहुंच गए, और अध्यक्ष अरूण साव की टीम के पहुंचने से पहले विरोध में नारेबाजी शुरू हो गई।
साव गोढ़ी पहुंचे तब तक एक-दो कार्यकर्ताओं की पिटाई हो चुकी थी। उन्हें वहां विरोध का सामना करना पड़ा। बाद में वो थाने पहुंचकर कांग्रेस के लोगों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पीछा करते वहां तक पहुंच गए, और उन्होंने थाने के बाहर नारेबाजी करने लगे। साथ ही कॉउंटर रिपोर्ट भी लिखवा दी। मुश्किल में फंसे अरूण साव ने मीडिया से चर्चा में गोठान योजना में 13 सौ करोड़ का आरोप लगाकर किसी तरह से निकल पाए। पार्टी के कई लोग मीडिया सेल को ही इस फ्लाप-शो के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
इस पूरे कार्यक्रम से सांसद सुनील सोनी, और विधायक बृजमोहन अग्रवाल को दूर रखने से उनके समर्थक नाराज हैं, सो अलग।
नेताम के दिन फिरे
भानुप्रतापपुर उपचुनाव के बाद पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की पूछपरख बढ़ गई है। अरविंद नेताम को भाजपा अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। पार्टी नंदकुमार साय के भाजपा छोडऩे से काफी दबाव में हैं। दूसरी तरफ, नेताम कह चुके हैं कि सर्व आदिवासी समाज अजजा सीटों के अलावा जनजाति मतदाताओं की बाहुल्यता वाली सीट पर प्रत्याशी उतारेंगे।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अरविंद नेताम, सीएम भूपेश बघेल से व्यक्तिगत तौर पर नाराज हैं। यही वजह है कि भाजपा अब उन्हें साथ लेकर अजजा सीटों पर अपना दबदबा कायम करना चाहती है।
बताते हैं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर की पिछले दिनों पूर्व केन्द्रीय मंत्री नेताम से लंबी चर्चा हुई है। दोनों के बीच बातचीत का माहौल पूर्व राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने तैयार किया। चर्चा है कि नेताम कुछ शर्तों के साथ भाजपा का साथ देने के लिए तैयार भी हो गए हैं। अब नेता भाजपा की मदद कैसे, और किस तरह करते हैं, यह देखना है।
रेलवे के बर्ताव में कोई भेदभाव नहीं
रेलवे में सफर करने वाले आम यात्री हों या खास, युवा हो या बुजुर्ग, सभी एक जैसी तकलीफ से दो-चार हो रहे हैं। दो दिन के भीतर हुई दो घटनाओं का जिक्र। एक यात्री एसी फर्स्ट क्लास में अपने 70 वर्षीय पिता के साथ रायपुर से हावड़ा जा रहे थे। उनकी ट्रेन मुंबई हावड़ा मेल के बारे में बताया गया कि वह रात 19.50 बजे जगह अगले दिन सुबह 3 बजे रवाना होगी। अमूमन यात्री इस तरह के घंटों लेट के आदी हो चुके हैं। शुक्रिया कि रेलवे ने एसएमएस भेजकर जानकारी दे दी। यह तो हुआ लेकिन ट्रेन इस नए समय पर भी नहीं आई। पहुंचने पर जब उन्हें अपना जगह खोजने लगे।तब बताया गया कि उनकी दोनों सीटें कहीं? बदल दी गई है। यहां तक की श्रेणी भी बदलकर 3ए से 3ई कर दी गई है। बुजुर्ग के साथ पूरे प्लेटफार्म पर अपना डिब्बा ढूंढते यात्री परेशान हुए। ट्रेन पर चढऩे के बाद 70 साल के बुजुर्ग पिता को लिए वे एक घंटे तक अपनी जगह तलाशते रहे। उन्होंने 139 नंबर पर कॉल किया, जवाब नहीं मिला। टीटीई, जिन्हें आजकल टेबलेट से लैस कर दिया गया है, उनका भी रूखा जवाब। आखिरकार खुद ही नई सीट ढूंढकर वे बैठे। इसकी शिकायत उन्हें रेल मंत्री और मंत्रालय से की है लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है।
बालोद के एक पैसेंजर के साथ तो और बुरा हुआ। उनकी पैसेंजर ट्रेन समय पर नहीं आई उन्होंने स्टेशन मास्टर के पास शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, क्योंकि उनको ड्यूटी में रायपुर पहुंचने में देर हो गई। मैनेजर ने शिकायत दर्ज की नहीं उल्टे धमकाया कि आप यही आखिरी विकल्प क्यों चुनते हैं। पैसेंजर बार-बार यह जानना चाह रहा था कि आंखें ट्रेन लेट क्यों हैं, स्टेशन मास्टर यही कहते रहे कि कई कारण होते हैं। यह भी कहा कि समय पर सिर्फ राजधानी और वंदे भारत जैसी गाडिय़ां चलती हैं। यानि बाकी ट्रेनों में सफर करने वाले यात्री चाहे ए 1 क्लास में चलें या जनरल डिब्बों में रेलवे के लिए दूसरे दर्जे के नागरिक हैं।
जिलों के लंबे-लंबे नाम
जिलों के नाम छत्तीसगढ़ में इतने लंबे लंबे हो गए हैं कि सरकारी कागजातों में भी समाता। शिक्षा विभाग की ओर से जारी परीक्षा केंद्र संबंधी इस पत्र में नए जिलों का नाम तो ठीक लिखा गया है मगर कुछ पुराने जिलों का पूरा नाम लिखना रह गया है। जैसे बलरामपुर के साथ रामानुजगंज छूट गया। बलोदा बाजार के साथ भाटापारा नहीं लिखा गया है। पहले जिलों के कई नाम ऐसे तय किए जा चुके हैं जिससे पूरे क्षेत्र की विशेषता का पता चल जाता है। जैसे कबीरधाम, कोरिया, सरगुजा और बस्तर। इधर कुछ नए जिलों का नाम लोगों ने संक्षेप में लिखना शुरू कर दिया है। जैसे गौरेला पेंड्रा मरवाही को जीपीएम, मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर को एमसीबी। अब सरकारी दस्तावेजों में भी ये संक्षिप्त नाम दिखाई देने लगे हैं। पर खैरागढ़ साथ छुईखदान और गंडई भी शामिल है, यह लिखते समय ध्यान रखना होगा। मोहला के साथ मानपुर और अंबागढ़ चौकी भी जोडऩा होगा। इन जिलों के लिए संक्षिप्त नामों की तलाश होनी चाहिए। ऐसे नाम जिससे पूरे क्षेत्र की पहचान स्पष्ट हो।
बेकार सामानों का इस्तेमाल
आर आर आर। नाम फिल्मी लग रहा है लेकिन ऐसा नहीं है। स्वच्छता अभियान पर पूरे देश में पहचान बना चुके अंबिकापुर में यह एक नया सेंटर खोला गया है। यहां पर अनुपयोगी सामानों की रिसाइक्लिंग पहले से की जाती थी लेकिन अब तीसरा काम लिया गया है। किसी एक के लिए कोई सामान अनुपयोगी हो तो वह उसे यहां जमा कर दे और जिसे जरूरत हो यहां से ले जाए। केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण में यह योजना लाई गई है, जिसका छत्तीसगढ़ में प्रयोग अंबिकापुर से शुरू हुआ है। (rajpathjanpath@gmail.com)
संदेह से ऊपर रहना था...
