राजपथ - जनपथ
शिक्षक काली पट्टी भूल गए
करीब तीन दशक बाद प्रदेश में स्कूलों-शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण सफलतापूर्वक हो पाया है। इससे पहले अविभाजित मध्यप्रदेश की दिग्विजय सरकार में हुआ था, तब स्कूलों और शिक्षकों की संख्या काफी कम थी। उस समय भी विरोध हुआ था, लेकिन ज्यादा कुछ नहीं हो पाया था। इस बार तमाम विरोध को दरकिनार कर युक्तियुक्तकरण किया गया है। शासन-प्रशासन की धमक ऐसी रही कि शिक्षक नेता खुद का बचाव करते नजर आए।
हालांकि कांग्रेस ने युक्तियुक्तकरण के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है। कुछ जगहों पर प्रदर्शन भी हुआ, लेकिन शिक्षक कांग्रेस के आंदोलन से दूर रहे। शिक्षक नेताओं को डर था कि उनकी पोस्टिंग दूरदराज के इलाकों में न हो जाए, इसीलिए वो ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। युक्तियुक्तकरण के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए सभी शिक्षकों को काली पट्टी लगाकर कक्षाएं लेने के लिए कहा गया था। ग्रामीण इलाकों में कुछ जगहों पर जरूर कुछ शिक्षकों ने काली पट्टी लगाकर काम किया, मगर एक-दो दिन बाद वो भी बंद हो गया। हाल यह है कि पूरे प्रदेश में शिक्षक काली पट्टी लगाना भूल गए हैं। युक्तियुक्तकरण का प्रतिफल यह रहा कि शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई है। एकल शिक्षकीय स्कूलों में और शिक्षकों की पोस्टिंग हो पाई है।
जानकार मानते हैं कि स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार खुद सीएम विष्णुदेव साय के पास है। साय ने युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में गड़बड़ी पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे। अब तक आधा दर्जन बीईओ, और दो डीईओ निलंबित हो चुके हैं। कुल मिलाकर विभाग में इस बार जो कुछ हुआ, पहले कभी नहीं हुआ।
सफाई का ईमानदारी से रिश्ता
रायपुर नगर निगम के मेयर, कमिश्नर, और कुछ अफसर सफाई व्यवस्था का जायजा लेने पिछले दिनों इंदौर गए थे। दरअसल, इंदौर सफाई के मामले में पिछले कुछ बरसों में देश में पहले नंबर पर है।

रायपुर नगर निगम इलाके में सफाई व्यवस्था का बुरा हाल है। इससे पहले भी सफाई का हाल जानने के लिए यहां के प्रतिनिधि हर कुछ साल में इंदौर आते-जाते रहे हैं। मगर यहां वहां गंदगी का आलम बना रहा है।
इस बार मेयर और कमीश्नर इंदौर से लौटे, तो सफाई व्यवस्था से जुड़े अफसरों के प्रभार बदले गए हैं। बावजूद इसके व्यवस्था में सुधार होगा, इसकी संभावना कम दिख रही है।
जानकार मानते हैं कि सफाई व्यवस्था ठीक नहीं हो पाने के लिए निर्वाचित वार्ड प्रतिनिधि सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार सफाई व्यवस्था में हैं, और इसमें पार्षदों की सीधी दखल रही है। पूरी सफाई का काम ठेके पर चलता है। चर्चा है कि सफाई ठेकेदार, पार्षदों के दवाब में रहते हैं। दवाब के चलते ठेकेदार, सफाई कर्मचारियों की संख्या कम कर पार्षदों की जरूरतें पूरी करते आए हैं लेकिन जहां के पार्षद ईमानदार हैं,उस वार्ड में सफाई की व्यवस्था बेहतर रहती है। इंदौर में सफाई व्यवस्था में पार्षदों का दखल नहीं है और वहां कम से कम सफाई का काम ईमानदारी से होता आया है। इसका नतीजा भी सबके सामने है। रायपुर नगर निगम में ऐसा होगा, इसकी गुंजाइश फिलहाल कम दिख रही है।
राजधानी वैसे भी बड़े-बड़े ताकतवर लोगों की बस्ती रहती है, ऐसे में अगर किसी एक सडक़ पर डामर की तह बढ़ते-बढ़ते एक फीट की हो जाए तो जान लीजिए कि यह छोटी सी सडक़ किसी बहुत ताकतवर के घर तक जाती है. श्यामाचरण शुक्ल आज नहीं रह गए, और अमितेश शुक्ल आज न मंत्री रहे न विधायक, रहे लेकिन ताकतवर तो हैं ही।

गौ सेवकों की सहूलियत के लिए राजधानी रायपुर की दर्जनों सडक़ों पर गायों का ऐसा स्थाई बसेरा रहता है, कि कोई पंडित-ज्योतिषी जिस रंग की गाय को कुछ खिलाने का टोटका सुझाए, उस रंग की गए वहां मिल सकती है. शहर के एक अकेले कैनाल रोड पर किसी भी समय कई सौ गायों को देखा जा सकता है. वैसे यह तस्वीर जी ई रोड की है।

प्रदेश के बहुत सारे दफ्तरों को अपनी खैरियत मनानी चाहिए की पुशपुल की विरोधी मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े कभी वहां न पहुंचे जाएं, वरना कांच के दरवाजे का पता नहीं क्या हाल होगा।


