राजनांदगांव
शिक्षा महकमे के पास जर्जर स्कूलों के रखरखाव
के लिए पैसे नहीं, कई स्कूलों के छत उखड़े
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 21 जून। जिले के सरकारी स्कूलों की मरम्मत के लिए फंड का अभाव जर्जर भवनों की खराब दशा को जाहिर कर रहा है। शिक्षा महकमे के पास स्कूलों के रखरखाव के लिए फूटी कौड़ी नहीं है। कई स्कूलों के छत उखड़ रहे हैं। ऐसे स्कूलों में विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर तालीम हासिल कर रहे हैं।
शिक्षकों के लिए भी यह एक खतरनाक स्थिति है। स्कूलों के प्रधानपाठक और प्राचार्य शिक्षा महकमे से मरम्मत के लिए ढ़ेरों पत्र व्यवहार कर चुके हैं। शिक्षा विभाग से फंड की कमी का हवाला देकर ऐसे ही काम चलाने पर जोर दिया जा रहा है। शहरी स्कूलों की भी स्थिति बदतर हो रही है। शहर के बड़े स्कूलों में से एक बल्देवप्रसाद मिश्र के प्रायमरी स्कूल में दशकों पुराने भवन खंडहर में बदल गए हैं। 80 और 90 के दशक में बने भवन कभी भी धराशाही हो सकते हैं। विभाग ने भवनों को जमींदोज करने के लिए भी पहल नहीं की है। जबकि स्कूल प्रबंधन की ओर से कई दफे शिक्षा विभाग को खतरनाक स्थिति से अवगत कराया है। एक जानकारी के मुताबिक जिले में 500 से ज्यादा स्कूलों की स्थिति मरम्मत के लिहाज से खतरनाक स्तर पर है। शिक्षा विभाग की ओर से जर्जर स्कूलों की मरम्मत के लिए 20 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। यह प्रस्ताव फिलहाल ठंडे बस्ते में है। बसंतपुर के प्रायमरी स्कूल के कमरे की छतें उखड़ गई है। उखड़ी हुई छतों से सरिया झांक रहा है। कमरों की कमी के चलते बच्चों को एक जगह में पढ़ाने के लिए शिक्षक मजबूर हैं। वहीं कुछ कमरों को स्टोर रूम में बदल दिया गया है।
जिले के जर्जर स्कूलों के बिल्डिंग की ज्यादातर स्थिति बुरे दौर में है। भवनों को डिस्मेंटल करने के लिए निचले स्तर से ऊपरी स्तर तक जानकारी भेजी गई है। फंड की किल्लत के चलते आला अधिकारी व्यवस्था को बेहतर बनाने में नाकाम रहे हैं।
एक जानकारी के अनुसार राजनांदगांव जिले में सर्वाधिक छुरिया ब्लॉक में 280, डोंगरगढ़ ब्लॉक में 150, डोंगरगांव ब्लॉक में 78 और सबसे कम राजनंादगांव ब्लॉक की 22 सरकारी स्कूलों की स्थिति दयनीय है।
बताया जा रहा है कि आला अफसरों को कई व्यवहारिक परेशानी से शिक्षक और संबंधित स्कूलों के प्राचार्य लगातार जानकारी दे रहे हैं। शहरी स्कूलों की स्थिति देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों की क्या स्थिति होगी।
बहरहाल फंड की कमी ने स्कूली बच्चों को खंडहरनुमा स्कूलों में अध्ययन करने के लिए विवश कर दिया है। सरकार ऐसे बदइंतजामी के बीच शिक्षकों से बेहतर नतीजे की उम्मीद करती है। जिसका शिक्षक विरोध करते हैं।