पीएससी राज्य सेवा परीक्षा के चयनित अभ्यर्थियों की सूची जारी होने के बाद से विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सूची में अफसरों, नेताओं, और ताकतवर लोगों के बेटे-बेटियों, और नजदीकी रिश्तेदारों की भरमार है। अगर कोई प्रतिभाशाली है, तो उन्हें आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता। मगर कुछ सवाल जरूर उठ रहे हैं जिसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाया है। मसलन, पीएससी चेयरमैन के परिवार के तीन सदस्य क्रमश: डिप्टी कलेक्टर, और डीएसपी व श्रम अधिकारी के पद पर चयनित हुए हंै।
नियमों में साफ है कि परिवार के नजदीकी रिश्तेदारों के परीक्षा में शामिल होने की दशा में चयन प्रक्रिया से जुड़े लोगों को घोषणा पत्र भरकर देना होता है, और वो नियमानुसार चयन प्रक्रिया से अलग हो जाते हैं। मगर पीएससी चेयरमैन ने ऐसा किया है अथवा नहीं, यह साफ नहीं हो पाया है। न सिर्फ पीएससी राज्य सेवा बल्कि कई और परीक्षाओं में धांधली की शिकायत आई है। आयुष टीचिंग स्टॉफ की भर्ती में ऐसी ही धांधली को लेकर कई अभ्यार्थी हाईकोर्ट चले गए हैं।
पीएससी की कार्यप्रणाली पारदर्शिता का अभाव रहा है। वर्ष-2005 की राज्य सेवा की परीक्षा में धांधली को राज्य की जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू ने भी पकड़ा था। हाईकोर्ट ने गड़बड़ी की शिकायत को सही पाया था, और नई चयन सूची जारी करने के आदेश दिए थे। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। प्रकरण पर सुनवाई अभी भी लंबित है।
वैसे पीएससी चेयरमैन आलोचकों के निशाने पर है। वजह यह है कि प्रशासनिक कैरियर में वो बेदाग नहीं रहे हैं। उन पर जांजगीर-चांपा के जिला पंचायत सीईओ रहते मनरेगा घोटाले के छींटे पड़े थे। उनकी दो वेतन वृद्धि भी रोकी गई थी। हालांकि बाद में वो कांकेर और नारायणपुर कलेक्टर रहे। सरगुजा कमिश्नर भी बनाए गए। सीएम के सचिव भी रहे। अब गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, तो पुराने मामलों पर चर्चा हो रही है। प्रसिद्ध रोमन कहावत है कि सीजर की पत्नी को संदेह से ऊपर रहना चाहिए। मगर चेयरमैन उक्त कहावत पर फिट नजर नहीं आ रहे हैं।
कर्नाटक नतीजे और वंदेभारत
नागपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली वंदेभारत ट्रेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 11 दिसंबर को हरी झंडी दिखाई थी। इसे नागपुर से लेकर बिलासपुर तक के सभी भाजपा सांसदों ने केंद्र की एक बड़ी उपलब्धि बताया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और सांसद संतोष पांडेय ने इस ट्रेन को राजनांदगांव में भी स्टापेज दिलाया। रायगढ़ से इस ट्रेन को शुरू करने की मांग होने लगी थी। मगर बड़ी खामोशी से ठीक 5 माह बाद यह ट्रेन हटा ली गई है। इसकी बोगियां सिकंदराबाद, यानि हैदराबाद भेज दी गई है। उसकी जगह बिना जलसा किए तेजस एक्सप्रेस चला दी गई।
तेलंगाना के सिंकदराबाद (हैदराबाद) से चलने वाली यह दूसरी वंदेभारत ट्रेन है। यह ट्रेन हैदराबाद से तिरुपति बालाजी तक चलाई जा रही है, जिसके लिए बिलासपुर-नागपुर की बोगियां भेज दी गई हैं। तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल 16 जनवरी 2024 तक है। इस साल दिसंबर में यहां चुनाव प्रस्तावित है। यह वंदेभारत ट्रेन जिस चित्तूर जिले के तिरुपति को जोड़ रही है वह आंध्रप्रदेश में है। यहां विधानसभा का कार्यकाल 11 जून 2024 तक है। यानि करीब एक साल के भीतर इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव है। अप्रैल मई में देश में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। आंध्रप्रदेश विधानसभा में स्थिति यह है कि 175 में से 173 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था लेकिन उसके हाथ एक भी सीट नहीं आई। यही हाल लोकसभा का है। एक भी भाजपा सांसद नहीं। लोकसभा, विधानसभा दोनों में वाईएसआर कांग्रेस का दबदबा है। इधऱ तेलंगाना विधानसभा में भी बीआरएस का दबदबा है, 117 सीटों में से सिर्फ 3 भाजपा के पास है। लोकसभा की 17 सीटों में 4 भाजपा के पास है और बीआरएस के पास 9 सीटें हैं।
यह संयोग ही है कि एग्जिट पोल में कर्नाटक से भाजपा की हार जब बताई जाने लगीं, उसी समय रेलवे बोर्ड से वंदेभारत को बिलासपुर-नागपुर के बीच बंद करने की खबर आई। हालांकि संभावना है कि इसका निर्णय पहले हुआ होगा। इसे दक्षिण के इन दोनों राज्यों के मतदाताओं को खुश करने की कोशिश के रूप में लिया जा रहा है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में तो भाजपा की गठबंधन सरकार है ही, विदर्भ की लोकसभा सीटों पर भी दबदबा है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा में सीटें जरूर कम हैं, पर सांसद तो 11 में से 9 हैं। इन दोनों राज्यों सहित एमपी, गुजरात, यूपी, राजस्थान आदि में भाजपा अपना अधिकतम बेहतर प्रदर्शन कर चुकी है। दिल्ली में मोदी सरकार को 2024 में फिर से बिठाने के लिए दक्षिण से सीटें लाना जरूरी है। कर्नाटक चुनाव के बाद यह चुनौती और बढ़ गई है। वंदेभारत एक्सप्रेस को इसी का हिस्सा मान सकते हैं। विदर्भ और छत्तीसगढ़ के मतदाताओं को तो बहलाया जा सकता है।
ग्रामीण बचें, काश बाघ भी बच जाएं...
तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए जंगल के भीतर जा रहे ग्रामीणों का इन दिनों उन वन्यप्राणियों से मुठभेड़ हो रहा है, जो पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। तीन दिन पहले खैरागढ़ अंचल के केरलागढ़ के जंगल में तेंदूपत्ता तोडऩे गया एक ग्रामीण बाघ के हमले से घायल हो गया। उसके आसपास दूसरे लोग भी पत्ता तोड़ रहे थे। उनके शोर से घबराकर बाघ भाग गया। पर, बाघ का पता नहीं चल सका है। कल ही कोरबा के पसान इलाके में एक तेंदुआ बस्ती के भीतर घुसकर एक बैल का शिकार कर गया। बीते मार्च में सूरजपुर जिले के कुदरगढ़ जंगल में एक बाघ के हमले से दो युवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मार्च में ही रामानुजगंज में एक बाघ बस्तियों के पास घूम रहा था। ग्रामीण उन्हें जगह-जगह लाठियां पत्थर लेकर दौड़ाते रहे। ऐसी घटनाओं के बाद आसपास के कई गांवों में भय फैल ही जाता है। ग्रामीण मौका पाकर बाघों पर हमला कर देते हैं। सरगुजा में पिछले साल दो भैंसों का शिकार करने का बदला ग्रामीण ने बाघ की हत्या करके लिया। कुछ साल पहले राजनांदगांव में एक बाघ और एक बाघिन को ग्रामीणों ने घेरकर लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। अचानकमार अभयारण्य के कोटा क्षेत्र में पिछले साल एक शावक मृत मिला था, जिसकी भी हत्या की आशंका जताई गई थी। एटीआर में ही एक बाघिन रजनी घायल अवस्था में मिली थी, जिसकी कुछ महीनों के बाद कानन पेंडारी में मौत हो गई थी। हाल ही में बिलासपुर से सिर्फ 13 किलोमीटर दूर एक तेंदुआ एक फॉर्म हाउस में ग्रामीणों से डर कर छिपा था, जिसे वन विभाग ने रेस्क्यू किया। दो साल पहले नागझीरा, राजनांदगांव के फॉरेस्ट रिजर्व में मां के साथ पटरी पार कर रहे शावक बाघ की मालगाड़ी के पहिये के नीचे आने से मौत हो गई थी। पिछले साल कटनी रेल मार्ग पर बेलगहना और खोंगसरा के बीच एक 6 साल के तेंदुए की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी। पिछले साल ही जून माह में कोरिया जिले के गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघ की मौत हो गई। यहां बाघों के प्राकृतिक आवास के इलाके में वन विभाग के अधिकारी सडक़ बना रहे थे।
बाघों के मामले में छत्तीसगढ़ का ट्रैक रिकॉर्ड खराब है। पहले 48 बाघ थे अब 19 बताए जा रहे हैं। नया आंकड़ा अभी अलग से नहीं बताया गया है। पर कमी दूर करने मध्यप्रदेश से और बाघ लाकर वनों में छोडऩे की योजना बनाई गई है। पर इस तरह से हो रही असमय मौतों को देखते हुए लगता है कि बाघों का संकट उतना बड़ा नहीं है, जितना जो हैं उन्हें बचा लेने का है। जरूरी यह है कि इधर उधर भटक रहे बाघों की सुरक्षा के लिए ही वन विभाग ठीक तरह से प्रबंध कर ले।
(rajpathjanpath@gmail.com)
जैन-अग्रवाल उम्मीदवारों का वजन
प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे टीम सक्रिय है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही दल अपनी स्थिति का आकलन करने के लिए सर्वे करा रही है। भाजपा तो निजी एजेंसी से सर्वे करा रही है। साथ ही केन्द्र की खुफिया एजेंसी भी प्रदेश की जमीनी हालात पर नियमित रिपोर्ट केंद्र को भेजती है।
बताते हैं कि एक एजेंसी ने हाल ही में जमीनी स्थिति का आकलन कर रिपोर्ट भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक भेजी है। रिपोर्ट में अनारक्षित सीटों पर बिजनेस कम्युनिटी (अग्रवाल और जैन) के दबदबे का जिक्र किया गया है। यह कहा गया कि अग्रवाल और जैन समाज के दावेदारों को नजर अंदाज करना पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। ये अलग बात है कि दोनों समाज की कुल आबादी 1 फीसदी से भी कम है, लेकिन आर्थिक रूप से बेहद सक्षम है। विधानसभा की करीब 25 सीटों पर अग्रवाल-जैन नेताओं की दावेदारी है।
