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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बुनियादी मतभेदों के साथ शादी की शुरूआत ही क्यों?
सुनील कुमार ने लिखा है
24-Nov-2025 5:47 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बुनियादी मतभेदों के साथ शादी की शुरूआत ही क्यों?

भोपाल के फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए एक ऐसा मामला पहुंचा है जिसमें महिला को यह शिकायत है कि बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाला उसका पति सिर के बालों में पीछे चुटैया रखता है, जो कि उसे सामाजिक प्रतिष्ठा के खिलाफ लगती है, और इसलिए वह तलाक चाहती है। उसका कहना है कि शादी के पहले उसे उम्मीद थी कि शादी के बाद इसे कटाने को मान जाएगा, लेकिन उसके न मानने पर अब पत्नी अपने मां-बाप के पास रहती है, और तलाक चाहती है। एक दूसरे मामले में पति ने तलाक की अर्जी लगाई है कि पत्नी रात-दिन पूजा में लगी रहती है। इस तरह के मामले देश की अलग-अलग फैमिली कोर्ट में आते ही रहते हैं। एक पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने किसी अनजान नंबर पर हाय लिखकर एक स्माइली भेजी, इसलिए अब उसे तलाक चाहिए। घर में खाना पकाने को लेकर तनातनी बहुत से तलाक-प्रकरणों की आम वजह है। मुम्बई का एक मामला ऐसा है जिसमें शादी के पहले पति-पत्नी दोनों मांसाहारी थे, और शादी के बाद अब पत्नी शाकाहारी हो गई है, और पति को भी मांस खाने से रोक रही है। तलाक चाहने वाले एक पति का आरोप है कि पत्नी ने उसके मां-बाप और बहन को फोन पर ब्लॉक कर रखा है, और मिलने भी नहीं देती। कुत्ता पालने या न पालने को लेकर कई जोड़ों के बीच तनातनी तलाक तक पहुंचती है। बरसों तक देहसंबंध न बनाना तलाक के लिए पर्याप्त आधार माना जाता है। दिल्ली की लडक़ी की शादी राजस्थान में हुई, और गर्मियों में भी वहां एसी नहीं था, इस आधार पर अदालत ने तलाक मंजूर कर दिया कि जीवनशैली का यह एक बड़ा फर्क है। लखनऊ के एक मामले में पत्नी ने शादी के बाद सोशल मीडिया से पति का सरनेम हटा दिया, और अपना शादी के पहले का सरनेम इस्तेमाल करने लगी, इस पर पति ने तलाक मांग लिया।

इस तरह की सैकड़ों किस्में हैं जो कि पति-पत्नी के बीच कलह की वजह रहती हैं, और बहुत से मामलों में ये तलाक तक पहुंचती हैं। तलाक तो फिर भी ठीक है, बहुत से मामलों में ये वजहें विवाहेत्तर संबंधों तक पहुंच जाती है, और उसके बाद तरह-तरह की हिंसा की वजह भी बनती हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि अगर शादी के पहले जोड़े के दोनों लोगों को किसी पेशेवर विवाह-परामर्शदाता के साथ बिठा दिया जाता, तो शायद एक-दो घंटे में यह समझ आ जाता कि एक-दूसरे की कौन-कौन सी बातें नापसंद हैं, और कौन-कौन सी बातों पर जोड़ीदार को कोई भी समझौता मंजूर नहीं होगा। अगर टेबिल पर ये तमाम बातें साफ-साफ हो जाएं, तो न केवल बहुत सारे तलाक की नौबत टल सकती है, बल्कि गृहकलह कम हो सकता है, हिंसा तो कम हो ही सकती है। लेकिन भारत में या तो लडक़ा-लडक़ी खुद एक-दूसरे के साथ उठते-बैठते एक-दूसरे को पसंद कर लेते हैं, और फिर बात परिवार की मर्जी से, या मर्जी के खिलाफ शादी तक पहुंच जाती है। लेकिन डेटिंग या दोस्ती के इस दौर में ताजा-ताजा प्यार की आंखें कुत्ते के नवजात पिल्लों की आंखों की तरह खुली नहीं रहती हैं, और एक-दूसरे की खामियां दिखती नहीं हैं, और लोग अपनी-अपनी खामियां छुपाते भी चलते हैं। फिर यह भी है कि दोस्ती या मोहब्बत के इस दौर में दोनों परिवारों की जटिलताएं, कमाई के साधन, बुरी आदतों की कोई अधिक चर्चा होती नहीं। और शादी के बाद जोड़ों के बीच जब बदन से निकलने वाली हर किस्म की गंध, और हर किस्म की आवाज के साथ जीना रोज की जरूरत बन जाता है, तब असली दिक्कतें सामने आने लगती हैं, और या तो बर्दाश्त करते हुए लोगों के मन भड़ास से भरे रहते हैं, या फिर वे अलग होने तक पहुंच जाते हैं।

