ताजा खबर

मूणत नाखुश हैं?
चर्चा है कि पूर्व मंत्री राजेश मूणत नाखुश चल रहे हैं। मूणत मंत्री बनने की दौड़ में थे। स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने उन्हें कैबिनेट में जगह दिलाने के लिए काफी दम भी लगाया था। मगर पार्टी ने नए चेहरे को कैबिनेट में जगह देने का मन बना लिया था, और इन सब वजहों से मूणत, अमर, और अजय चंद्राकर मंत्री बनने से रह गए। मूणत ने नाराजगी का खुले तौर पर इजहार तो नहीं किया है, लेकिन वो सार्वजनिक कार्यक्रमों में पहले जैसी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। पार्टी के कई लोग इसे उनकी नाराजगी से जोडक़र देख रहे हैं।
गणेश विसर्जन स्वागत के लिए मूणत का अलग से पंडाल लगता था। इस बार उनके खेमे की तरफ से मेयर मीनल चौबे ने जयस्तंभ चौक पर स्वागत पंडाल लगाया। खुद सीएम, और सरकार के दो-तीन मंत्री भी मेयर के पंडाल में शरीक हुए, और झांकियों का स्वागत किया। मगर मूणत नहीं आए। इसकी राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा रही। इस बार नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन संजय श्रीवास्तव ने भी स्वागत पंडाल लगाया था। इसमें भी पार्टी के कई प्रमुख नेताओं ने शिरकत की, लेकिन इस तरह के आयोजनों में अपनी पूरी ऊर्जा लगाने वाले राजेश मूणत नहीं दिखे, तो चर्चा का विषय बन गया।
नशे का धंधा, जितने मुँह, उतने नाम!
रायपुर के कटोरा तालाब की नव्या मलिक, और विधि अग्रवाल की गिरफ्तारी के बाद ड्रग्स रैकेट का खुलासा हुआ है। उनके आधा दर्जन सहयोगियों को पुलिस अब तक गिरफ्तार कर चुकी है। ड्रग्स रैकेट में नव्या मलिक का किरदार काफी अहम है। इसके तार विदेशों तक जुडऩेे की खबर आ रही है। पुलिसिया पूछताछ में विशेषकर नव्या को लेकर कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है। ड्रग्स रैकेट में राजनेताओं से लेकर बड़े कारोबारियों के बेटों के जुड़े होने की चर्चा है।
करीब 30 बरस की युवती नव्या पहले एक संस्थान में मैनेजर थीं, और इंटीरियर डिजाइन के काम से जुड़ी रहीं। फिर फैशन डिजाइन, और वर्तमान में इवेंट कंपनी संभाल रही थीं। इस दौरान उनकी नामी-गिरामी लोगों से जान पहचान हो गई। कुछ से नजदीकी संबंध भी बन गए। पार्टियों में ड्रग्स सप्लाई भी करने लगीं। और अब जब नव्या के कॉल डिटेल्स निकाले गए, तो आगे कार्रवाई करने में पुलिस के भी हाथ पांव फूल रहे हैं।
चर्चा है कि एक विधायक के बेटे के नाम तो लोगों की जुबान में है, कई बड़े नामों को लेकर कानाफुसी हो रही है। दुर्ग संभाग के एक बड़े नेता के पोते, और एक और विधायक के बेटे का नाम भी ग्राहकों की सूची में बताया जा रहा है। रायपुर के प्रभावशाली नेता के भतीजे, और एक बिल्डर के बेटे का नाम भी नव्या, और विधि अग्रवाल से जुड़ा होना बताया जा रहा है।
पुलिस कई लोगों से पूछताछ कर चुकी है, लेकिन सिर्फ वाट्सऐप चैट के आधार पर आगे कुछ कार्रवाई करने के पक्ष में नहीं है। भाजपा, और कांग्रेस के बड़े नेता ड्रग्स रैकेट के खुलासे के बाद एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। मगर ड्रग्स रैकेट के तार तो दलीय सीमा को पार करते दिख रहे हैं। देखना है कि सारे राज सामने आ पाते हैं, या नहीं।
सरगुजा से झांकती आंगनबाड़ी की सच्चाई