कहा जा रहा है कि अग्रवाल-जैन दावेदार सरगुजा से लेकर बस्तर तक की सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं। सरगुजा संभाग में पांच सामान्य सीटें हैं। अभी पार्टी से एक भी विधायक नहीं है, लेकिन सभी सीटों पर ताकतवर व्यापारी नेता दावेदारी ठोक रहे हैं। बैकुंठपुर से संजय अग्रवाल का नाम चर्चा में है। संजय केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह के करीबी माने जाते हैं। हालांकि वो अभी रेत ठेका-मारपीट केस के चलते जेल में हैं। इसी तरह मनेन्द्रगढ़ से मुनमुन जैन, प्रेम नगर से बाबूलाल अग्रवाल, भीमसेन अग्रवाल, दावेदारी कर रहे हैं। भीमसेन तो पार्टी के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। वो पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमैन भी थे। भटगांव से अजय गोयल, अंबिकापुर से नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष राजेश अग्रवाल ताल ठोक रहे हैं।
बिलासपुर संभाग की सीटों रायगढ़, खरसिया, बिलासपुर शहर, जांजगीर-चांपा से अग्रवाल नेताओं को स्वाभाविक दावेदारी है। रायगढ़ को तो पार्टी एक तरह से अग्रवाल सीट ही मानी जाती है, और यहां से ज्यादातर समय अग्रवाल समाज से ही विधायक रहे हैं। पार्टी ने पहले विजय अग्रवाल, और फिर रोशनलाल अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था, और दोनों विधायक भी रहे। इस बार पूर्व विधायक विजय अग्रवाल की मजबूत दावेदारी है। खरसिया से कमल गर्ग का नाम चर्चा में है। बिलासपुर शहर से तो अमर अग्रवाल की स्वाभाविक दावेदारी है, जबकि जांजगीर-चांपा से लीलाधर सुल्तानिया का नाम चर्चा में है।
रायपुर संभाग में विशेषकर रायपुर की चारों सीटों पर अग्रवाल-जैन दावेदार हैं। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो पिछले 35 साल से विधायक हैं। यदि लोकसभा फार्मूले के चलते उन्हें विधानसभा की जगह लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला हुआ, तो बृजमोहन की जगह उनके छोटे भाई विजय अग्रवाल दावेदार हो सकते हैं।
रायपुर पश्चिम से पूर्व मंत्री राजेश मूणत, रायपुर उत्तर से छगनलाल मूंदड़ा, केदार गुप्ता, और रायपुर ग्रामीण से राजीव अग्रवाल का नाम चर्चा में है। राजीव अग्रवाल की तो रायपुर ग्रामीण में वॉल राइटिंग पूरी हो चुकी है। कसडोल से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के अलावा उनके पुत्र नितिन अग्रवाल को भी दावेदार माना जा रहा है। महासमुंद सीट से पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा, बसना से संपत अग्रवाल, और डॉ. एनके अग्रवाल का नाम दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है।
संपत तो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 50 हजार से अधिक वोट पाए थे, और भाजपा प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था। इसी तरह धमतरी सीट से पूर्व विधायक इंदर चोपड़ा का नाम चर्चा में है। दुर्ग संभाग की सीटों में से भिलाई की दोनों सीटों पर पूर्व साडा अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल, और उनकी पत्नी अनीता अग्रवाल की दावेदारी है। इसके अलावा वैशाली नगर से संगीत शाह का नाम चर्चा में है। दुर्ग शहर से कांतिलाल बोथरा, साजा से लाभचंद बाफना, बालोद से यशवंत जैन, और राजनांदगांव शहर से खूबचंद पारेख, डोंगरगांव से दिनेश गांधी, और प्रदीप गांधी का नाम लिया जा रहा है। यही नहीं, जगदलपुर शहर से संतोष बाफना मजबूत दावेदार हैं।
पार्टी हल्कों में यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश में छत्तीसगढ़ीवाद जोरों पर है। ऐसे में बिजनेस कम्युनिटी से ज्यादा प्रत्याशी तय करने से पार्टी के खिलाफ माहौल तैयार हो सकता है। मगर पार्टी के भीतर ताकतवर हो चुके अग्रवाल-जैन नेताओं को अनदेखा करना जोखिम भरा भी हो सकता है। देखना है कि पार्टी के रणनीतिकार अग्रवाल-जैन दावेदारों को कैसे संतुष्ट करते हैं।
प्रकृति से निर्मित पात्र
भोजन के लिए पात्रों का अविष्कार किस तरह हुआ होगा, इसकी बानगी बस्तर के एक गांव में रखे गए एक सामूहिक भोज (दार-पानी) में दिखाई दे रहा है। यहां भोजन परोसने के लिए बांस की टोकनी को ही पात्र बनाया गया है। तले में पत्ते लगा दिए गए हैं, जिसके चलते रसेदार भोजन भी नीचे गिरता नहीं। जंगल में इतना कुछ मिल जाता है कि यहां रहने वालों का काम शहर में कोई खरीदारी किए बिना भी काम चल जाता है।
जवानों का एक मदर्स डे...
