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हाई कोर्ट ने कहा - गुस्से में बोले गए शब्द सुसाइड की वजह नहीं माने जा सकते
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
लासपुर, 6 जुलाई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 13 साल पुराने एक सुसाइड केस में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने महिला की मौत के मामले में उसके पति और ससुर को दोषमुक्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि ससुराल में की गई टिप्पणियां और अपशब्द, आत्महत्या के लिए उकसाने का ठोस आधार नहीं बनते।
इससे पहले निचली अदालत ने पति और ससुर को 7 साल के सश्रम कारावास और 1 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
31 दिसंबर 2013 को रायपुर के एक अस्पताल में एक महिला को गंभीर रूप से जलने के बाद भर्ती किया गया था। इलाज के दौरान उसने कार्यपालक मजिस्ट्रेट को दिए बयान में बताया था कि ससुराल वालों की गालियों और अपमानजनक व्यवहार से तंग आकर उसने केरोसिन डालकर खुद को आग लगाई। महिला की मौत 5 जनवरी 2014 को हुई।
मृतका के परिवार वालों ने भी बयान में कहा था कि पति-पत्नी के बीच आए दिन झगड़े होते थे और मानसिक प्रताड़ना दी जाती थी। इसी आधार पर ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराया था।
हाईकोर्ट में अपील के दौरान पति और ससुर की तरफ से कहा गया कि महिला को आत्महत्या के लिए तुरंत कोई सीधा उकसावा नहीं दिया गया था। कोर्ट ने माना कि बयान में जो बातें कही गईं, वे गंभीर जरूर हैं लेकिन इतनी नहीं कि महिला को आत्महत्या के लिए मजबूर मान लिया जाए।
न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु ने कहा कि गुस्से में कहे गए शब्द, अगर जानबूझकर आत्महत्या के लिए नहीं कहे गए हों, तो उसे 'उकसावा' नहीं माना जा सकता।
मृतका की शादी को 12 साल हो चुके थे, इसलिए कानून में जो 7 साल के भीतर सुसाइड के मामलों में ससुराल वालों पर संदेह का प्रावधान है (धारा 113 ए), वो भी यहां लागू नहीं होता।
इस फैसले के साथ हाईकोर्ट ने पति और ससुर को सभी आरोपों से बरी कर दिया।