राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बिहार के बाद बंगाल
12-Nov-2025 5:45 PM
राजपथ-जनपथ : बिहार के बाद बंगाल

बिहार के बाद बंगाल

बिहार चुनाव निपटने के बाद प्रदेश भाजपा के कुछ प्रमुख नेताओं को पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी जा सकती है। बंगाल में अगले मार्च-अप्रैल में विधानसभा के चुनाव हैं। प्रदेश भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल करीब तीन महीने बिहार में रहकर चुनाव प्रबंधन को मजबूत करने के काम में लगे थे। जामवाल के साथ-साथ दो दर्जन से अधिक नेता महीने भर से अधिक समय बिहार में डटे रहे।

प्रदेश भाजपा के नेता बिहार से लौट आए हैं। चर्चा है कि प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय बंगाल में पार्टी संगठन का काम देखने जा सकते हैं। साय के अलावा सरकार के दो-तीन मंत्री भी प्रचार के लिए वहां जा सकते हैं। इसकी सूची बनाई जा रही है। ये सभी नेता अगले चार-पांच महीने बंगाल में रहकर पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार में अपनी भूमिका निभाएंगे। वैसे भी छत्तीसगढ़ में हाल फिलहाल में कोई चुनाव नहीं है।

 तीन साल बाद वर्ष-2028 में विधानसभा के चुनाव हैं। संगठन में प्रदेश पदाधिकारियों की नियुक्ति हो चुकी है। प्रदेश कार्यकारिणी की सूची जारी होना बाकी है, वो भी पखवाड़े भर के भीतर जारी हो सकती है। ऐसे में यहां के पदाधिकारियों, और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को बंगाल भेजने पर सहमति बनी है। चर्चा है कि प्रदेश के नेता दिसंबर के पहले पखवाड़े में बंगाल कूच कर सकते हैं।

जंगल के जमींदार

प्रदेश के रिटायर्ड आईएफएस अफसर सुनील मिश्रा की नियुक्ति  आदेश  की प्रशासनिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है। पीसीसीएफ स्तर के 94 बैच के अफसर मिश्रा 31 अक्टूबर को रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद उन्हें  वन मुख्यालय में  ओएसडी के पद पर संविदा नियुक्ति दी गई है। मिश्रा को लैंड मैनेजमेंट का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।

सुनील मिश्रा पिछले छह साल से लैंड मैनेजमेंट का प्रभार संभाल रहे हैं। रिटायरमेंट के पहले उन्हें पीसीसीएफ का स्केल मिला था। दिलचस्प बात यह है कि वन मुख्यालय में पहली बार पीसीसीएफ स्तर के अफसर  को संविदा पर ओएसडी नियुक्त किया गया है। हालांकि भूपेश सरकार में पीसीसीएफ स्तर के अफसर जेईसी राव को रिटायरमेंट के बाद संविदा पर वन औषधि बोर्ड में सीईओ बनाया गया। उन्हें तीन साल के लिए सीईओ नियुक्त किया गया। मगर सुनील मिश्रा के आदेश में संविदा अवधि की कोई सीमा नहीं है। उन्हें आगामी आदेश तक नियुक्त किया गया है। कुल मिलाकर इस नियुक्ति आदेश पर वन मुख्यालय में कानाफूसी हो रही है।

दीपावली पर एडवांस देने वाले अब ढूंढ रहे

दीपावली बीत गई। अक्टूबर के पहले सप्ताह मिले गिफ्ट, सप्रेम भेंट, सौजन्य भेंट सब खप गए। अब बवाल का इंतजार हो रहा है। यह सब ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए जो लिए गए थे। खबर है कि एक कद्दावर मंत्री के इंजीनियर सहयोगी ने भेंट के नाम पर एडवांस ले लिया। यह तब लिया गया जब उसकी बंगले में  पोस्टिंग थी। बाद में उसे हटा दिया गया। और मूल पंचायत विभाग अंबिकापुर लौटा दिया गया। लेकिन वह फिर सक्रिय हो गया है। इसके लिए उसकी विभागीय आला अफसर के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी। और फिर विभागीय कामकाज में बराबर दखल बना ली है। इस सहयोगी से दूर रहने वालों ने पड़ताल की तो पता चला ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष पिता के इस इंजीनियर बेटे को मंत्री ने उसे अधिकृत ही नहीं किया था। फिर क्या अब सोने चांदी के सिक्के के रूप में एडवांस देने वाले बंगले में उसे ढूंढ रहे हैं। अब बात धीरे-धीरे फैल रही है। देर सबेर इसको लेकर बवाल होने की आशंका जताई जा रही है। देखना है आगे क्या

