राजपथ - जनपथ
घर में खड़ी कार का टोल !!
पिछले सप्ताह ही केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने टोल टैक्स वसूली का नयी योजना घोषित की थी। इसके मुताबिक 1 अगस्त से प्री पेड, तीन हजार रुपए के सालाना टोल पास बनवाकर टोल प्लाजा में बिना रुके फर्राटे से आ जा सकते हैं। उसके बाद अब वह दिन दूर नहीं जब बिना सफर किए घर में खड़ी कार का टोल वसूली की योजना लांच कर दी जाएगी। ऐसी ही एक वसूली के शिकार व्यक्ति ने इसे हमसे भी शेयर किया है। इन्होंने गडक़री के कार्यकाल में बन रहे राजमार्गों की तारीफ करते हुए कहा कि इन पर चलने के लिए उन्हें टोल देने में भी ऐतराज नहीं है। लेकिन घर में खड़ी गाड़ी का टोल न वसूला जाए। गडकरी, पीएमओ, सीएमओ, सांसद को टैग करते हुए रायपुर के इन सज्जन ने बताया कि 36 घंटे से घर में खड़ी कार का टोल रसीद मिला है। वह भी कुम्हारी टोल प्लाजा से।अपने साथ हुई इस वसूली कि इन सज्जन ने एनएचआईए से भी ऑनलाइन शिकायत कर दी है। रोजाना इस रास्ते गुजरने वाले ऐसे दर्जनों इसका शिकार होते हैं। पिछले दिनों ही डॉ. राकेश गुप्ता के भी एक परिचित ने भी शिकायत की थी कि वे महासमुंद में रहते हैं और कुम्हारी टोल प्लाजा से टैक्स की रसीद भेजी गई है। ऐसे वाक्ये अंदेशा जता रहे हैं कि किसी दिन कुम्हारी से किसी विदेशी व्यक्ति को रसीद न भेज दी जाएगी। यह टोल प्लाजा रायपुर दुर्ग के बीच एक बड़ी समस्या हो गया है।
इसे बंद करवाने तो सामान्य जन कई बड़े आंदोलन कर चुके हैं। और तो और सांसद, महीनों पहले बंद करने का निर्देश दे चुके थे। अब देखना होगा कि यह वसूली कब बंद होगी।
बच्चे रेस का घोड़ा तो नहीं बन जाएंगे?

सीबीएसई ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 10वीं बोर्ड परीक्षा को साल में दो बार कराने का फैसला लिया है। इसके कई फायदे गिनाए जा रहे हैं। आधुनिक है, लचीला है। छात्रों को बेहतर प्रदर्शन के लिए दूसरा मौका मिलेगा, करियर विकल्प बढ़ेंगे और तनाव घटेगा, आदि। लेकिन सवाल बना हुआ है कि यह छात्रों का बोझ कम करेगा या उन्हें साल भर परीक्षा की दौड़ में झोंक देगा?
अगर कोई छात्र पहली परीक्षा में अच्छा नहीं कर पाया तो उसके ऊपर बोझ होगा कि दूसरी बार जरूर बेहतर करना है। और अगर दूसरी बार भी परिणाम संतोषजनक नहीं हुआ, तो उसका आत्मविश्वास और मानसिक स्थिति दोनों पर असर पड़ेगा। लगातार तैयारी और तुलना की दौड़ में छात्र थक जाएंगे। जब परीक्षाओं को तनावमुक्त करने की बात हो रही हो तब एक की जगह दो-दो परीक्षाएं?
फिर बात आती है फीस की। यह तय किया गया है कि दोनों परीक्षाओं की फीस पहले ही जमा करनी होगी। यानि गरीब और मध्यमवर्गीय अभिभावकों पर पहले से ही दोहरी आर्थिक मार पड़ेगी। एक तरफ महंगे निजी स्कूलों की पहले से भारी फीस, ऊपर से दो-दो बार बोर्ड परीक्षा की फीस! अमीर बच्चों के लिए यह सुविधा एक अतिरिक्त मौका हो सकती है, लेकिन साधारण परिवार के बच्चों के लिए यह सुविधा शर्मिंदगी और आर्थिक बोझ बन सकती है। अभिभावकों और बच्चों के बीच विवाद खड़ा हो सकता है कि परीक्षा एक बार ही दें या दो बार।
अब शिक्षकों की बात कर लें। दो बार पाठ्यक्रम पढ़ाना, मूल्यांकन करना, परीक्षा व्यवस्था संभालना। यह सब जिम्मेदारी बिना अतिरिक्त वेतन के निभानी होगी। प्राइवेट स्कूलों में पहले ही शिक्षकों को कम वेतन पर ज्यादा काम कराया जाता है, ऐसे में यह नई व्यवस्था उनके लिए भी एक नई परेशानी बनेगी। किसी को उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि दो बार फीस लेने के एवज में प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों का वेतन दोगुना हो जाएगा।
और जो बच्चा पहली परीक्षा में तीन विषयों में किसी निजी कारण से नहीं बैठ पाया, उसे दूसरी बार भी परीक्षा देने की अनुमति नहीं होगी। यह भी एक दबाव ही है।
यह फैसला शिक्षा को ज्यादा लचीला बनाने के लिए लिया गया है या ज्यादा व्यावसायिक, बच्चों-अभिभावकों के भले के लिए है या प्राइवेट स्कूल लॉबी की कमाई के लिए- आने वाले वक्त में पता चलेगा। समय बताएगा कि यह फैसला दूरदर्शी है या बोझ?
