राजपथ - जनपथ
सी-मार्ट की जगह प्रीमियम वाइन शॉप
पिछली सरकार ने कई जिला मुख्यालयों में सी-मार्ट दुकानें खोली। हस्तशिल्प, वन उत्पाद, स्थानीय वस्त्र और महिलाओं द्वारा बनाए गए सामान को एक छत के नीचे लाकर बाजार उपलब्ध कराने की नेक कोशिश दिखाई दे रही थी। दुकानों को मॉल जैसी साज-सज्जा दी गई, प्रशिक्षित सेल्स टीम रखी गई। लेकिन, जैसा अक्सर होता है, सरकारी योजना जब जमीन पर उतरती है तो उस पर अफसरशाही हावी हो जाती है। अब कई जिलों में सी-मार्ट के शटर स्थायी रूप से गिर चुके हैं। अंबिकापुर के गांधी चौक स्थित सी-मार्ट का भी यही हाल हुआ। नगर-निगम की बिल्डिंग पर चलने वाले सी-मार्ट की जगह आज से प्रीमियम शराब दुकान ने ले ली है। यह सरगुजा जिले का पहला प्रीमियम वाइन शॉप है।
आबकारी के अफसरों से मीडिया वालों ने पूछा तो उन्होंने इस दुकान के खुलने को ऐतिहासिक क्षण बताया, कहा कि डेढ़ साल से मांग हो रही थी लोगों की ओर से। अब जाकर पूरी हो गई है।
निश्चित रूप से यह वह जनता नहीं होगी, जो समय-समय पर शहरों में देसी-विदेशी शराब दुकानों के खिलाफ सडक़ों पर उतरती रही है। देसी शराब दुकानों के बाहर जहां आए दिन विवाद, मारपीट, यहां तक कि हत्याएं होती हैं, वहीं मॉल जैसी जगहों में खुली प्रीमियम दुकानों का कोई विरोध नहीं होता। प्रीमियम दुकानों में 'अहाता' नहीं होता और ग्राहक वर्ग अपेक्षाकृत 'सभ्य' माना जाता है। ये दुकानें सीधे उन लोगों के लिए हैं, जो 1100 रुपये या उससे अधिक की शराब खरीदने की क्षमता रखते हैं। कार से उतरते हैं, बिना धक्का-मुक्की के, इत्मीनान से पसंद की ब्रांड खरीदते हैं।
अंबिकापुर में प्रीमियम शराब दुकान खुलने से कई बातें साफ होती हैं। एक, राज्य सरकार 68 नई शराब दुकानों की घोषणा पर तेजी से अमल कर रही है। दो, वह इस बात का भी ध्यान रख रही है कि ऊंची सोसाइटी के लोगों को अब बस्ती पार कर, कीचड़-गड्ढे लांघकर शराब लेने न जाना पड़े। तीन, सी-मार्ट जैसी योजनाएं अब अर्थहीन मानी जा रही हैं, क्योंकि वे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में विफल रही हैं। सी-मार्ट और प्रीमियम शराब दुकान, दोनों की शुरुआत कांग्रेस सरकार ने की थी। भाजपा सरकार के फैसले व्यावहारिक हैं। जो जो स्कीम फायदेमंद है, वह चलेंगी, जो नहीं वे बंद होंगी। यह सवाल किया जा सकता है कि ग्रामीण-आदिवासी हुनरमंद महिलाओं के उत्पाद प्रीमियम लोकेशन पर भी क्यों नहीं बिके और क्यों उसी जगह पर महंगी शराब बेचने की मांग उठी है?
