राजपथ - जनपथ

सौ बार उठक-बैठक की सजा
सरगुजा जिले के प्रतापगढ़ स्थित डीएवी स्कूल की घटना ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि छोटे बच्चों के साथ शिक्षक-शिक्षिकाओं का व्यवहार कैसा होना चाहिए। दूसरी कक्षा की एक बच्ची टॉयलेट जाने के लिए निकली तो नाराज शिक्षिका ने उसे डंडे से पीटा और क्लास रूम में सौ बार उठक-बैठक लगाने की सजा दे दी। मासूम बच्ची का शरीर यह यातना सह नहीं पाया और उसकी तबीयत बिगड़ गई। वह अपने पैरों पर खड़ी तक नहीं हो पा रही है। वह मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती है।
जानकारी के मुताबिक, घटना से पहले शिक्षिका क्लासरूम से बाहर निकलकर मोबाइल फोन चला रही थी। संभवत: अनुशासन बनाए रखने का उनका तरीका यह था कि एक बच्ची को कठोर दंड देकर बाकी बच्चों को भयभीत कर दिया जाए और मोबाइल देखने में व्यवधान न हो। मगर, इस घटना ने न केवल सजा पाने वाली बच्ची में बल्कि क्लास रूम में मौजूद दूसरे बच्चों के मन में स्कूल और टीचर्स को लेकर गहरी नकारात्मक छवि बन गई होगी।
छोटे बच्चों के साथ व्यवहार करने की कला और संवेदनशीलता के लिए विशेष प्रशिक्षण जरूरी है। सरकारी स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिकाओं की नियुक्ति को लेकर लंबे समय तक विवाद रहा, जब पिछली सरकार के दौरान बी.एड. डिग्रीधारकों को प्राथमिक कक्षाओं में नियुक्त कर दिया गया। इसके खिलाफ डीएलएड अभ्यर्थियों ने अदालत का रुख किया। अदालत ने डीएलएड अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला दिया। यह तो सरकारी स्कूलों की बात है, पर निजी नामचीन स्कूलों में नियुक्ति के मापदंड ऐसे नहीं होते। अक्सर देखा जाता है कि ये पब्लिक स्कूल शिक्षक-शिक्षिकाओं की भर्ती में उनकी शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण से समझौता कर लेते हैं ताकि उन्हें कम वेतन पर काम कराया जा सके। शिक्षक परीक्षा परिणाम को लेकर बच्चों से कहीं अधिक दबाव में रहते हैं। उन्हें नौकरी की स्थिरता को लेकर चिंता होती है। वे बच्चों पर कड़ा नियंत्रण करने को अच्छे परिणाम का तरीका समझते हैं।
शायद ही किसी निजी स्कूल में शिक्षकों को बाल संरक्षण कानून या बच्चों के अधिकारों की जानकारी दी जाती हो। उन्हें यह तक मालूम नहीं होगा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत शारीरिक दंड पूरी तरह प्रतिबंधित है। इस घटना ने साबित कर दिया है कि छोटे बच्चों का टीचर बनना, बड़े बच्चों का टीचर बनने से कहीं अधिक जिम्मेदारी भरा काम है।
मंत्रालय चुनाव और मुद्दा
मंत्रालय कर्मचारी संघ के त्रिवार्षिक चुनाव की हलचल शुरू हो गई है। मंगल योग के साथ 9 तारीख से दावेदार नामांकन पत्र दाखिल करने लगेंगे। अध्यक्ष समेत 7 पदों पर चुनाव होंगे। मंत्रालय संवर्ग के 778 कर्मचारी मतदाता हैं।
अब रही बात चुनावी टसल की। वर्तमान अध्यक्ष, वर्तमान सचिव के साथ पूर्व अध्यक्ष ने भी दावेदारी ठोंक दी है। एक ही खेमे के माने जाने वाले तीनों ने एक दूसरे को सूचित कर दिया। और वोट बंटवारा रोकने एक दूसरे को लडऩे से मना भी कर चुके हैं। अब भला लोकतंत्र में कैसे कोई रोक और मना कर सकता है। तीनों तैयार नहीं हैं। एक ने कहा आप भी लड़ लें,मगर दुष्प्रचार न करें। वैसे संघ के वर्तमान नेतृत्व के खिलाफ ऐसा कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं है कि दोबारा चुने जाने में दिक्कत हो। पुराने दावेदार 8 माह बाद रिटायर होने वाले हैं।यानी पुन: अध्यक्ष चुनने की नौबत आएगी। सात सौ से अधिक मतदाता बार बार चुनाव नहीं चाहते।
