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राजपथ-जनपथ : सोशल मीडिया की ताकत के आगे सत्ता का सरेंडर
23-Jul-2025 6:29 PM
राजपथ-जनपथ : सोशल मीडिया की ताकत के आगे सत्ता का सरेंडर

सोशल मीडिया की ताकत के आगे सत्ता का सरेंडर

कभी-कभी सोशल मीडिया सिर्फ लाइक-शेयर की दुनिया नहीं होती, बल्कि यह सत्ता के कान खींचने का तरीका भी बन जाती है। मध्य प्रदेश के सीधी जिले के खड्डी खुर्द गांव की 22 वर्षीय लीला साहू ने यह साबित कर दिया। नौ महीने की गर्भवती लीला ने अपने गांव बगैया टोला से गजरी तक की 10 किलोमीटर की टूटी-फूटी सडक़ को लेकर ऐसा तूफान खड़ा किया कि नेताओं को मजबूरन झुकना पड़ा।

लीला पिछले साल से सडक़ की दुर्दशा पर आवाज उठा रही थी। गर्भवती महिलाओं के लिए एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती थी। प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय सांसद तक, सबको टैग कर-करके उन्होंने वीडियो डाले, पर सबने प्रक्रियाधीन वाले वादों में उलझा कर रखा। इस बार बारिश ने सडक़ को दलदल बना दिया और लीला का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने सांसद राजेश मिश्रा पर तंज कसा- जब सडक़ बनवाने की ताकत नहीं थी, तो वोट के समय वादा क्यों किया?

वीडियो वायरल हुआ, लेकिन नेताओं के बयान आग में घी डालने जैसे थे। सांसद बोले-डिलीवरी की तारीख बताओ, एक हफ्ता पहले हेलीकॉप्टर से उठा लेंगे। मंत्री राकेश सिंह ने व्यंग्य कसा था- क्या हर सोशल मीडिया पोस्ट पर डंपर लेकर निकल जाएं?,  लीला ने पलटवार किया- किस-किस को हेलीकॉप्टर से उठाएंगे? हमें सडक़ चाहिए!

सोशल मीडिया पर लोगों के समर्थन तूफान ला दिया और 21 जुलाई को चमत्कार हो गया। जेसीबी और रोलर सडक़ पर उतर आए। हालांकि यह काम बिना किसी टेंडर के शुरू हुआ। कांग्रेस विधायक अजय सिंह ने दावा किया कि उन्होंने अपनी निधि से काम शुरू करवाया। भाजपा की ओर से कहा गया कि यह सांसद की मेहनत का नतीजा है। जो भी ले श्रेय, सडक़ बन रही है।  मगर, लीला अभी भी चुप नहीं है। उसने कहा है कि हम अब सडक़ की क्वालिटी पर भी नजर रखेंगे।

लीला ने बता दिया कि सोशल मीडिया की ताकत से जनता बदलाव ला सकती है। सत्ता सुख में डूबे अहंकार को झुकने पर मजबूर कर सकती है। 

एक अनार सौ बीमार

विधानसभा के कई सीनियर अफसर इस साल रिटायर हो रहे हैं। इनमें विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा भी हैं, जो कि नवंबर में रिटायर हो जाएंगे। हालांकि अब तक के जितने भी सचिव हुए हैं, उन सभी को रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन मिला है। दिनेश शर्मा की साख भी अच्छी है, लेकिन उनका क्या होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। मगर सीनियर अफसरों की कुर्सी को लेकर कई तरह की चर्चा चल रही है।

दिनेश शर्मा के ठीक नीचे पद पर आरके अग्रवाल हैं, जो कि अपर सचिव के पद पर हैं। आरके अग्रवाल भी सितंबर में रिटायर होने वाले हैं। चर्चा है कि अग्रवाल भी एक्सटेंशन चाहते हैं। इन सबके बीच लोकसभा सचिवालय के अफसर अभय श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ विधानसभा में उप सचिव के पद पर हैं। श्रीवास्तव को पूर्व स्पीकर डॉ. चरणदास महंत लेकर आए थे। श्रीवास्तव की प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म होने के बाद एक साल का एक्सटेंशन मिला हुआ है। हल्ला है कि वो यहां संविलियन चाहते हैं। हालांकि इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। यदि संविलियन होता है, तो वो भी शीर्ष पद के दावेदारों में शामिल हो जाएंगे। ये अलग बात है कि इसमें स्थानीय-बाहरी का भी पेंच फंसा हुआ है।

श्रीवास्तव से ऊपर अतिरिक्त सचिव श्रीमती विनीता वाजपेयी भी हैं।  विनीता वाजपेयी दिवंगत स्पीकर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की पुत्री भी हैं। विनीता वाजपेयी अगले साल रिटायर होंगी।  वो विधानसभा की पहली महिला सचिव भी हो सकती हैं। कुल मिलाकर राज्य सचिवालय की तरह विधानसभा सचिवालय के शीर्ष पदों पर पदस्थापना को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।

पुराना नेता गच्चा खा गया !!

भाजपा की एक खबर ने पार्टी रणनीतिकारों को परेशान कर रखा है। हुआ यूं कि कोंडागांव भाजपा के एक बड़े नेता संतोष कटारिया को खनिज निगम का अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ लोगों ने 41 लाख रुपए ठग लिए। कटारिया ने इसकी शिकायत पुलिस में भी की है, और पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर जांच कर रही है।

कांग्रेस में तो ऐसे प्रकरण आते रहे हैं। पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल ने टिकट के लिए तत्कालीन प्रभारी सचिव चंदन यादव पर 7 लाख रुपए लेने के आरोप लगा दिए थे। डॉ. जायसवाल को पार्टी से सस्पेंड भी किया गया था। बाद में उन्होंने माफी भी मांग ली थी। मगर भाजपा में पद के लिए लेनदेन की लिखित शिकायत पहली बार सामने आई है।

हालांकि भाजपा में विधानसभा चुनाव से पहले टिकट दिलवाने के लिए खुद को आरएसएस का पदाधिकारी बताकर मध्यप्रदेश के एक व्यक्ति द्वारा एक-दो दावेदारों से पैसे ऐंठने के मामले की काफी चर्चा रही। मगर यह मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा। इस बार भी निगम-मंडल ने पद के लिए कई लोगों ने दिल्ली, नागपुर तक दौड़ लगाई थी। इनमें से कई को निराशा हाथ लगी है। मगर संतोष कटारिया के प्रकरण से पार्टी के रणनीतिकार चिंतित हैं। कुछ लोग इसे डिजिटल अरेस्ट के नाम पर उगाही करने सरीखा बता रहे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।


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