सबसे बड़ा सहकारी घोटाला
प्रदेश में सहकारिता सेक्टर के अब तक के सबसे बड़े घोटाले की पड़ताल चल रही है। यह घोटाला अंबिकापुर केन्द्रीय जिला सहकारी बैंक की शाखाओं में हुआ, और करीब सौ करोड़ से अधिक के घोटाले का अंदाजा है।
घोटाले की जांच के लिए सरकार ने अफसरों की तीन सदस्यीय टीम बनाई है। टीम ने पिछले दिनों अंबिकापुर जाकर सारे रिकॉर्ड खंगाले हैं। अब तक आधा दर्जन से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी है। एक बैंक मैनेजर को सपत्नीक गिरफ्तार किया गया है। हालांकि अभी सिर्फ बैंक के अफसर, और कर्मी ही धरे गए हैं। सरकार की जांच पर पैनी नजर है।
बताते हैं कि घोटालेबाज तो सूरजपुर जिले के किसानों की फसल बीमा की राशि डकार गए हैं। यही नहीं, भूपेश सरकार के कार्यकाल में हुए किसानों की कर्ज माफी में भी राशि की हेरफेर की गई। यह मामला दबा रहा है, लेकिन जब कलेक्टर ने बैंक चेयरमैन का प्रभार संभाला, तो गड़बड़ी का खुलासा हुआ।
बताते हैं कि नाबार्ड को पत्र लिखकर बैंक की गड़बड़ी से अवगत कराया गया है। फिलहाल जांच रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है, और कहा जा रहा है कि जांच रिपोर्ट आने के बाद सहकारिता पदाधिकारी भी घेरे में आ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
रिटायरमेंट की कतार
प्रदेश के सीनियर कई आईएफएस अफसर अगले दो-तीन महीनों में रिटायर हो रहे हैं। इसमें पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) आलोक कटियार, और सीनियर पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल भी हैं। कटियार जुलाई, और सुधीर अगस्त में रिटायर होंगे। यही नहीं, सीसीएफ स्तर के दो अफसर केआर बढ़ई, और बिलासपुर सीसीएफ प्रभात मिश्रा भी जुलाई में रिटायर होने वाले हैं। सीनियर आईएफएस अफसरों के रिटायरमेंट के साथ ही पीसीसीएफ से लेकर सीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जाएंगे। वैसे, अगले साल जून तक हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी श्रीनिवासराव, पीसीसीएफ प्रेमकुमार, सुनील मिश्रा का भी रिटायरमेंट है। ये वो अफसर हैं, वन विभाग से परे भी सरकार में पॉवरफुल रहे हैं।
संगठन बदलाव टला
प्रदेश कांग्रेस में बदलाव कुछ समय के लिए टल गया है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल 7 तारीख को रायपुर आ रहे हैं। वैसे तो वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित जनसभा में शिरकत करेंगे। मगर उनके आने का मकसद संगठन के कार्यों की समीक्षा करना है।
कहा जा रहा है कि पार्टी करीब दर्जनभर से अधिक जिलाध्यक्षों को बदलने की तैयारी कर रही है। इनमें से कुछ का कार्यकाल खत्म भी हो चुका है। दोनों प्रभारी सचिव के सुरेश कुमार, और जरिता लैटफलांग ने जिलों के कामकाज को लेकर रिपोर्ट भी तैयार कर रहे हैं।
चर्चा है कि ये अपनी रिपोर्ट प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट को सौपेंगे, और फिर इसकी वेणुगोपाल समीक्षा कर सकते हैं। कुल मिलाकर संगठन के बदलाव जुलाई के आखिरी तक होने की उम्मीद जताई जा रही है।
आफिस-अमला रेडी, साहब नहीं
जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण जीएसटी लागू होने के बाद से ही इसके क्रियान्वयन, दरों, रिफंड आदि को लेकर कई विवाद रहे हैं। विशेष शाखाओं की कमी के कारण, जीएसटी से संबंधित सभी मामले उच्च न्यायालयों को भेजे जा रहे थे, जिसके लिए करदाताओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।