अब बात चुनावी वादे मुद्दों की। तरो ताजा मामला उपसचिव पदों की वृद्धि, महीनों से लंबित इसके आदेश और फिर डीपीसी है। भारसाधक मंत्री (सीएम)ने अनुमोदन भी कर दिया है। इसके मुताबिक 40 प्रतिशत पद सचिवालय सेवा से भरे जाएंगे।
इसे लेकर संघ के वाट्सएप ग्रुप में भी हलचल है। एक ने कहा अत्यंत दुखद, मुख्यमंत्री के अनुमोदन के उपरान्त भी आदेश अभी तक नहीं जारी किया गया, जो सरासर कर्मचारी हितों के विरूद्ध कार्य को दर्शाता है, मंत्रालय के समस्त कर्मचारियों को ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन हैं एवं इसका उपचार क्या है, इस संबंध मे तत्काल मंथन-चर्चा कर आगामी कार्यवाही करना चाहिए...अन्यथा मंत्रालय मे ऐसे ही अत्याचार-तानाशाही सहने के लिए तैयार रहिये। दूसरे ने कहा 17 तारीख (मतदान तिथि)से पहले जो करवाएगा वही अध्यक्ष बनेगा, 100 बातों की एक बात। तीसरे ने कहा -एकदम सही बात भाई। साथ ही डीपीसी भी होनी चाहिए।
फिर जवाब आया -भाई साहब, 17 तारीख के पहले पहले तक तो यह मुमकिन नहीं दिख रहा है किंतु जो अध्यक्ष और सचिव पद के लिए उम्मीदवार हो अगर वह वादा करें कि रुका हुआ आदेश जल्द जारी करवाएंगे साथ ही पदोन्नति हो, तो ऐसे उम्मीदवार को सबको सहयोग करना चाहिए आगामी चुनाव में। कर्मचारी हित सर्वोपरि होना चाहिए, संगठन को मजबूत-सार्थक बनाने में सभी कर्मचारी सहयोग करें, आगामी चुनाव मे बेस्ट को चुने, कर्मचारी एकता जिंदाबाद। 17 तारीख बहुत समय है,एक दिन में ही अनुमोदन और आदेश निकलते देखा हैं। अब देखना है आगे क्या होता है।
मुहर क्यों नहीं?
आईपीएस के वर्ष-92 बैच के अफसर अरुण देव गौतम अब तक कार्यवाहक डीजीपी बने हुए हैं। यद्यपि यूपीएससी ने तो जुलाई के पहले पखवाड़े में ही डीजीपी के लिए दो नाम का पैनल राज्य को भेज दिया था। इनमें से किसी के एक नाम पर मुहर लगनी थी, और विधिवत पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी होना था। मगर दो महीने बाद भी पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी नहीं हो पाया है।
सरकार के भीतर अरुण देव गौतम के नाम पर सहमति है। वजह यह है कि गौतम सीनियर हैं, और उनकी साख अच्छी है। बावजूद इसके पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी नहीं होने को लेकर पुलिस महकमे में कई तरह की चर्चा है। एक चर्चा यह भी है कि डीजीपी पद के बाकी दावेदार भी सत्ता, और संगठन में पकड़ रखते हैं। उनके दबाव की वजह से आदेश जारी नहीं हो पा रहा है।
दूसरी तरफ, यूपी में तो कार्यवाहक डीजीपी चार साल तक रहे। ऐसे में कार्यवाहक डीजीपी के रूप में अरुण देव गौतम कार्य करते रहेंगे या फिर पूर्णकालिक का आदेश निकलेगा, यह देखना है। वैसे तो गौतम के रिटायरमेंट में अभी दो साल बाकी है।
वाट्सएप चैट..
एक दोस्त ने बड़े प्यार से फ्रेंड को फरेंड लिख दिया और दूसरे ने सोचा कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है। दोस्तों की नाराजगी से डरता कौन है, मान जाएगा, इसलिए उसने आपत्ति के बावजूद अगला शब्द जेंटलमैन भी गलत लिख दिया। चैट का स्क्रीनशॉट इतना ही है। आगे शनिवार की पार्टी हुई या नहीं पता नहीं चल रहा है।