रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 10 अप्रैल। इन दिनों मुनाफाखोरी के लिए समय से पहले आम को केमिकल से पकाकर बाजार में बेचा जा रहा है। ऐसे फल का उपयोग लगाकर करने पर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
कृत्रिम रूप से आम को पकाने के लिए राया कार्बोनेट का उपयोग किया जाता है सामान्य तौर प्राय: कार्बेट नमी के संपर्क में आता है, तो ऐसी क्लीन एसिटिलीन गैस उत्पन्न करता है जिसका प्रभाव फलों को पकाने वाले एथिलीन के समान होता है लेकिन का रिपोर्ट से पकाएं गए फल खाना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। अत: बिना प्राकृतिक रूप से पके हुए इन दिनों में बाजार में बिक रहे आंध्र और महाराष्ट्र के बैगनपल्ली व अन्य वैरायटी के आम को खाने से परहेज करना चाहिए।
दरअसल मौजूदा समय में जो आम बिक रहा है वाह प्राकृतिक नहीं बल्कि कृत्रिम तौर पर पका हुआ फल है, जिसे लगातार खाने से तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाने का खतरा होने की बात चिकित्सकों द्वारा कही गई है।
प्राय: यह भी देखा गया है कि आम के सीजन में लोग कृत्रिम तौर पर पके आम खाकर अफसर पेट दर्द और डायरिया से पीडि़त हो जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से आम के बड़े व्यापारी उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को ताक में रखकर धन कमाने की लालसा में कार्बाइड से पके आम को बाजार में धड़ल्ले से बेच रहे हैं।
प्राकृतिक तौर पर पके आम खाएं
बस्तर के जलवायु के मुताबिक बैगनपल्ली आने के लिए कम से 50 दिन का समय लगेगा। जो कि बस्तर के सरकारी और निजी आम के बागानों में बैगनपल्ली की गुठली भी नहीं बना है। आंध्र और महाराष्ट्र जहां से फल छत्तीसगढ़ में आया तो हो रहा है। वहां के जलवायु के अनुसार आम में जल्दी बोर आया होगा लेकिन मार्च माह में ही बैगनपल्ली मिच्योर नहीं हो सकता है। ऐसा उद्यानिकी से जुड़े किसानों की राय है। अत: वर्तमान समय में बाजार में कृत्रिम रूप से पकाने गए हम जो बाहर से भले ही पीले और अच्छे दिखाई पड़ रहे हैं। उन्हें लगातार खाने से बचना चाहिए और सिर्फ प्राकृतिक तौर पर पके आम ही खाना चाहिए।