इस बारे में लिखते हुए अभी हमें मालूम नहीं है कि शादी के पहले ऐसे जोड़ों के सुखी साथ की संभावनाओं को आंकने के लिए कोई मोबाइल ऐप या कोई वेबसाइट मुफ्त में हासिल है या नहीं। आज कोई परामर्शदाता भी कम्प्यूटर पर ऐसे प्रोग्राम को देखकर ही दोनों को सामने बिठाकर सवाल करेंगे, या अलग-अलग बात करके। कुल मिलाकर शादी के बाद आने वाले तमाम किस्म के संभावित टकराव को पहले ही सुलझा लेने में समझदारी हो सकती है। एक बार शादी हो जाए, बच्चे हो जाएं, कोई संयुक्त संपत्ति लेना हो जाए, उसके बाद तलाक में कई किस्म की दिक्कतें आती हैं। लोगों का मिजाज शादी के पहले जो रहता है, वह भी बाद में बदल सकता है, और अभी तक हमने बेवफाई या बदचलनी का जिक्र नहीं किया है, जो कि बहुत से जोड़ों के बीच तनाव की एक बड़ी वजह रहती है। आज के जमाने में लडक़े-लड़कियां दोनों ही बाहर रहते हैं, पढ़ते हैं, काम करते हैं, और मिलते-जुलते हैं। ऐसा शादी के पहले से शुरू होता है, और शादी के बाद भी चलते रहता है। इसलिए कब किसी की पिछली जिंदगी की कोई दफन मोहब्बत कब्र फाडक़र निकल आए, और भूतपूर्व पर वर्तमान में कब्जा करने की हसरत दिखाए, यह भी अंदाज लगाना पहले से मुमकिन नहीं रहता। फिर भी ऐसे तमाम असुविधाजनक सवाल कोई भी पेशेवर परामर्शदाता शादी के पहले तो कर ही सकते हैं, और यह अंदाज लगा सकते हैं कि जोड़ों के बीच सामंजस्य किन मुद्दों पर कितना हो सकेगा, और कहां पर कोई समझौता नहीं होगा।

लोगों को याद होगा कि हम हर कुछ महीनों में इस बात की भी चर्चा करते हैं कि कुंडली मिलाने के बजाय लोगों को लडक़े-लडक़ी की मेडिकल जांच रिपोर्ट मिलवाना चाहिए, ताकि शादी के पहले ही एक-दूसरे के बारे में मौजूदा बीमारियों का पता लग सके। इससे आगे आने वाली कई किस्म की जेनेटिक-जटिलताएं भी घट सकती हैं, और लोग एक अधिक भरोसेमंद और सेहतमंद साथ निभा सकते हैं। उसके साथ-साथ अब हम इस बात को भी जोडऩा चाहते हैं कि ऐसे पेशेवर विवाह-परामर्शदाता रहने चाहिए जो कि शादी टूटने की नौबत को घटाने के काम आ सके। एक तलाक, या जोड़ों का अलग रहना समाज की उत्पादकता को भी प्रभावित करता है, और दोनों परिवार, अगली पीढ़ी के बच्चे, इन सबका भी सुख तबाह होता है। इसलिए अगर ऐसे पेशेवर लोग समाज में नहीं हैं, तो सरकारों को भी चाहिए कि वे इंटरनेट पर ऐसी इंटरएक्टिव वेबसाइट बनाकर दें जिसमें लडक़ा-लडक़ी दोनों कुछ सवालों के जवाब देते जाएं, और उनके जवाबों के आधार पर उनसे आगे सवाल किए जाएं, और इनके आधार पर एक-दूसरे से सवाल-जवाब चलते रहें। आज एआई के जमाने में यह सब बड़ा आसान हो गया है। वैसे तो सवालों की ऐसी फेहरिस्त रहे, तो उसके सवाल-जवाब किसी भी एआई औजार में डालने पर वह भी सुझा सकता है कि यह जोड़ी कारगर रहेगी या नहीं। आज से ही जहां पर शादी कामयाब होने की संभावना कम दिखती हो, वहां पर वक्त बर्बाद करना शुरू करने के पहले लोगों को एक बार दुबारा सोच लेना चाहिए, वरना अब तो इस देश में खुदकुशी भी जुर्म नहीं रह गई है, और मतभेदों के बाद भी जोड़े चाहें, तो वे अपनी जिंदगी को प्रयोग में झोंक सकते हैं।

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