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'छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 23 जुलाई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य की 19 नदियों, खासकर अरपा नदी के उद्गम स्थल की हालत पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि नदियों के उद्गम स्थल की पहचान कर उसे राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए और उनके संरक्षण के लिए एक अलग समिति बनाई जाए। कोर्ट ने राजस्व रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया है।
इस मामले में वकील अरविंद शुक्ला और रामनिवास तिवारी ने जनहित याचिकाएं दायर की थीं। उन्होंने अरपा नदी के उद्गम की रक्षा, उसमें हो रहे प्रदूषण को रोकने और अवैध खनन पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
अरपा अर्पण महा अभियान समिति की एक जनहित याचिका पर भी हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस में आरोप लगाया गया है कि सरकार के प्रतिबंध के बावजूद अरपा नदी में कई जगह खुलेआम अवैध खनन हो रहा है। इसके साथ ही, अवैध खनन से नदी में बने गहरे गड्ढों और उनमें डूबकर हुई मौतों पर भी अदालत ने खुद संज्ञान लिया था। तीन साल पहले अरपा नदी के सेंदरी इलाके में तीन बच्चियां अवैध खनन से बने गड्ढे में डूब गई थीं। मंगलवार को सुनवाई के दौरान इस हादसे का जिक्र कोर्ट में हुआ, जिसमें बताया गया कि बारिश में खनन से बना गहरा गड्ढा मौत की वजह बना। कोर्ट ने सरकार से इस संबंध में हलफनामा देकर पूरी जानकारी देने को कहा है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में सुनवाई के दौरान सरकार ने माना कि केवल अरपा नदी के लिए एक समिति बनाई गई है, जबकि अन्य नदियों के लिए कोई समिति नहीं है। इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी नदियों के उद्गम को रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
याचिका में यह बात भी उठी थी कि कई नदियों के उद्गम स्थलों को सरकारी रिकॉर्ड में 'नाला' (ड्रेन) बताया गया है, जो गलत और आपत्तिजनक है। हाईकोर्ट ने इस पर नाराज़गी जताई और कहा कि ऐसी गंभीर गलती तुरंत सुधारी जाए।
सुनवाई के दौरान बताया गया कि गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले के कलेक्टर ने अरपा नदी के उद्गम की पहचान के लिए लेडर सर्वे का प्रस्ताव भेजा था, जिसकी लागत करीब 2 करोड़ 60 लाख रुपये थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बजाय व्यावहारिक और स्थानीय उपाय खोजे जाएं।
हाईकोर्ट ने सरकार से सभी जरूरी सूचनाएं और हलफनामे पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई सितंबर माह में होगी।