राजनांदगांव

बाहरी सौंदर्य तो बहुत कर लिया, भीतरी सुंदरता की ओर भी दें ध्यान-वीरभद्र
17-Jul-2025 5:23 PM
बाहरी सौंदर्य तो बहुत कर लिया, भीतरी सुंदरता की ओर भी दें ध्यान-वीरभद्र

संस्कृति खत्म तो सब खत्म, धर्म के प्रति श्रद्धानवत हो
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 17 जुलाई
। प्रख्यात जैन संत एवं मुनि विनय कुशल के सुशिष्य मुनि वीरभद्र ने कहा कि हम सिर्फ बाहरी सौंदर्य की ओर ध्यान देते हैं, किंतु अपने भीतर के सौंदर्य को देखते ही नहीं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को खत्म करने काफी प्रयास किए।  पहले मुगलों  फिर अंग्रेजों के प्रयास के चलते हमारी संस्कृति को काफी नुकसान पहुंचा। इसका यह असर पड़ा कि धर्म करने में हमारा भाव नहीं रहा। बिना भाव के कुछ भी करने में आनंद नहीं आता।

मुनिश्री वीरभद्र आज जैन बगीचे के उपाश्रय भवन में चतुर्मासिक प्रवचन के दौरान उक्त उदगार प्रकट किए। उन्होंने जैन रामायण का जिक्र करते कहा कि हम किसी भी पात्र को जाने बिना कोई धारणा या निर्णय बना लेते हैं, तो वह उस पात्र के प्रति अन्याय होता है। उन्होंने कहा कि रावण प्रकांड विद्वान और ज्ञानी था, किंतु दो कार्य उसने गलत किए। जिसकी वजह से उनका व्यक्तित्व ही बदलकर रख दिया गया। सीताजी के महासती चरित्र उजागर करने में उनकी बड़ी भूमिका रही।

मुनिश्री ने कहा कि भौतिक समृद्धि प्राप्त करने हम इस जीवन को खपा देते हैं, किंतु आंतरिक समृद्धि  व आध्यात्मिक समृद्धि के लिए हम कोई प्रयास ही नहीं करते। किसी भी चीज को जानने एवं सीखने जिज्ञासा का भाव होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि शिवाजी नहीं होते तो यहां मुगलों का शासन होता। हमारा भी धर्म परिवर्तन हो जाता। उस समय हमारी संस्कृति काफी मजबूत थी। जिसकी वजह से बहुत कम लोग ही धर्म से डिगे।
मुनिश्री ने कहा कि आज के युवा व्यसन की राह में बढ़ रहे हैं, वे व्यसन छोडक़र आध्यात्म की ओर बढ़े, इसके लिए संस्कृति का मजबूत होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सब बाहरी सौंदर्य की ओर लगे हुए हैं, भीतरी सौंदर्य को कोई नहीं देख रहा। धर्म के प्रति श्रद्धानवत हो जाओ। किसी की धार्मिक भावना को चोंट मत पहुंचाओ। उन्होंने कहा कि साधना बहुत जल्दी सफल हो जाती है। एक हार के बाद दूसरी जीत के लिए हम कान्फिडेंस पैदा कर लेते हैं। ठीक इसी तरह हमें मन में कान्फिडेंस पैदा कर आध्यात्मिक राह में आगे बढऩा है।
 


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