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-चंदन कुमार जजवाड़े
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के साथ ही राज्य में लालू परिवार की आपसी लड़ाई खुलकर सामने आ गई है.
शनिवार को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता और लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने अपने परिवार से नाता तोड़ने और राजनीति छोड़ने का एलान किया है.
रविवार को भी उन्होंने अपने आरोप दोहराए.
ये वही रोहिणी आचार्य हैं जिन्होंने लालू प्रसाद यादव को अपनी एक किडनी दी थी और उन्हें देश भर में काफ़ी सुर्खियाँ मिली थीं. उस वक़्त परिवार के सभी सदस्य रोहिणी को लेकर काफ़ी भावुक बयान दे रहे थे.
अब उन्हीं रोहिणी आचार्य ने यहां तक कह दिया है कि उनका कोई परिवार नहीं है.
उन्होंने मीडिया के सामने बयान दिया , "मेरा कोई परिवार नहीं है. अब ये जाकर आप संजय, रमीज़, तेजस्वी यादव से पूछिए. उन्हीं लोगों ने मुझे परिवार से निकाला है क्योंकि उन्हें ज़िम्मेदारी लेनी नहीं है. पूरा देश, पूरी दुनिया सवाल कर रही है कि पार्टी का ऐसा हाल क्यों हुआ."
यह आरजेडी में तेजस्वी यादव और उनके क़रीबियों के सामने असामान्य हालात पैदा कर सकता है, हालाँकि अभी तक तेजस्वी, लालू या उनके किसी क़रीबी का कोई पक्ष इस मामले में सामने नहीं आया है.
आरजेडी में चल रहे इस विवाद पर पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "यह पारिवारिक मामला है और परिवार के लोग जवाब देंगे. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस पूरे मामले को देखेगा. अभी तो चुनाव परिणाम आए हैं. इस तरह के परिणाम क्यों आए, इसकी समीक्षा होगी."
"उसके बाद ही इस पर कोई प्रतिक्रिया होगी.बाक़ी तो सब लोग जानते हैं कि जिस तरह से रोहिणी जी ने एक आदर्श प्रस्तुत किया, हर माँ-पिता, भाई चाहेगा कि रोहिणी जैसी बेटी, रोहिणी जैसी बहन सबको मिले."
रोहिणी आचार्य ने अपने बयान में 'चाणक्य' शब्द का इस्तेमाल किया है. बिहार के सियासी गलियारों में आमतौर पर तेजस्वी के क़रीब संजय यादव को उनके चाणक्य के तौर पर देखा जाता है.
यानी वह शख़्स जो तेजस्वी यादव और आरजेडी के लिए रणनीति बनाता है और जिसकी पार्टी से जुड़े अहम फ़ैसलों में बड़ी भूमिका मानी जाती है.
रोहिणी आचार्य ने बीते साल आरजेडी के टिकट पर सारण लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव में उनकी हार हो गई थी.
लालू प्रसाद यादव के नौ बच्चों में रोहिणी दूसरी संतान हैं. लालू की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती हैं.
क़रीब 46 साल की रोहिणी का जन्म एक जून 1979 को पटना में हुआ था. रोहिणी ने जमशेदपुर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस भी किया है. हालांकि उन्होंने कभी इसकी प्रैक्टिस नहीं की है.
रोहिणी की शादी 24 मई 2002 को समरेश सिंह से हुई थी, जो सिंगापुर में रहते हैं. बताया जाता है कि समरेश सिंह ने सिंगापुर से एमबीए की पढ़ाई भी की है और उसी दौरान उनको सिंगापुर में ही नौकरी भी मिल गई थी.
रोहिणी के ससुराल वाले मूल रूप से औरंगाबाद के पास दाउनगर के रहने वाले हैं और उनका राजनीति से कोई संबंध नहीं रहा है.
साल 2022 में अपने पिता लालू प्रसाद यादव को किडनी देते वक़्त रोहिणी ने अपने बचपन की एक तस्वीर साझा करते हुए ट्विटर पर लिखा था, "माँ- पिता मेरे लिए भगवान हैं. मैं उनके लिए कुछ भी कर सकती हूँ. आप सबों के शुभकामनाओं ने मुझे और मजबूत बनाया है. मैं आप सबके प्रति दिल से आभार प्रकट करती हूँ. आप सब का विशेष प्यार और सम्मान मिल रहा है. मैं भावुक हो गई हूँ. आप सबको दिल से आभार कहना चाहती हूँ."
सिंगापुर में अपने पिता को किडनी देने से पहले रोहिणी ने लगातार कई भावुक ट्वीट किए, तब बाप-बेटी के रिश्तों पर खूब चर्चा हुई थी.