भानुप्रतापपुर की भीरागांव की एक 80 साल की अकेली महिला का गांव के लोगों ने जीते-जीत इतना ख्याल तो किया कि कोई न कोई उसे रोज खाना लाकर दे देता था, पर जब मौत हो गई तो उसके अंतिम संस्कार के लिए कोई सामने नहीं आया। ऐसी स्थिति क्यों बनी, यह पता नहीं चल सका है मगर मुमकिन है कि सामान जुटाने के लिए खर्च कौन करे, यह संकट आ गया होगा। गांव धुर नक्सल प्रभावित भी है। जब 24 घंटे तक शव उसके घर में ही पड़ा रहा तो छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स के जवानों को इसका पता चला। वे आगे आए और अफसरों से अनुमति लेकर अंतिम क्रिया पूरी की। जवानों ने खुद काठी बनाई, कंधे पर उठाया और मिट्टी खोदी और शव को दफनाया। यह मदर्स डे पर हुआ। जवानों की सराहना हो रही है।
हाईवे पर शराब दुकान
धमतरी में काली मंदिर के पास नेशनल हाईवे पर ही नई शराब दुकान खुल गई। भीड़ के कारण लोगों को परेशानी होने लगी। एक किलोमीटर दूर तक चखना सेंटर। लोगों ने कहा कि यह तो सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का उल्लंघन है। नेशनल और स्टेट हाईवे के 500 मीटर की दूरी तक कोई दुकान नहीं खोली जाएगी। बढ़ती सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर दायर की गई एक याचिका पर शीर्ष अदालत का एक फैसला आया था। नागरिकों ने जब प्रशासन से इसे लेकर आपत्ति दर्ज कराई तो बताया गया कि अब वह नियम शिथिल कर दिया गया है। हाईवे का मतलब सिर्फ उन सडक़ों से है जो किसी शहरी इलाके में नहीं आते। यदि नगरीय निकाय सीमा में कोई दुकान खोलनी है तो उसके लिए पाबंदी नहीं है। तो, फिलहाल इस दुकान के बंद होने की कोई संभावना नहीं है।
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दारू में ईडी की तेज रफ्तार
शराब केस में ईडी तेज रफ्तार से कार्रवाई कर रही है। ज्यादातर लोगों को तो कस्टडी पर ले लिया है। दो-चार बचे हैं, उन पर भी शिकंजा कसने की कोशिश चल रही है। ऐसे में केस से जुड़े लोगों के पास बचाव के रास्ते सीमित रह गए हैं। इस केस में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य आरोपी अनवर ढेबर की याचिका पर अहम सुनवाई होनी है।
सुनते हैं कि शराब केस में ईडी के तेज कार्रवाई के पीछे सोची समझी रणनीति भी है। अगर मंगलवार को कोई राहत नहीं मिली, तो आरोपियों के पास बचाव के रास्ते तकरीबन बंद हो जाएंगे। वजह यह है कि कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश लग रहा है। ऐसे में ईडी अवकाश के बीच में प्रकरण पर चालान पेश कर सकती है। ईडी की तैयारी भी कुछ इसी तरह की है।
ईडी ने मुख्य आरोपी अनवर ढेबर को गिरफ्तार करने के साथ जिस तेजी से दो-तीन घंटे के भीतर 12 पेज की ईसीआईआर(यानी मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है। इसमें उस मामले से जुड़ी जानकारी होती है। इसमें आरोप और आरोपी के बारे में पूरी जानकारी होती है।) विशेष अदालत में पेश किया, इससे उनकी तैयारियों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
केस के अन्य आरोपी पप्पू ढिल्लन, और आबकारी अफसर एपी त्रिपाठी के खिलाफ भी तेज रफ्तार से ईसीआईआर दाखिल की गई। ईडी की कार्रवाई भले ही सवालों के घेरे में हैं, लेकिन सरकार को जवाब देना आसान नहीं है। इस केस के बहाने भाजपा, भूपेश सरकार को घेरने की रणनीति बना रही है।
शनिवार को पार्टी के मीडिया सेल की बैठक भी हुई, जिसमें सरकार पर हमले के लिए टिप्स दिए गए। कर्नाटक चुनाव की वजह से नेशनल मीडिया में केस को अपेक्षाकृत ज्यादा महत्व नहीं मिला, लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा कवरेज के लिए भाजपा के राष्ट्रीय नेता मेहनत करते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर शराब केस में भाजपा चुनावी फायदा उठाने की कोशिश में अभी से जुट गई है। देखना है आगे क्या होता है।
सबसे ज्यादा गड़बड़ी तो यूपी, मप्र में
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की शिकायत पर चावल घोटाले की केन्द्रीय टीम रायपुर पहुंची, तो मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी। टीम लौट भी गई है, लेकिन चर्चा है कि केन्द्रीय टीम को वैसा कुछ नहीं मिल पाया, जिससे केन्द्रीय जांच एजेंसियां कूद पड़ें।
टीम पहुंची, तो उन्होंने चावल आबंटन के दस्तावेज खंगाले। खाद्य विभाग के लोगों ने उन्हें बताया कि गड़बडिय़ां राशन दूकानों के सत्यापन के बाद सामने आई है। किसी ने कोई शिकायत नहीं की थी। केन्द्रीय टीम को यह भी बताया गया कि प्रदेश में 13 हजार से अधिक राशन दुकानों का सत्यापन कराया गया था, जिसमें से 7 हजार में राशन कम पाया गया।
विस्तृत जांच के बाद 22 एफआईआर हो चुकी है। एक हजार से अधिक राशन दूकानें निरस्त हो चुकी हैं। यही नहीं, 15 हजार टन चावल की वसूली भी हो चुकी है। कार्रवाई अभी भी चल रही है। सुनते हैं कि केन्द्रीय टीम को राशन दुकानों से घोषणा पत्र हटवाने के विभाग के फैसले से समस्या थी।
इस पर विभाग ने उन्हें बताया कि बायोमीट्रिक सिस्टम लागू हो गया है। 96 फीसदी राशन दूकानों में सिस्टम लग गया है। इससे आबंटन और वितरण व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी हो चुकी है। ऐसे में घोषणा पत्र का अब कोई महत्व नहीं है। जहां अभी भी लिए जा रहे हैं वहां से घोषणा पत्र वापस लेने की तैयारी चल रही है। कहा जा रहा है कि चावल-राशन में गड़बड़ी तो सबसे ज्यादा भाजपा शासित राज्य यूपी, और मध्य प्रदेश में हैं जहां गड़बड़ी की पड़ताल करने से बचने के लिए राशन दुकानों का सत्यापन ही रोक दिया गया है।
अब तेरा क्या होगा स्नढ्ढक्र ?
राजनीतिक फेरबदल कई तरह की दिलचस्प परिस्थितियां पैदा करते हैं अब छत्तीसगढ़ में श्वष्ठ जितनी जाँच कर रही है उसका अधिकतर हिस्सा बेंगलुरु पुलिस में दर्ज एक स्नढ्ढक्र पर टिका हुआ है, और कर्नाटक पुलिस सभी रायपुर आकर जेल में बंद सूर्यकांत तिवारी से बात करने की कोशिश भी करके गई जिसके खिलाफ कि यह स्नढ्ढक्र है। अब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार आ गई है, अब इस स्नढ्ढक्र का वहां पर क्या होगा, यह देखना दिलचस्प बात होगी।
अफसरों ने दीवार रोकी
गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने अभी पुलिस विभाग की एक बैठक ली और उस बैठक में इस बात की कोशिश की गई कि दुर्ग जिले के किसी थाने के बाउंड्रीवाल के लिए पुलिस कल्याण कोष के पैसे का इस्तेमाल किया जाए। ऐसा पता लगा है कि अफसरों ने इस बात का विरोध किया और इस बात को होने नहीं दिया । अब पुलिस कल्याण कोष से अगर थानों का निर्माण किया जाएगा, या थानों में निर्माण किया जाएगा, तो इससे कल्याण कोष का पूरा मकसद ही परास्त हो जाएगा।
महानदी तो सूख गई, पानी कैसे दें?
