महासमुन्द

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर काव्यपाठ, तालियां बटोरी
01-Dec-2025 3:07 PM
छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर  काव्यपाठ, तालियां बटोरी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 1 दिसंबर। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर काव्यांश साहित्य एवं कला पथक संस्थान के प्रांतीय कार्यालय काव्यांश भवन में उमेश भारती गोस्वामी मृदुल के मुख्यातिथ्य, भागवत जगत भूमिल की अध्यक्षता तथा सुरेन्द्र मानिकपुरी की विशेष आतिथ्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में चिंतन और परिचर्चा का समन्वित रूप देखने को मिला। काव्य पाठ का शुभारंभ करते हुए धनेश्वर निषाद ध्वनिल ने  ननपन के सुरता आवत हे... कविता पाठ करके सबको बचपन की यादें ताजा कर दी।  काव्यांश के वरिष्ठ साहित्यकार द्रौपदी साहू सरसिज ने तोर धनहा बर तिंही रखवार रे मधुर कण्ठ में गा कर सबको भावविभोर कर दिया। छत्तीसगढ़ी परिचर्चा को गति देते हुए काव्यांश के कोषाध्यक्ष डी बसन्त साव साहिल ने छत्तीसगढ़ी लघुकथा ‘हेल्मेट’ प्रस्तुत करते हुए खूब तालियां बटोरी।

काव्य पाठ को ऊंचाई देते हुए काव्यांश की पुष्प लता भार्गव सुनंदा ने दीपचंदी ताल में - आज हमर कोती बरस जा रे पानी..झीन कर अपनेच मन के मनमानी गा कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

 वरिष्ठ पत्रकार एवं काव्यांश की प्रचार सचिव उत्तरा विदानी ने विचार परख उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए कहा- हम लोग छत्तीसगढ़ी के गुढार्थ मय शब्दों को बिसरते जा रहें हैं। हमें छत्तीसगढ़ी भाखा कोठी को समृद्ध करना है। उन्होंने एक छत्तीसगढ़ी गौरा गीत भी प्रस्तुत किया।

छत्तीसगढ़ी भाखा के महत्व को रेखांकित करते हुए सुरेन्द्र मानिकपुरी ने ‘छत्तीसगढ़ी भाखा मोर जिंदगी के आधार’ कहा। इसी कड़ी में दिनेश चन्द्राकर चारुमित्र ने माटी मोर महान संगी माटी मोर महान प्रस्तुत कर काव्यपाठ में वीररस घोल दिया।

अपने अध्यक्षीय भाषण में काव्यांश साहित्य एवं कला पथक संस्थान के अध्यक्ष भागवत जगत भूमिल ने भाषा के आधार पर प्रांतों की रचना और छत्तीसगढ़ के साथ छलावा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें भाषा के आधार पर छत्तीसगढ़ प्रांत नहीं दिया जबकि एक राज्य की आवश्यकता के आधार पर दिया गया है जो कि छत्तीसगढ़ के साथ घोर अन्याय है जबकि हम एक भाषा के अन्तर्गत एक प्रांत है।

कहा कि छत्तीसगढ़ी हमारी मातृभाषा हमें प्रथम संवर्ग में रखना चाहिए था । छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर माननीय भूमिल जी ने जरा हटके रचना प्रस्तुत किया। आमतौर पर उनकी रचनाएं देशभक्ति , श्रृंगार,नारी व्यथा पर केन्द्रित होता है किन्तु आज उन्होंने दो हास्य कविता प्रस्तुत कर माहौल को खुशनुमा कर दिया। पहली कविता में कहते हैं -दार बिना डोकरी दाई भाजी मं अटकगे। उल्चा आलू साग खाइस, तरुवा मं चटके।। दूसरी हास्य कविता पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि पुंछी थोकिन पातर रीहिसे दर्शकों को खूब गुदगुदाया।

 

मुख्य अतिथि के आसन्दी से बोलते हुए उमेश भारती गोस्वामी मृदुल ने कहा कि छत्तीसगढ़ी हमारी महतारी भाखा है इससे किसी भी स्तर में महत्व को कमतर करने नहीं देंगे।

यह भाषा जितनी कोमल एवं मृदुल है। उतना ही हृदय ग्राही है। आज के कार्यक्रम में मुख्य रूप से उमेश भारती गोस्वामी मृदुल ,भागवत जगत भूमिल,सुरेन्द्र मानिकपुरी,डी बसन्त साव साहू, पुष्प लता भार्गव सुनंदा ,द्रौपदी साहू सरसिज ,उत्तरा विदानी ,दिनेश चन्द्राकर चारुमित्र , धनेश्वर निषाद ध्वनिल विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम संचालन  काव्यांश के वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश चन्द्राकर चारुमित्र ने किया जबकि आभार प्रदर्शन श्रीमती द्रौपदी साहू सरसिज ने किया।


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