राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : गड्ढेदार वर्ल्ड क्लास
25-Aug-2025 7:43 PM
राजपथ-जनपथ : गड्ढेदार वर्ल्ड क्लास

गड्ढेदार वर्ल्ड क्लास

छत्तीसगढ़ सरकार के आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय के  विभागीय मंत्री-अफसरों के साथ ही आरडीए के पदाधिकारी सिंगापुर, मलेशिया,हॉन्ग कांग, और शंघाई (चीन) का दौरा कर राजधानी में विश्व स्तरीय सेटेलाइट टाउन बनाने कमल विहार का कांसेप्ट लाए थे।

राजधानी रायपुर सहित प्रदेश की जनता को ब्रोशर के माध्यम से बताया गया कि यह एक दमदार प्रोजेक्ट है और यहां के निवासी जो यहां प्लाट लेंगे वह अपने आप को उपरोक्त देश के नागरिक की तरह पूरी सुविधा का आनंद ले सकेंगे? यह ड्रीम प्रोजेक्ट यह भले स्वरूप न ले पाया हो लेकिन नाम जरूर बदलता रहा।अब वर्तमान में माता कौशल्या विहार पड़ गया है। 

अब इस तस्वीर को देखकर कर आंखें चौंधिया जाएंगी। यह माता कौशल्या विहार के मेन गेट से अंदर जाने का रास्ता यह है। जहां सडक़ कम गड्ढे अधिक हैं। इलाके में अपराधी सक्रिय हैं सूखे नशे का अड्डा बन गया है यह ड्रीम प्रोजेक्ट। सरकार ने पुलिस थाना खोलने का निर्णय ले लिया लेकिन पता नहीं किसी अदृश्य शक्ति के दबाव में पुलिस थाना नहीं खोला जा रहा है यहां के निवासी परेशान हो चुके हैं।

चैम्बर विवाद जारी

तीन माह पहले छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े व्यापारी संगठन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पदाधिकारियों का निर्विरोध चुनाव हुआ था। मगर अब पदाधिकारियों के बीच विवाद बढ़ गया है। हाल ये है कि चैम्बर के चुनाव प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है, जिस पर जल्द सुनवाई होगी।

चैम्बर में सतीश थौरानी अध्यक्ष, और महासचिव पद पर भिलाई के अजय भसीन निर्विरोध चुने गए थे। चैम्बर के पूर्व अध्यक्ष अमर पारवानी ने अपनी दावेदारी वापस लेकर पदाधिकारियों के निर्विरोध निर्वाचन में अहम भूमिका निभाई थी। मगर अब उनसे जुड़े लोग हाईकोर्ट चले गए हैं।

चर्चा यह है कि चैम्बर के पदाधिकारियों के बीच आपस में विवाद चल रहा है। एक प्रमुख पदाधिकारी ने पद छोडऩे का मन बनाया है। चैम्बर से जुड़े कई व्यापारी नेता एक अन्य संगठन कैट की सदस्यता ले रहे हैं। पारवानी कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। व्यापारियों के विवाद पर भाजपा संगठन के नेताओं की भी नजर है। भाजपा संगठन के दो प्रमुख पदाधिकारियों को व्यापारियों के बीच समन्वय बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। मगर वे अब तक एकजुटता बनाए रखने में नाकाम साबित हो रहे हैं। देखना है व्यापारियों का झगड़ा आगे क्या रूख लेता है।

संस्कृत से लेकर उर्दू तक...

