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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मान्यता का भ्रष्टाचार दशकों से चले आ रहा बिना किसी रोक-टोक
सुनील कुमार ने लिखा है
05-Jul-2025 4:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : मान्यता का भ्रष्टाचार दशकों से चले आ रहा बिना किसी रोक-टोक

सीबीआई ने देश के कई राज्यों में मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने के मामले में चल रहे व्यापक और लगातार भ्रष्टाचार में दर्जनों लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट पेश की है, और कई लोगों को गिरफ्तार किया है जिनमें छत्तीसगढ़ स्थित श्री रावतपुरा मेडिकल कॉलेज के ट्रस्टी और डॉक्टर भी हैं। इनके साथ चार्जशीट में रावतपुरा सरकार के नाम से चर्चित मध्यप्रदेश के एक धार्मिक-आध्यात्मिक व्यक्ति समझे जाने वाले रविशंकर महाराज उर्फ रावतपुरा सरकार का नाम भी लिखा गया है, जिनके नाम पर यह मेडिकल कॉलेज है। सीबीआई की इस एफआईआर से नेशनल मेडिकल कमीशन के व्यापक भ्रष्टाचार का भांडाफोड़ होता है जिसमें केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग जैसे कई महत्वपूर्ण संस्थानों के लोग मेडिकल कॉलेजों को फर्जी मान्यता देने में शामिल मिले हैं। इसी सिलसिले में ये गिरफ्तारियां हुईं, और इनमें यूजीसी के चेयरमेन रहे हुए डीपी सिंह का नाम भी शामिल है, जो गोपनीय सूचनाएं मेडिकल कॉलेजों को गैरकानूनी तरीके से बेचते थे। इस भयानक भ्रष्टाचार में मान्यता-कमेटी के सदस्य डॉक्टर भी गिरफ्तार हुए हैं, और महिला और पुरूष सभी इसमें शामिल हैं। देश में उत्तर और दक्षिण के बीच जो विभाजन चल रहा है, वह भी यहां काम नहीं आया, और उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक के लोगों ने इस जालसाजी, धोखाधड़ी, और रिश्वतखोरी में पूरी तरह से भाई-बहनचारा निभाया है। अब मान लो सीबीआई का भांडाफोड़ किया हुआ इतना व्यापक भ्रष्टाचार काफी न हो, तो सीबीआई ने गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमेन डॉ.मोन्टू पटेल का 54 सौ करोड़ रूपए का घोटाला पकड़ा है जो कि उसने देश के 12 हजार से अधिक फार्मेसी कॉलेजों से उगाही करके इकट्ठा किए हैं। सीबीआई का कहना है कि मोन्टू पटेल फरार हो गया है, और वह राजनीतिक संरक्षण से अब तक तमाम आरोपों के बाद भी फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया का चेयरमेन बना हुआ था, और अब अंडरग्राउंड होकर विदेश भागने के चक्कर में है। सीबीआई का ही कहना है कि उसने हवाला रैकेट से पैसा देश के बाहर भी भेज दिया है।

ये दोनों मामले देश की मेडिकल शिक्षा, और मेडिकल कारोबार से जुड़े हुए हैं, और इन दोनों में ऐसा व्यापक, संगठित, और परले दर्जे का भ्रष्टाचार यह सोचने को मजबूर करता है कि देश में चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा सेवा, और दवा कारोबार का क्या हाल है। यह सब तो उसके बाद है जब पता लगता है कि भारत से दुनिया भर के देशों में गई हुई ढेरों किस्म की दवाईयां घटिया, बेअसर, और मिलावटी मिली हैं। पहले तो यहां से गए हुए कफ सिरप से कुछ देशों में बच्चे मारे गए थे, और अभी यह पता लगा है कि बहुत से देशों में भारत से गई हुईं कैंसर की दवाईयां घटिया, नकली, और बेअसर निकली हैं। अब कैंसर मरीजों को ये दवा देने के बाद वहां के डॉक्टर और मरीज बेफिक्र हो गए होंगे कि उनका इलाज चल रहा है, और अब दवाईयों के ऐसे मिलने पर उनकी जिंदगी के वे गुजरे हुए दिन लौट भी नहीं सकते, वे जाने कितने अरसे से बेइलाज चल रहे थे। इससे परे देश भर में जगह-जगह चिकित्सा घोटाले मिल रहे हैं, छत्तीसगढ़ में भी जांच एजेंसियां लगातार लगी हुई हैं कि पिछले बरसों में इस राज्य में कैसी घटिया दवाएं खरीदी गईं, बिना मशीन री-एजेंट खरीद लिए गए, बिना टेक्नीशियन मशीन खरीद ली गई, और इंसान, मशीन, और री-एजेंट के बीच कोई रिश्ता ही नहीं रखा गया।