छत्तीसगढ़ में 52 हजार 474 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जहां 6 वर्ष तक की आयु वाले 27 लाख से अधिक बच्चों के नाम दर्ज हैं। ये केंद्र केवल बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा और सेहत की देखभाल ही नहीं, बल्कि बीपीएल श्रेणी की महिलाओं की कार्यशक्ति में हिस्सेदारी बढ़ाने का भी माध्यम हैं। कामकाजी माताएं अपने बच्चों को आंगनबाड़ी में छोडक़र निश्चिंत होकर काम पर जा सकती हैं।
हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है कि इन केंद्रों में आने वाले बच्चों की संख्या घट रही है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में सरगुजा के केंद्रों में आने वाले बच्चों की संख्या करीब 14 हजार कम हो चुकी है। सरगुजा से जमीनी रिपोर्टिंग करने वाले मीडियाकर्मियों ने अप्रैल 2025 में वीडियो और तस्वीरों के साथ दिखाया था कि केंद्रों में मुश्किल से चार-पांच बच्चे मौजूद थे, जबकि रजिस्टर में सब हाजिर हैं।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर अभिभावक बच्चों को आंगनबाड़ी भेजना क्यों कम कर रहे हैं। लाभार्थियों और स्टाफ से हुई चर्चा में यह सामने आया कि केंद्रों का जीर्ण-शीर्ण बुनियादी ढांचा इसकी सबसे बड़ी वजह है। अधिकांश भवन छोटे बजट में पंचायतों और आरईएस के जरिये बनाए जाते हैं, जिसमें हिस्सेदारी का बंटवारा होता है और चार-पांच साल में ही भवन जर्जर हो जाते हैं। भौतिक निरीक्षण कराया जाए तो सैकड़ों केंद्रों की छत टपकती हुई और प्लास्टर उखड़ा हुआ मिलेगा। कई जगह जर्जर भवन से बच्चों को हटाकर किराये के कमरों में शिफ्ट किया गया है, लेकिन 1200 रुपये स्वीकृत किराया होने के कारण वे जगहें भी दुरुस्त नहीं होतीं। कई केंद्र झोपडिय़ों में तो कई छोटे और अंधेरे कमरों में संचालित हो रहे हैं। लोग वहां अपने बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों को लेकर चिंतित हैं, जहां भेज कर उन्हें निश्चिंत हो जाना चाहिए।
हाल ही में एक रिपोर्ट और आई थी कि लखनपुर ब्लॉक के एक आंगनबाड़ी केंद्र को जिस किराये के छोटे कमरे में शिफ्ट किया गया, वहां अंधेरे की वजह से बच्चों को आंगन में बैठकर भोजन करना पड़ता है। उसी आंगन में एक खुला कुआं भी है। स्टाफ को लगातार नजर रखनी पड़ती है कि कहीं बच्चे खेलने के दौरान उसकी तरफ न चले जाएं। अगस्त 2025 की बिलासपुर की घटना तो अधिक सिहरन वाली थी। यहां सरकारी स्कूल के एक कमरे में, जो मध्यान्ह भोजन के लिए निर्धारित था, आंगनबाड़ी केंद्र चलाया जा रहा था। इसी केंद्र में अवैध रूप से रखा गया लोहे का पाइप बच्ची के ऊपर गिरा और उसकी मौत हो गई।
इन खतरनाक परिस्थितियों के बावजूद विभाग के अफसर, मंत्री और जिला कलेक्टर ज्यादातर बेपरवाह ही नजर आते हैं। एक तरफ आंगनबाड़ी केंद्रों की यह स्थिति है, दूसरी ओर जुलाई 2025 में महिला एवं बाल विकास विभाग की केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री देवी ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि अब इन केंद्रों के साथ शिशुओं के लिए झूलाघर खोलने की योजना को मंजूरी दी गई है। इनमें सबसे अधिक 1500 केंद्र छत्तीसगढ़ के लिए हैं। मौजूदा आंगनबाड़ी केंद्र जब ठीक तरह से नहीं चल रहे हों तो झूलाघर में कितनी माताओं की दिलचस्पी होगी? छत्तीसगढ़ में, हाल ही में विभाग चर्चा में तब आया जब टेंडर और सप्लाई में करोड़ों रुपये के घोटाला उजागर हुआ। शायद, झूलाघर के बजट पर भी लोगों की नजर होगी।