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वाजिब-उल-अर्ज के रास्तों पर रुकावट हटाने के लिए हाईकोर्ट की मॉनिटरिंग
19-Nov-2025 1:57 PM
वाजिब-उल-अर्ज के रास्तों पर रुकावट हटाने के लिए हाईकोर्ट की मॉनिटरिंग

पूरे जिले के आम रास्तों में निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करने का आदेश

छत्तीसगढ़' संवाददाता 

बिलासपुर, 19 नवंबर। दयालबंद क्षेत्र में आम रास्ता पगडंडी को दीवार खड़ी कर बंद किए जाने के मामले को हाईकोर्ट द्वारा संज्ञान में लिए जाने के बाद कलेक्टर बिलासपुर ने जिले के सभी राजस्व अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। कलेक्टर ने हाईकोर्ट को बताया है कि वाजिब-उल-अर्ज के तहत आने वाले किसी भी रास्ते या पगडंडी पर रुकावट की जानकारी मिलते ही तत्काल हटाने की कार्रवाई की जाए। हाईकोर्ट ने कलेक्टर के इस शपथपत्र को रिकॉर्ड में लेते हुए मामले की अगली मॉनिटरिंग की तारीख 30 जनवरी 2026 तय की है।

दयालबंद मोहल्ले में रहने वाले लोगों का आने-जाने का रास्ता दीवार बनाकर रोक दिया गया था। दीवार पर लिखा गया था कि यह आम रास्ता नहीं है और आने वालों की खूब खातिरदारी की जाएगी। इससे स्थानीय लोगों को गंभीर परेशानी हो रही थी। मामला समाचार के रूप में प्रकाशित होने के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने तुरंत संज्ञान लिया और कलेक्टर को व्यक्तिगत हलफनामा पेश करने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट के निर्देश के अगले ही दिन राजस्व अमला मौके पर पहुंचा, जांच एवं पंचनामा किया और अवरोध हटाने की कार्रवाई की। मंगलवार को मामले की पुनः सुनवाई चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में हुई। शासन की ओर से बताया गया कि कलेक्टर ने सभी उच्चाधिकारियों कमिश्नर, जिला पंचायत सीईओ, एसडीओ (राजस्व) तथा जनपद पंचायत अधिकारियों को निर्देशित किया है कि किसी भी सार्वजनिक पगडंडी पर रुकावट न आने दें।

तहसीलदार बिलासपुर, जो लैंड रेवेन्यू कोड की धारा 132 और 133 के तहत सक्षम अधिकारी हैं, ने सभी राजस्व निरीक्षकों और हल्का पटवारियों को निर्देशित किया है कि वे वर्षों से उपयोग में आने वाले रास्तों और पगडंडियों की रिपोर्ट तुरंत जमा करें। यदि कहीं रास्ते में अवरोध उत्पन्न किया जा रहा हो, तो उसकी सूचना अविलंब तहसीलदार को भेजी जाए।

कलेक्टर के शपथपत्र के अनुसार छत्तीसगढ़ लैंड रेवेन्यू कोड 1959 की धारा 131 निजी सुविधाओं और रास्ते के अधिकार से संबंधित है। धारा 242 के तहत प्रत्येक गांव में परंपरागत अधिकारों-जैसे रास्ता, सिंचाई, मछली पकड़ने आदि का रिकॉर्ड तैयार होता है, जिसे वाजिब-उल-अर्ज कहा जाता है। इसमें दर्ज अधिकार गाँव के पारंपरिक और निजी अधिकारों का प्रमाण माने जाते हैं।


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