राजनांदगांव

माता-पिता, गुरू और ईश के पास जाने निमंत्रण नहीं देखा जाता - शास्त्री
01-Jan-2024 3:21 PM
माता-पिता, गुरू और ईश के पास जाने निमंत्रण नहीं देखा जाता - शास्त्री

 पवित्र काम को शीघ्र कर लेना चाहिए, विलंब से बढ़ती है समस्या

राजनांदगांव, 1 जनवरी।  भगवान श्री चंद्रमौलेश्वर महाकाल की शान में विकास नगर लखोली में डागा परिवार यहां शिवधाम में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का समापन बीते दिनों हवन-पूजन व कथावाचक महाराज ईश्वरचंद्र व्यास के आशीर्वचन के साथ हुआ। इस दौरान महापौर हेमा सुदेश देशमुख, समाजसेवी शारदा तिवारी, साधना तिवारी, उमा भट्टड़, आयोजनकर्ता अशोक, राजेश, पवन, संजय डागा सहित बड़ी संख्या में अन्य लोग शामिल थे।

कथा वाचक शास्त्री ईश्वरचंद्र व्यास ने कहा कि माता-पिता, गुरू व देवता के मंदिर में जाने के लिए आमंत्रण नहीं देखा जाता, क्योंकि इनके दर्शन मात्र से  ही पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं पवित्र कार्य को शीघ्र ही कर लेना चाहिए। ऐसे कार्यों के लिए विलंब नहीं किया जाना चाहिए और न किसी बुलावे का इंतजार किया जाना चाहिए। महाराज  ने उक्त दोनों बातें अयोध्या में श्रीरामलला प्राण-प्रतिष्ठा के संदर्भ में कही।

उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम ही नहीं, वेद पुरूष भी है। 500 साल तक पंडाल में रह रहे हम सबके आराध्य भगवान श्रीराम लला की काफी संघर्ष के बाद जब भव्य मंदिर लगभग तैयार हो चुकी है, तब उनकी प्राण-प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी का दिन चुना जाना देश के बड़े-बड़े ज्योतिषाचार्यो द्वारा गृह-नक्षत्रों के अध्ययन कर निकाली गई दिन-तिथि के आधार पर है। यह पवित्र समय मात्र 86 सेकंड का है। उसी के लगभग समय में वैज्ञानिकों ने श्री रामलला के मस्तक पर सीधे सूर्य का प्रकाश पडऩे से  समूचा विग्रह दैदिप्यमान होने की संयोजना की है।

महाराज ने कहा कि श्रीराम लला प्राण-प्रतिष्ठा में नियत दिन तिथि का विलंब किए जाने से उक्त से संबंधित पवित्र मुर्हूत योग व दिन तिथि कई वर्षों बाद आती इसलिए 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का समय सर्वाधिक उपयुक्त व अनुकूल है।

इस अवसर पर बृजकिशोर सुरजन, सूर्यकांत चितलांग्या, संतोष पटाक,  अमित खंडेलवाल,  राजा माखीजा, संजय तेजवानी, उत्तरा अरूण दामले,  हरिश गांधी, शैलेष बुद्धदेव, जुगल लड्डा आदि सहित बड़ी संख्या में उपस्थितजनों को संबोधित करते महाराज ने कहा कि अयोध्या स्थित श्री रामलला का मंदिर हमें हस्तगत हो गया। इसी तरह काशी का ज्ञान वापी मस्जिद व मथुरा का श्रीकृष्ण जन्म मंदिर जो आज भी दूसरों के कब्जे में है, उसे हमे लडक़र लेना होगा।


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