कसडोल के पास ली गई यह तस्वीर बता रही है कि जो महानदी बारिश के दिनों में अपनी उफान से कहर बरपाती है उसकी रेत माफियाओं ने क्या हालत कर दी है। धड़ल्ले से जेसीबी से रेत की खुदाई हो रही है और भारी वाहनों से परिवहन हो रहा है, जबकि इन दोनों पर प्रतिबंध है। कसडोल की विधायक शकुंतला साहू और खुज्जी की विधायक छन्नी साहू हाल ही में रेत परिवहन करने वाली गाडिय़ों को छुड़ाने के लिए किस हद तक अफसरों से भिड़ गई थीं, यह सबने देखा है। कसडोल के आसपास जो अवैध रेत खनन हो रहा है उसमें तो ओडिशा से भी गाडिय़ां लाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ का ओडिशा से इस बात का विवाद चल रहा है कि महानदी का पानी यहां रोक दिया जाता है। नदी के इस हिस्से को दिखाकर छत्तीसगढ़ के अधिकारी जरूर कह सकते हैं कि नदी तो बर्बाद हो रही है आप हमसे ज्यादा पानी लेने की जिद क्यों करते हैं?
भाजपा में अब क्या फर्क दिखेगा?
छत्तीसगढ़ भाजपा में कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं। कर्नाटक भाजपा में देखा गया कि चुनाव अभियान की सारी रणनीति दिल्ली से बनी, किसे मुख्यमंत्री बनाएं, किसे किनारे रखें, टिकट किसकी काटी जाए, किसे मिले, सब दिल्ली से तय हो रहा था। पहले यही तरीका कांग्रेस का था जिसका नुकसान भी उसने झेला। कर्नाटक में कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं को महत्व दिया, घोषणा पत्र उनके ही सुझाव पर बनाए गए, टिकट के वितरण में स्थानीय नेताओं की राय को तवज्जो दी। छत्तीसगढ़ भाजपा में भी दिल्ली का नियंत्रण इतना अधिक है कि जब अचानक प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का नाम तय किया गया तो घोषणा के पहले यहां के कई बड़े नेताओं को पता ही नहीं था। संवाद की कमी का जो संकट कभी कांग्रेस में था, वह भाजपा में दिखाई देता है। चार दशकों से भाजपा के साथ रहे, या कहिये उन्हें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में खड़ा करने वालों में से एक नंदकुमार साय की यही शिकायत थी। वे उस कांग्रेस के साथ जाने के लिए विवश हुए जिससे हमेशा लड़ते रहे। अब जब छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को करीब 6 माह रह गए हैं, स्थानीय नेताओं की दिल्ली में पूछ बढ़ सकती है।
सर्विस रोड या पार्किंग रोड?
ये हाल है करोड़ों की लागत से बनी राजधानी के वीआईपी रोड का। सर्विस रोड बनी जनता के लिए है पर इसको अब सर्विस रोड की जगह पार्किंग रोड कहना चाहिए। कुछ होटल कारोबारियों का रसूख पुलिस और प्रशासन पर हावी है। इस तरह से कानून तोडऩे वालों के खिलाफ वे कुछ नहीं करते हैं। उसका डंडा फुटपाथ पर खड़े ठेले खोमचे वालों पर ही चलता है।
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अब वो सब टेंशन फ्री हो चुके
शराब घोटाला केस में ईडी ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है। ईडी ने आबकारी अफसर एपी त्रिपाठी को गिरफ्त में ले लिया है। कुछ और लोगों के खिलाफ कार्रवाई का अंदेशा जताया जा रहा है। इन सबके बीच शराब कारोबार से जुड़े कई और लोग सीधे सुप्रीम कोर्ट की तरफ रूख कर रहे हैं। वजह यह है कि याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट से तत्काल राहत की उम्मीद नहीं है। क्योंकि पहले इसी तरह की पांच याचिकाएं खारिज हो चुकी है।
बताते हैं कि आबकारी सचिव निरंजन दास ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। वैसे तो त्रिपाठी ने भी याचिका लगाई थी, लेकिन प्रकरण पर सुनवाई से पहले ही ईडी ने उन्हें घेर लिया। निरंजन दास सेे भी ईडी एक बार पूछताछ कर चुकी है। अब त्रिपाठी की तरह ईडी उन्हें भी गिरफ्तार न कर ले, इसलिए दास सुप्रीम कोर्ट गए हैं। यही नहीं, कारोबारी सिद्धार्थ सिंघानिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। हालांकि इन याचिकाओं पर अभी सुनवाई की तिथि तय नहीं हुई है।
दूसरी तरफ, शराब केस में डिस्टिलर संचालकों की गिरफ्तारी का अंदेशा जताया जा रहा था। रेड के बाद दो-तीन बार उनसे पूछताछ की गई। अब वो सब टेंशन फ्री हो चुके हैं। चर्चा है कि ये सभी अब गवाह बन चुके हैं। ईडी अब आगे क्या करती है, यह देखना है।
पीएससी अचानक खबरों में
दो साल बाद पीएससी राज्य सेवा परीक्षा की चयन सूची घोषित हुई, तो चयनित अभ्यार्थियों के यहां बधाईयों का तांता लगा है। इस बार अफसर, और नेताओं के बेटे-बेटियों ने अच्छा रैंक हासिल किया है। खुद पीएससी चेयरमैन टॉमन सिंह सोनवानी के दत्तक पुत्र नितिश सोनवानी ने 7वां रैंक हासिल किया। यह भी संयोग है कि दिवंगत पीएससी चेयरमैन खेलनराम जांगड़े की बेटी संतनदेवी जांगड़े भी उनके पद पर रहते डिप्टी कलेक्टर बनी थीं।
राज्यपाल के सचिव अमृत खल्को की बेटी नेहा, और निखिल ने भी टॉप 15 में जगह बनाई। डीआईजी पीएल धु्रव की बेटी साक्षी भी 11वें नंबर पर रही। कांग्रेस नेता सुधीर कटियार की बेटी भूमिका और दामाद शशांक गोयल भी टॉप 15 में आए हैं। बिल्हा के विधानसभा प्रत्याशी रहे कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ला के बेटे स्वर्णिम शुक्ला ने 16वां रैंक हासिल किया है। ये सभी डिप्टी कलेक्टर बनेंगे। ऐसे लोग भी हैं, जो पीएससी नतीजे पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर काफी प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं।
भाजपा प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास ने ट्विटर पर लिखा कि छत्तीसगढ़ पीएससी में कथित नेता-अधिकारी के पुत्र-पुत्रियों के चयनित नतीजों ने प्रदेश के योग्य युवा वर्ग को गहरा आघात पहुंचाया है। पिछले चार साल में ऐसा कई बार हुआ है। पिछले 4 साल के सभी नतीजों की जांच की नितांत आवश्यकता है।
सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर बल ने फेसबुक पर लिखा कि आज दो परीक्षाओं की चर्चा है। सीबीएसई और पीएससी छत्तीसगढ़...मैं दूसरी चर्चा में एकदम बाहर हूँ..कौन बधाई का पात्र है कौन भ्रष्टाचार से शामिल हुआ है ...यह तथ्य सामने लाना कठिन है।
उन्होंने लोगों के बीच बातचीत का हिस्सा भी पोस्ट किया, जिसमें कहा गया कि आजकल टॉप 20 सीट्स बिक रही हैं..75 लाख का रेट चल रहा है...कुछ चयनित बड़े अफसरों और पीएससी के करीबियों के हैं। ऐसी चर्चाएं मेहनत से चयनित के बधाई पर भी शक पैदा करती हैं। उन्होंने आगे अपने पोस्ट में कहा कि अगर झूठ है तो बहुत अच्छा है...