अब उन्हीं रोहिणी ने अपने माँ-बाप पर भी मौजूदा विवाद को लेकर आरोप लगाए हैं और परिवार से रिश्ता ख़त्म करने की बात की है.
क्या है विवाद की वजह
हालाँकि राजनीतिक दलों में इस तरह का विवाद पहले भी कई बार देखने को मिला है. राष्ट्रीय स्तर के दलों से लेकर क्षेत्रीय दलों में इस तरह के विवाद पहले भी दिखे हैं.
बिहार में ही किसी राजनीतिक दल में इसका सबसे हालिया उदाहरण एलजेपी में रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस और बेटे चिराग पासवान के बीच दिखा था, जब साल 2021 में एलजेपी दो हिस्सों में टूट गई.
किसी ज़माने में कांग्रेस पार्टी में मेनका गांधी से जुड़ा विवाद गाँधी परिवार में देखने को मिला था. उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के निधन से पहले ही समाजवादी पार्टी में उनके बेटे और भाई के बीच विवाद दिखा था.
वहीं मायावती की बहुजन समाज पार्टी में भी उनके भतीजे को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है.
महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी में उनके भतीजे अजीत पवार के बीच कुछ ऐसा ही विवाद दिखा है और पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई.
वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं, कि असल परीक्षा ये होती है कि ऐसे हालात से आप कैसे निपटते हैं.
नलिन वर्मा के मुताबिक़, "पार्टी में संजय यादव का दखल और तेजस्वी पर कंट्रोल बढ़ा है और आम कार्यकर्ताओं से लेकर विधायकों और सांसदों ने इसकी शिकायत की है. देखना होगा कि वो इससे कैसे निपटते हैं."
आरोप यह लगाया जाता है कि लालू यादव जब सक्रिय राजनीति में थे तो वो कार्यकर्ताओं और समर्थकों तक के लिए उपलब्ध होते थे, जबकि तेजस्वी यादव से मिलना या उनसे संपर्क कर पाना पार्टी के ख़ास लोगों के लिए भी मुश्किल हो गया है.
वरिष्ठ पत्रकार फ़ैजान अहमद कहते हैं, "रोहिणी ने रमीज़ और संजय यादव पर आरोप लगाए हैं. रमीज़ के बारे में सार्वजनिक तौर पर लोगों को बहुत कुछ पता नहीं है. वो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और क्रिकेट के मैदान से ही संजय यादव की तरह तेजस्वी के क़रीबी दोस्त हैं."
उनके मुताबिक़, "रमीज़ राजनीतिक परिवार से आते हैं. वो फ़िलहाल पार्टी के सोशल मीडिया और चुनाव प्रचार को देख रहे थे. हालाँकि पार्टी के फ़ैसलों में उनकी क्या भूमिका होती थी, इसके बारे में बहुत कुछ पता नहीं है."
वहीं संजय यादव की भले ही पार्टी के फ़ैसलों में भूमिका बताई जाती है लेकिन वो आमतौर पर पर्दे के पीछे रहकर काम करते रहे हैं.
नलिन वर्मा के मुताबिक़, "रमीज़ साल 2016 के आसपास से तेजस्वी के साथ हैं. जब आप राजनीति में होते हैं तो आमतौर पर ऐसा होता है कि आपके पुराने मित्र आपके साथ नज़र आने लगते हैं. लेकिन उनकी पार्टी में क्या भूमिका है यह लोगों को नहीं पता है, इसलिए इस पर कुछ भी कहना उचित नहीं है."
वो कहते हैं, "संजय यादव को लेकर कई लोगों की शिकायत रही है कि उन्होंने तेजस्वी को कंट्रोल में ले लिया है. ऐसी शिकायत लालू के ज़माने में भी प्रेमचंद गुप्ता को लेकर रहती थी, लेकिन उन्होंने इसे संभाल लिया था."
तेजस्वी यादव और संजय यादव के बीच मित्रता इतनी गाढ़ी है कि आरजेडी ने अपने कई पुराने और वरिष्ठ नेताओं को छोड़कर पिछले साल संजय यादव को राज्यसभा भेजा.
माना जाता है कि आरजेडी को लालू प्रसाद यादव की पहचान से बाहर निकाल कर उसे तेजस्वी यादव के साथ जोड़ने की कोशिश में संजय यादव की बड़ी भूमिका है.
साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में आरजेडी को बड़ा फ़ायदा हुआ था. चुनाव प्रचार में तेजस्वी ने आरजेडी की सरकार बनने पर 10 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया था, माना जाता है कि यह संजय यादव की बनाई रणनीति थी.
उन चुनावों में तेजस्वी के प्रचार के दम पर आरजेडी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी और इसने संजय यादव के क़द को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई.
