रायपुर

उशिवि 40 दिन में चला अढ़ाई कोस, प्राध्यापक पदोन्नति में अनावश्यक
13-Oct-2024 3:59 PM
उशिवि 40 दिन में चला अढ़ाई कोस, प्राध्यापक पदोन्नति में अनावश्यक

कागजों का जखीरा बढ़ा रहा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 13 अक्टूबर।  उच्च शिक्षा विभाग में सहायक प्राध्यापकों की पदोन्नति एक बार फिर उलझती हुई नजर आ रही है। अभी बिलासपुर उच्च न्यायालय ने 90 दिन के भीतर पदोन्नति आदेश निकालने की कार्यवाही करने के लिए 5 सितम्बर 2024 को आदेशित किया है। बीते 40 दिनों में विभाग केवल दस्तावेजों की ही जानकारी मंगा रहा है ।

कोर्ट ने 2016 में हुई प्राध्यापक पदोन्नति के संबंध में मनमाना, गैरकानूनी, नियमों से हटकर की गई कार्यवाही जैसी बड़ी तल्ख टिप्पणियों के साथ 3 अक्टूबर 2015 तक के केन्डीडेट्स को नियम 1990 के अनुसार विचार करने कहा है। याचिका कर्ता ओं के अनुसार विभाग एक बार फिर मनमर्जी पर उतर आया है। इनका कहना है कि विभाग में बैठे कुछ प्राध्यापक ही उसी नियम की व्याख्या को अलग ढंग से करके न्यायालय के आदेश पर होने वाली पदोन्नति को पुन: उलझाने और लंबा खींचने का प्रयास कर रहे हैं। 

15से 18 वर्ष बाद भी ये ऐसी पदोन्नति से वंचित हैं जिससे शासन पर कोई वित्तीय भार नहीं आता था। उन्होंने कहा कि सहायक प्राध्यापकों की जानकारी मंगाने के लिये जो प्रपत्र कॉलेजों को भेजे गये हैं, वो अपनी कहानी खुद कह रहे हैं। आश्चर्य इस बात का है कि नियम 1990 के अनुसार केवल पी-एच. डी. उपाधि, 2 रिफ्रेशर कोर्स, प्रवर श्रेणी वेतनमान की प्राप्ति के साथ लगातार अच्छा गोपनीय रिपोर्ट की शर्त पूरी कर 380 में से 369 की पदोन्नति प्राप्त करने वाले सहायक प्राध्यापकों को पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।

ज्ञात रहे कि वर्ष 2006 से 2019 तक लागू नियम 1990 के अनुसार जिनकी पदोन्नति देय थी, विभाग ने समय पर पदोन्नति न देकर नए नियम 2019 में बनाए। इससे अनेकों सहायक प्राध्यापक 35-40 वर्ष की शासकीय सेवा के बाद भी एक भी पदोन्नति पाए बिना सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इन सहायक प्राध्यापकों  के मुताबिक अभी मंगवाई जा रही जानकारियों में 2019 से प्रारंभ हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अनुशंसित जर्नल में किया गया प्रकाशन, व्यक्ति समीक्षित जर्नल में प्रकाशित रिसर्च पेपर आदि की जानकारी भी मांगी गई है, जो नियम 1990 में तो किसी भी स्थिति में आ ही नहीं सकती थी। इसके साथ ही 1 अप्रेल 2015 की अंतिम वरिष्ठता सूची को भेजकर उसमें अंकित जानकारियों को प्रमाण सहित मांगा गया है। जबकि अंतिम वरिष्ठता सूची की अंतिम जानकारी प्रवर श्रेणी वेतनमान की प्राप्ति अपने पूर्व की जानकारी को और उसके पूर्व की जानकारी अपने पूर्व की जानकारी को स्वत: प्रमाणित करती है।

 वैसे भी अंतिम वरिष्ठता सूची पर कोई दावा-आपत्ति होती नहीं है। लेकिन जानकारियों के बहाने जो अनावश्यक कागजों का पुलिन्दा मंगवाया गया है, अब उसकी छटाई में लगने वाले श्रम और समय की चिन्ता इन्हें नहीं है।

जबकि उच्च न्यायालय ने इस कार्य को समय सीमा में पूर्ण करने के लिए भी आदेशित किया है। इस होने वाली प्राध्यापक पदोन्नति में शामिल अधिकांशत: सहायक प्राध्यापक राज्य विभाजन के पूर्व मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा से चयनित हैं। ताज्जुब इस बात का है कि खुद नियम 1990 की अब इस प्रकार की उलझाने वाली व्याख्या वे ही लोग कर रहे हैं जो एडॉक से नियमित हुए फिर इसी नियम के तहत बड़ी सहजता से खुद प्राध्यापक पदोन्नत हुये हैं।

प्रतिवर्ष पदोन्नति के नियम के बाद भी विभाग 10-10 वर्षों तक पदोन्नति को अवरुद्ध क्यों रखता है? जिनकी पदोन्नति पुराने नियम के अनुसार ड्यू हो गयी थी तो उनको पदोन्नत किये बिना विभाग ने नियम बदले जाने पर प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं।


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