राजनांदगांव

अविभाजित नांदगांव का चुनावी इतिहास : डेढ़ दशक से खुज्जी व मोहला-मानपुर सीट में जीत के लिए तरस रही भाजपा, नांदगांव में 15 साल से भाजपा का कब्जा
18-Oct-2023 12:43 PM
अविभाजित नांदगांव का चुनावी इतिहास : डेढ़ दशक से खुज्जी व मोहला-मानपुर सीट में जीत के लिए तरस रही भाजपा, नांदगांव में 15 साल से भाजपा का कब्जा

डोंगरगढ़-खैरागढ़ में दस साल से भाजपा का खाता रहा बंद, डोंगरगढ़ में 15 साल कब्जे के बाद भाजपा पिछला चुनाव हारी

प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 18 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। अविभाजित राजनांदगांव जिले की छह सीटों का चुनावी इतिहास  बेहद रोचक रहा है। छह में से कुछ सीटें ऐसी है, जहां भाजपा जीत के लिए तरस रही है। चुनावी प्रदर्शन में भाजपा की स्थिति कांग्रेस के सामने कमजोर रही है। यह स्थिति ऐसे वक्त रही, जब सूबे में 15 साल तक  भाजपा का शासन रहा। कांग्रेस को भाजपा सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए हमेशा मतदाताओं का सहयोग मिलता रहा। राजनीतिक रूप से भाजपा 15 साल के भीतर अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर पाई।  पहली नजर डालें तो आदिवासी आरक्षित मोहला-मानपुर और खुज्जी विधानसभा में डेढ़ दशक से भाजपा जीत हासिल करने के लिए जोर लगा रही है। 

2008 के बाद से इन दोनों सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को सामने टिकने नहीं दिया। मोहला-मानपुर से आखिरी भाजपा विधायक के तौर पर संजीव शाह निर्वाचित हुए। वहीं 2008 तक खुज्जी से स्व. रजिंदरपाल सिंह भाटिया सदन में विधायक के तौर पर रहे।  15 साल गुजर जाने के बावजूद भाजपा अपनी जड़ें इन दोनों सीटों पर मजबूत नहीं कर पाई। इसलिए 2008 से 2018 तक भोलाराम साहू और 2018 से 2023 तक छन्नी साहू ने खुज्जी विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। इन दोनों सीटों के लिए भाजपा ने उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इधर पिछले 10 सालों से खैरागढ़ और डोंगरगांव में भी भाजपा अपना खाता नहीं खोल पाई है। डोंगरगांव से दलेश्वर साहू लगातार कांग्रेस के बैनर तले विधायक निर्वाचित होकर सदन में पहुंचते रहे हैं। आसन्न विधानसभा के लिए कांग्रेस ने फिर से दलेश्वर साहू को डोंगरगांव से प्रत्याशी घोषित किया है। 

खैरागढ़ में 2013 में भाजपा के कोमल जंघेल कांग्रेस प्रत्याशी गिरवर जंघेल से पराजित हुए। 2018 के चुनाव में दिवंगत देवव्रत सिंह जोगी कांग्रेस के विधायक निर्वाचित हुए। 2022 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर से सीट पर कब्जा किया। इधर भाजपा के प्रदर्शन के लिहाज से राजनांदगांव विधानसभा एकमात्र ऐसी सीट है, जहां भाजपा का दबदबा कायम है। वजह यह है कि डॉ. रमन सिंह ने लगातार राजनांदगांव का प्रतिनिधित्व किया। पूर्व मुख्यमंत्री 2008 से निरंतर इस सीट से विधायक चुनकर सदन में पहुंचे।  

डॉ. सिंह के राजनीतिक व्यक्तित्व के सामने कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद लचर रहा। मौजूदा विधानसभा चुनाव में एक बार फिर डॉ. रमन सिंह को पार्टी ने चौथी बार प्रत्याशी घोषित किया है। उनके सामने गिरीश देवांगन को कांग्रेस ने बेहतर उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा है। डॉ. सिंह ने 2008 में दिवंगत नेता उदय मुदलियार को पराजित किया। डॉ. सिंह ने मुदलियार को 32 हजार मतों से पराजित किया था। 2013 में झीरम नक्सल हमले में मौत होने के कारण स्व. मुदलियार की पत्नी अलका मुदलियार ने रमन का मुकाबला किया। वह करीब 36 हजार मतों से चुनाव हार गई। 

2018 में कांग्रेस प्रत्याशी करूणा शुक्ला ने कड़ी टक्कर दी, लेकिन वह अपनी पराजय को टाल नहीं सकी। इस चुनाव में 16 हजार वोटों से डॉ. सिंह विजयी हुए। इस तरह डोंगरगढ़ विधानसभा में भी भाजपा का एक वक्त डेढ़ दशक तक कब्जा रहा, लेकिन 2018 के चुनाव में भाजपा अपनी सीट को बचाने में विफल रही। 2003 में विनोद खांडेकर, 2008 में रामजी भारती व 2013 में सरोजनी बंजारे विधायक चुनी गई। 

पिछले विधानसभा चुनाव में सरोजनी बंजारे ने दोबारा टिकट लेकर कांग्रेस प्रत्याशी भुनेश्वर बघेल का सामना किया, लेकिन कांग्रेस की लहर के सामने श्रीमती बंजारे  लगभग एकतरफा पराजित हो गई। उन्हें 35 हजार वोट से शिकस्त खानी पड़ी।  कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक स्थिति पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है कि कांग्रेस रमन सरकार के 15 साल के शासन के दौरान भी मजबूत रही। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। एकमात्र डॉ. सिंह बतौर भाजपा प्रत्याशी अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए। मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। वहीं कांग्रेस को भी अपनी सीटें सुरक्षित करने के लिए पापड़ बेलने हो

 


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