राजपथ - जनपथ
शहर छोड़ देना ठीक है...
गणेश और दुर्गा के वक्त लाऊडस्पीकरों का शोर इतना अधिक हुआ कि हाईकोर्ट से लेकर जिले के अफसरों तक ने बहुत से कागज रंग डाले, लेकिन अराजकता इतनी फैल गई है कि इनमें से कोई भी रंग लोगों पर नहीं चढ़ा, और बाद के दूसरे त्यौहारों में भी लोगों का जीना हराम होते रहा। किसी उर्स या मजार की चादर को भी इतने लाऊडस्पीकरों के साथ निकाला गया, साथ में सड़क में ऐसा हंगामा होते रहा कि देश में हिंदू और मुस्लिम एक सरीखे हैं, यह साबित करने की होड़ लगी रही। और फिर मानो हाईकोर्ट का मुंह चिढ़ाने के लिए दीवाली के तीन दिन संपन्न इलाकों में इतनी देर रात तक इतने तेज धमाके करने वाले पटाखे फोड़े गए कि लोगों का जीना हराम हो गया। यह बात साफ है कि हाईकोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट, इनका कोई हुक्म तभी तक हुक्म है जब तक वह किसी धर्म या धार्मिक त्यौहार, किसी जाति या सम्प्रदाय को छूने वाला न हो। अगर इनमें से किसी को कानून समझाने की कोशिश की जाती है, तो भीड़ जजों और अदालतों को उनकी औकात समझा देती है। और नेताओं-अफसरों में तो किसी धार्मिक-गुंडागर्दी को छूने की हिम्मत है नहीं। ऐसे में त्यौहारों के मौके पर लोग शहर छोड़कर कहीं जा सकें, तो ही बेहतर है, पड़ोस की गुंडागर्दी पर कोई पुलिस को बुलाने की कोशिश भी करे, तो भी कौन पुलिस आ जाएगी?
आखिर पदोन्नति की ओर
आखिरकार सरकार ने पीसीसीएफ के दो अतिरिक्त पद स्वीकृत कर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिए हंै। केंद्र की मंजूरी के बाद डीपीसी होगी और सीनियर एपीसीसीएफ संजय शुक्ला और आरबीपी सिन्हा को पीसीसीएफ बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लग सकती है। सुनते हैं कि सीएम पहले पीसीसीएफ के अतिरिक्त पद बढ़ाने के पक्ष में नहीं थे, बाद में उन्होंने वन मंत्री के सुझाव को मान लिया। पिछली सरकार में संजय शुक्ला पॉवरफुल थे, लेकिन सरकार बदलते ही हाशिए पर चले गए। काफी दिनों तक उनके पास कोई काम नहीं था। बाद में लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी के पद पर पदस्थ किया गया। उन्होंने थोड़े ही समय में संघ की बेहतरी के लिए काफी कुछ काम किया। वनवासियों से तेंदूपत्ता संग्रहण से लेकर वनोपज की खरीदी संघ के मार्फत होती है। ये सब सरकार की प्राथमिकता में है। संजय वनोपज से जुड़े उद्योग लगवाने की दिशा में कोशिश करते दिख रहे हैं। ये सब सरकार की नजर में आया, तो पीसीसीएफ के अतिरिक्त पद भी मंजूर हो गए। संजय के साथ-साथ आरबीपी सिन्हा भी पीसीसीएफ बन जाएंगे। ([email protected])