अब तक भारत सरकार के रिजर्व बैंक के छापे गए नोटों में कई भाषाओं में कोई बात कही जाती थी। लेकिन अब राजधानी रायपुर के एक सबसे महंगे स्कूल के प्राचार्य ने बच्चों के बारे में एक नोटिस मां-बाप को ऐसा भेजा है जो अलग-अलग चार भाषाओं में बनाया गया है। अंग्रेजी और हिन्दी तो ठीक है, इसे संस्कृत और शायद फारसी में भी लिखा गया है। एन.एच.गोयल वल्र्ड स्कूल के प्राचार्य डॉ.अविनाश पांडेय ने किसी मां-बाप के बच निकलने की गुंजाइश नहीं छोड़ी है, संस्कृत से लेकर उर्दू तक जो भी भाषा वे समझें, इस नोटिस को तो समझना ही होगा, हिन्दी और इंग्लिश में तो है ही। अगला नोटिस ये प्रिंसिपल नोटों पर छपने वाली तमाम भाषाओं में भी बना सकते हैं।

हेलमेट खरीदना अलग बात, पहनना दूसरी बात

तमाम आंकड़े बताते हैं कि सडक़ दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें बाइक सवारों की होती हैं, और इसकी बड़ी वजह हेलमेट न पहनना है। रायपुर जिले में पिछले सात महीनों में 190 से अधिक बाइक सवारों की जान जा चुकी है। तीन सवारी चलना और नशे की हालत में वाहन चलाना भी वजहें हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या हेलमेट का इस्तेमाल न करना ही पाया गया है।

इसी अवधि में पुलिस ने 20 हजार से ज्यादा बिना हेलमेट वाले बाइक सवारों पर जुर्माना लगाया। कभी गुलाब देकर तो कभी हेलमेट बांटकर लोगों को जागरूक भी किया गया, लेकिन इसका भी खास असर दिखाई नहीं दे रहा है। अधिकतर लोग अपनी जान की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि पुलिस के चालान से बचने के लिए ही हेलमेट पहन रहे हैं।

अब रायपुर पुलिस ने एक अतिरिक्त कदम उठाते हुए शहर के दोपहिया वाहन डीलर्स को निर्देश दिया है कि वे बाइक के साथ हेलमेट देना अनिवार्य करें। नियम का पालन नहीं करने पर शोरूम संचालकों पर मोटरयान अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। पुलिस की मंशा भले ही नेक है, मगर सवाल यह है कि जब कोई व्यक्ति एक लाख की बाइक खरीद सकता है, तो क्या वह छह-सात सौ रुपये का हेलमेट खुद नहीं खरीद पाएगा, यदि उसे अपनी सुरक्षित यात्रा की चिंता हो?

असल में इससे डीलर्स का व्यवसाय तो बढ़ जाएगा, लेकिन यह गारंटी नहीं है कि लोग खरीदा हुआ हेलमेट पहनेंगे भी। कई लोग हेलमेट घर में रखकर ही दफ्तर या काम के लिए निकल जाते हैं। यदि किसी ने पहले से हेलमेट खरीद रखा हो, तब क्या डीलर्स से उसे जबरदस्ती दूसरा हेलमेट लेना पड़ेगा? यह तो सडक़ पर पुलिस की ही जिम्मेदारी है कि बिना हेलमेट बाइक चलाने वालों को पकड़े।

यही स्थिति कुछ दिन पहले बिलासपुर में भी देखने को मिली थी। वहां एसपी ने पेट्रोल पंप डीलर्स की बैठक बुलाकर निर्देश दिया था कि बिना हेलमेट वाले बाइक सवारों को पेट्रोल न दिया जाए। डीलर्स ने सहमति जताई भी, लेकिन आदेश दो-चार दिन से ज्यादा टिक नहीं पाया। व्यावहारिक ही नहीं था आदेश।

दो कारण साफ नजर आते हैं कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा पा रही है। पहला, उसके पास चौराहों पर लगातार चेकिंग के लिए पर्याप्त बल नहीं है। दूसरा, जैसे ही पुलिस थोड़ी सख्ती दिखाती है, विपक्ष में बैठे राजनीतिक दल विरोध प्रदर्शन शुरू कर देते हैं। हाल ही में भाजपा नेताओं और सांसदों ने जगह-जगह तिरंगा यात्राएं निकालीं। हजारों लोग बाइक पर कई-कई किलोमीटर तक चले, लेकिन इस मौके पर भी वे यह संदेश देने से चूक गए कि अपनी सुरक्षा के लिए हेलमेट जरूर पहनें।


अन्य पोस्ट