तबादलों के पीछे
सरकार ने बुधवार को नौ आईपीएस अफसरों के तबादले किए। सूची में आईपीएस के वर्ष-2020 बैच के अफसर विकास कुमार का भी नाम है। उन्हें पीएचक्यू में ही विशेष आसूचना शाखा में एसपी बनाया गया है। खास बात ये है कि विकास कुमार को साल भर पहले कवर्धा के लोहारीडीह हिंसा मामले में निलंबित कर गया था। विकास कुमार पर आरोप था कि उन्होंने मामले को ठीक से हैैंडल नहीं किया, और फिर हत्या, और आगजनी हो गई।
एएसपी विकास कुमार उस वक्त प्रशिक्षु थे। सरकार ने जांच बिठाई,तो विकास कुमार को क्लीनचिट मिल गई। दरअसल, सारी जिम्मेदारी वहां के एसपी की थी, जिन्होंने मामले की गंभीरता को नहीं समझा, और एएसपी विकास कुमार बलि का बकरा बन गए। खैर, तीन महीने बाद विकास कुमार बहाल हो गए थे। उन्हें पीएचक्यू में ही एआईजी के पद पर अटैच किया किया गया था। बहाली के बाद उन्हें पहली बार उन्हें बतौर एसपी के रूप में पीएचक्यू में काम आबंटित किया गया है।
इसी तरह शीर्ष नक्सल कमांडर बसवराजू के एनकाउंटर से चर्चा में आए नारायणपुर एसपी प्रभात कुमार की पीएचक्यू में पोस्टिंग हुई है। चर्चा है कि प्रभात कुमार केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने खुद होकर हटने की इच्छा जताई थी। इसके बाद उनका तबादला किया गया है। प्रभात कुमार की जगह आईपीएस के वर्ष-2020 बैच के अफसर रॉबिन्सन गुरिया को एसपी बनाया गया है, जो कि नारायणपुर में ही एएसपी के रूप में काम कर रहे थे। और नक्सल अभियान से सीधे जुड़े रहे हैं। ऐसे में उन्हें प्रभात कुमार की जगह लेने के लिए उपयुक्त समझा गया।
संगठन में अब कौन?
प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी बन रही है। चर्चा है कि हफ्ते दस दिन में इसकी घोषणा भी हो सकती है। सबसे ज्यादा महामंत्री पद पर नियुक्ति को लेकर उत्सुकता है।
प्रदेश भाजपा में चार महामंत्री के पद हैं। इनमें से एक तो महामंत्री (संगठन) पवन साय हैं, जो कि आरएसएस कोटे से आते हैं। बाकी तीन महामंत्री के पद पर सौरभ सिंह, रामू रोहरा, और भरतलाल वर्मा काबिज हैं। रामू तो धमतरी मेयर बन चुके हैं। ऐसे में उनकी जगह नई नियुक्ति होना तय है। इसी तरह सौरभ सिंह भी खनिज निगम के चेयरमैन का दायित्व संभाल रहे हैं। उन्हें भी संगठन के दायित्व से मुक्त करने की चर्चा है।
कहा जा रहा है कि भरत लाल वर्मा को रिपीट किया जा सकता है। बाकी दोनों पदों के लिए नए नाम तलाशे जा रहे हैं। बेलतरा के पूर्व विधायक रजनीश सिंह, पूर्व विधायक देवजी पटेल, पूर्व संसदीय सचिव चंपा देवी पावले सहित कई नामों की चर्चा है। देखना है कि किन्हें मौका
मिलता है।
बस्ती में पहुंचा हाथी आम खाने...

सरगुजा जिले के लुंड्रा वन परिक्षेत्र के धौरपुर इलाके में एक हाथी आम खाते हुए कैमरे में कैद हुआ है। यह वीडियो वन विभाग के कर्मचारियों ने बनाया है, जो अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।
वीडियो में देखा जा सकता है कि हाथी सहजता से पेड़ को हिलाकर आम गिराता है और फिर चुन-चुनकर उन्हें खा रहा है। यह दृश्य जितना मनमोहक है, उतना ही संवेदनशील भी, क्योंकि यह हाथी जंगल में भोजन की तलाश में भटकते हुए गांव के करीब पहुंच गया है।
बताया जा रहा है कि यह हाथी पिछले दो महीने से इलाके में अकेला घूम रहा है। वह अपने दल से बिछड़ गया है, लेकिन अब तक किसी घर, फसल या ग्रामीण को नुकसान नहीं पहुंचाया है।
सरगुजा संभाग में मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जंगलों का सिमटना सिर्फ सभी की चिंता का विषय है। जब यह विशाल प्राणी इंसानों के बस्ती में सिर्फ कुछ आम खाने के लिए आया है, तो इसके पीछे उसकी छिपी मजबूरी को समझना जरूरी है।