लेकिन अगर सच है तो सोचिए भ्रष्टाचार कैसे अधिकारी चयन कर रहा..और ऐसे नाकाबिल अधिकारी चयनित होकर राज्य का क्या भला करेंगे? लोक सेवा आयोग जैसी संस्थाओं पर अगर प्रश्न चिन्ह लगेगा, तो युवाओं का राज्य प्रशासनिक सेवाओं से विश्वास जल्द ही उठेगा और राज्य की व्यवस्था चर्मराएगी। शायद इस पर गंभीरता से बातचीत होना चाहिए ..तथ्यों पर विचार होना चाहिए। चयन परिणामों का विश्लेषण होना चाहिए।
विधायक का अपना निजी फंड
बस्तर केवल सैलानियों का स्वर्ग नहीं है बल्कि उन अफसरों और नेताओं के लिए भी है जिन्हें यहां पहुंचने वाले भारी भरकम फंड के दुरुपयोग की लत है। अब एक मामला ऐसा आया है जिसमें बच्चों की तंदुरुस्ती के हक को विधायक और अफसरों ने मिलकर हड़प लिया।
जनपद पंचायत बास्तानार के प्रि-मैट्रिक बालक छात्रावास में जिम के लिए सामग्री खरीदी गई। करीब 5 लाख के इन उपकरणों को छात्रावास में लगाया जाना था लेकिन यह पहुंच गई विधायक राजमन बेन्जाम के निजी निवास पर। यह अगस्त 2020 की बात है, पर छात्रावास के बच्चों की शिकायत पर अब सामने आई है। गौर करने की बात यह भी है यह खरीदी विधायक निधि से ही की गई थी। इस फंड को विधायक ने अपनी जेब का पैसा समझ लिया। ग्राम के सरपंच, छात्रावास अधीक्षक, जनपद पंचायत के सीईओ और दूसरे अधिकारियों ने इसका भौतिक सत्यापन कर बिल पास भी करा लिया।
जिस बस्तर में जवानों की शहादत से बनी सडक़ों पर भी भारी भ्रष्टाचार होता हो, वहां के लिए 5-10 लाख की लूट को भला कौन गंभीरता से लेगा?
आत्मानंद स्कूलों का क्रेज बढ़ा
पब्लिक स्कूलों की तरह सुविधाओं से लैस किए गए स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में दाखिले की पहले भी होड़ लगी हुई थी लेकिन इस बार 10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आने के बाद और मारामारी दिखाई दे रही है। टॉप टेन की सूची में 10 विद्यार्थी इन स्कूलों से हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जहां भी भेंट-मुलाकात के लिए जा रहे हैं, इस स्कूल की मांग हो रही है। प्राय: नए स्कूलों की वे घोषणा कर भी रहे हैं। अंबिकापुर के ब्रह्मपारा स्थित स्कूल में पहली और दूसरी कक्षा के लिए 54 सीटें हैं, पर आवेदन 800 से ऊपर आ गए हैं। सीटों और आवेदनों के बीच इतना अंतर बताता है कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है।
क्रोकोडाइल पार्क का हश्र
बारनवापारा अभयारण्य के भीतर एक तालाब में तीन साल पहले एक मगरमच्छ दिखा। वन विभाग के अफसरों को तुरंत सूझा कि यहां क्रोकोडाइल पार्क बना लेना चाहिए। इस बात पर विचार किए बिना कि जंगल के भीतर पार्क की रखवाली कौन करेगा। मगरमच्छ को आहार कौन देगा, उनकी दिनचर्चा और गतिविधियों की निगरानी कौन करेगा। दो मगरमच्छ बाहर से लाए गए। फेंसिंग पर करीब एक करोड़ रुपये खर्च किए गए। पहले एक मगरमच्छ की मौत हो गई, धीरे-धीरे बाकी की जान भी खतरे में पड़ती गई। अब एक नन्हा मगरमच्छ मिला है, जिसे जंगल सफारी रायपुर छोडऩे की योजना बनाई जा रही है। यानि एक करोड़ रुपये तीन साल के भीतर उसी तालाब में डूब गए।
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जांच से इंद्रावती में हडक़ंप
चावल घोटाले की जांच के लिए केन्द्रीय टीम इंद्रावती भवन पहुंची, तो खाद्य महकमे में हडक़ंप मच गया। जांच टीम देर रात तक फाइलें खंगालती रही, और अफसरों से भी पूछताछ की। बताते हैं कि चावल की अफरा-तफरी का खेल कोरोनाकाल में हुआ था, और इसका खुलासा तब हुआ जब राज्य सरकार ने राशन दूकानों का सत्यापन कराया। लेकिन चर्चा है कि गड़बड़ी को सार्वजनिक करने में विभाग के तीन रिटायर्ड अफसरों की अहम भूमिका रही है।
सुनते हैं कि रिटायर्ड अफसर सेवा में रहते असंतुष्ट रहे हैं। और जब सेवा से पृथक हुए, तो विभाग की गड़बडिय़ों को उजागर करने का बीड़ा उठाया। चर्चा है कि रिटायर्ड अफसरों ने ही कागजात विपक्ष के नेताओं तक पहुंचाए। इसके बाद पूर्व सीएम रमन सिंह सक्रिय हुए, और गड़बडिय़ों पर विधानसभा में जोरशोर से मामला उठाया। खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने माना था कि राशन दूकानों के सत्यापन में गड़बडिय़ां सामने आई है। लेकिन जांच रिपोर्ट उनसे पहले तत्कालीन सीएम तक पहुंच गई। इसके बाद उन्होंने बिना देर किए कुछ और बिन्दुओं को जोडक़र सीबीआई जांच के लिए केन्द्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल को चिट्ठी लिख दी।
