महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,12 दिसंबर। जिले में खरीफ फसल की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। अमूमन सभी किसान धान बेचने में व्यस्त हंै। इस बीच रबी सीजन के तैयारी की जल्दबाजी में किसान एनजीटी के नियमों का उल्लंघन करते हुए खेतों में पड़े पैरा व पराली को दिनदहाड़े जला रहे हैं। जिम्मेदार अधिकारी अपने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। जिले में एनजीटी के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर अब तक एक भी कार्रवाई नहीं की गई है। हालांकि कलेक्टर ने बीते मंगलवार को समय सीमा की बैठक में स्पष्ट रूप से पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने और अर्थदंड लगाने अधिकारियों को निर्देश दिये थे।
खेतों में पैरा व पराली को जलाना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, राष्ट्रीय हरित अधिकरण एनजीटी और राज्य शासन के दिशानिर्देशों के तहत दण्डनीय अपराध माना जाता है। लेकिन इस प्रतिबंध के बावजूद खेतों में रात तो दूर दिन दहाड़े आग लगाई जा रही है। इसमें पराली जलाने पर अर्थदंड के लिए मुनादी भी नहीं करवाई गई है। न ही किसी प्रकार से इसके नुकसान के बारे में बताकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है।
लेकिन जिला मुख्यालय के समीपस्थ गांव भूरका, लाफिन कला, लाफिन खुर्द, परसकोल, बम्हनी, चिंगरौद समेत दर्जन भर गांवों में प्रतिबंध के बाद भी खेतों में पड़े पैरा और परालियों में आग लगाई जा रही है। धान की कटाई के बाद रबी फसल बुआई की तैयारी शुरू हो चुकी है और किसान पराली और पैरा में आग लगा रहे हैं। इसके वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और खेती की उपजाऊ क्षमता में भी कमी आ रही है।
उप संचालक कृषि एफआर कश्यप का कहना है कि खेत में पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। वहीं मिट्टी में मौजूद किसान मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं। इसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ता है। किसान मित्र कीट नष्ट होने से फसलों में बीमारी का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है। वहीं पराली के धुएं से पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता है। इससे हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। खेतों में पराली नहीं जलाने के लिए विभाग द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। खेतों में पराली जलाना दंडनीय अपराध है। इस पर कार्रवाई एसडीएम करेंगे। महासमुंद एसडीएम अक्षा गुप्ता का कहना है कि अभी तक इस मामले में किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं आई है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
कलेक्टर विनय कुमार लंगेह ने भी किसानों से अपील की है कि किसान पैरादान कर पशुधन को चारा उपलब्ध कराएं। कहा है कि ऐसा पाए जाने पर एनजीटी के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाएगी और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है। किसानों के हर साल पराली जलाने की वजह से मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा में कमी आ रही है। आग की तेज गर्मी से मिट्टी के सूक्ष्मजीव और लाभकारी तत्व मर जाते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता, जल धारण क्षमता घट जाती है और वह बंजर होने लगती है। साथ ही नाइट्रोजन, सल्फर जैसे पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। इससे रासायनिक खाद की खपत बढ़ती है।


