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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कांवड़ यात्रा में हिंसा अगर हिन्दू या गैरहिन्दू जो भी कर रहे हैं उन्हें जेल ही भेजें...
सुनील कुमार ने लिखा है
23-Jul-2025 4:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कांवड़ यात्रा में हिंसा अगर हिन्दू या गैरहिन्दू जो भी कर रहे हैं उन्हें जेल ही भेजें...

उत्तर भारत में त्यौहारों का मौसम चल रहा है। सावन शुरू होता है कि त्यौहार शुरू हो जाते हैं, एक पूरा नहीं होता है कि दूसरा आकर खड़ा हो जाता है। ऐसे में सार्वजनिक जगहों पर धर्मालुओं की भीड़ लगती है, और जैसा कि किसी भी भीड़ की मानसिकता में होता है, धर्मालु धीरे-धीरे आक्रामक और धर्मांध भी होने लगते हैं। भीड़ का बड़ा असर होता है। किसी समझदार ने जाने कितने पहले यह लिखा था कि भीड़ में सिर बहुत होते हैं, दिमाग एक भी नहीं होता। फिर हिंदुस्तान में हाल के बरसों में यह भी देखने में आया है कि भीड़ किस तरह हिंसक हो जाती है। फिर चाहे वह किसी शवयात्रा की भीड़ हो, बारात की भीड़ हो, किसी राजनीतिक रैली में जाती हुई भीड़ हो या एकसाथ सफर कर रहे सैनिक हों। भीड़ लोगों को उग्रता की तरफ ले ही जाती है। कुछ लोगों को इस लिस्ट में सैनिकों का नाम जोडऩे पर हैरानी हो सकती है, लेकिन रेलगाडिय़ों में कई बार यह देखने में आता है कि सेना या अर्धसैनिक बलों के लोग अगर बड़ी संख्या में सफर करते हैं, तो वे दूसरे मुसाफिरों से बद्सलूकी करने लगते हैं, पूरे के पूरे डिब्बे पर कब्जा कर लेते हैं, और कई मामले तो ऐसे भी हुए हैं जिसमें उन्होंने डिब्बे के बाकी मुसाफिरों को निकालकर बाहर फेंक दिया। जो लोग पूरी वर्दी में चलते हैं, जो बड़े कड़े नियमों से बंधे रहते हैं, वे भी जब भीड़ बनते हैं तो अराजक हो जाते हैं।

अब उत्तर भारत के तो ढेर सारे वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं, जिनमें कांवड़ लेकर जा रहे नौजवान तीर्थयात्रियों की टोलियां सडक़ किनारे के दुकानदारों, खासकर मुस्लिमों, या अंडा-मांस बेचने वाले लोगों के खिलाफ हिंसक हो रही हैं। सफाई देने वाले यह कह रहे हैं कि कुछ मुसलमान कांवडिय़ों की पोशाक में बीच में घुस गए हैं, और कांवडिय़ों को बदनाम करने के लिए इस तरह के काम कर रहे हैं। यह खतरा तो हिंदुस्तान जैसे देश में हमेशा ही बने रहेगा, क्योंकि कई जगहों पर गाय काटकर फेंकने वाले हिन्दू लोग भी यूपी में ही हिन्दू पुलिस अफसरों द्वारा पकड़े गए हैं जो कि किसी मुसलमान को उसमें फंसाना चाहते थे। लेकिन जिस योगीराज में कांवडिय़ों के स्वागत के लिए पुलिस तैनात है, हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने से लेकर जमीन पर उनके पांवों को पोंछने, पंखा झलने तक का काम वर्दीधारी पुलिस कर रही है, तो उनके बीच किसी मुस्लिम का छुप जाना, और फिर हिंसा करना बहुत मामूली बात नहीं लगती है। और दूसरी तरफ यह बात तो अपनी जगह है ही कि ऐसी हिंसा के सैकड़ों वीडियो अब तक सामने आ चुके हैं, जिनमें लोगों के चेहरे दिख रहे हैं। इसलिए उत्तरप्रदेश की पुलिस के लिए यह मालूम करना मुश्किल नहीं है कि हिंसा करने वाले इन लोगों में कोई छिपे हुए मुस्लिम, या गैर हिंदू तो नहीं हैं। जब कई-कई मिनट के एक-एक वीडियो के कैमरे के सामने चेहरा दिखाकर लोग नारे लगा रहे हैं, कारों को तोड़ रहे हैं, लोगों को पीट रहे हैं, तो फिर पुलिस को इनकी शिनाख्त करने में दिक्कत कहां है? अगर कोई हिंदुओं के एक बड़े त्यौहार को बदनाम करने के लिए मुसलमान होते हुए हिंदू कपड़े पहनकर तीर्थ-यात्रा के बीच ऐसी हिंसा कर रहा है, तो उसे तो पहचाना ही जा सकता है, और योगी की पुलिस के पास बुलडोजर भी है ही। सबसे ताजा समाचार और वीडियो अभी यह लिखते-लिखते ही सामने आया है जिसने यूपी में वर्दीधारी महिला पुलिस अधिकारी भट्टी पर चढ़ी कढ़ाईयों में कांवडिय़ों के लिए पूडिय़ां तल रही हैं, महिला कांवडिय़ों के पैर दबा रही हैं, और कांवडिय़ों की एक पूरी तरह बेकाबू सैकड़ों लोगों की भीड़ पुलिस की एक गाड़ी को चारों तरफ से तोड़ रही है। ये दो नजारे अलग-अलग जगहों के हैं, और दोनों चारों तरफ फैल रहे हैं। योगी सरकार के पास इतनी ताकत तो है ही कि अगर ऐसे वीडियो झूठे हैं, तो इन्हें फैलाने वाले लोगों को सजा दी जाए।