आगे क्या होगा, ये तो केन्द्रीय टीम की जांच रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। मगर जांच के मसले पर केन्द्र, और राज्य सरकार के बीच टकराव के आसार दिख रहे हैं। वजह यह है कि राज्य सरकार ने गड़बडिय़ों की जांच एसीबी-ईओडब्ल्यू से करा रही है। गबन हुए चावल की वसूली का काम भी चल रहा है। लेकिन संभव है कि चुनावी साल में केन्द्र राज्य की कार्रवाई से संतुष्ट न हो, और केस सीबीआई के हवाले कर दे। जिसे राज्य सरकार ने बैन कर रखा है। कुल मिलाकर चावल घोटाले के मसले पर प्रदेश की राजनीति गरम रहेगी।
सालों बाद दिखा भेडिय़ा
भेडिय़ों पर कई किस्से कहानियां प्रचलित हैं। एक जंगल गए चरवाहे की कहानी, भागो भेडिय़ा आया.. तो बचपन में सुनाई जाती थी जिसमें सीख यह थी कि यदि बार-बार झूठ बोलोगे तो सच को भी लोग सच नहीं मानेंगे। इंसानों के बीच एक खास तरह के असामाजिक तत्व, दरिंदे या भेडिय़ा कह दिये जाते हैं। मगर असल भेडिय़ा एक खतरनाक किंतु सामाजिक प्राणी है। सामाजिक इस मायने में कि ये झुंड बनाकर ही शिकार करते हैं। किस्सों कहानियों और गांव शहर में मौजूद भेडिय़ों के अस्तित्व पर पिछले कुछ वर्षों से संकट चल रहा है। देश में अब कुल 3100 भेडिय़े रह गए हैं। छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी कभी ये बहुतायत में पाये जाते थे। वन्य जीव प्रेमियों को यह जानकर खुशी हुई कि बस्तर के कांगेर नेशनल वैली पार्क में कई साल बाद हाल ही में दिखा है। वन विभाग के लगाए ट्रैप कैमरों में तीन भेडिय़े पानी पीते कैद हुए हैं। भेडिय़ों की मौजूदगी बताती है कि उनके लिए आहार जैसे हिरण सहित चरने वाले कई जानवर मौजूद हैं। बताया गया है कि वन विभाग ने स्थानीय आदिवासी युवकों को पेट्रोलिंग गार्ड नियुक्त किया है। यह प्रयोग जंगल और वन्यप्राणियों की हिफाजत में मददगार साबित हो रहा है।
मोदी अब छत्तीसगढ़ आएंगे?
वैसे तो चुनावी साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ दौरा कई बार हो सकता है, चुनाव प्रचार के पहले भी। वहीं, इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि उनका अगला दौरा बस्तर का होगा। यहां का नगरनार स्टील प्लांट लगभग तैयार है और जल्दी ही कमीशनिंग होनी है। परियोजना का निर्माण कार्य काफी लंबा खिंचा। सन् 2003 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने इसकी आधारशिला रखी थी। करीब 23 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है। इसलिए उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री से कम में बात बनेगी नहीं। यदि उनका दौरा फायनल हो जाता है तो बस्तर के विकास में एक कड़ी और जुड़ जाएगी। साथ ही भाजपा को बस्तर और छत्तीसगढ़ में अपने लिए अनुकूल वातावरण बनाने का मौका भी मिलेगा।
घोषणा पत्र को सिंहदेव की ना
कांग्रेस ने सन् 2018 में घोषणा पत्र तैयार करने को चुनाव अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। एक समिति बनी जिसके अध्यक्ष तब के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव थे। करीब एक साल तक उन्होंने प्रदेशभर में दौरा किया। विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक संगठनों, छात्रों, युवाओं, महिलाओं से बात कर सुझाव लिए। ऐतिहासिक जीत के बाद कुछ समूहों, संगठनों की मांगें पूरी होती गई, कुछ अब तक नहीं हो पाई हैं। अनियमित कर्मचारियों की मांगें अब तक अधूरी हैं। पर इन चार-साढ़े चार सालों में सिंहदेव को जगह-जगह एक मुसीबत का सामना करना पड़ा कि जब घोषणा पत्र आपने तैयार की, तो मांगें पूरी क्यों नहीं हो रही है। सरकार में तो आप ही हैं, वादे आपने ही किए। अंबिकापुर में उनकी बातचीत का एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें वे कह रहे थे कि सरकार के पास पैसे ही नहीं हैं तो मांग पूरी कैसे हो। सिंहदेव को बार-बार लोगों को समझाना पड़ा कि मैंने सिर्फ घोषणा पत्र तैयार किया है, निर्णय तो पूरे मंत्रिमंडल और सरकार को लेना है। मेरे हाथ बंधे हैं।
ऐसी परिस्थिति में मीडिया ने उनसे राजनांदगांव में सवाल पूछ लिया कि क्या अगली बार फिर घोषणा पत्र आप ही तैयार करेंगे? सिंहदेव ने नहीं कहा। यह भी कहा कि वे ऐसी किसी समिति में नहीं हैं। सुझाव मांगा जाएगा तो जरूर दे देंगे। वैसे यह सवाल भी गैरजरूरी था क्योंकि उन्होंने अभी तक तो चुनाव ही लडऩे का मन नहीं बनाया है।
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