राजपथ - जनपथ
किसान की जिद ने हिला दिया प्रशासन को
गरियाबंद जिले के खरीपथरा गांव के किसान मुरहा नागेश ने अपनी पुश्तैनी जमीन के हक के लिए जिस तरह शांतिपूर्ण संघर्ष का रास्ता चुना, उसने आखिरकार प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया। कडक़ती ठंड में परिवार सहित गांधी मैदान में बैठा यह किसान अपनी जमीन वापस पाने के लिए कई दिनों से भूख हड़ताल पर है। नतीजा यह हुआ कि अब प्रशासन को गांव की पूरी जमीन की नाप-जोख शुरू करनी पड़ी है।
दरअसल, 1954 से लेकर 1986 तक के सभी राजस्व रिकॉर्ड में उसकी जमीन 2.680 हेक्टेयर के रूप में दर्ज रही, लेकिन 1990 में बंदोबस्त सुधार के दौरान खसरा क्रमांक बदलने से रिकॉर्ड गड़बड़ा गया।
अब उसी एक खसरे की जगह दो नए क्रमांक (778 और 682) बना दिए गए, और उनमें चार अन्य लोगों के नाम दर्ज हो गए। नतीजा यह हुआ कि मुरहा की पुश्तैनी जमीन पर कब्जा विवाद में आ गया।
पहले उसने इसी तरह धरना दिया बीते तो प्रशासन ने उसे जमीन वापस दिलाई, तो दूसरे पक्ष ने ऊपरी कोर्ट से आदेश पाकर फिर कब्जा कर लिया। अब जब उसने फिर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की, तो प्रशासन को मानना पड़ा कि दरअसल, सरकारी राजस्व रिकॉर्ड में ही गड़बड़ी है।
अब कलेक्टर भगवान सिंह उइके ने एसडीएम, तहसीलदार, भू-अभिलेख शाखा के अफसरों, आरआई और पटवारियों की 10 लोगों की टीम गठित कर दी है, जो गांव के सभी किसानों की, जिनकी संख्या 350 से अधिक है, के बंटवारे और कब्जे की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करेगी, और उसके बाद मुरहा नागेश को उसके जमीन का हक दिलाया जाएगा।
बीज बोने वाले कुलपति
कल राज्य सरकार द्वारा अंबिकापुर विश्वविद्यालय में नए कुलपति प्रो राजेन्द्र लखपाले की नियुक्ति से चर्चाओं की हलचल बढ़ गई है। सरगुजा विश्वविद्यालय आर्ट्स, कॉमर्स, साइंस संकाय वाला सामान्य विश्वविद्यालय है जहां आम तौर पर अब तक इन्हीं विषयों के शिक्षाविदों की नियुक्ति की जाती रही है। यह नियुक्ति इस परंपरा से हटकर की गई है। वैसे कुलपति के लिए विषय का कोई बंधन नहीं होता।
प्रोफेसर राजेंद्र कृषि और बीज विज्ञानी हैं। उनकी नियुक्ति से एक बात और उल्लेखनीय है कि वे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के ऐसे तीसरे कृषि विज्ञानी प्राध्यापक हैं जो प्रदेश के ही विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए हैं। इनसे पहले महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, पाटन-दुर्ग के कुलपति प्रोफेसर रवि रत्न सक्सेना हैं। वे विश्वविद्यालय से एक प्रोफेसर और एसोसिएट निदेशक (अनुसंधान) रहे हैं। वैसे उनकी नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर है। और फिर डॉ. गिरीश चंदेल भी हैं। यहां बता दें कि कुलाधिपति व राज्यपाल रमेन डेका उच्च शिक्षा विभाग, और कुलपतियों की बैठकों में कहते रहे हैं कि प्राध्यापकों की पदोन्नतियां न रोकी जाए। ताकि स्थानीय शिक्षाविदों को कुलपति बनने का अवसर मिले। शायद वे यह अपनी समझ या फीड बैक के आधार पर कहते रहे हैं क्योंकि पूर्ववर्ती सरकारों में बाहरी शिक्षाविदों के कुलपति बनकर आने की बहुतायत रही है।
बर्खास्तगी खत्म होने के आसार नहीं
प्रदेश में एनएचएम कर्मियों की हड़ताल महीने भर चली, और सीएम विष्णुदेव साय की दखल के बाद सितंबर के आखिरी में हड़ताल खत्म भी हो गई। इसी बीच हड़ताली 25 अफसर-कर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था। हड़ताल खत्म हुए महीने भर से अधिक हो गए हैं, लेकिन बर्खास्त कर्मियों की वापसी नहीं हो पाई है। चर्चा है कि स्वास्थ्य मंत्री, बर्खास्त कर्मियों की वापसी के पक्षधर हैं, लेकिन विभागीय अफसर तैयार नहीं हैं।
बताते हैं कि एनएचएम नेताओं को बर्खास्त कर्मियों की बहाली का आश्वासन दिया गया था। पहले दिवाली, और फिर राज्योत्सव तक रुकने के लिए कहा गया। अब सब कुछ निपट गया है। कर्मचारी नेता अपने साथियों की बहाली के लिए दबाव बनाए हुए हैं। बर्खास्त अधिकारी-कर्मचारी अलग-अलग जिलों के हैं।
विभागीय अफसरों का कहना है कि ये सभी अपने-अपने जिलों में हड़ताल की अगुवाई कर रहे थे। उनकी वजह से ही हड़ताल महीनेभर खिंच गई। कर्मचारी नेता, अपने साथियों की बहाली के लिए अड़े हुए हैं। संकेत है कि अगले कुछ दिनों में बहाली नहीं होती है, तो एक फिर 16 हजार एनएचएम कर्मचारी हड़ताल पर जाने की रणनीति बना सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।


