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स्कूल ढहने के बाद शख्स ने पढ़ाई के लिए घर सौंपा, ख़ुद झोपड़ी में रहने लगे
06-Sep-2025 1:13 PM
स्कूल ढहने के बाद शख्स ने पढ़ाई के लिए घर सौंपा, ख़ुद झोपड़ी में रहने लगे

मोहर सिंह मीणा
राजस्थान, 6 सितंबर (बीबीसी)।
25 जुलाई को राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में प्राथमिक विद्यालय की इमारत ढह गई थी। इस हादसे में सात बच्चों की मौत हो गई और कऱीब 21 बच्चे घायल हो गए। हादसे के बाद बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई और गांववाले असमंजस में थे कि शिक्षा कैसे जारी रहेगी।

तभी सामने आए गांव के ही आदिवासी मोर सिंह भील, जिन्होंने अपने दो कमरे के मकान को स्कूल को सौंप दिया और ख़ुद अपने आठ सदस्यों के परिवार सहित झोपड़ी में रहने लगे।

प्रशासन ने उनकी इस पहल के लिए उन्हें आर्थिक सहायता दी है और गांव में नई स्कूल बिल्डिंग बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।

हादसे के बाद रुक गई थी बच्चों की पढ़ाई
25 जुलाई की सुबह साढ़े सात बजे जब पिपलोदी के प्राथमिक विद्यालय की छत गिरी तो पूरे गांव में चीख-पुकार मच गई। सात मासूम बच्चों की जान चली गई और 21 से ज़्यादा घायल हो गए।

11 बच्चों का इलाज कोटा और झालावाड़ अस्पतालों में कराया गया। सौभाग्य से सभी सुरक्षित घर लौट आए।

हादसे के बाद सरकारी स्तर पर अस्थायी व्यवस्था खोजने की कोशिश हुई। जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ का कहना है कि प्रशासन ने 2-3 भवन देखे लेकिन कोई भी जगह तय नहीं हो सकी।

इस बीच गांव के आदिवासी समुदाय से आने वाले मोर सिंह भील ने 2011 में कर्ज लेकर बनाए अपने घर की चाबी बच्चों की शिक्षा के लिए सौंप दी, ख़ुद आठ लोगों का परिवार लेकर झोपड़ी में चले गए।

मोर सिंह कहते हैं, ‘मैं तो बिल्कुल अनपढ़ हूं। मैं कभी स्कूल नहीं गया। मैं मज़दूरी कर परिवार की देख-रेख कर रहा हूं। मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया है।’
बेहद सरल स्वभाव और सामान्य कद काठी के मोर सिंह बीबीसी हिन्दी से कहते हैं, ‘स्कूल बिल्डिंग गिरने से सात बच्चों की मौत हो गई। चौदह दिन तक स्कूल बंद रहा। पढ़ाई शुरू करने के लिए कहीं जगह नहीं मिली तो मैंने अपना मकान ख़ाली कर दिया।’

किराए की बात पर उन्होंने मुस्कुराकर कहा, ‘हम कोई किराया नहीं लेते हैं। हमने कह दिया है कि जब तक स्कूल न बन जाए, तब तक मेरे घर में बच्चे पढ़ते रहें, चाहे दो साल लगें या तीन।’

झोपड़ी में परिवार, पक्के घर में बच्चों का स्कूल


आज गुलाबी रंग के उस मकान के दरवाज़े पर स्कूल का बोर्ड टंगा है। बाहर बच्चों के जूतों से भरी चारपाई रखी है। अंदर दो कमरे और बरामदों में 65 बच्चों की कक्षाएँ चल रही हैं। शिक्षक व्हाइटबोर्ड पर कविताएँ और गिनतियाँ सिखाते हैं।

यहीं कभी मोर सिंह का परिवार रहता था। अब वह खेत किनारे बांस-तिरपाल से बनी झोपड़ी में रह रहे हैं। बारिश में पानी भर जाता है, मच्छर इतने कि दिन में भी धुआं करना पड़ता है।