इन मुद्दों को हल करने के लिए, जीएसटी परिषद ने जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण या जीएसटीएटी के गठन को मंजूरी दी। प्रावधानों के अनुसार, जीएसटीएटी की देश भर में 44 बेंच होंगी, जिनमें से प्रत्येक में चार सदस्य होंगे- तीन केंद्र सरकार से और एक राज्य सरकार से। इन जीएसटैट के देश भर में दिसंबर 2024 से काम करना शुरू करने की उम्मीद थी, वो अब तक शुरू नहीं हो पाया है। फरवरी 2024 में विभिन्न पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन किया गया था और खोज-सह-चयन समिति ने मई-जून 2024 में सौ से अधिक उम्मीदवारों के साक्षात्कार लिए थे। दुर्भाग्य से यह कवायद करने वाले तत्कालीन राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा? आरबीआई गवर्नर बन जाने से बैठक के मिनट्स पर हस्ताक्षर नहीं हो सके। और नियुक्ति अटकी हुई है।
दूसरा प्रयास बीते 31 मई 25 को किया गया था, लेकिन यह भी सफल नहीं हो सका और न्यायिक सदस्य पद के लिए आवेदकों में से एक ने ओडिशा उच्च न्यायालय में जाकर पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए जाने के बाद प्रक्रिया रोक दी गई है। बहत्तर से अधिक सदस्यों (तकनीकी और न्यायिक) को चुनने का लगातार दूसरा प्रयास फिर से विफल हो गया। 22 जून, 2024 को नई दिल्ली में आयोजित 53वीं जीएसटी परिषद की बैठक में, परिषद ने जीएसटी के तहत अपील दायर करने के लिए मौद्रिक सीमा भी तय कर दी है।
जीएसटीएटी-20 लाख रुपये
उच्च न्यायालय- 1 करोड़ रुपये
सर्वोच्च न्यायालय- 2 करोड़ रुपये।
केंद्र स्तर पर इन तैयारियों के बीच छ: आठ माह पहले ही छत्तीसगढ़ टैट का न्यू राजेन्द्र नगर स्थित कर्मा भवन में आफिस भी तैयार हो गया है। यहां अधीक्षक समेत कई अधिकारी कर्मचारी नियुक्त कर दिए गए हैं। जो एक तरह से केवल अटेंडेंस रजिस्टर में हस्ताक्षर के लिए ऑफिस जा रहे हैं। जीएसटी के दायरे वाले 26 हजार से अधिक छोटे बड़े कारोबारी भी अपने मामलों को लेकर हाईकोर्ट जाना नहीं चाहते।
परिवार के लिए समर्पित धनेश
यह है धनेश या हार्न बिल। एक फलाहारी, चील के आकार जैसा बड़ा पक्षी। तस्वीर में दिख रहा है कि नर और मादा धनेश हमेशा जोड़ी में रहते हैं, मिलकर जीवन जीते हैं।
प्रजनन काल में मादा किसी पुराने, मोटे पेड़ के कोटर (गुफानुमा खोखल) में घुस जाती है और उसे अपने ही मल-मूत्र से प्लास्टर कर लगभग पूरी तरह बंद कर लेती है। बस इतनी जगह खुली रहती है कि नर उसे फल-फूल खिला सके। मादा अंडे देती है और बच्चों के कुछ बड़े होने तक कोटर के भीतर ही रहती है। इस दौरान नर पूरी मेहनत और निष्ठा से मादा और बच्चों को भोजन पहुंचाता है। लगातार उड़ान भरकर फल लाने की इस मेहनत से वह खुद बहुत कमजोर हो जाता है।
जब बच्चों का आकार बढऩे लगता है और कोटर में जगह कम पड़ जाती है, तब मादा बाहर निकलती है, कोटर का मुंह फिर से बंद किया जाता है, बस एक छोटा सा छेद छोड़ा जाता है जिससे माँ-बाप मिलकर बच्चों को भोजन देते हैं। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, अंत में वे खुद दीवार तोड़ बाहर निकलते हैं।
आज घने जंगलों और बड़े पेड़ों की लगातार कटाई से धनेश जैसे पक्षियों का प्राकृतिक घर और प्रजनन स्थल तेजी से खत्म हो रहा है। यह प्रकृति का नायाब पक्षी अब संकटग्रस्त हो चला है। तस्वीर वन्यजीव प्रेमी वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा ने ली है।


