रायगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
खैरागढ़, 28 जुलाई। कला एवं ललितकला को समर्पित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ अन्य विश्वविद्यालयों से भिन्न है। इस विश्वविद्यालय की प्रकृति अलग है। यहां पर एक ही छत के नीचे अनेक प्रकार की भारतीय कलाओं एवं साहित्य का अध्ययन-अध्यापन किया जाता है। उक्त उद्गार व्यक्त करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति पद्मश्री मोक्षदा (ममता) चन्द्राकर ने बतौर कुलपति सफ लतम एक वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते हुए कही।
उन्होंने आगे कहा, स्वयं एक कलाकार होने के नाते मेरा भरसक प्रयास है कि विद्यार्थियों का उद्देश्य केवल डिग्री हासिल करना न हो बल्कि काबिल बनें। पूरा विश्व कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा था और इस विषम परिस्थिति में भी विश्वविद्यालय ने विद्यार्थियों के हित को देखते हुए आन लाईन शिक्षा की समुचित व्यवस्था की और विद्यार्थियों को इसका लाभ भी मिला।
एक वर्ष के कार्यकाल का आत्मावलोकन करते हुए आपने बताया कि कोविड 19 के चलते जहां स्थापित रहना ही मुश्किल लग रहा था, वहाँ हमने इस चुनौती का सामना करते हुए उपलब्धियों को भी प्राप्त किया है। विश्वविद्यालय में कार्यरत बहुत से शिक्षकों का प्रमोशन काफी समय से पेन्डिंग था, जिन्हें केरियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत प्रमोट किया गया, वहीं समय पर पाठ्यक्रम को पूरा कर सभी परीक्षाओं को समय पर पूर्ण किया गया।
आजादी के 75वें वर्ष अमृत महोत्सव के रूप में मनाने के लिए विश्वविद्यालय के अलग-अलग संकायों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी तारतम्य में हाल ही में राज्यपाल एवं विवि की कुलाधिपति की अध्यक्षता मेंछत्तीसगढ़ की महिलाओं का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान विषय पर आनलाईन व्याख्यान का सफ ल आयोजन किया गया। अत्यंत भावुकता के साथ श्रीमती चन्द्राकर ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि कोरोना महामारी ने विवि परिवार के कई सदस्यों को हमसे दूर कर दिया, लेकिन हमने इस महामारी की लड़ाई में यथासंभव सहयोग प्रदान किया तथा विवि में कार्यरत दिवंगत परिवार के सदस्य को कार्य पर रखा गया है। अंत में भविष्य की याजनाओं पर प्रकाश डालते हुए श्रीमती चंद्राकर ने कहा कि विश्वविद्यालय की कमियों को दूर कर नेक का मूल्यांकन कराना पहली प्राथमिकता है।


