राजपथ - जनपथ
कुछ लोग इस बात से हैरान परेशां हैं कि वे दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में गए थे लेकिन तबलीग़ी जमात की मरकज में नहीं गए थे, फिर भी उनका फ़ोन नंबर दिल्ली पुलिस ने राज्य पुलिस को भेज दिया है कि उनकी सेहत पर नजर रखी जाये. दरअसल मरकज में जितनी बड़ी संख्या में लोग थे, और उनसे देश बाहर में जिस तरह कोरोना फ़ैल रहा है, उसे देखते हुए, पुलिस ने उस इलाके में उन नाजुक दिनों में जाने वालों के नंबर भी मोबाइल टावर लोकेशन हिस्ट्री से निकाल लिए हैं और राज्यों को भेज दिए हैं. इस लिस्ट में छत्तीसगढ़ के हिन्दू भी हैं, आदिवासी भी हैं, सभी लोग हैं, क्योंकि कोरोना मज़हब पूछ-पूछकर नहीं दबोच रहा. इस लिस्ट में देश भर के दसियों हज़ार लोग हैं, और उनमें से वक़्त, उस इलाके में ठहरने, या वहां वक़्त गुजरने के हिसाब से खतरे में पड़े लोगों के नंबर छांटे गए हैं.
बेशर्मी की भला कैसी सीमा?
एक तरफ देश भर से ख़बरें आ रही हैं कि कि़स तरह डॉक्टर, नर्सें, पुलिसवाले और दूसरे लोग घर के बाहर रह रहे हैं, दरवाजे के बाहर से खाना खा रहे हैं, होटलों में सो रहे हैं क्योंकि वे रूबरू कोरोना से ऐसे जूझ रहे हैं कि परिवार को उनसे ख़तरा हो सकता है. छत्तीसगढ़ की राजधानी की एक संपन्न कॉलोनी में बैठे यह टाइप करते हुए एक बहुत बूढ़ा सफाई कर्मचारी नाली साफ़ करने के लम्बे-लम्बे बांस लिए जुटा दिख रहा है, सूनी सड़कों पर भी एक महिला झाड़ू लगती दिख रही है. ऐसे में देश भर में इन कर्मचारियों के परिवार के कई लोग भी मदद कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ में पुलिस-परिवारों की महिलाएं सिलाई मशीनों पर मास्क सिलते दिख रही हैं. सिख समाज, जैन समाज सहित बहुत से लोग लोगों को खाना पहुंचाने में लगे हुए हैं. लेकिन इस बीच म्युनिसिपल परेशान है कि बहुत से करोड़पति भी फ़ोन करके खाना बुला रहे हैं कि उनके घर खाना बनाने वाली नहीं आयी है. बेशर्मी की कोई हद नहीं होती है. जब कुछ दूसरे लोग जान को खतरे में डालकर जरूरतमंदों की मदद को निकले हुए हैं, तब बहुत से रईस इस तरह बेईमानी कर रहे हैं ! वैसे भी यह पैसेवालों की बीमारी है जो गरीबों पर लाद दी गयी है !([email protected])