भाजपा के लिए कांकेर लोकसभा सीट कठिन रही है। पिछले तीन चुनाव में पार्टी प्रत्याशी मामूली अंतर से जीतते रहे हैं। इस बार का चुनाव पहले की तुलना में ज्यादा कठिन था। विधानसभा चुनाव में यहां की सारी सीटें हाथ से निकल गई, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वापसी की। पार्टी प्रत्याशी मोहन मंडावी किसी तरह चुनाव जीतने में सफल रहे। मोहन मंडावी को चुनाव जिताने में मोदी फैक्टर के अलावा प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी की अहम भूमिका रही है।
सुनते हैं कि महामंत्री (संगठन) पवन साय ने प्रचार के शुरूआती दौर में पार्टी प्रत्याशी का बुरा हाल देखकर विक्रम उसेंडी को कांकेर लोकसभा से बाहर कदम नहीं रखने की सलाह दी थी। उसेंडी ने पवन साय का कहा माना और आखिरी दिन तक कांकेर लोकसभा में ही डटे रहे। मोहन मंडावी को सबसे ज्यादा बढ़त अंतागढ़ विधानसभा सीट से मिली, जहां से उसेंडी चार बार विधायक रहे हैं। उसेंडी की मेहनत रंग लाई और सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा।
रामविचार उम्मीद से
राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम काफी खुश हैं। वजह यह है कि सरगुजा से भाजपा प्रत्याशी रेणुका सिंह ने अपनी जीत का श्रेय मोदी सरकार की नीतियों और रामविचार नेताम को दिया है। सरगुजा जिले की राजनीति में रामविचार और रेणुका सिंह एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में रामविचार ने रेणुका को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। इससे पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी सिद्धनाथ पैकरा और रामकिशुन सिंह ने अपनी हार के लिए रामविचार नेताम को जिम्मेदार ठहराया था और इसकी शिकायत पार्टी हाईकमान से की थी।
रामविचार आदिवासी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ऐसे में उन्हें अपनी साख बचाने के लिए सरगुजा में पार्टी उम्मीदवार को जिताना जरूरी भी हो गया था। विपरीत परिस्थितियों में भाजपा की जीत से रामविचार का कद बढ़ा है और जिस अंदाज में रेणुका ने उनकी तारीफों के पुल बांधे हैं, उससे अब उनके समर्थक उनके लिए केंद्र में मंत्री पद की आस संजोए हुए हैं।
अडानी की भी बधाई
रेणुका सिंह को जीत के बाद बधाई देने वालों का तांता लगा है। सुनते हैं कि बधाई देने वालों में अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी भी थे। यह बात खुद रेणुका ने अपने आसपास के लोगों को बताई। वैसे अडानी का सरगुजा में काफी काम है। ऐसे में समूह के लोग स्थानीय नेताओं से व्यवहार खूब निभाते हैं। इसी चक्कर में टीएस सिंहदेव का कुछ नुकसान भी हो गया था। सिंहदेव सीएम पद के दावेदार रहे हैं, जब उनका नाम प्रमुखता से चल रहा था तब गुजरात के एक कांग्रेस विधायक ने सिंहदेव का नाम लिए बिना ट्वीट किया कि अडानी का मित्र सीएम बनने वाला है। इससे पार्टी हल्कों में खलबली मच गई और सिंहदेव को नुकसान उठाना पड़ा।
सिंहदेव ने गिनाया दुर्ग संभाग
लोकसभा चुनाव में सरगुजा राजघराने के मुखिया टीएस सिंहदेव अपनी विधानसभा सीट अंबिकापुर से पार्टी प्रत्याशी खेलसाय सिंह को बढ़त नहीं दिला सके। लेकिन उनके विरोधी माने जाने वाले अमरजीत भगत ने अपनी सीट सीतापुर से कांग्रेस प्रत्याशी को अच्छी खासी बढ़त दिलाई। सीतापुर अकेली सीट थी जहां से कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त मिली है। ऐसे में मंत्रिमंडल में अमरजीत का दावा काफी पुख्ता हो गया है। टीएस सिंहदेव के लिए राहत की बात यह रही कि सीएम भूपेश बघेल और गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के क्षेत्र से भी पार्टी प्रत्याशी को बढ़त नहीं मिल पाई। सिंहदेव ने नतीजों के बाद यह गिना भी दिया है कि दुर्ग संभाग में राज्य के आधे मंत्री हैं, और फिर भी नतीजे ऐसे क्यों आए इस पर सोच-विचार होना चाहिए। दुर्ग संभाग में दुर्ग और राजनांदगांव, दोनों लोकसभा सीटें भाजपा ले गई है, और बात फिक्र की तो है ही।
कोई और बहाना ढूंढ लें...
आमसभा के चुनावी नतीजे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इज्जत बढ़ा गए, और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भाजपा की इज्जत बचा भी गए। लेकिन सबसे बड़ी इज्जत अगर किसी की बची है, तो वह ईवीएम की है, जिसे जालसाजी का सामान बताया जा रहा था, और जिसे हटाकर फिर से कागज का वोट लाने की बात हो रही थी। अभी-अभी चुनाव आयोग के इक_ा किए हुए आंकड़े बताते हैं कि 542 लोकसभा सीटों के तहत आने वाले तमाम चार हजार से अधिक विधानसभा सीटों पर जिन 20625 वीवीपैट मशीनों से कागज की पर्चियां निकालकर ईवीएम में दर्ज वोटों से मिलाकर देखा गया, तो उनमें एक वोट का भी फर्क नहीं आया। उम्मीद है कि अब किसी के शक के आधार पर ईवीएम को घरनिकाला नहीं दिया जाएगा। बीस हजार से अधिक मशीनों पर डले वोटों में एक वोट का भी फर्क न आए, इससे अधिक कठिन अग्निपरीक्षा और क्या हो सकती है? हारने वाले नेताओं और पार्टियों को अगले चुनाव के पहले किसी और बहाने की तलाश करनी चाहिए। वैसे भी झूठे बहानों का नफा पाने वाले लोग आगे चलकर नुकसान के सिवाय और कुछ नहीं पाते।
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