इन सब बातों को मिलाकर देखें, तो भारत की धार्मिक भावना पर भरोसा पुख्ता होने लगता है कि इतना सब होने पर भी अगर देश की आबादी 140 करोड़ बनी हुई है, बढ़ती चली जा रही है, तो यह सब ऊपरवाले की मेहरबानी है। बिना भगवान भरोसे इतनी जिंदगियां, ये डॉक्टर, ये दवाएं, और ये अस्पताल तो बचा नहीं सकते थे। कोई न कोई अदृश्य ताकत ऐसी है जो कि हिन्दुस्तानियों को जिंदा रखे हुए है। अब हैरानी की दूसरी बात यह है कि हर किस्म के कॉलेजों को मान्यता देने के लिए देश में जो ढांचा बना हुआ है, वह भ्रष्टाचार से बुरी तरह सड़ चुका है। चाहे इंजीनियरिंग कॉलेज हों, चाहे नर्सिंग, या दूसरे कोई पैरामेडिक कॉलेज हों, सबकी मान्यता में यही हाल है। इस पूरे कारोबार के एक जानकार, ऐसे एक कॉलेज संचालक राजीव गुप्ता ने हमारे यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल पर कई महीने पहले यह कहा था कि बिना रिश्वत दिए कोई मान्यता नहीं मिलती, और अभी सीबीआई के इन छापों से यह बात सही साबित हो रही है। हैरानी यह है कि नेशनल मेडिकल कमीशन के पहले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया होती थी जो कि मेडिकल कॉलेजों की मान्यता का काम करती थी, और वह भी इसी दर्जे की बदनाम संस्था हो गई थी, और उसके उस वक्त के अध्यक्ष गुजरात के एक डॉ.केतन देसाई थे, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों पर ही हटाया गया था। वे भी अहमदाबाद के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाते थे, और बाद में आईएमए के अध्यक्ष बने, वल्र्ड मेडिकल एसोसिएशन के भी अध्यक्ष बने, और एमसीआई के भ्रष्टाचार की वजह से हाईकोर्ट ने उन्हें हटाया था, एक मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने के लिए दो करोड़ रिश्वत लेते हुए डॉ.देसाई को गिरफ्तार किया गया था, और जेल भेजा गया था। ऊपर लिखी गई संस्थाओं के अलावा वे डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया का भी अध्यक्ष रहे। नगद रकम के अलावा सीबीआई ने देसाई के घर से डेढ़ किलो सोना, 80 किलो चांदी भी जब्त की थी, और 2020 में सरकार ने एमसीआई को खत्म करके नेशनल मेडिकल कमीशन बनाया, जिसने पांच साल के भीतर ही भ्रष्टाचार की नई ऊंचाईयां पा लीं।

जब केन्द्र सरकार के बड़े-बड़े संस्थानों का यह हाल है, यूजीसी जैसे प्रतिष्ठित, और राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग का यह हाल है, मेडिकल कॉलेजों की तैयारी के बिना उन्हें मान्यता बेचने का ऐसा संगठित भ्रष्टाचार है, तो यहां से कैसे डॉक्टर निकलते होंगे, और कैसी नर्सें निकलती होंगी? क्या ऐसे लोगों को दुनिया के विकसित देश अपने यहां नागरिकों के इलाज के लिए काम पर रखना चाहेंगे? आज अगर भारतीय चिकित्सा कर्मियों की बदनामी बाहर नहीं भी हुई है, तो आगे-पीछे यह बदनामी वहां तक पहुंचेगी। और निजी मेडिकल कॉलेजों, या दूसरे चिकित्सा-शिक्षा संस्थानों का भ्रष्टाचार से खरीदा गया दर्जा उनकी साख को पूरी दुनिया में बर्बाद करके रहेगा। जिन दो-तीन बातों को लेकर थोड़ी हैरानी हो रही है, उनमें से यह कि एक के बाद दूसरी काउंसिल के अध्यक्ष एक शहर अहमदाबाद के डॉक्टर कैसे मिल रहे हैं, और किस तरह उनका देश भर में दशकों से फैला हुआ भ्रष्टाचार का नेटवर्क चलते चले आ रहा है। यह भला केन्द्र और राज्य सरकारों की नजरों से, केन्द्रीय खुफिया एजेंसियों की नजरों से अनदेखा कैसे रह सकता है, अगर 12 हजार कॉलेजों से एक रेटकार्ड बनाकर 10-15 लाख रूपया हर किसी से वसूला गया, कुल 54 सौ करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ, पैसा देश के बाहर भी चले गया, और डॉ.मोन्टू पटेल अंडरग्राउंड भी हो गया! यह पूरा सिलसिला बताता है कि हिन्दुस्तान के तन-मन में भ्रष्टाचार के कैंसर की जड़ें कितने गहरे फैल चुकी हैं, और देश के पूरे बदन में फैल चुकी हैं। क्या ऐसे गहरे और फैले हुए कैंसर का कोई इलाज मुमकिन भी होगा? अभी भी लोगों का यह मानना है कि सैकड़ों मेडिकल कॉलेजों में से किसी एक का भ्रष्टाचार ही पकड़ा गया है, और 99 फीसदी भ्रष्ट तो अभी भी रिश्वत देकर फर्जी मान्यता प्राप्त कर रहे हैं, जिसके कि वे हकदार नहीं हैं। अब देश की ऐसी हालत में हम किस-किस मामले में अदालत की दखल की उम्मीद कर सकते हैं? जो बात देश में बच्चे-बच्चे को मालूम है, एक-एक कॉलेज में दर्जन-दो दर्जन लोगों को यह पता रहता है कि कितनी रिश्वत दी जा रही है, और दाखिले के लिए कितनी रिश्वत ली जा रही है, ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकारों को ही इसकी भनक न लगे, यह तो पूरी तरह अविश्वसनीय बात है। सरकारों को आर्थिक अपराधों की रोकथाम के लिए, भ्रष्टाचार रोकने के लिए अपना खुफिया तंत्र मजबूत करना चाहिए, हमारी यह बात लिखते-लिखते कम से कम एक पूरी पीढ़ी तो गुजर ही चुकी है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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