राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सरकारी बंगले का मोह
18-Jan-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सरकारी बंगले का मोह

सरकारी बंगले का मोह

सरकारी बंगले का बड़ा मोह होता है। एक तो बंगला हासिल करना काफी मुश्किल होता है और मिल जाए तो पद जाने के बाद महीनों तक इसका मोह छूटता नहीं। ऐसी ही स्थिति शहर के मेयर बंगले को लेकर देखने को मिल रही है। पुराने मेयर अभी भी बंगले में जमे हुए हैं और नए को बंगले की जरूरत महसूस हो रही है। यह अलग बात है कि दोनों ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। पुराने महापौर का कहना है कि उन्हें भी बंगला 6 महीने लेट से मिला था और 6 महीना तैयार होने में लगा था। इस तरह वे एक साल बाद बंगले में शिफ्ट हुए थे। इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि वे अपने घर में ऑफिस बनवा रहे हैं, जैसे ही काम पूरा होगा, वे बंगला खाली कर देंगे। अब समझने वाले के लिए इशारा काफी है कि नए मेयर को बंगले के लिए कम से कम 6 महीना से साल भर का इंतजार करना ही चाहिए। लेकिन नए मेयर इंतजार के मूड में बिल्कुल नहीं हैं, हालांकि वे भी लगातार कह रहे हैं कि वे बंगला खाली करने नहीं कहेंगे। भले ही उन्हें ऑफिस का कामकाज निपटाने के लिए बंगले की सख्त जरूरत है। यहां दोनों नेता तू डाल-डाल मैं पात-पात की रणनीति पर चल रहे हैं। अब देखना यह होगा कि कौन अपनी मुहिम में सफल होता है। बात यही खत्म नहीं होती, सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी जब दोनों नेता पहुंचते हैं तो भी बंगले का टॉपिक जरूर आता है। वे भले ही न करें, लेकिन समर्थक बंगला का मुद्दा ले आते हैं। अब समर्थकों को कौन समझाए कि जख्मों को जितना कुरेदा जाए, उतने ही हरे होते हैं। एक तो पुराने मेयर को इस बात का भारी मलाल है कि वे दोबारा कुर्सी पर नहीं बैठ पाए और ऊपर से लोग बंगले के पीछे पड़ गए हैं। कुछ लोगों ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा कि पद पांच साल के लिए मिला था, तो बंगले में एक साल और रहने के लिए पात्र हैं।

कलेक्टरी के साथ सलाह मुफ्त

एक युवा आईएएस को लंबे इंतजार के बाद कलेक्टरी मिली, तो स्वाभाविक है कि खुशी हुई होगी और बिना देरी किए पुरानी पोस्टिंग से कलेक्टरी के लिए रिलीव हो गए। पता नहीं कब सरकार का मूड बदल जाए और नया आदेश निकल जाए, इसलिए तो रिस्क लेना बिल्कुल भी ठीक नहीं है। खैर, नई पोस्टिंग मिलने के बाद लोग बधाई के साथ ज्ञान भी खूब देते हैं। इन साहब को भी लोग सलाह मशविरा दे रहे हैं। कुछ लोगों ने ज्ञान दिया कि अब आप दीनदयाल उपाध्याय पर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन गांधी के बारे में बोलने से बचना पड़ेगा। शायद याद हो तो ये वही युवा आईएएस हैं, जिनकी सीईओ की कुर्सी पिछली सरकार में दीनदयाल उपाध्याय पर सवाल उठाने के कारण गई थी। हालांकि कांग्रेस ने उनकी बातों को हाथों हाथ लिया था। अब कुछ लोग यह भी मान रहे हैं कि कलेक्टरी भी इसी कारण से मिली है। वहीं कुछ लोगों ने उनको यह राय दी कि अभी सावरकर और गोडसे सोशल मीडिया और सरकार में ट्रेंड कर रहे हैं, इनके बारे में बोलने पर हो सकता है कि कुछ बड़ा इनाम मिल जाए। अब ये युवा आईएएस किसकी सलाह पर काम करते हैं और इनाम पाते हैं या सजा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, लेकिन हम तो यही उम्मीद कर सकते हैं कि लंबे इंतजार के बाद कलेक्टरी पाने वाले इस अफसर को इस बात का अंदाजा तो जरूर होगा कि कौन सी सलाह उनके काम की है और कौन सी नहीं, क्योंकि पिछला अनुभव भी तो उनके सामने है।

नाम बदलना ठीक होगा...

अभी मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के गृह जिले दुर्ग में एक स्कूल में एक थानेदार बच्चों को ट्रैफिक के नियम पढ़ा रहे थे, और उन्होंने कहा कि लोगों को शराब पीकर गाड़ी नहीं चलाना चाहिए, तो हाईस्कूल के कुछ बच्चे खड़े हुए और कहा कि शराब तो पुलिस ही बिकवाती है। अब पुलिस चूंकि सरकार का पहला चेहरा रहती है, इसलिए कुछ भी होने पर लोग उसी को सरकार मान लेते हैं। पुलिस का शराब बिकवाने से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सरकार की किसी भी बदनामी से वह आसानी से हाथ नहीं झाड़ पाती। अब किसी तरह यह बात आई-गई हुई, लेकिन सरकार और पुलिस विभाग को इस नौबत के बारे में जरूर सोचना चाहिए कि एक थाने का नाम भट्टी रहने से थानेदार को बच्चे भी दारूभट्टी वाला समझ रहे हैं। कम से कम थाने का नाम तो ठेका, भट्टी, अहाता जैसा न रहे, वह पुलिस की अपनी इज्जत के लिए भी ठीक है। एक वक्त शायद भिलाई स्टील प्लांट की फौलाद पिघलाने की भट्टी इस थाने के इलाके में आती होगी, और उस वजह से इसका नाम भट्टी रखा गया होगा। लेकिन ठेका और भट्टी किसी दूसरे संदर्भ में याद करने लायक शब्द नहीं है, लोग इनसे दारू का ही रिश्ता जोड़ते हैं। हालांकि यह थाना उत्तरप्रदेश में नहीं आता है, फिर भी इसका नाम बदला जा सकता है, ताकि यहां के थानेदार भी इज्जत से सिर उठाकर जी सकें।

वैसे किसी नए शहर में दारू की दुकान ढूंढने के लिए लोग एक आसान फॉर्मूला बताते हैं। जानकारों का कहना है कि शहर में एमजी रोड या महात्मा गांधी मार्ग ढूंढ लें, वहां पर दारू की दुकान जरूर रहती है। अब लोग अपने-अपने शहर-कस्बे में इस पैमाने को परख लें।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news