उनकी पत्नी मांगी बाई कहती हैं, यहां परेशानी तो होती है लेकिन हमें ख़ुशी है कि पक्के मकान में बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। गांव के बच्चे भी हमारे बच्चे हैं।
वह कहती हैं, साल 2011 में ब्याज पर चार लाख कज़ऱ् लेकर मकान बनाया था। कई साल मज़दूरी कर कज़ऱ् चुकाया। लेकिन हमें कभी नहीं लगा कि ग़लत फ़ैसला लिया।

गांव के लोग और शिक्षक क्या कह रहे हैं
गांव वाले मोर सिंह के त्याग को सराहते नहीं थकते।

60 साल के अमर लाल कहते हैं, ‘मोर सिंह अगर मकान नहीं देते तो बच्चे कहां पढ़ते? बारिश में परिवार झोपड़ी में रह रहा है और मकान दे दिया। पूरा गांव कहता है, अच्छा किया।’

लेकिन नाराजग़ी भी है। एक बुज़ुर्ग कहते हैं, ‘बच्चे मरे तब तो अफ़सर और नेता सब आए, भीड़ थी। अब कोई पूछने नहीं आता। अगर मोर सिंह आगे नहीं आते तो बच्चों की पढ़ाई छूट जाती।’

शिक्षक महेश चंद मीना बताते हैं, ‘बच्चे स्कूल ढहने के बाद डर गए थे। मोर सिंह ने घर दे दिया तो पढ़ाई फिर शुरू हो सकी। पहले 72 बच्चे थे, सात की मौत के बाद 65 बचे, लेकिन अब तीन नए बच्चों का भी दाख़िला हुआ है।’

शिक्षक महेश बताते हैं कि स्कूल के लिए जगह देने के लिए गांव वालों की बैठक भी हुई। लेकिन, कोई भी तैयार नहीं हुआ। फिर मोर सिंह भील ने कहा कि मैं अपना मकान बच्चों की पढ़ाई के लिए देता हूं।

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि स्कूल चलाने के लिए बिजली और टिन शेड जैसी मरम्मत का काम गांव के शिक्षकों ने मिलकर अपने पैसों से कराया।

 

प्रशासन ने क्या जानकारी दी

वहीं, झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ कहते हैं, ‘मोर सिंह ने प्रेरणा से घर दिया। प्रशासन ने मरम्मत कराकर 10-12 दिन में स्कूल शुरू कर दिया। उनके त्याग के लिए पूरा प्रशासन आभारी है।’

कलेक्टर ने बताया कि मोर सिंह को उनके दूसरे मकान की मरम्मत के लिए 2 लाख रुपये की सहायता दी गई।

वह कहते हैं, ‘हमने कोशिश की कि उन्हें रहने में दिक्कत न हो। ज़रूरत पड़ी तो और मदद दी जाएगी।’ उन्होंने यह भी जानकारी दी कि गांव में 10 बीघा ज़मीन पर नए स्कूल के लिए डेढ़ करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं।

‘अगले साल तक नया भवन बड़े परिसर और ज़्यादा कमरों के साथ तैयार हो जाएगा। पास ही आंगनबाड़ी, राशन की दुकान और सब-सेंटर भी बनेगा।’

कलेक्टर के मुताबिक हादसे के बाद मृतक परिवारों को 11-11 लाख रुपये की सहायता दी गई।

इनमें से 5-5 लाख रुपये की एफड़ी बनाई गई ताकि हर महीने 3 हजार रुपये का ब्याज मिले।

गंभीर रूप से घायलों को 1-1 लाख रुपये और आंशिक घायलों को 50-50 हजार रुपये मिले। मृतक परिवारों के सदस्यों को संविदा पर नौकरी दी गई।

कलेक्टर ने कहा, ‘सबसे अच्छी बात यह रही कि हादसे के बाद स्कूल में बच्चों का रजिस्ट्रेशन बढ़ा है। यह समाज और प्रशासन दोनों की कोशिशों का नतीजा है।’
पिपलोदी का हादसा त्रासदी लेकर आया, लेकिन इसने गांव को शिक्षा की अहमियत भी दिखा दी।

मोर सिंह कहते हैं, ‘हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं तो थोड़ी मुसीबत हम भी उठा सकते हैं। बच्चों की ख़ुशी के सामने यह परेशानी कुछ नहीं।’
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूजरूम की ओर से प्रकाशित)


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