पिछले हफ्ते में ऐसे दर्जनों वीडियो सामने आए हैं जिनमें कांवडिय़ों के सामने-सामने चल रही खुली गाडिय़ों में तंग और छोटे-छोटे कपड़े पहनी हुईं लड़कियां मादक डांस कर रही हैं। जोरों से डीजे बज रहे हैं, और यह डांस आगे-आगे चलते चल रहा है, पीछे-पीछे कांवडि़ए चल रहे हैं। इसको भी जांचा जा सकता है कि क्या ये किसी दूसरे धर्म की लड़कियां, किसी दूसरे धर्म के ट्रक वाले के पीछे लदकर किसी दूसरे धर्म के गीतकार के लिखे हुए, किसी दूसरे धर्म के संगीतकार के कंपोज किए हुए, और किसी दूसरे धर्म के डांस-डायरेक्टर की कोरियोग्राफी पर ऐसे डांस कर रही हैं। इन सबको गिरफ्तार करना बड़ा आसान है, और किया भी जाना चाहिए। बल्कि हमारा तो यह भी मानना है कि हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए अगर इस तरह की अश्लील हरकतें खुद हिंदुओं में से कुछ लोग कर रहे हैं तो यह मानकर चलना चाहिए कि उनकी नीयत हिंदू धर्म को, हिंदुत्व को, और हिंदुओं को बदनाम करने की ही है, और इन पर भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। सडक़ों के कुछ ऐसे वीडियो सामने आए हैं जिनमें आधा-एक दर्जन लड़कियां भगवा हाफ पैंट और टी-शर्ट पहने हुए उत्तेजक गानों पर डांस कर रही हैं, और उनके इर्द-गिर्द कुछ मर्द भी ऐसा ही डांस कर रहे हैं। इनके भी चेहरे-मोहरे सभी बारीकी से दिख रहे हैं, और हिंदू धार्मिक भावनाओं को जख्मी करने की इस हरकत पर इन सबके खिलाफ जुर्म दर्ज होना चाहिए क्योंकि सावन का यह समय शिवजी की आराधना का है, और शिवजी की फोटो वाले टी-शर्ट पहनकर इस तरह के गंदे नाच करने वाले लोगों पर निश्चित ही कार्रवाई होनी चाहिए।

अब जब धर्म देश में सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है, तो उसको बचाने के लिए भरसक कोशिश भी होनी चाहिए। भारत में धर्म इतना तो कभी भी खतरे में नहीं था, जितना कि आज है, और यह भी समझने की जरूरत है कि आज पूरी तरह से देश-प्रदेश में हिंदू सरकारें रहते हुए भी हिंदुत्व खतरे में है, तो यह बहुत फिक्र की बात है। आज तो हिंदुत्व अपने पूरे इतिहास का सबसे अधिक सुरक्षित दौर देखने वाला होना चाहिए था, लेकिन नारों पर अगर भरोसा किया जाए तो हिंदुत्व बड़े खतरे में है। इसलिए हिंदुत्व को बदनाम करने वाली ताकतें, चाहे वे इस धर्म के बाहर की हों, चाहे वे इस धर्म के भीतर की हों, उन पर कड़ाई से रोक लगनी चाहिए।

अभी छत्तीसगढ़ के कोरबा की खबर है कि कांवडिय़ों के जत्थों के बीच डीजे की धुन पर नाचते हुए कुछ उपद्रवियों ने नकली पिस्तौल और कुछ हथियार लहराकर दहशत फैलाई। पुलिस ने इस पर दो बालिगों और चार नाबालिगों को गिरफ्तार भी कर लिया है। अभी यह खुलासा नहीं किया गया है कि ये उपद्रवी किस धर्म के थे, और इसे जाने बिना भी हम यह लिख रहे हैं कि ये किसी भी धर्म के हों, इन्हें कम से कम कई महीनों के लिए जेल भेजना चाहिए।

इसी सिलसिले में यह भी याद पड़ता है कि किस तरह छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी त्यौहारों के पहले सरकार को नोटिस जारी किया है कि सडक़ों पर धार्मिक पंडाल या स्वागत द्वार न लगाए जाएं। सरकार की तरफ से कहा गया है कि वह इस बारे में नीति बना रही है। जो नोटिस त्यौहार के मौसम को देखते हुए हाईकोर्ट हर बरस जारी कर देता है, उसे बरसों से पाते हुए भी सरकार अब तक कोई नीति नहीं बना पाई है। न पिछली कांग्रेस की भूपेश सरकार, और न ही वर्तमान भाजपा सरकार। अब सडक़ों पर आवाजाही रोक देने वाले पंडाल और स्वागत-द्वार बनना रोकने के लिए नीति बनाना शायद पंचवर्षीय विचार-विमर्श का काम है, और चूंकि देश का योजना आयोग अब खत्म कर दिया गया है, इसलिए किसी भी पंचवर्षीय योजना या नीति को बनाना आसान भी नहीं रह गया है। जब तक यह नीति बनेगी, हाईकोर्ट के कई मुख्य न्यायाधीश इधर-उधर जा चुके होंगे, या रिटायर हो चुके होंगे। छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट का काम भी आम के पेड़ लगाने जैसा हो गया है, एक बेंच पेड़ लगाती है, और उसके कई बरस बाद की कई बेंच पार हो जाने पर कोई और न्यायाधीश उस पर फल या कीड़े लगते देखते हैं।

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