साल 1984 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले के नांगल सिरोही गाँव में जन्मे संजय यादव कंप्यूटर साइंस से एमएससी हैं. राज्यसभा की वेबसाइट के मुताबिक़ उनका स्थायी घर दिल्ली के नज़फ़गढ़ में है.
संजय यादव तेजस्वी यादव के उन दिनों के साथी हैं, जब तेजस्वी का राजनीति से कोई सरोकार नहीं था और वो दिल्ली में क्रिकेट के मैदान में पसीने बहा रहे थे.
कहा जाता है कि संजय से तेजस्वी की निजी और बहुत गहरी मित्रता है. तेजस्वी के लिए उन्होंने एमएनसी (बहुराष्ट्रीय कंपनी) की अपनी नौकरी तक छोड़ दी और बिहार आ गए.
साल 2013 में चारा घोटाला मामले में लालू के जेल जाने के बाद राबड़ी देवी ने तेजस्वी को दिल्ली से बिहार बुला लिया. लेकिन तेजस्वी का बिहार में मन नहीं लग रहा था, वो अपने मित्रों से दूर हो गए थे, तब उन्होंने अपने साथी संजय यादव को बिहार बुला लिया.
बिहार आकर उन्होंने कुछ साल तक यहाँ की राजनीति को समझा, चुनावी समीकरण और आँकड़ों पर काम किया.
संजय यादव ने ज़रूरत के मुताबिक़ आरजेडी में कई तरह के तकनीकी और डिजिटल दौर के बदलाव भी किए.
माना जाता है कि संजय यादव ने ही आरजेडी में मौजूदा समय के लिहाज से कई बदलाव कराए. उन्होंने मुस्लिम-यादव समीकरण से बाहर अन्य वर्गों और बिहार के युवाओं को जोड़ने की रणनीति बनाई.
हालाँकि ऐसा भी नहीं है कि संजय यादव की मौजूदगी में तेजस्वी यादव और आरजेडी के लिए सबकुछ अच्छा ही हुआ है. संजय यादव पर एक बड़ा आरोप यह लगता है कि उन्होंने तेजस्वी को अपने नियंत्रण में ले लिया है और आरजेडी के पुराने लोग दरकिनार कर दिए गए हैं.
संजय यादव से जुड़ा पिछला विवाद इसी साल सितंबर महीने में ख़ुलकर सामने आया था.
दरअसल तेजस्वी यादव ने 16 सितंबर से बिहार अधिकार यात्रा की थी, जो जहानाबाद से शुरू हुई थी. इस यात्रा के दौरान सोशल मीडिया पर संजय यादव फ़्रंट सीट पर बैठे थे.
संजय यादव के फ़्रंट सीट पर बैठने को लेकर रोहिणी आचार्य ने नाराज़गी जताई.
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "फ़्रंट सीट सदैव शीर्ष नेता के लिए होती है और उनकी अनुपस्थिति में किसी को भी उस सीट पर नहीं बैठना चाहिए. वैसे अगर कोई अपने आप को शीर्ष नेतृत्व से भी ऊपर समझ रहा है, तो अलग बात है."
इस बीच रोहिणी आचार्य की 'राजनीतिक महत्वाकांक्षा' के लिए ऑनलाइन ट्रोलिंग भी शुरू हो गई.
इसके बाद रोहिणी ने अपने भाई तेजस्वी यादव और पिता लालू प्रसाद यादव दोनों को ही सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर अनफ़ॉलो कर दिया.
मौजूदा विवाद पर नलिन वर्मा कहते हैं, "अब भी आरजेडी के पास बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है, इसलिए मौजूदा विवाद फ़ौरी तौर पर बहुत बड़ा दिख हो लेकिन इसका भविष्य में बहुत बड़ा असर होगा, ऐसा नहीं कह सकते हैं."
वो कहते हैं, "साल 2010 में आरजेडी 22 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन 2015 में फिर से खड़ी हो गई. साल 2020 में यह पार्टी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनी. ऐसे ही साल 2014 में जेडीयू को लोकसभा में महज़ दो सीटों पर जीत मिली और पिछले विधानसभा चुनाव में केवल 43 सीटें मिली तो कहा जाने लगा कि नीतीश की पार्टी ख़त्म हो रही है."
लेकिन नीतीश कुमार और जेडीयू ने इस बार के चुनाव में ज़बरदस्त वापसी की है. उम्र और सेहत से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद भी नीतीश कुमार एक बार फिर से चर्चा में हैं.
ऐसे में तेजस्वी यादव भी आरजेडी को फिर से पटरी पर ला सकते हैं, लेकिन देखना होगा कि इसका रास्ता क्या होगा और वो इसमें कितने सफल रहते हैं. (bbc.com/hindi)