होता है।

अपने ही शिक्षक को संभालते मजबूर बच्चे

अनुसूचित जाति बहुत, दिव्यांगों की सर्वाधिक संख्या वाले और आर्थिक रूप से पिछड़े बिलासपुर जिले के मस्तूरी इलाके का उज्ज्वल पक्ष यह है कि यहां का मल्हार गांव पुरातात्विक दृष्टि से देश-विदेश में प्रसिद्ध है। यहां मां डिडनेश्वरी की 13वीं शताब्दी की प्रतिमा है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में बौद्ध, जैन और हिंदू संस्कृति के अनेक अवशेष बिखरे हुए हैं, पर्यटन और शोध का केंद्र है। यहां शिवनाथ, महानदी और खूंटाघाट से सिंचाई की सुविधा मिलती है और बहुफसली खेती की जाती है।

मगर, इस तहसील में शिक्षा और कानून व्यवस्था एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ी हुई है। इस साल जनवरी से लेकर अब तक 9 शिक्षक शराब पीकर स्कूल आने के कारण सस्पेंड कर दिए गए हैं। दो-तीन पहले ही एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें बाइक से गिरे, नशे में धुत शिक्षक हितेंद्र तिवारी को स्कूल परिसर में बच्चे खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। फरवरी 2024 में एक शिक्षक संतोष कुमार केवट शराब के नशे में तो पहुंचा ही, स्टाफ रूम में महिला शिक्षकों के सामने बोतल खोलकर बैठ गया। उसे बर्खास्त कर दिया गया है। ये ऐसी रिपोर्ट्स हैं जो सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने की वजह से सामने आ गई और न्यूज़ पोर्टल में चलने की वजह से शिक्षा विभाग को कार्रवाई करनी पड़ी। मगर, शायद यह वास्तविक संख्या का थोड़ा सा प्रतिशत होगा।

स्कूलों का माहौल ऐसा हो तो असर क्या होता है? प्राथमिक स्तर पर बच्चे गणित और विज्ञान से अधिक नैतिक मूल्यों को सीखते हैं। बच्चे शिक्षकों को आदर्श मानते है। उन्हें लडख़ड़ाते और असहाय देखने से उनके मन में असुरक्षा, भय और अविश्वास की भावना पैदा होती है। आत्मविश्वास गर्त में चला जाता है और अनुशासन के लिए तो जगह ही नहीं बचती। कोमल मस्तिष्क यह भी समझ सकता है कि शिक्षक का शराबी होना एक सामान्य सी बात है। उन्हें नशा आकर्षक लग सकता है। लड़कियों को स्कूल भेजने से अभिभावक डरने लगते हैं। ऐसे में बच्चे क्या सेकेंडरी स्कूल और कॉलेज के लिए तैयार हो पाएंगे? मस्तूरी जैसे अनुसूचित जाति बहुत गरीब इलाके में ड्रॉप आउट की संख्या बढ़ सकती है। मुफ्त शिक्षा के बावजूद वे स्कूल छोडक़र कम उम्र में मेहनत-मजदूरी करने लगेंगे। प्रवासी मजदूरों की सबसे ज्यादा तादाद इसी और इससे लगे जांजगीर-चांपा इलाके में है। शराबी शिक्षक बच्चों और उनके परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्तर ऊंचा उठाने की संभावनाओं को ही खत्म कर रहे हैं। स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि बच्चों और युवाओं को नहीं शिक्षकों की ही काउंसलिंग कराने की जरूरत आ पड़ी है। मस्तूरी ही नहीं, प्रदेश के दूसरे स्थानों पर जहां भी ऐसी शिकायतें आ रही है, सरकार नरमी बरत रही है। इन शिक्षकों सस्पेंड होने की अधिक चिंता नहीं होती। कुछ महीने के बाद दोबारा उसी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेज दिए जाते हैं। नए स्कूल शिक्षा मंत्री ने शराबी शिक्षकों को नौकरी से बर्खास्त करने की घोषणा की थी, उस पर अब तक अमल नहीं हुआ है।


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