महासमुन्द

शिक्षक दिवस पर विशेष
हालात से जूझ रहे बच्चे सभ्य समाज को आईना दिखा रहे होते हैं, समाज है कि अपनी ही रौ में बह रहा है-अवनीश वाणी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 5 सितंबर। आज शिक्षक दिवस है और महासमुंद का एक शिक्षक अपने स्कूल के कुछ जरूरतमंद बच्चों के माली और मानसिक हालातों का अध्ययन कर उनके कुशल भविष्य की नींव टटोल रहे हैं। वे गैर सरकारी शिक्षक है लेकिन हैं तो शिक्षक ही। माता-पिता भी शिक्षक थे तो शिक्षक का जीन उनकी रगों में दौड़ता है। हर बच्चे की नब्ज जानने वाले अवनीश वाणी आजकल प्राचार्य होते हुए भी शाला में अनुपस्थित बच्चों के घरों के भीतर के अंधेरे झांक आते हैं। कोशिश में हैं कि किसी तरह ऐसे बच्चों को कम से कम शिक्षित होने के दायरे तक पहुंचाएं। कहते हैं कि मुझे अपने ऐसे बच्चों से यकीनन बहुत कुछ सीखने के लिए मिलता है। ऐसे हालात से जूझ रहे बच्चे सभ्य समाज को आईना दिखा रहे होते हैं औैर समाज है कि अपनी ही रौ में बह रहा है।
महासमुंद जिला अनवीश वाणी के नाम और काम को अच्छी तरह जानता है। वेडनर स्कूल महासमुंद से रिटायर होकर वे शिशु संस्कार स्कूल के प्राचार्य हैं। आज एक मुलाकत में उन्होंने बताया-चालीस साल से स्कूल में पढ़ाते-पढ़ाते पता नहीं कब मैं बच्चों को पढऩे लगा। अभी हाल ही में मैं एक क्लास में गया। एक बच्चे ने होमवर्के नहीं किया था। मैंने छड़ी उठाई तो वह हंसते हंसते हाथ आगे बढ़ाया। मैं अंदर से हिल गया। वह हर हाल में मुस्कुराते रहता है। मार खाकर भी, गाली खाकर भी। पढ़ाई बिल्कुल नहीं करता। स्कूल की फीस भी लंबे समय से जमा नहीं है। दूसरे दिन मैं उसके घर गया। भीतर घना अंधेरा था। बेहद गरीबी में जीवन था उसका। मां और बहन घर में थी। उन्होंने बताया कि घर कैसे चलता है। बच्चे के बारे में बताया कि डांटने या मारने पर कमरे के भीतर जाता है, रो लेता है और वापस आकर मुस्कुराने लगता है। अवनीश वाणी ने कहा-शायद वह बच्चा अपने हालातों से मुस्कुरा कर गुजर जाने की हिम्मत जुटने के लिए मुस्कुरा देता होगा।
बात-बात में अवनीश वाणी ने कहा-स्कूल में सिर्फ विद्या नहीं मिलती है बल्कि यहां दवा भी मिलती है। स्कूल ऐसे बच्चों का औषधालय है और मैं साबित करना चाहता हूं कि स्कूल ऐसेे बच्चों का अच्छे से इलाज कर सकता है।
उन्होंने बताया-कुछ बच्चे स्कूल नहीं आते, चौबीसों घंटे नशे में रहते हैं। मैं ऐसे ही एक बच्चे के घर भी गया। घर के बाहर गली में सडक़ पर बैठकर लोग शराब पी रहे थे। पास में ही एक झोपड़ीनुमा घर में बच्चा नशे में धुत्त पड़ा मिला। पता चला कि उनके माता-पिता बाहर रोज काम पर जाते हैं और रात में लौटते ही शराब सेवन करते हैं। ऐेसे बहुत से बच्चे हैं जिनकी माली हालत बहुत खराब है और स्कूल में दाखिला लेने के बाद भी स्कूल नहीं जाना चाहते और कम उम्र में ही गलत रास्ता पकड़ लेते हैं। मैं ऐसे ही बच्चों को लेकर कुछ काम करना चाहता हूं। मैं जानता हूं कि हमारे स्कूल के बच्चे जब बड़े नाम करते हैं तो हमें बेहद फख्र होता है। माहौल मिल जाने पर बच्चों को आगे बढऩे से कोई रोक नहीं सकता लेकिन जिन बच्चों को माहौल नहीं मिला, ऐसे बच्चों को उनके हालात पर छोड़ देना भी शिक्षक का काम नहीं होता।